सीएसटी पर ‘कसाब-ब्रिज’ हादसा: जिम्मेदार कौन?

ब्रिज को ढ़हाकर जड़ से नष्ट किए गए हादसे के सारे सबूत

रेलवे और रेल अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाना सही नहीं

गुरूवार, 14 मार्च को शाम के करीब 7.30 बजे पीक ऑवर में अंजुमन-ए-इस्लाम स्कूल के फुटपाथ और मध्य रेलवे की नई प्रशासकीय इमारत से लगकर बने फुट ओवर ब्रिज (एफओबी) के अचानक भरभराकर ढ़ह जाने से छह पादचारियों की मौत हुई, जबकि इस हादसे में लगभग 40 अन्य लोग बुरी तरह घायल हुए. घायलों और मृतकों के परिजनों को मुआवजा घोषित करके और एक-दूसरे पर दोषारोपण के बाद आम चुनाव के समय अपना-अपना राजनीतिक श्रेय लूटकर अब सभी संबंधित लोग अपने पुराने कार्यों में पुनः व्यस्त हो गए हैं. उल्लेखनीय है कि मुंबई सीएसटी पर 26/11 के आतकंवादी हमले के बाद ‘कसाब ब्रिज’ के नाम से मशहूर हुए इस ब्रिज को बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन (बीएमसी) द्वारा वर्ष 1984 में बनाया गया था.

यह तो सुनिश्चित है कि उक्त ब्रिज बीएमसी द्वारा निर्मित था और पूरी तरह से बीएमसी एरिया में ही था. इसे भारी ट्रैफिक से अति-व्यस्त रहने वाली दादाभाई नौरोजी रोड को पार करके रेलवे प्लेटफार्म पर जाने हेतु पादचारी लोगों की सुविधा के लिए बीएमसी द्वारा बनाया गया था. यह भी सही है कि उपनगरीय रेलयात्रियों द्वारा भी बड़े पैमाने पर इस ब्रिज का इस्तेमाल किया जा रहा था. परंतु यह ब्रिज पूरी तरह बीएमसी एरिया में होने से इसके उचित रखरखाव और देखभाल की पूरी जिम्मेदारी बीएमसी की ही थी. स्पष्ट तथ्यों के मद्देनजर ‘रेल समाचार’ का मानना है कि इस हादसे के लिए रेल अधिकारियों और रेलवे को जिम्मेदार ठहराया जाना कतई सही नहीं है.

उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर 2017 को पश्चिम रेलवे के एलफिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन (वर्तमान प्रभादेवी) पर बरसात से बचने के लिए अचानक हुई भगदड़ से जो दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हुआ था, और उसमें कई निरीह लोगों को असमय काल-कवलित होना पड़ा था, उसके बाद सिर्फ मुंबई में मध्य एवं पश्चिम रेलवे के ही नहीं, बल्कि पूरी भारतीय रेल के सभी रोड-रेल पुलों का स्ट्रक्चरल ऑडिट किया गया था. तथापि इसी दरम्यान पश्चिम रेलवे के अंधेरी रेलवे स्टेशन के पास से गुजरते गोखले ब्रिज (आरओबी) हादसे, जिसमें चार लोगों की मौत हुई थी, के बाद राज्य सरकार द्वारा आए दबाव के चलते बीएमसी ने पूरी मुंबई के अपने सभी पुलों का स्ट्रक्चरल ऑडिट करवाया था. इसमें यह ब्रिज भी शामिल था. इसके बावजूद यदि इस ब्रिज की सतह अचानक भरभराकर ढ़ह गई है, तो इसके लिए सिर्फ बीएमसी और उसकी भ्रष्ट कार्य-प्रणाली ही जिम्मेदार है.

तथापि जैसा कि अक्सर देखा गया है कि ऐसे किसी भी हादसे के बाद फौरन स्थानीय राजनीति और एक-दूसरे पर दोषारोपण करना तथा कीचड़ उछालना शुरू कर दिया जाता है. यही इस मामले में भी हुआ. एक तरफ हादसे के फौरन बाद सरकार और स्थानीय नेताओं द्वारा हादसे के शिकार मृतकों के परिजनों और गंभीर-कम जख्मी लोगों के लिए मुआवजे की घोषणा करके लोगों का ध्यान भटकाने और अपने कर्तव्य की इतिश्री करने में लग जाता है, तो दूसरी तरफ अपनी-अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के लिए इसका दोष अन्य विभागों पर इसलिए डालने का कुत्सित प्रयास शुरू किया जाता है, कि जिससे खुद के गुनाह को थोड़ा-बहुत हल्का या कम किया और करवाया जा सके. यही प्रयास इस हादसे के बाद भी किया गया. यही कारण है कि इसमें रेलवे की कोई भूमिका न होते हुए भी उसे घसीटा गया और बीएमसी के साथ ही रेलवे के खिलाफ भी पुलिस में मामला दर्ज कराया गया.

इस संबंध में रेल यात्री परिषद, मुंबई के प्रमुख पदाधिकारी और जोनल रेलवे उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति (जेडआरयुसीसी) मध्य रेलवे के वरिष्ठ सदस्य सुभाष हरिश्चंद गुप्ता का कहना है कि उक्त पादचारी पुल रेलवे के एफओबी से जुड़ा था. लाखों रेलयात्री भी उक्त पुल का रोजाना उपयोग करते थे. श्री गुप्ता का कहना है कि रेल प्रशासन का उक्त पुल से कोई संबंध नहीं था, यह कहना गलत होगा. उनका यह भी कहना है कि जरूरत मानसिकता बदलने की है, एक-दूसरे पर आरोप ढ़केलने से कुछ नहीं होगा. उन्होंने यह भी कहा कि एलफिंस्टन की घटना के बाद रेल प्रशासन और राज्य सरकार द्वारा एफओबी और आरओबी के स्ट्रक्चरल ऑडिट्स को मजाक बनाकर रख दिया गया है.

तथापि, ‘रेल समाचार’ श्री गुप्ता की इस बात से सहमत है कि उक्त ब्रिज का इस्तेमाल रोजाना लाखों लोग करते थे, जिनमें मुंबई सीएसटी से निकलने वाले हजारों उपनगरीय रेलयात्री भी थे. परंतु यह भी सही है और यह तथ्य भी अपनी जगह कायम है कि उक्त ब्रिज बीएमसी एरिया में था, जहां रेलवे का कोई उत्तरदायित्व तय नहीं होता है. इसके अलावा इस ब्रिज की देखभाल और उचित रखरखाव की जिम्मेदारी भी बीएमसी की ही थी! अतः मध्य रेलवे और इसके अधिकारियों को इस हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने का सीधा मतलब यह है कि बीएमसी की लापरवाही और उसके गुनाह को छिपाने या कम करने के लिए रेलवे को इस गुनाह में बलि का बनाकर शामिल किया जा रहा है.

‘रेल समाचार’ का मानना है कि इस हादसे के लिए रेलवे को तब जिम्मेदार ठहराया जा सकता था, जब बीएमसी द्वारा उक्त ब्रिज पूरी तरह से रेलवे को सौंप दिया गया होता और उसके एरिया में ब्रिज के रखरखाव तथा देखभाल के लिए बीएमसी द्वारा एक निश्चित राशि हर साल रेलवे के खाते में जमा की जा रही होती. यह भी ध्यान देने वाली बात है कि रेलवे के 8-10 फुट क्षेत्र में इस ब्रिज का जो हिस्सा आता है, उस तरफ कोई टूटफूट अथवा नुकसान नहीं हुआ है.

यहां एक और ध्यान देने वाली बात है कि उसी शाम देर रात को ‘टाइम्स-नाउ’ पर इस ब्रिज हादसे को लेकर हुई बहस में शामिल मुंबई भाजपा की प्रवक्ता संजू वर्मा ने कहा कि पादचारियों के वजन और दबाव में ब्रिज ढ़ह गया. इस तरह उन्होंने ब्रिज हादसे के लिए पादचारियों को जिम्मेदार ठहरा दिया. उनके ऐसा कहने पर बहस में शामिल अन्य लोगों ने उन्हें तुरंत आड़े हाथों ले लिया. बाद में सुश्री वर्मा ने ट्विटर पर अपनी सफाई देते हुए कहा कि उन्हें अपनी पूरी बात नहीं कहने दी गई और उनकी आधी-अधूरी बात सुनकर बात का बतंगड़ बना दिया गया.

ज्ञातव्य है कि मुंबई में 26.11.2008 को हुए बहुचर्चित पाकिस्तानी आतंकवादी हमले के समय पी. डी’मेलो रोड की तरफ से सीएसटी टर्मिनस में घुसे आतंकवादी अजमल कसाब ने सबसे पहले सीएसटी टर्मिनस पर ही प्रतीक्षारत यात्रियों पर अपनी एके-47 से अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं, जिसमें कुल करीब 157 निरीह रेलयात्रियों सहित कुछ रेलकर्मी भी मौत के घाट उतर गए थे. बाद में कसाब सीएसटी उपनगरीय स्टेशन पर जीएम बिल्डिंग इत्यादि की तरफ से घूमते हुए प्लेटफार्म-1 से चलकर हादसे का शिकार हुए इसी ब्रिज को पार करके टाइम्स ऑफ इंडिया बिल्डिंग की तरफ उतरकर कामा हॉस्पिटल की तरफ गया था, जहां मुंबई पुलिस से हुई भीषण मुठभेड़ में उसका एक साथी और कई पुलिस अधिकारी मारे गए थे. तभी से लोगों ने उक्त ब्रिज का नामकरण ‘कसाब-ब्रिज’ कर दिया था.

बहरहाल, हादसे के तुरंत बाद उक्त ब्रिज को जड़ से ढ़हा दिया गया है. सारा मलबा भी फेंक दिया गया. इस तरह जांच के सारे सबूत भी जड़ से मिटा दिए गए हैं. जबकि यह सर्वविदित है कि किसी दूकान में हुई छोटी सी चोरी के बाद उक्त दूकान को अपराध की जांच पूरी होने तक के लिए सील कर दिया जाता है, जिससे सबूत नष्ट न हों. ऐसा ही पुलिस द्वारा किसी भी छोटे या बड़े अपराधों की जांच के लिए घटना और दुर्घटना स्थल को जांच पूरी होने तक के लिए सील किया जाता है. अपराध या घटना की जांच का यह कानूनन निर्धारित नियम भी है. तथापि उक्त ब्रिज को ढ़हाकर सारे अपराधिक सबूत नष्ट कर दिए गए हैं. अब दो साल पहले बीएमसी द्वारा कराए गए इस ब्रिज के कथित ऑडिट को कैसे गलत साबित किया जाएगा?