“राम नाम की लूट है, जो लूट सके सो लूट-2”
कानपुर स्टेशन के EnHM कांट्रेक्टर ने दे दिया सब-कांट्रेक्ट
निर्धारित 264 की जगह 100 आदमी भी नहीं लगाए जा रहे!
उमेश शर्मा, ब्यूरो प्रमुख, प्रयागराज
रेलमंत्री पीयूष गोयल द्वारा 28 नवंबर को एक मीटिंग के दौरान कहे जाने के बाद प्रिंसिपल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, विजिलेंस, रेलवे बोर्ड, सुनील माथुर ने शुक्रवार, 30 नवंबर को एक पत्र जारी करके सभी जोनल महाप्रबंधकों से उनके मुख्यालय और मंडल कार्यालयों में संवेदनशील पदों पर कार्यरत अधिकारियों एवं कर्मचारियों की सद्य-स्थिति 3 दिसंबर तक रेलवे बोर्ड को भेजने की ताकीद की है, जिसे वह रेलमंत्री के समक्ष प्रस्तुत कर सकें. रेलवे में हर स्तर पर भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का सबसे बड़ा कारण लंबे समय तक एक ही शहर, एक ही पद, एक ही मंडल या मुख्यालय में विभिन्न संवेदनशील पदों पर अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति ही है. जबकि इस मामले में ‘रेल समाचार’ लगातार कॉम्प्रीहेंसिव ट्रांसफर पालिसी के साथ ही संवेदनशील पदों पर सीवीसी की गाइडलाइन्स को हर स्तर पर बिना किसी भेदभाव या पक्षपात के लागू किए जाने के लिए बार-बार रेलवे बोर्ड को अवगत करता रहा है. पीईडी/विजिलेंस/रे.बो. इसे सुनिश्चित करवाने वाला न सिर्फ सर्वोच्च अधिकारी होता है, बल्कि उसकी यह सबसे पहली जिम्मेदारी भी है कि एक से दूसरे जोन में अधिकारियों का और एक से दूसरे कार्यालय/विभाग में रेलकर्मियों का आवधिक तबादला सुनिश्चित करवाएं. तथापि इस पद पर बैठने वाला कोई भी अधिकारी अब तक अपनी इस जिम्मेदारी पर खरा नहीं उतरा है. उनकी इसी लापरवाही के चलते कानपुर स्टेशन पर एक अधिकारी जूनियर स्केल से सेलेक्शन ग्रेड तक एक ही जगह जमा रहता है, जिसके कारण भ्रष्टाचार के नए-नए तरीकों की ईजाद होती है.
घर को आग लगा दी घर के ही चिरागों ने!
वर्तमान चेयरमैन, रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहानी ने भोपाल में कहा था कि “ठेकेदार नहीं, बल्कि हमारे अधिकारी भ्रष्ट हैं.” लेकिन समस्या यही है कि वह भी भ्रष्टाचार के इस ‘मकड़जाल’ को तोड़ नहीं सके हैं. यही सही है कि रेलवे में कदम-कदम पर ठेकेदारों का शोषण हो रहा है. सच यह है कि टेंडर कंडीशंस ही ऐसी बनाई जाती हैं कि ठेकेदार को न चाहते हुए भी हर कदम पर कमीशन देना पड़ता है. यहां हर टेबल का ‘प्रतिशत’ बंधा हुआ है. रेलवे के विकास का सबसे बड़ा रोड़ा ही आउटसोर्सिंग के लिए किए जाने वाले कॉन्ट्रेक्ट हैं. रेलवे के किसी मान्यताप्राप्त संगठन ने कभी-भी तार्किक ढ़ंग से इसका विरोध नहीं किया, बल्कि अधिकारियों, कर्मचारियों के इस भ्रष्टाचार में वह भी अपना हिस्सा बटाने में मशगूल हो गए. आज स्थिति यह हो गई है कि रेलवे का तेजी से निजीकरण हो रहा है, अर्थात् घर को आग लगा दी घर के ही चिरागों ने..!
उत्तर मध्य रेलवे का कानपुर सेंट्रल तो इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहां सारे नियमों को ताक पर रखकर एक ही अधिकारी को दोहरा चार्ज (उप मुख्य यातायात प्रबंधक और स्टेशन निदेशक) दिया गया है. वह पिछले पांच वर्षों से यहीं पर एसीएम से लेकर वर्तमान पद पर विराजमान हैं, जबकि कार्य के प्रति लापरवाही के कारण उन्हें तत्कालीन सीनियर डीसीएम श्रीमती अनुमणि त्रिपाठी द्वारा 2013 में एसीएम/इलाहाबाद से एसीएम/कानपुर के लिए स्थानांतरित कराया गया था, जो कि उनके लिए वरदान ही साबित हुआ. उन्होंने लंबे समय से कानपुर में पदस्थ रहकर भ्रष्टाचार के नए-नए तरीके ईजाद किए और अभी भी कर रहे हैं.
शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी क्लास वन अधिकारी के भ्रष्ट कारनामे नीचे के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के साथ-साथ ठेकेदारों के स्टाफ तक को भी बखूबी मालूम हैं. एक अन्य हेल्थ इंस्पेक्टर का कहना था कि जब ‘निजाम’ ही खुलेआम घूस ले रहा हो, तो हम लोग यदि थोड़ा बहुत ले लिए, तो कौन सा बहुत बड़ा गुनाह कर दिए हैं? यूनियन के पदाधिकारियों से भी बहुत से प्रशासनिक राज मिल जाते हैं, क्योंकि पता तो उन्हें भी सब रहता है, लेकिन वह अपने खुद के फायदे के लिए सीधे प्रशासन से पंगा नहीं लेते हैं.
यूनियन से जुड़े एक एसएसई स्तर के पदाधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि जो काम इंजीनियरिंग विभाग को करना चाहिए था, उस काम को भी स्टेशन निदेशक द्वारा कोटेशन के आधार पर फर्जी तौर पर करा लिया गया और भुगतान भी ले लिया गया. यही नहीं, इलाहाबाद मंडल का वाणिज्य विभाग, जिसका काम किराया, भाड़ा, विविध आय इत्यादि के माध्यम से रेल राजस्व अर्जित करना है, भी आजकल टेंडर/कोटेशन के काम में बिजी है.
रेलकर्मियों का कहना है कि वाणिज्य विभाग द्वारा कोई भी टेंडर समय से अवॉर्ड नहीं करके उसकी आड़ में अवैध कमाई की जाती है. इसका उदाहरण कानपुर सेंट्रल, गोविंदपुरी, पनकी का पार्किंग ठेका है. यदि उक्त स्टेशनों का रिकॉर्ड देखा जाए, तो कॉन्ट्रेक्ट समाप्त होने के बाद नए कॉन्ट्रेक्ट होने तक इनका संचालन विभागीय आधार पर कागजों में टिकट चेकिंग स्टाफ की ड्यूटी दिखाकर पुराने ठेकेदार द्वारा ही चलाया गया और प्रतिदिन रेलवे को न्यूनतम शुल्क जमा करके शेष अवैध कमाई को बंटवारा किया गया, जिसमें अधिकारी से लेकर वाणिज्य निरीक्षक, मुख्य टिकट निरीक्षक, स्टेशन अधीक्षक तक का हिस्सा बंटा.
भ्रष्टाचार की इसी कड़ी में यहां एक और कांड हो रहा है. कानपुर सेंट्रल से नई दिल्ली के लिए दो शताब्दी एक्सप्रेस चलती हैं, जिसमें कानपुर मुख्यालय का चेकिंग स्टाफ कार्य करता है. इनमें चेकिंग कार्य करने हेतु डिप्टी सीटीएम द्वारा पैनल बनाया जाता है. पैनल में दागी स्टाफ के भी नाम आने की खासियत मात्र यही है कि कोई स्टाफ 50 हजार रुपये का इंतजाम करके ले आता है, तो फिर पूरी गाड़ी को लूटने की छूट उसको मिल जाती है.
जब इसका कुछ विरोध हुआ और लिखित शिकायत की गई, तो दिखावे के लिए शताब्दी में कार्य करने के इच्छुक लोगों का इंटरव्यू कुछ इस तरह आयोजित किया गया, मानो किसी सिविल सर्विस के लिए चयन किया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि इस पैनल में अच्छे स्टाफ नहीं हैं, लेकिन संख्या बहुत कम है. ध्यान देने वाली बात है कि इतनी वीआईपी गाड़ी में जब चयन इस आधार पर किया जा रहा है, तो परिणाम क्या होगा? इस ‘नेक्सस’ में रेलवे बोर्ड और उ.म.रे. का विजिलेंस स्टाफ केवल अवैध वसूली के लिए काम करता है. कभी-कभी कथित छापेमारी दिखाकर अपनी खानापूर्ति भी कर लेता है.
नमामि गंगे योजना जैसा हाल है रेलवे में मैकेनाइज्ड क्लीनिंग का
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर वर्तमान में ईएनएचएम के अंतर्गत स्टेशन की सफाई का ठेका दो साल के लिए करीब 15 करोड़ में ग्वालियर की एजेंसी ‘मेसर्स सेंगर सर्विसेज’ को इस आधार पर दिया गया कि वह प्रतिदिन आधुनिक मशीनों के साथ 264 कर्मचारियों को साफ-सफाई में लगाएगी. ठेकेदार (एजेंसी) ने इस काम को यहां के एक स्थानीय व्यक्ति को बेच दिया और बदले में मोटा कमीशन लेकर बैठ गया. इसका परिणाम यह हो रहा है कि स्टेशन की साफ-सफाई में प्रतिदिन 100 आदमी भी नहीं लगाए जा रहे हैं. रेलकर्मियों का कहना है कि निचले स्तर पर हेल्थ इंस्पेक्टर (सीएचआई) तथा उच्च स्तर पर सीनियर डीएमई/ईएनएचएम को इसके बदले मोटा कमीशन दिया जा रहा है. सफाई गई भाड़ में. जैसा हाल नमामि गंगे योजना का हो रहा है, वही हाल रेलवे में ‘ए-1’ एवं ‘ए’ श्रेणी के स्टेशनों पर मैकेनाइज्ड क्लीनिंग का हो रहा है.
रेलकर्मियों का यह भी कहना है कि ऐसा भी नहीं है कि जब वाणिज्य विभाग के पास स्टेशन की साफ-सफाई का यही ठेका था तो बहुत किफायती और बढ़िया था, ठेकेदार को लूटा वहां भी जा रहा था, लेकिन वहां कुछ शर्म इसलिए थी कि यात्री सुविधाओं से संबंधित शिकायतों पर उन्हें ठेकेदार पर कार्रवाई करने का अधिकार था, भले ही उस अधिकार के नाम पर ठेकेदार का शोषण वहां भी हो रहा था. उनका कहना था कि इस सफाई ठेके में भी संबंधित अधिकारियों द्वारा भारी कलाकारी की गई है. यहां पूरे स्टेशन परिसर का ठेका न देकर कुछ भाग को छोड़ दिया गया है, जिसके आधार पर विभागीय सफाई कर्मचारियों को रोक लिया गया है. आखिर स्थानीय अधिकारियों के बंगलों पर गुलामी कौन करेगा?
रेलकर्मियों का कहना है कि वर्तमान में खासकर इलाहाबाद मंडल, उत्तर मध्य रेलवे के वाणिज्य अधिकारी केवल इस जुगाड़ में लगे हैं कि किसी तरह से स्टेशन की साफ-सफाई का कॉन्ट्रेक्ट करने का अधिकार उन्हें मिल जाए और अवैध कमाई का रास्ता खुल जाए, क्योंकि उनके लिए अवैध कमाई का यही सबसे आसान तरीका बचा है. उनका कहना है कि वास्तविकता यह है कि संबंधित ठेकेदार अनुबंध की शर्तों के अनुसार न तो पूरा मैनपॉवर लगाते हैं और न ही अपने स्टाफ को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करते हैं. जबकि कागजों पर सब कुछ दुरुस्त होता है, क्योंकि भुगतान तो रेलवे से कर्मचारी के बैंक खाते में किया जाता है और यहीं से रेल अधिकारियों और अन्य स्टाफ द्वारा ठेकेदार से सौदा किया जाता है. उन्हें कहा जाता है कि आप निर्धारित मैनपॉवर को आधा कर दो और उसके भुगतान का आधा हिस्सा उन्हें दे दो. कानपुर सेंट्रल स्टेशन तो इसका जीता जागता उदाहरण है.
रेल कर्मचारियों का कहना है कि यहां उच्च स्तर पर डिप्टी सीटीएम/स्टेशन डायरेक्टर तथा निचले स्तर पर स्टेशन अधीक्षक और स्वास्थ्य निरीक्षकों द्वारा ठेकेदारों से खुलकर कमीशन लिया गया और उनके बिल का भुगतान करने के लिए एकाउंट्स ऑफिस तब तक नहीं भेजा गया, जब तक कि उनसे अवैध कमीशन वसूल नहीं लिया गया. उनका यह भी दावा है कि इस बात की पुष्टि चाहे तो विजिलेंस द्वारा यहां के पुराने ठेकेदारों (मेसर्स जीएसआईएस, कोलकाता, एवं मेसर्स अवकाश इंटरप्राइजेज, कानपुर) के बिलों से की जा सकती है, जिनके बिलों को भुगतान के लिए एकाउंट्स ऑफिस में उनके कॉन्ट्रेक्ट समाप्त होने के कई महीनों बाद भेजा गया. दोनों ठेकेदारों के सुपरवाइजरों का कहना था कि “उन्होंने अपनी लाइफ में इतना भ्रष्ट माहौल कहीं नहीं देखा जितना कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर देखा. यहां अधिकारी खुलेआम अपना कमीशन मांग रहे हैं और उसी के आधार पर सीएचआई/एसएस भी अपना कमीशन तय कर रहे हैं. साफ-सफाई का कार्य तो दरकिनार कर दिया गया है, इसकी आड़ में केवल अवैध कमाई करना रह गया है.”
टेंडर/कोटेशन देकर अवैध कमाई का दूसरा रास्ता बनाया गया
इसके अलावा वाणिज्य विभाग द्वारा पहले जो कॉन्ट्रेक्ट साफ-सफाई के लिए दिया गया था, उसमें जानबूझकर पूरे स्टेशन परिसर को नहीं लिया गया था. इसके साथ ही रैग पिकिंग और रोडेंट कंट्रोल का कार्य उसमें शामिल न करके उसके लिए अलग से टेंडर/कोटेशन देकर अवैध कमाई का दूसरा रास्ता भी बना लिया गया. न तो मंडल स्तर पर और न ही मुख्यालय स्तर पर कभी भी इस प्रकार की अनियमितता की जांच की गई. रेलकर्मियों का कहना है कि इसकी वजह यह है कि अवैध कमाई का कुछ हिस्सा उन्हें भी मिल गया. उनका कहना है कि केवल कानपुर सेंट्रल स्टेशन की अराजकता को ही यदि देखा जाए, तो डिप्टी सीटीएम द्वारा स्टेशन पर चूहों को मारने के लिए कोटेशन पर प्रतिमाह दो लाख का कार्य अपने आदमी को दिया गया और इसके माध्यम से चार महीनों में आठ लाख की कमाई की गई, चूहे तो केवल कागजों में ही मरे. इसकी पुष्टि स्वयं स्टेशन के सीएचआई द्वारा की गई है.
रेलकर्मियों ने ‘रेल समाचार’ को बताया कि इस बार गनीमत है कि ईएनएचएम द्वारा साफ-सफाई का जो ठेका दिया गया है उसमें रोडेंट कंट्रोल का काम भी शामिल है, जिसकी लागत औसतन लगभग 20-22 हजार रुपए प्रति महीने की आई है, जबकि यही काम जब डिप्टी सीटीएम द्वारा कोटेशन पर कराया गया था, तो 2 लाख प्रति महीने का खर्चा बनाया गया और बिल भी पास करा लिया गया. इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई भी महकमा दूध का धुला नहीं है, जिसे पॉवर मिला उसी ने इसका दुरुपयोग किया है. केवल डिप्टी सीटीएम के द्वारा कोटेशन पर कराए गए कार्यों की ही यदि ईमानदारी से जांच हो जाए, तो इस मामले में हुए भारी भ्रष्टाचार का सारा भांडा फूट जाएगा.
यही हाल कानपुर सेंट्रल स्टेशन की खानपान व्यवस्था का भी है, जहां खुलेआम अवैध वेंडरों के माध्यम से रेलवे की विभागीय हाथ-गाड़ियां (प्रति गाड़ी 3 हजार रुपये प्रतिदिन) किराए पर देकर सड़े-गले खाद्य पदार्थों की बिक्री करवाई जाती है और दिखावे के लिए बीच-बीच में अवैध वेंडिंग के फर्जी केस बनाकर उन लोगों को बंद कर दिया जाता है, जो अपने रेस्टोरेंट से खाना पैक कराकर गाड़ियों में देने आते हैं और इसी बहाने अवैध वेंडिंग रोकने का उनका अभियान भी पूरा हो जाता है.
प्रतिमाह ऊपर पहुंचाता है 2.5 लाख से अधिक की अवैध कमाई का हिस्सा
एक खानपान निरीक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर ‘रेल समाचार’ को खुलकर बताया कि वह कानपुर स्टेशन से प्रतिमाह करीब 2.5 लाख रुपये से अधिक की अवैध कमाई का अवैध हिस्सा ऊपर पहुंचाता है. आरपीएफ, जीआरपी, सीआईटी स्टेशन, एसएस, सीएमआई, सीएचआई इत्यादि का हिस्सा अलग से है. सिटी साइड में सर्कुलेटिंग एरिया से लेकर एंट्री गेट तक प्रतिदिन लगभग 50 से ज्यादा अवैध दुकानदार अपनी दुकानें सजाते हैं और इसकी एवज में आरपीएफ, जीआरपी इत्यादि को अवैध हफ्ता दिया जाता है. एक आरपीएफ मित्र ने ‘रेल समाचार’ को बताया कि आरपीएफ थाना प्रभारी ने इन दूकानदारों को खुलेआम अपना काम करने को कहा है और साथ में यह भी कहा है कि डिप्टी सीटीएम या स्टेशन डायरेक्टर की कोई परवाह नहीं करनी है, क्योंकि उनके भी अवैध कमाई के अकूत स्रोत हैं, इसलिए यदि वे अड़ंगा लगाएंगे, तो उनके भी ऐसे सभी स्रोत बंद करा दिए जाएंगे.
वर्तमान समय में उत्तर मध्य रेलवे जोन इसीलिए हाशिए पर जा रहा है, क्योंकि यहां पर अधिकारियों (विशेषकर वाणिज्य विभाग में) की पोस्टिंग ऐसे लोगों की हो रही है, जो आसपास के ही रहने वाले हैं और इसीलिए घूम-फिरकर कई सालों से वह कभी जोनल मुख्यालय में, तो कभी मंडलों में टिके हुए हैं. कानपुर सेंट्रल के स्टेशन निदेशक अथवा उपमुख्य यातायात प्रबंधक (डिप्टी सीटीएम) ने तो इसका सारा रिकॉर्ड ही तोड़ दिया है. वह यहीं पर एसीएम, डीटीएम, डिप्टी सीटीएम, स्टेशन डायरेक्टर इत्यादि पदों पर लगातार जमे हुए हैं. इनके लिए कोई नियम-कायदे नहीं हैं. कानपुर स्टेशन के कई रेलकर्मियों का कहना है कि स्वाभाविक रूप से जब एक ही जगह कोई क्लास वन अधिकारी इतने वर्षों से जमा रहेगा, तो वह अपनी अवैध कमाई के लिए सारे तिकड़मों का इस्तेमाल करेगा ही, जबकि कर्मचारियों के मामले में इनको सभी नियम तुरंत याद आ जाते हैं और लागू भी हो जाते हैं.
ईएनएचएम के बावजूद कानपुर में पोस्टेड हैं 114 विभागीय सफाई कर्मचारी
ईएनएचएम के तहत कानपुर स्टेशन की साफ-सफाई का ठेका होने के बावजूद 114 विभागीय सफाई कर्मचारी आज भी कानपुर एरिया में पोस्टेड हैं, जबकि इन्हें सफाई का ठेका होने के बाद अन्य स्टेशनों पर भेजा जाना था. यानी रेलवे कॉन्ट्रेक्ट (15 करोड़ रुपये) का भी भुगतान कर रही है और इन विभागीय सफाई कर्मियों का भी. इसको कोई देखने वाला नहीं है कि इस प्रकार की अराजकता और मनमानी कैसे हो रही है? स्थानीय स्तर पर स्टेशन निदेशक द्वारा बिना कैडर बदले हुए इन सफाई कर्मियों से पार्सल, खानपान, मालगोदाम इत्यादि जगहों पर पोर्टर का काम लिया जा रहा है, जबकि इनकी नियुक्ति सफाई कैडर के लिए हुई है. यही नहीं, इनमें से लगभग 20 सफाई कर्मचारी स्टेशन निदेशक, स्टेशन अधीक्षक, वाणिज्य निरीक्षक, स्वास्थ्य निरीक्षक इत्यादि के घरों पर झाड़ू-पोछा एवं अन्य घरेलू कार्यों के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं. कागजों पर इनकी ड्यूटी स्टेशन पर लगाई जाती है.
एक स्वास्थ्य निरीक्षक (सीएचआई) ने नाम न छापने की शर्त पर ‘रेल समाचार’ को बताया कि जब सिर्फ निजाम (स्टेशन निदेशक) ने ही अपने बंगले पर सात सफाई कर्मचारियों को लगा रखा है, तो हम लोग यदि एक दो रखते हैं, तो इसमें बुराई क्या है? यदि एक कर्मचारी का औसत वेतन 30 हजार रुपए प्रतिमाह भी माना जाए, तो इन 20 सफाई कर्मियों को औसतन छह लाख रुपए प्रतिमाह रेलवे मुफ्त में भुगतान कर रही है. जिन 93 सफाई कर्मियों की जो लिस्ट ‘रेल समाचार’ के हाथ लगी है, उसके अनुसार 25 सफाईकर्मी खानपान विभाग, कानपुर, 28 सफाईकर्मी केंद्रीय मालगोदाम, सीपीसी, कानपुर, 27 सफाईकर्मी पार्सल कार्यालय, कानपुर, 7 सफाईकर्मी पार्सल कार्यालय, कानपुर/अनवरगंज और 6 सफाईकर्मियों को मार्शलिंग यार्ड (जीएमसी) कानपुर में अवैध रूप से बिना कोई नियम पालन किए ही पदस्थ किया गया है.
सीएचआई का कहना था कि ईएनएचएम और वाणिज्य विभाग का घालमेल यह है कि इस वक़्त स्वास्थ्य निरीक्षक ईएनएचएम के अधीन कार्य कर रहा है, लेकिन वह वाणिज्य विभाग का भी काम देख रहा है. ऐसा अजूबा आप भारतीय रेल के इलाहाबाद मंडल में ही देख सकते हैं, जहां पर पूरा सिस्टम ही बैठ गया है. यहां पर इस बात की होड़ मची हुई है कि दूसरा हमसे ज्यादा अवैध कमाई कैसे कर रहा है? बाकी स्टेशन का विकास, आय में वृद्धि, गाड़ियों की पंक्चुअलिटी, यात्री सुविधाओं के विकास का काम नीचे के कर्मचारियों के मत्थे मढ़ दिया गया है, वही उसका जवाब देंगे कि आय में कमी क्यों हो रही है, गाड़ियां क्यों पिट रही हैं.. इत्यादि…
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार का घपला केवल कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर हो रहा है, बल्कि ऐसे घपले अमूमन पूरी भारतीय रेल में चल रहे हैं. कानपुर तो सिर्फ इसका एक सैंपल मात्र है. इस तमाम घपलेबाजी का पता काफी हद तक तब चला, जब सफाई के ठेके को लेकर मैकेनिकल एवं कमर्शियल विभाग के अधिकारियों की एक-दूसरे को नीचा दिखाने की जोर-अजमाइश खुलकर सामने आई. रेलकर्मियों का कहना है कि इन अधिकारियों का पूरा ध्यान केवल सफाई (अवैध कमाई) पर ही है, जबकि रेलवे का मूलभूत ढ़ांचा ढ़ह रहा है, यातायात दूसरे सेक्टर में जा रहा है, मालभाड़ा ग्राहक रेलवे की निष्क्रियता के कारण अपने सामान को रेलवे के बजाय अन्य साधनों की तरफ जाने की संभावना तलाश रहे हैं. रेलवे के बजाय सड़क यातायात से लोग जल्दी पहुंच रहे हैं. इन सब खतरों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है, यह सब केवल अपनी अवैध कमाई के बारे में ही सोच रहे हैं. क्रमशः
प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी