बिलों का भुगतान न होने से कांट्रेक्टर्स में मची है त्राहि-त्राहि, कामकाज ठप
वेस्टर्न रेलवे कांट्रेक्टर्स एसोसिएशन ने डीआरएम/मुंबई सेंट्रल/पश्चिम रेलवे को लिखा पत्र
रेल प्रशासन द्वारा दिसंबर 2019 से रोक दिए गए हैं रेलकर्मियों/अधिकारियों के तमाम भत्ते
रेलवे के तमाम कांट्रेक्टर्स/सप्लायर्स पिछले कुछ महीनों से अत्यधिक परेशान हैं, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से उनके बिलों का भुगतान रेल प्रशासन द्वारा नहीं किया जा रहा है। इससे कांट्रेक्टर और सप्लायर न तो अपनी देनदारी चुका पा रहे हैं और न ही अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर पा रहे हैं।
कई कांट्रेक्टरों और सप्लायरों ने कानाफूसी.कॉम को फोन करके अपनी आपबीती सुनाई। उनका कहना था कि कई महीनों से उनके फाइनल बिलों का भुगतान रेलवे ने नहीं किया है। एक सप्लायर ने यह भी कहा कि उसने पिछले साल जुलाई में कुछ मेडिकल इंस्ट्रूमेंट्स की सप्लाई का अपना करीब 35-36 लाख का बिल पश्चिम रेलवे को सब्मिट किया था, जिसका भुगतान आज तक नहीं किया गया है। उक्त सप्लायर का यह भी कहना था कि इतने लंबे समय तक बिल रोककर रखा जाता है, तब भी उस पर रेलवे द्वारा कोई व्याज नहीं दिया जाता है।
उल्लेखनीय है कि प्रत्येक टेंडर या सप्लाई ऑर्डर जारी करने से पहले ही निर्धारित मात्रा में संबंधित अधिकारियों द्वारा अपना कमीशन कांट्रेक्टर या सप्लायर से एडवांस में ले लिया जाता है। तथापि समय पर बिल भुगतान की जिम्मेदारी कोई अधिकारी नहीं लेता है। यही स्थिति टेंडर जारी करने वाले विभाग से लेकर लेखा विभाग तक समान रूप से लागू है। रेल अधिकारियों का सिर्फ एक ही जवाब है कि फंड नहीं है।
उन्होंने बताया कि अब यह हालत है कि कोई अधिकारी काम करने के लिए भी दबाव नहीं बना रहा है, इसके चलते रेलवे के लगभग सभी काम ठप पड़ गए हैं। कांट्रेक्टर्स का यह भी कहना है कि जो काम पूरे हो जाते हैं, और जिनका फाइनल बिल सब्मिट हो जाता है अथवा फाइनल भुगतान भी हो जाता है, उन कार्यों के लिए जमा कराई गई ईएमडी, सिक्योरिटी डिपॉजिट और बैंक गारंटी भी रेलवे द्वारा समय से नहीं लौटाई जाती है। इन्हें लौटाने में भी सालों लगा दिए जाते हैं। यही नहीं, यह वापस लेने के लिए भी कांट्रेक्टर्स और सप्लायर्स को अलग से दस्तूरी देनी पड़ती है।
मुंबई सेंट्रल डिवीजन, पश्चिम रेलवे के तमाम कांट्रेक्टर्स ने तो बाकायदा एक पत्र लिखकर मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) को वर्क एक्जीक्यूशन में आने वाली परेशानियों और लंबे समय से बिलों का भुगतान न होने से अवगत कराया है।
वेस्टर्न रेलवे कांट्रेक्टर्स एसोसिएशन द्वारा डीआरएम, मुंबई सेंट्रल को लिखे गए पत्र में उठाए गए कुछ मुद्दे इस प्रकार हैं-
1. The major issue is scarcity/crises of funds in railway, hence our running bills and final bills are not passed. All the contractors are facing the same problem. As we had entered into the contract, we had to execute the work, for which we have deployed all the resources for progress/completion of work in time but we are unable to make labour/suppliers payments.
2. In many work orders final bills and PVC bills are sended to Accounts or are lying in division but not paid due to scarcity/crises of fund. Maintenance period is also over for some work orders but security deposits (SDs) are not released as bills are not passed. Please release SD in such type of work orders for which final bills/PVC bills are in positive. This is more helpful to us in this type of situation.
3. The final bills and PVC bills which are prepared and submitted to the division office but these bills are long pending (more than 2-3 years) due to sanction of final variation or some other reasons, please give instruction and set a cut of date to clear the bills.
4. In many tenders our contract agreements are not prepared in time, even after submission of PBG, due to this delay our running bills are not passed, hence we are stuck and work is affected.
5. Work orders are issued but site is not handed over/no scope of work/GAD and structural drawings are not available, hence there is no progress, please short close this type of work orders and release our PBG & SD if railway is not interested to carry out the work and handing over site.
6. Too much delay in release of PBG/SD and unsuccessful tenders’ EMD which was submitted online, please release that type of all assets.
वेस्टर्न रेलवे कांट्रेक्टर्स एसोसिएशन द्वारा दिए गए उपरोक्त कारण यह समझने के लिए पर्याप्त से भी ज्यादा पर्याप्त हैं कि रेलवे कांट्रेक्टर और सप्लायर किस कदर परेशान हैं। तथापि उनका यह भी कहना है कि इतना ज्यादा हैरान-परेशान करने के बाद भी जब आधा-अधूरा भुगतान किया जाता है, तो भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी में आकंठ डूबे संबंधित रेल अधिकारी ऐसा दर्शाते हैं जैसे वे उन पर कोई बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं।
एक तरफ कांट्रेक्टर्स और सप्लायर्स के बिलों का भुगतान न होने से उनमें त्राहि-त्राहि मची हुई है, तो दूसरी तरफ मंत्री जी शो-बाजी में व्यस्त हैं। जबकि यह हर साल का एक स्थाई सिलसिला बन गया है। हर साल बजट के चार महीने पहले से ही कांट्रेक्टर/सप्लायर के बिलों और रेलकर्मियों एवं अधिकारियों के भत्तों का भुगतान रोककर रेल प्रशासन जितनी तथाकथित बचत दर्शाने की कोशिश करता है, उससे कई गुना ज्यादा राशि अधिकारियों द्वारा हर साल रिश्वतखोरी में हड़प ली जाती है। यह एक वस्तुस्थिति है।
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