लोको कन्वर्जन और खरीद में किसने खाया करोड़ों का कमीशन?
मेंबर ट्रैक्शन ने हजारों करोड़ की लोको खरीद में सरकार की आंखों में झोंकी धूल
9000/12000 एचपी लोको फेल, स्पीड/बोगी/ब्रेक सिस्टम इत्यादि का नहीं है अप्रूवल
स्टील मास्ट की आपूर्ति में हुआ पांच हजार करोड़ रुपये का घपला, जिम्मेदार कौन?
सुरेश त्रिपाठी
मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड घनश्याम सिंह जैसा शातिर जोड़तोड़बाज अधिकारी शायद अब तक भारतीय रेल में नहीं देखा गया होगा. एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का राग अलापती रही, तो दूसरी तरफ मेंबर ट्रैक्शन सरकार की आंखों में धूल झोंकते हुए जमकर भ्रष्टाचार में लिप्त रहे. यही नहीं, वह लगातार अपनी चालबाज नीति से मंत्री की आंख के तारे भी बने रहे. रेलवे बोर्ड विजिलेंस के तत्कालीन अधिकारियों ने उनके खिलाफ शिकायतों पर जो 80 पेज की जलेबीनुमा रिपोर्ट बनाई थी, उसके आधार पर सीवीसी और ‘स्टोरकीपर’ ने उन्हें दोषमुक्त कर उनके मेंबर ट्रैक्शन बनने का रास्ता साफ करके देश के साथ बहुत बड़ा घात करने का पाप किया था. अब इन सारे मामलों पर दिल्ली हाई कोर्ट की निगरानी में यदि जांच होती है, तो निश्चित रूप से एक और बड़ा ‘रेल-गेट’ उजागर हो सकता है.
इसके अलावा घनश्याम सिंह एक तरफ सरकार, प्रधानमंत्री और रेलमंत्री की कसीदाकारी में भारतीय रेल को चार चांद लगाने के वीडियो बनाकर उनकी चापलूसी करते रहे हैं, तो दूसरी तरफ वह आजतक किसी भी प्रोजेक्ट को उसके अंतिम निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा पाए. इसके बजाय डीजल लोको को इलेक्ट्रिक लोको में परिवर्तित करने के नाम पर सैकड़ों-हजारों करोड़ रुपये का रेल राजस्व फूंक दिया. देश की जनता की गाढ़ी कमाई इस तरह फूंकती/लुटती रही और रेलवे का निजाम इस चालबाज नौकरशाह को अपना बगलबच्चा बनाकर देश की जनता को भारतीय रेल को असमान पर पहुंचा देने के ख्वाब दिखाता रहा.
9000 एवं 12000 हॉर्स पॉवर के जिन इलेक्ट्रिक इंजनों को देश में ही बनाने का कथित चमत्कार दिखाकर मेंबर ट्रैक्शन घनश्याम सिंह सरकार और मंत्री की वाहवाही लूटते रहे, आज यह इंजन किस स्थिति में और कहां हैं, इसका भी लेखा-जोखा होना चाहिए. ‘रेल समाचार’ द्वारा यहां प्रस्तुत सभी मुद्दे अपने आप में सीबीआई की गहन जांच का विषय हैं.
1. पूर्व मध्य रेलवे के धनबाद मंडल स्थित गोमो लोको शेड के लिए 31 मार्च और 1 अप्रैल की रात करीब 1 बजे 9000 हॉर्स पॉवर का जो लोको सीएलडब्ल्यू से रवाना किया गया था, लगभग दो महीने बीत जाने के बाद यह लोको आज भी गोमो लोको शेड में लावारिश खड़ा है. इसका कोई उपयोग नहीं हो रहा है. रेलवे के उच्च स्तरीय विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार इस लोको के लिए आरडीएसओ के मोटिव पॉवर डायरेक्टरेट से जारी किया जाने वाला ‘इनिशियल स्पीड सर्टिफिकेट’ भी आज तक नहीं लिया गया है.
जानकारों का कहना है कि यदि ‘इनिशियल स्पीड सर्टिफिकेट’ जारी नहीं किया गया था, तो सवाल यह उठता है कि फिर इस लोको को किस अधिकार के तहत सीएलडब्ल्यू से रवाना किया गया? उनका यह भी कहना है कि ‘प्राथमिक गति प्रमाण-पत्र’ के बिना लोको को रवाना किया जाना व्यवस्था की बहुत बड़ी लापरवाही है. ‘रेल समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार इस लोको में मेधा का ट्रैक्शन कन्वर्टर और बीएचईएल (भेल) की ट्रैक्शन मोटर लगाई गई है, जो कि आपस में ‘कम्पेटिबल’ नहीं हैं. इसके अलावा इस लोको की बोगी और ब्रेक सिस्टम का अप्रूवल भी आज तक आरडीएसओ से नहीं लिया गया है.
यही नहीं, यह भी बताया गया कि इस लोको के इलेक्ट्रिक सिस्टम की डिजाइन का अप्रूवल भी आज तक आरडीएसओ द्वारा नहीं किया गया है. इसके साथ ही इसका कोई ‘सेफ्टी सर्टिफिकेट’ भी आज तक जारी नहीं हुआ है. इस लोको को आज तक ‘सीआरएस सर्टिफिकेशन’ के लिए भी ऑफर नहीं किया गया है, क्योंकि आज तक इसकी कोई ट्रायल स्कीम ही नहीं बन पाई है. लोको तकनीक के जानकारों और कई वरिष्ठ अधिकारियों ने मेंबर ट्रैक्शन की समझदारी(?) पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतनी सारी खामियों के रहते इस लोको को सीएलडब्ल्यू से बाहर रवाना करने के पीछे सिवाय वाहवाही बटोरने के अलावा अन्य कोई औचित्य नहीं हो सकता था.
‘रेल समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार सीएलडब्ल्यू में इस स्तर के दो अन्य लोको भी बनकर तैयार हो चुके हैं. सवाल यह उठता है कि इन लोको से संबंधित तमाम सामग्री की खरीद-फरोख्त में करोड़ों रुपये खर्च हुए हैं, उसमें जो मोटा कमीशन खाया गया, वह किसने खाया? जानकारों का कहना है कि इस एक लोको की कुल लागत लगभग 18 से 20 करोड़ रुपये आई है, इसमें मंत्री को गुमराह किया गया है अथवा मेंबर ट्रैक्शन और मंत्री दोनों ने मिलकर करोड़ों का वारान्यारा किया है.
2. नवंबर 2018 में 200 हॉर्स पॉवर प्रति घंटे की गति वाला एक इलेक्ट्रिक लोको बनाया गया था. यह मेल/एक्सप्रेस में लगने वाला पैसेंजर लोको था. जानकारों से ‘रेल समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार इस लोको के ऊपर लगे किसी भी आइटम या इक्विपमेंट्स का अप्रूवल आरडीएसओ से आज तक नहीं लिया गया है. पैसेंजर लोको होने के नाते इसके निर्माण में इसकी बोगी, ब्रेक एवं सस्पेंशन सिस्टम का खास ध्यान रखना आवश्यक था, मगर इन सभी महत्वपूर्ण सेफ्टी नॉर्म्स को दरकिनार करके सीएलडब्ल्यू में यह लोको बनाया गया है. इसीलिए कोई आश्चर्य नहीं कि इसे स्पेशल इमरजेंसी ब्रेकिंग सिस्टम इत्यादि के लिए सीआरएस को आज तक रेफर नहीं किया गया है. अब सवाल यह है कि इसकी खरीद में जो खर्च हुआ, उसमें करोड़ों का कमीशन किसने खाया?
3. डीएलडब्ल्यू, वाराणसी में दो डीजल लोकोमोटिव को कन्वर्ट करके 12000 हॉर्स पॉवर का एक इलेक्ट्रिक लोको बनाने का दावा किया गया. फरवरी 2019 में पूरे गाजे-बाजे के साथ प्रधानमंत्री से इसका उदघाटन करवाया गया. इसके बाद यह लोको, जो कि न्यूनतम 100 किमी. प्रति घंटे की गति से चलना था, मात्र 70 किमी. प्रति घंटे की गति पकड़ने में ही फेल हो गया. मेंबर ट्रैक्शन द्वारा दावा यह किया गया था कि इसको कन्वर्ट करने में सिर्फ 1.75 करोड़ रुपये की लागत आई है, जबकि इसका वास्तविक खर्च करीब 26.50 करोड़ रुपये था. यह जानकारी ‘रेल समाचार’ को अपने उच्च स्तरीय विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त हुई है.
जानकारों का कहना है कि मेंबर ट्रैक्शन द्वारा देश और सरकार की आंखों में खुलेआम धूल झोंकी गई है, क्योंकि इतने खर्च में तो एक नया और अत्याधुनिक लोको आ जाता. उसके अलावा 15-15 करोड़ रुपये के दो डीजल लोको भी बरबाद कर दिए गए, जबकि 26.50 करोड़ ऊपर से खर्च किया गया. ऐसे में उनका सवाल यह है कि दुनिया में ऐसा कौन सा लोको बनता है, जिसकी कीमत 56 करोड़ रुपये से ज्यादा हो? और जो चलता भी नहीं है?
4. चालू वित्तवर्ष 2019-20 में कुल एक हजार इलेक्ट्रिक लोको बनाने का प्रावधान किया गया है. जानकारों का कहना है कि यह एक असंभव लक्ष्य है, क्योंकि एक साल में ज्यादा से ज्यादा 5-6 सौ लोको ही बनाए जा सकेंगे. तब भी यह एक बड़ा लक्ष्य है. परंतु टेंडर एक हजार लोको की खरीद के लिए किया गया है. बताते हैं कि सिर्फ यह टेंडर करने के लिए ही सीएलडब्ल्यू एवं डीएलडब्ल्यू से मेंबर ट्रैक्शन और रेलवे के निजाम को सैकड़ों करोड़ का ‘माल’ प्राप्त हुआ है. जानकारों का कहना है कि उक्त एक हजार लोको की खरीद और इसमें सैकड़ों करोड़ का कमीशन खाने की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए ही करीब छह महीने पहले डीएलडब्ल्यू में सभी प्रकार के टेंडर करने और लोको मैन्युफैक्चरिंग का पॉवर (अधिकार) मैकेनिकल डिपार्टमेंट से छीनकर इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट को दे दिया गया था. इसका कारण यह बताया जाता है कि चूंकि इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट को मेंबर ट्रैक्शन सीधे कंट्रोल करते हैं, जबकि मैकेनिकल डिपार्टमेंट उनके अधिकार के बाहर है.
निश्चित तौर पर उपरोक्त चारों मामले स्वतंत्र रूप से और अलग-अलग जांच के लिए सरकार द्वारा सीबीआई को रेफर किए जाने योग्य हैं.
इसके अलावा निर्धारित से कम वजन के मास्ट (इलेक्ट्रिक पोल) की आपूर्ति में करीब 5000 करोड़ रुपये का घपला हुआ है. पंजाब के मंडी गोविंदगढ़ स्थित जैन स्टील इंडस्ट्रीज सहित कई अन्य कंपनियों द्वारा कम वजन के स्टील मास्ट की आपूर्ति रेलवे को की गई है. यह खरीद मेंबर ट्रैक्शन के मातहत कोर के माध्यम से हुई है. पूरे देश में स्थित विभिन्न डिपो में ली गई इस आपूर्ति में मास्ट के वजन की जांच कोर के ही विभिन प्रोजेक्ट डायरेक्टर्स ने की है. उनकी ही रिपोर्ट में यह कहा गया है कि आपूर्तिकर्ता कंपनियों ने निर्धारित से कम वजन के मास्ट की आपूर्ति की है. इस मामले में भी क्वालिटी इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स के ऑनर सतीश मांडवकर ने सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य रिट पेटीशन दाखिल करके रेलवे द्वारा करोड़ों रेलयात्रियों की संरक्षा एवं सुरक्षा से जानबूझकर समझौता किए जाने और उनकी जान को गंभीर जोखिम में डालने की बात कहकर इस पूरे मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच कराए जाने की मांग की है.
उपरोक्त सभी मामलों से संबंधित सभी आवश्यक कागजात ‘रेल समाचार’ के पास उपलब्ध और सुरक्षित हैं. लगभग हर हप्ते-पंद्रह दिन में आरए लेकर मात्र दो-तीन घंटे के लिए बलिया जाने वाले मेंबर ट्रैक्शन की ऐसी चालबाजियों और जोड़तोड़ के अभी कई अन्य गंभीर मामले भी हैं. क्रमशः