पद बदल-बदलकर आलोक सिंह को पुनः पीसीसीएम बनाया गया
एक जोन में लंबे समय से टिके अधिकारियों पर प्रभावी नहीं रेलमंत्री का आदेश
30 सालों में अब तक एक बार भी पूर्वोत्तर रेलवे से बाहर नहीं गए आलोक सिंह
नियमों और नैतिकता को ताक पर रखकर कौन सा संदेश दे रहा है रेल प्रशासन?
सुरेश त्रिपाठी
रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) और रेल प्रशासन निर्धारित नियमों की नैतिकता और शुचिता के साथ ही विजिलेंस एवं सीवीसी के तमाम दिशा-निर्देशों को ताक पर रखकर खुद ही भ्रष्टाचार और जोड़तोड़ को बढ़ावा देता है. यदि ऐसा नहीं होता, तो वह किसी अधिकारी को रेलवे ज्वाइन करने से लेकर विभाग प्रमुख (पीएचओडी) बनने तक एक ही जोन में क्यों पदस्थ रखता? वास्तव में भ्रष्टाचार एवं जोड़तोड़ की जड़ भी यही है. इसके अलावा जब यह भी सुनिश्चित हो कि संबंधित अधिकारी की विश्वसनीयता घोषित रूप से संदिग्ध है, ऐसे में उसको एक ही रेलवे में पदों की अदला-बादली करते हुए बनाए रखने का क्या औचित्य हो सकता है?
जहां राजनीतिक हस्तक्षेप इस जोड़तोड़ और कदाचारपूर्ण प्रशासनिक व्यवहार के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है, वहीं उतना ही जिम्मेदार वह सक्षम अधिकारी भी हैं, जो ऐसी सिफारिशें करने वाले राजनीतिज्ञों अथवा मंत्रियों को संबंधित अधिकारी की असलियत बताने का साहस नहीं कर पाते और आंख बंद करके सब कुछ जानते-बूझते हुए भी उनकी सिफारिशों पर अमल करके भ्रष्टाचार तथा कदाचार को बढ़ावा देने के उनके इस दुष्कृत्य के भागीदार बन जाते हैं. प्रस्तुत मामला पूर्वोत्तर रेलवे के प्रिंसिपल सीओएम आलोक सिंह को पुनः प्रिंसिपल सीसीएम बनाए जाने का है. बताते हैं कि उनकी यह पोस्टिंग रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के कहने पर की गई है. जबकि पीसीओएम बने उन्हें अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था.
उधर प्रिंसिपल सीसीएम शिवराज सिंह का ट्रांसफर दक्षिण पश्चिम रेलवे, हुबली किया गया है. उन्हें भी इस पद पर आए अभी मुश्किल से एक साल ही हुआ था. हालांकि यह भी बताया गया है कि शिवराज सिंह खुद ही हुबली जाना चाहते थे. तथापि आलोक सिंह को एक साल के अंदर ही पुनः पीसीसीएम के पद पर पदस्थ किए जाने का कोई औचित्य पूर्वोत्तर रेलवे के किसी भी अधिकारी की समझ में नहीं आ रहा है. उनका कहना है कि एक तो उनके लिए पूर्वोत्तर रेलवे की पीसीसीएम की पोस्ट को छह महीनों से ज्यादा समय तक इसलिए खाली रखा गया था, कि जिससे डीआरएम, लखनऊ से निकलने के बाद उन्हें उक्त पोस्ट पर पदस्थ किया जा सके. इसके बाद उनकी ही ‘चॉइस’ पर उन्हें पीसीओएम भी यहीं बना दिया गया. और अब उन्हें उनकी ही ‘चॉइस’ पर पुनः पीसीसीएम बनाया जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि गुरूवार, 7 फरवरी को चेयरमैन, रेलवे बोर्ड पूर्वोत्तर रेलवे के निरीक्षण दौरे पर थे. इसके अगले दिन ही शुक्रवार, 8 फरवरी को उपरोक्त दोनों अधिकारियों का पोस्टिंग ऑर्डर रेलवे बोर्ड द्वारा निकाला गया. इसका तात्पर्य यह निकाला जा रहा है कि सीआरबी के उक्त दौरे के समय अथवा उससे एक हफ्ते पहले रेल राज्यमंत्री द्वारा उनको पीसीसीएम बनाए जाने की सिफारिश की गई होगी. इसके अलावा यह भी ज्ञात हुआ है कि आलोक सिंह की पोस्टिंग सीएसओ के पद पर की जा रही थी. इसकी भनक लगते ही वह पिछले हफ्ते वीपीयू कटवाकर 2 फरवरी को गोरखधाम एक्सप्रेस में अपना सैलून लगवाकर भागते हुए रेलवे बोर्ड पहुंचे थे. जानकारों का मानना है कि इसी दरम्यान उन्होंने पूर्व की भांति रेल राज्यमंत्री से मिलकर अपनी पोस्टिंग बदलवाकर पीसीसीएम में करवा ली होगी.
बताते हैं कि आलोक सिंह, पीसीओएम, के विरुद्ध यह भी एक भारी कदाचार का मामला है. प्राप्त जानकारी के अनुसार गोरखधाम एक्सप्रेस में हफ्ते में चार दिन – सोमवार, मंगलवार, गुरूवार और शनिवार – को लीज होल्डर की व्हीकल पार्सल यूनिट (वीपीयू) लगती है. शनिवार, 2 फरवरी को यह वीपीयू कटवाकर आलोक सिंह ने उसकी जगह गोरखधाम एक्सप्रेस में अपना सैलून जुड़वाया था और दिल्ली गए थे. हालांकि इसका अधिकार उन्हें नहीं था. इसके अलावा जानकारों का कहना है कि इस तरह से आलोक सिंह ने न सिर्फ पद का दुरुपयोग करते हुए मनमानी की, बल्कि लीज होल्डर सहित रेल राजस्व को भी नुकसान पहुंचाया. ऐसे में उस दिन का पार्सल सड़क मार्ग से लीज होल्डर को दिल्ली भेजना पड़ा और उसका भारी नुकसान हुआ. उल्लेखनीय है कि भारतीय रेल में आलीशान सैलून का अवैध इस्तेमाल करने का एक रिकॉर्ड कायम कर चुके आलोक सिंह ने उक्त सैलून अपने एक मातहत अधिकारी को जबानी आदेश देकर अटैच करवाया था.
ज्ञातव्य है कि निर्धारित नियम के अनुसार वीपीयू काटकर सैलून अटैच करने का यह अधिकार पीसीओएम ही नहीं, बल्कि किसी जोनल जीएम को भी नहीं है. यह अधिकार सिर्फ रेलवे बोर्ड के पास है. तथापि सिर्फ बोर्ड मेंबर या सीआरबी के लिए भी अत्यावश्यक यात्रा के मौके पर ही इस अधिकार का प्रयोग रेलवे बोर्ड द्वारा कभी-कभार ही किया जाता है. बताते हैं कि अब मातहत अधिकारी ने जब उक्त सैलून अटैच करने की अधिकृत अनुमति देने की फाइल भेजी, तो आलोक सिंह उसे एक हफ्ते से दबाकर बैठे हुए हैं. जानकारों का कहना है कि उन्हें यह अनुमति देने का अधिकार नहीं है. यदि वह फाइल पर अनुमति रिकॉर्ड करते हैं, तो प्रशासनिक कदाचार और मनमानी के मामले में दोषी साबित होंगे, इसलिए संभावना इस बात की है कि वे उक्त कागज को फाड़कर फेंक देंगे या फाइल ही गायब कर देंगे. विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार यह मामला 5 फरवरी को जीएम मीटिंग से पहले वहां उपस्थित कई विभाग प्रमुखों के बीच चर्चा का विषय भी था.
यही नहीं, अधिकारी बताते हैं कि आलोक सिंह का एक फेवरिट सैलून (आरए-48) है. यह आलीशान सैलून वह अपने किसी भी समकक्ष विभाग प्रमुख को नहीं देते हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में ऐसे दो मौके आए थे, जब आलोक सिंह ने उक्त सैलून दो विभाग प्रमुखों को देने से साफ मना कर दिया था. बताते हैं कि अन्य कोई सैलून उपलब्ध न होने की स्थिति में कुछ दिन पहले इस सैलून की मांग पहले प्रिंसिपल चीफ इलेक्ट्रिक इंजीनियर (पीसीईई) बेचू राय ने और बाद में प्रिंसिपल चीफ पर्सनल ऑफिसर (पीसीपीओ) एल. बी. राय ने की थी, मगर कथित तौर पर पीसीओएम आलोक सिंह ने इन दोनों विभाग प्रमुखों को टके सा जवाब देकर उक्त सैलून उन्हें देने से स्पष्ट इंकार कर दिया था.
इसके अलावा डीआरएम, लखनऊ रहते उन्होंने पुष्पक एक्सप्रेस में अपना सैलून लगाकर कई बार मुंबई की फर्जी यात्रा की थी. इसके साथ ही डीआरएम रहते उन्होंने जो इंजन हालिंग, वारफेज, डेमरेज चार्जेज इत्यादि की जो पेनाल्टी लगाई थी, पीसीसीएम बनते ही उन्हें माफ कर देने की सिफारिश वह पहले ही कर चुके हैं. हालांकि बताते हैं कि इंजन हालिंग चार्जेज का उक्त मामला अब तक पेंडिंग है, मगर वह अपना हिस्सा लेकर अपना काम कर चुके हैं. इसी तरह पीसीसीएम में रहते ग्रुप ‘बी’ की पदोन्नतियां करके जो कदाचार किया था, वही काम वह पीसीओएम में रहकर भी कर चुके हैं. उनके रहते पूर्वोत्तर रेलवे में यह चर्चा आम रही है कि जिसके पास 15 लाख होंगे, वही ग्रुप ‘बी’ अफसर बनेगा. जानकारों के अनुसार अब यही काम वह पुनः पीसीसीएम बनकर करने वाले हैं.
जानकारों का कहना है कि एओएम से लेकर विभाग प्रमुख बनने तक जो अधिकारी पूर्वोत्तर रेलवे में ही जमा हुआ है, उसके लिए यह तमाम जोड़तोड़ सामान्य बात हो चुकी है. यही वजह है कि हाल ही में जो दो ग्रुप ‘बी’ अधिकारी बनाए गए हैं, वह उनकी अपनी बिरादरी के ही हैं. उनका यह भी कहना है कि इनमें से एक की अपने पास पोस्टिंग के लिए वह इतने उतावले हो गए कि उसकी अकेले की पोस्टिंग का प्रस्ताव बनाकर भेज दिया था, जिसे जीएम ने यह कहते हुए लौटा दिया कि दोनों की पोस्टिंग का प्रस्ताव एकसाथ भेजा जाए. ज्ञातव्य है कि इसी परीक्षा के समय प्रश्न पत्र चार घंटे बाद दोपहर एक बजे दिया गया था और शाम को 8.30 बजे तक यह परीक्षा चली थी और उन लोगों को खुलकर नकल कराई गई थी. यह प्रश्न पत्र खुद पीसीओएम ने ही बनाया था. इस मामले को उजागर करने पर वह इस प्रतिनिधि पर खूब आगबबूला भी हुए थे.
इससे पहले वाणिज्य विभाग की परीक्षा में उनके द्वारा की गई गड़बड़ी पर सिर्फ आरटीआई लगा देने मात्र से छपरा के एक कर्मचारी को उन्होंने पदोन्नति इसलिए दे दी थी, क्योंकि यदि ऐसा नहीं करते, तो उन्हें गंभीर कानूनी और विजिलेंस मामले झेलने पड़ते. यही नहीं, अपने मातहत दो चपरासियों की पदोन्नति की फाइल वह करीब दो-ढ़ाई महीने सिर्फ इसलिए दबाए बैठे रहे थे, क्योंकि दोनों चपरासी उनके द्वारा कथित रूप से मांगे गए 50-50 हजार रुपये नहीं दे पा रहे थे. सोशल मीडिया पर इस मामले के उजागर होते ही सबसे पहले उन्होंने उन दोनों चपरासियों को चैम्बर में बुलाकर बहुत भला-बुरा कहा, मगर तुरंत उनकी फाइल उसी दिन निकाल दी थी. जबकि गोरखपुर स्टेशन के सफाई कांट्रेक्टर से बतौर कमीशन 70 लाख मांगे जाने का कथित मामला तो बहुत दिनों तक चर्चा में रहा है.
इसके अलावा आलोक सिंह द्वारा सैलून का इतना अधिक दुरुपयोग किया गया है कि इसकी वैसी कोई मिसाल शायद पूरी भारतीय रेल में नहीं मिलेगी. प्रत्येक शुक्रवार को गोरखपुर से लखनऊ और शनिवार की रात को लखनऊ से गोरखपुर सैलून लेकर मजे करते रहे हैं. अपने साथ दो ट्रैफिक इंस्पेक्टर भी ‘ऑन-ड्यूटी’ लाते रहे. खुद तो स्टेशन स्टाफ के खर्चे पर मौज करते थे, जबकि उक्त दोनों टीआई दो दिन तक खुद के खर्चे पर इधर-उधर भटकते थे, मगर उन्हें टीए-डीए रेलवे के खाते से दिलवाते रहे. कुछ समय पहले उच्च स्तर पर की गई एक शिकायत पर इनका सैलून बीच रास्ते मगहर स्टेशन पर गाड़ी से काट दिया गया था. तब सड़क के रास्ते उन्हें छिपते हुए चोरों की तरह लखनऊ जाना पड़ा था. इस मामले में जानकारों का कहना है कि सैलून की अनुमति देने वाली अथॉरिटी भी सैलून के इस दुरुपयोग के लिए जिम्मेदार है.
बहरहाल, रेलमंत्री पीयूष गोयल के निर्देश पर तत्कालीन प्रिंसिपल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, विजिलेंस, रेलवे बोर्ड सुनील माथुर द्वारा संवेदनशील पदों पर लंबे समय से कार्यरत रेलकर्मियों के अविलंब अन्यत्र तबादले का आदेश (पत्र सं. 2018/वी-1/सीवीसी/5/1, दि. 30.11.2018) आलोक सिंह जैसे संदिग्ध विश्वसनीयता वाले अधिकारियों पर प्रभावी क्यों नहीं हुआ है, जो कि लंबे समय से ही नहीं, बल्कि अपने पूरे सेवाकाल में एक ही जोन में खूंटा गाड़कर टिके हुए हैं? इसके अलावा रेलवे बोर्ड के पत्र सं. 2008/वी-1/सीवीसी/1/4, दि. 11.08.2008 के अनुसार जोनल रेलवे मुख्यालयों में वाणिज्य विभाग की पीसीओएम, पीसीसीएम, सीएफटीएम, सीसीओ, डिप्टी सीसीएम/क्लेम्स, कैटरिंग, एससीएम/रिजर्वेशन सहित मंडलों में सीनियर डीओएम, सीनियर डीसीएम, सीटीएम, डिप्टी सीटीएम, एरिया सुपरिंटेंडेंट, डीओएम, डीसीएम, एसीएम/रिजर्वेशन इत्यादि पद अत्यंत संवेदनशील श्रेणी के नामांकित किए गए हैं. उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर रेलवे के जोनल एवं डिवीजनल मुख्यालयों में रहकर आलोक सिंह इन्हीं सब संवेदनशील पदों पर लगभग 30 सालों से कार्यरत रहे हैं. ऐसे में उन्हें इस जोन से बाहर एक बार भी अब तक क्यों नहीं भेजा गया? क्रमशः
इनपुट सहाय्य : विजय शंकर, ब्यूरो प्रमुख, गोरखपुर