April 7, 2019

भारतीय रेल में बढ़ती अराजकता और अनुशासनहीनता

अधिकारी और कर्मचारी पर समान रूप से लागू हो नियम 14/2

सुरेश त्रिपाठी

भारतीय रेल में एक तरफ जहां कुछ अधकचरे और पूर्वाग्रही अधिकारियों की मनमानी तथा रेलकर्मियों का अनावश्यक उत्पीड़न करने के मामले बढ़ रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ रेल कर्मचारियों और यूनियन पदाधिकारियों में अनुशासनहीनता बड़े पैमाने पर बढ़ी है. इसके लिए दोनों पक्ष जिम्मेदार हैं, क्योंकि जब सालों तक कर्मचारियों की चार्जशीटें लंबित रखी जाएंगी, उनका आर्थिक और मानसिक उत्पीड़न किया जाएगा, अनावश्यक दंड देकर नौकरी से बर्खास्त किया जाएगा, निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया जाएगा, तो कर्मचारियों में आक्रोश पैदा होना स्वाभाविक है. यह भी सही है कि प्रत्येक स्तर पर प्रक्रिया की अवधि तय है, तथापि प्रशासनिक एवं अनुशासनिक अधिकारियों द्वारा उसका पालन नहीं किया जाता है. इसके लिए उनके विरुद्ध रेल प्रशासन द्वारा जिम्मेदारी सुनिश्चित करने की भी कोई कार्यवाही नहीं की जाती है. इस सबके बावजूद कर्मचारियों अथवा अधिकारियों द्वारा एक-दूसरे पर हमला करना, मारपीट करना कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता है.

पिछले हप्ते मध्य रेलवे, मुंबई मंडल के सीनियर डीईई/ऑपरेशन जैसे एक अधकचरे अधिकारी की मनमानी और पक्षपात के कारण सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ की अगुआई में मोटरमैनों ने नियमानुसार कार्य (वर्क-टू-रूल) करना शुरू किया और ओवरटाइम करने से मना कर दिया. इससे मात्र तीन घंटे में करीब 1700 लोकल ट्रेनों को रद्द करना पड़ा. इसके कारण लाखों यात्रियों को परेशान होना पड़ा. मुंबई मंडल के तमाम गार्ड्स, मोटरमेन, लोको पायलट्स, लोको इंस्पेक्टर्स इत्यादि रनिंग स्टाफ के कर्मचारी इस अधिकारी की जातिवादी मानसिकता का भी शिकार होते रहे हैं. उक्त पद पर आने के तुरंत बाद इसी तरह इस अधिकारी ने पक्षपात करते हुए रनिंग स्टाफ का एक पदोन्नति पैनल घोषित किया था और जिस तरह उक्त पैनल को कैट द्वारा निरस्त किया गया, उससे यदि यह प्रथम श्रेणी अधिकारी नहीं होता, तो इसे नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता था.

तथापि इस अधिकारी कि मनमानियों पर कोई लगाम नहीं लगी. मुंबई मंडल सहित मध्य रेलवे मुख्यालय में बैठे समस्त अधिकारियों को यह बखूबी ज्ञात है कि चाहे जितनी सतर्कता बरती जाए, यहां स्पेड के मामले नहीं रोके जा सकते हैं. मोटरमैनों को निर्धारित विश्राम और रिलीफ न देना, उनसे लगातार ड्यूटी लेना और फिर थके-हारे उक्त कर्मचारी से यदि कोई स्पेड हो जाए, या कोई लोकल प्लेटफार्म पर निर्धारित मार्क से आगे निकल जाए, तो उसे सीधे नौकरी से बर्खास्त कर देना या वीआरएस लेने के लिए मजबूर करना, संबंधित अधिकारी की आदतों में शुमार हो गया है. मगर गलत जगह पर लगे जिस सिगनल को सही जगह लगाए जाने की मोटरमैनों की मांग को मंडल के संबंधित अधिकारी लंबे समय से नजरअंदाज करते आ रहे हैं, उनके विरुद्ध प्रशासन ने आजतक कोई कदम नहीं उठाया है. यह कैसा प्रशासन और न्याय है?

अब जहां तक मोटरमैनों की बात है, तो वह भी दूध के धुले नहीं हैं. ओवरटाइम के लिए मरे जाते हैं, उस पर भी तुर्रा यह कि ओवरटाइम नहीं करेंगे, जैसे कि प्रशासन उनसे जबरदस्ती ओवरटाइम करा रहा है. यदि वह इसके लिए मना कर दें, तो किसी भी अधिकारी की यह मजाल नहीं हो सकती है, कि उनसे जबरन ओवरटाइम करा सके. मंडल के सभी मोटरमैनों सहित संघ को भी यह बखूबी ज्ञात है कि भुसावल जोनल ट्रेनिंग सेंटर में प्रशिक्षणरत 50-55 मोटरमेन अगले महीने तक सेवा में आने वाले हैं. इससे वर्तमान 229 रिक्त स्थानों की कुछ पूर्ति हो जाएगी.

इसके अलावा महाप्रबंधक/म.रे. देवेंद्र कुमार शर्मा द्वारा यह भरसक प्रयास किया जा रहा है कि दिसंबर-जनवरी तक उक्त सभी रिक्त स्थानों की भरपाई हो जाए. यह सब जानते-बूझते हुए भी यदि वर्क-टू-रूल का नाटक करके लाखों यात्रियों को परेशान किया गया, तो चुनावी वर्ष में अपनी ताकत दिखाने के अलावा और इसका अन्य कोई औचित्य नहीं था. यह रिक्तियां कोई नई नहीं हैं और लंबे समय से चली आ रही हैं, मगर समय-समय पर इनकी कुछ न कुछ पूर्ति होती भी रही है. तथापि यात्रियों को इस तरह परेशान करना एक अक्षम्य अपराध माना जाना चाहिए.

इसके बावजूद यदि उस दिन गाड़ियां रोकी गईं, और लाखों उपनगरीय यात्रियों को परेशान किया गया, तो यह संगठनों और मोटरमैनों दोनों द्वारा निजी स्वार्थ में किया गया कृत्य है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि जिन कुछ मोटरमैनों को स्पेड के मामलों में बर्खास्त किया गया था, इस बहाने उनकी बहाली कराने का दबाव बनाया गया. निश्चित रूप से इसके लिए लाखों यात्रियों को अधर में अटकाने की अनुमति किसी को नहीं दी जा सकती है. परंतु मोटरमैनों को यह कदम इसलिए भी उठाना पड़ा, क्योंकि संबंधित अधिकारी इसे परंपरा बना रहे थे, जबकि पूर्व में यूनियनों और प्रशासन के साथ यह कई बार तय हो चुका है कि स्पेड के मामलों में परिस्थितियों को संज्ञान में रखकर दंड का निर्धारण किया जाएगा, परंतु संबंधित अधिकारीगण इसके बावजूद अपनी मनमानी कर रहे हैं. यह उचित नहीं है.

इसी प्रकार मध्य रेलवे के जसई यार्ड में लंबे समय से कर्मचारियों की कई समस्याएं चली आ रही थीं, नेशनल रेलवे मजदूर यूनियन द्वारा इसके लिए कई बार मंडल प्रशासन को आगाह किया गया था. परंतु मंडल प्रशासन कान में तेल डालकर सोता रहा. आखिर जब यूनियन ने यार्ड को बंद कर देने की धमकी (नोटिस) दे दी, तब मंडल प्रशासन को होश आया और उसने आनन-फानन में यूनियन पदाधिकारियों के साथ एक विशेष बैठक बुलाकर तत्काल हल होने वाली समस्याओं का तुरंत समाधान किया. बाकी समस्याओं के समाधान हेतु समय-सीमा निर्धारित की गई. इसके बाद यार्ड को बंद करने की तैयारी को यूनियन ने स्थगित किया. यदि संबंधित अधिकारी समय रहते समस्याओं की सुनवाई और उनका समाधान करें, तो उनकी नाक में नकेल डालने की नौबत ही क्यों आए? परंतु यहां तो जिन समस्याओं पर पहले ही आपसी सहमति हो चुकी होती है, संबंधित मूढ़ अधिकारियों द्वारा उन पर भी अमल नहीं किया जाता. सवाल यह है कि इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध प्रशासन द्वारा कोई कड़ा कदम क्यों नहीं उठाया जाता है?

उधर जबलपुर मंडल, पश्चिम मध्य रेलवे में एक सीनियर लोको पायलट हैरिसन जॉन द्वारा आत्महत्या किए जाने की जो दर्दनाक घटना रविवार, 12 अगस्त को घटित हुई, उसके लिए भी एक अधकचरे अधिकारी (सीनियर डीईई/टीआरऑ) सुरेंद्र यादव की मनमानी ही ज्यादा जिम्मेदार है. यादव ने कथित और अप्रमाणित एक ही अपराध के लिए बिना लोको पायलट का पक्ष सुने ही उसे सीनियर लोको पायलट/मेल से पदावनत करके शंटर बना दिया और उसका मूल वेतनमान घटाकर आधा कर दिया था. न्याय के लिए परिवार सहित उसने मंडल के सभी संबंधित अधिकारियों के चक्कर लगाए, मगर अधिकारियों ने उसकी कोई सुनवाई नहीं की. परिणामस्वरूप उसने महाकौशल एक्स. के सामने कूदकर अपनी जान दे दी. इससे अब शायद मंडल के उन सभी अधिकारियों के कलेजे को भारी ठंडक मिल गई होगी, जिन्होंने समय रहते उसकी सुनवाई करके उसके साथ न्याय नहीं किया था.

इसके अलावा शुक्रवार, 10 अगस्त को चारबाग, लखनऊ स्थित मंडल रेल चिकित्सालय, उत्तर रेलवे के एक वरिष्ठ डॉक्टर एसीएमएस डॉ. जगदीश चंद्रा के साथ नार्दर्न रेलवे मेंस यूनियन (एनआरएमयू) की आलमबाग वर्कशॉप शाखा के टेक्नीशियन स्तरीय एक पदाधिकारी मणिकांत शुक्ला ने मारपीट, गाली-गलौज और बदसलूकी की. यह अफसोसनाक घटना प्रशासनिक लापरवाही के चलते कर्मचारियों में पैदा हुए असंतोष के कारण घटित हुई या उक्त पदाधिकारी के अहंकार की बदौलत, इसकी तह में न जाते हुए यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि मारपीट, गाली-गलौज, बदसलूकी और एक-दूसरे पर वर्चस्व कायम करने के किसी भी पक्ष के ऐसे किसी प्रयास को उचित नहीं ठहराया जा सकता, यह कतई मान्य नहीं हो सकता है. तथापि अब आलमबाग के कर्मचारी अनुशासन में रहने और अपना निर्धारित काम करने के बजाय इस बात को लेकर मुख्य कारखाना प्रबंधक कार्यालय के सामने क्रमिक प्रदर्शन कर रहे हैं कि उनके उद्दंड पदाधिकारी का तबादला रद्द क्या जाए. यानि उनका मानना है कि उनका लीडर चाहे जैसी उद्दंडता करे, प्रशासन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई न करे. यह कैसी मांग हुई?

रेलकर्मियों के साथ लगातार हो रही दुर्व्यवहार की घटनाओं को लेकर एआईआरएफ के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहनी से मिलकर उन्हें सभी घटनाओं की जानकारी दी और असंतोष व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि लखनऊ की घटना से तो हम सब हैरान हैं. मगर जो संदेश कॉम. मिश्रा ने सोशल मीडिया पर प्रसारित किया, उससे तो यही लगता है कि उनकी हैरानी अथवा चिंता घटना को लेकर नहीं, बल्कि घटना की जांच और सुनवाई न होने तथा उनके पदाधिकारी का ट्रांसफर किए जाने को लेकर ज्यादा थी. उन्होंने सीआरबी से यह भी कहा कि यह कर्मचारी विरोधी रवैया है. निश्चित रूप से यह कर्मचारी विरोधी रवैया है, परंतु कॉम. मिश्रा ने कर्मचारियों और अपने कुछ उद्दंड एवं कदाचारी पदाधिकारियों के लिए भी ऐसा ही कोई संदेश सोशल मीडिया पर प्रसारित करना जरूरी नहीं समझा कि उनका उक्त प्रकार का कृत्य अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है और यह प्रशासन विरोधी रवैया माना जाएगा!

उक्त सोशल मीडिया संदेश के अनुसार कॉम. मिश्रा ने सीआरबी से यह भी कहा कि “जबलपुर में लोको पायलट को इस कदर परेशान किया गया कि उसने आत्महत्या कर ली. पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे में ट्रालीमेन से कान पकड़कर उठक-बैठक करने को कहा गया. उस पर आपके ट्विट से अफसरों का मन और बढ़ेगा.” कॉम. मिश्रा की शिकायत एकदम जायज है और फील्ड में यह सब हो भी रहा है. मगर शायद वह भूल गए हैं कि जब उनके ही एक पदाधिकारी, एसएसई ने उसके घर का काम करने से मना कर देने पर एक ट्रैकमैन को कान पकड़कर इसी तरह उठक-बैठक करवाई थी, जिसका वीडियो वायरल होते हुए सीआरबी तक भी पहुंचा था और उन्होंने कड़ी कार्यवाही का पुख्ता आश्वासन भी दिया था, मगर यदि यह कहा जाए कि फेडरेशन या उनके ही हस्तक्षेप से उक्त मामले में आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो शायद गलत नहीं होगा.

उक्त सोशल मीडिया संदेश में यह भी कहा गया है कि “चेयरमैन, रेलवे बोर्ड ने कहा कि किसी भी रेल कर्मचारी का उत्पीड़न बर्दास्त नहीं किया जाएगा. लखनऊ समेत सभी घटनाओं की उच्च स्तरीय जांच होगी, जो कोई भी दोषी होगा, उसके विरुद्ध सख्त कारवाई की जाएगी. सीआरबी ने उन्हें आश्वस्त किया है कि लखनऊ के मामले में एकतरफा कार्रवाई नहीं होगी.”

जबकि महाप्रबंधकों के व्हाट्सऐप ग्रुप से प्राप्त एक संदेश के अनुसार सीआरबी ने लखनऊ की घटना पर कहा कि “जीएम/उ.रे. ने डॉक्टर के साथ मारपीट और गुंडागर्दी करने वाले उक्त कर्मचारी को तत्काल निलंबित करते हुए उसका तबादला करके कड़ी कार्रवाई की है. इस प्रकार की घटनाएं सामान्यतः वर्कशॉप्स में घटित होती हैं, जहां स्टाफ का ध्यान ऐसी गतिविधियों पर ज्यादा रहता है. मैं चाहता हूं कि सभी जीएम्स द्वारा नीचे तक ऐसा कड़ा संदेश दिया जाए कि इस तरह की गतिविधियों को कतई स्वीकार नहीं किया जाएगा और यदि कोई यूनियन लीडर भी है, तो प्रशासन उसके खिलाफ भी कड़ा कदम उठाने से नहीं हिचकेगा. 14/2 के तहत बर्खास्तगी भी इसके लिए एक अच्छा विकल्प मौजूद है. ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए आप सभी को मेरा पूरा सहयोग और समर्थन है.”

सीआरबी का यही संदेश डॉक्टरों के ग्रुप में भी वायरल हुआ है. प्रस्तुत है ‘रेल समाचार’ को अपने स्रोतों से प्राप्त हुआ सीआरबी का ओरिजनल संदेश-

“There was recently an incident in Lucknow when a local union leader manhandled a doctor. Fortunately GM NR took tough action in suspending and transferring the hooligan. Such incidents generally happen in workshops where concentration of staff is there. I want all GM’s to send a tough message down the line that such incidents shall not be tolerated and the administration will come down with all its might even if it is a union leader. Removal under 14/2 is also a good option. You all have my full and unflinching support in curbing such incidents.”
Message from CRB 

उपरोक्त तमाम घटनाओं से स्पष्ट है कि दोषी सिर्फ एक पक्ष नहीं, बल्कि दोनों हैं. अतः नियम 14/2 के अंतर्गत प्रशासन की अनुशासनिक कार्रवाई दोनों के लिए समान रूप से होनी चाहिए. फिर वह चाहे अधिकारी हो या कर्मचारी अथवा यूनियन लीडर. बल्कि कामचोर यूनियन लीडर और लापरवाह अधिकारियों के विरुद्ध यह कार्रवाई खासतौर पर ज्यादा कड़ाई से होनी चाहिए. इसके साथ ही आए दिन मान्यताप्राप्त संगठनों द्वारा आयोजित किए जाने वाले धरना, प्रदर्शनों, मोर्चों इत्यादि पर भी समुचित नियंत्रण करना जरूरी है, क्योंकि इनके चलते हजारों मानव घंटे के कार्य और मानव-संसाधन की बरबादी होती है. रेल संगठनों को अपनी बात रखने के लिए रेलवे ने कई फोरम उपलब्ध कराए हैं. अतः लोकतांत्रिक अधिकार का अर्थ आए दिन धरना-मोर्चा करना नहीं हो सकता है. तभी भारतीय रेल में नीचे तक न सिर्फ अनुशासन कायम किया जा सकेगा, बल्कि कार्य-वातावरण भी बनाए रखा जा सकेगा.