आखिर बार-बार झांसी मंडल या उ.म.रे. के दायरे में ही क्यों हो रही हैं दुर्घटनाएं?
दुर्घटना के बाद रेलवे के लिए प्रभावित यात्रियों को राहत पहुंचाना ही पर्याप्त नहीं
खतौली के दोषियों की बहाली का नतीजा मानिकपुर और गया में देखने को मिला
भयानक भ्रष्टाचार का शिकार हो चुकी सीआरएस संस्था को तुरंत खत्म किया जाए
पुखरायां/रूरा के लिए 20 करोड़ खर्चे? आतंकी साजिश बताने के लिए 5 करोड़ दिए?
खतौली के लिए कितना दिया? और अब मानिकपुर के लिए कितने करोड़ खर्चे जाएंगे?
उमेश शर्मा, ब्यूरो प्रमुख, इलाहाबाद
गोवा से पटना जा रही गाड़ी सं. 12741, वास्को डिगामा एक्सप्रेस के 13 डिब्बे शुक्रवार, 24 नवंबर की सुबह 4.18 बजे झांसी मंडल, उत्तर मध्य रेलवे के मानिकपुर स्टेशन के पास डिरेल हो गए. इसके बाद यात्रियों को राहत और बचाव तथा उनकी आगे की यात्रा का प्रबंध करने के लिए उत्तर मध्य रेलवे द्वारा पर्याप्त और त्वरित कदम उठाए गए. उत्तर मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी गौरवकृष्ण बंसल द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार गाड़ी का अवपथन 4.18 बजे सुबह हुआ. पंद्रह मिनट के अंदर ही सभी संबंधित अधिकारी कंट्रोल रूम में पंहुच गए थे.
उन्होंने बताया कि इलाहाबाद से चिकित्सा उपकरणों से सुसज्जित दुर्घटना राहत (एआरएमई) ट्रेन 5.10 बजे पांच वरिष्ठ डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ की पूरी टीम के साथ मानिकपुर के लिए रवाना हो गई थी, जो 6.45 बजे मानिकपुर पहुंचकर घायल यात्रियों की तीमारदारी और राहत कार्य में जुट गई थी. एआरएमई पंहुचने से पूर्व ही मानिकपुर स्टेशन के स्टाफ एवं आरपीएफ ने तत्परता दिखाते हुए डिरेल हुई वास्को डिगामा एक्सप्रेस को खाली करवाया और घायलों को अस्पताल भेजा, जिससे उनको त्वरित चिकित्सकीय सहायता मिल पाई.
डिरेल ट्रेन के बाकी यात्रियों, जो बस से जाना चाहते थे, को बस उपलब्ध करवाई गई और यात्रियों के एक बड़े समूह को आगे के सात डिब्बों के साथ छिंवकी स्टेशन लाया गया, जहां उनको नाश्ता, पानी एवं अन्य सुविधाएं वरिष्ठ अधिकारियों की देखरेख में मुहैया करवाई गईं. महाप्रबंधक/उ.म.रे. एम. सी. चौहान दुर्घटना की सूचना मिलते ही सड़क मार्ग से मानिकपुर के लिए रवाना हो गए थे और वहां पहुंचकर उन्होंने बचाव एवं राहत कार्य को स्वयं संभाल लिया. इसके तुरंत बाद अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहानी भी मानिकपुर पंहुच गए थे.
श्री बंसल के अनुसार एआरएमई एवं एआरटी के साथ इलाहाबाद मंडल के वरिष्ठ अधिकारी भी 7 बजे तक मानिकपुर पंहुच गए थे. इसी बीच सतना से भी एक अन्य एआरएमई भी वहां पंहुच गई और 140 टन क्रेनें भी सतना एवं कानपुर से पंहुच गईं. वरिष्ठ अधिकारियों के तुरंत मानिकपुर पंहुचने से राहत और बचाव कार्य में काफी सहूलियत हुई.
मानिकपुर में बचे हुए 350 यात्रियों को एक विशेष गाड़ी, जिसे मानिकपुर-पटना एक्सप्रेस का नाम दिया गया था, से छिंवकी तक लाया गया और वहां पहले से पंहुचे हुए यात्रियों को उसमें चढ़ाया गया. यह ट्रेन 10.10 बजे मानिकपुर से निकलकर 12.00 बजे छिंवकी पहुंची. इस गाड़ी से आए यात्रियों को भी खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की गई और पहले पंहुचे यात्रियों के साथ उन्हें छिंवकी से पटना के लिए रवाना किया गया.
श्री बंसल द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार घायल यात्रियों को अनुग्रह राशि की पहली किश्त का भुगतान नियमानुसार तुरंत कर दिया गया. जिनकी दुर्भाग्य से मृत्य हो गई थी, उनके संबंधियों को अनुग्रह राशि की पहली किश्त दी गई और बाकी राशि का भुगतान चेक के माध्यम से किया जा रहा है. तत्परतापूर्वक कॉमन लाइन नं. 3 का प्रयोग करते हुए अप एवं डाउन लाइन का ट्रैफिक प्रभावित सेक्शन में 7.22 बजे चालू कर दिया गया था, जिससे सेक्शन में रेल यातायात पर ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा और अन्य ट्रेनों के यात्रियों को खास असुविधा नहीं होने पाई.
झांसी मंडल के दायरे में ही बार-बार क्यों हो रही हैं दुर्घटनाएं?
किसी भी गंभीर रेल दुर्घटना के तुरंत बाद उपरोक्त तमाम व्यवस्था करना और तत्परता दर्शाते हुए प्रभावित रेलयात्रियों को बचाव एवं राहत पहुंचाना संबंधित रेल अधिकारियों का दायित्व है, इसमें उनके द्वारा दिखाई जाने वाली उदारता और तत्परता का उतना महत्व नहीं है, जितना महत्व इस बात का है कि आखिर उत्तर मध्य रेलवे, उसमें भी खासतौर पर झांसी मंडल के दायरे में ही ऐसी दुर्घटनाएं बार-बार क्यों हो रही हैं? खतौली की एक गंभीर रेल दुर्घटना को यदि दरकिनार कर दिया जाए, तो पिछले एक साल के दरम्यान ज्यादातर बड़ी रेल दुर्घटनाएं उ.म.रे. के दायरे में ही हुई हैं, जिन्हें अन्य अर्थ देकर बचने का प्रयास किया जाता रहा है.
इसका क्या कारण हो सकता है? रेलकर्मियों सहित सर्वसामान्य यात्रियों में भी इस बात की चर्चा हो रही है कि पुखरायां और रूरा जैसी अत्यंत गंभीर दुर्घटनाओं के बाद भी उत्तर मध्य रेलवे आखिर अपने रख-रखाव और मरम्मत कार्यों सहित अपनी तत्परता में सुधार क्यों नहीं कर पा रही है? बताते हैं कि पुखरायां की दुर्घटना की अंतिम रिपोर्ट अब तक सीआरएस द्वारा नहीं सौंपी गई है. विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि यह रिपोर्ट अब तक इसलिए नहीं आई है, क्योंकि इसे लटकाए रखने के लिए 20 करोड़ रुपये रेलवे के इंजीनियरों द्वारा खर्च किए गए हैं, जबकि पांच करोड़ रुपये इन दोनों दुर्घटनाओं को आतंकवादी तोड़फोड़ की घटनाएं साबित करने के लिए पहले ही खर्च किए गए थे?
किसानों को जाना था महाराष्ट्र, पहुंच गए मध्य प्रदेश
पिछले हप्ते करीब 2500 किसानों को लेकर दिल्ली से कोल्हापुर, महाराष्ट्र के लिए रवाना हुई एक विशेष गाड़ी 160 किमी. तक गलत रूट पर चली गई. इसे जाना था महाराष्ट मगर पहुंच गई मध्य प्रदेश. रेलवे द्वारा की गई यह एक भयानक भूल थी. इससे कोई गंभीर घटना भी घट सकती थी. इस गाड़ी को मथुरा (उ.म.रे. झांसी मंडल) में गलत सिग्नल दिया गया था, जिससे यह ट्रेन मथुरा से आगरा और ग्वालियर होते हुए मध्य प्रदेश के मुरैना स्टेशन के आगे बानमोर स्टेशन तक पहुंच गई. जबकि इस विशेष गाड़ी का पूर्व निर्धारित रूट मथुरा से कोटा, सूरत, वसई, कल्याण और पुणे होते हुए कोल्हापुर जाने का था, जिससे उस रूट के किसान अपने स्टेशनों पर आसानी से पहुंच जाते. मगर गलत रूट पर इस गाड़ी के जाने से उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ा.
‘ये रेलवे वाले तो हमारा भी मंत्री पद ले डूबेंगे’
तथापि, उ.म.रे. ने एक वक्तव्य में अपनी इस भयंकर गलती को स्वीकार करने के बजाय सीनाजोरी करते हुए कहा कि ‘विशेष ट्रेन किसी भी रूट से जा सकती है, हमारा ट्रेन को गंतव्य तक पहुंचाने से मतलब है.’ इसके बावजूद रेलमंत्री को लगता है कि रेलवे में डिजिटल क्रांति हो रही है और देश का प्रत्येक सरकारी महकमा सूचनाओं की आवाजाही के मामले में उफना रहा है, जिसकी वे सोशल मीडिया में लगातार वकालत करते नजर आते हैं. ऐसे में उन्हें उनकी ट्रेन के गलत रूट पर जाने और रेलवे में आए दिन जहां-तहां हो रही रेल दुर्घटनाओं पर अपनी नजर घुमानी चाहिए, क्योंकि उनके कतिपय मूढ़धन्य रेल अधिकारी उस मुहावरे को सही साबित करने पर तुले हुए हैं कि ‘जाना था जापान, पहुंच गए चीन’. रेलमंत्री को अपने भाग्य का शुक्रगुजार होना चाहिए कि ट्रेन पटरी पर ही रही, वरना उनकी रेलवे में क्या नहीं हो सकता. शायद इसीलिए उन्हें मानिकपुर दुर्घटना के बाद किसी से यह कहते सुना गया कि ‘ये रेलवे वाले तो इस तरह रेल दुर्घटनाएं करवाकर हमारा भी मंत्री पद ले डूबेंगे.’
सीनियर डीईएन/समन्वय, इलाहाबाद मंडल का दुस्साहस
विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेलवे समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार पिछले हप्ते जीएम कांफ्रेंस के दौरान जब महाप्रबंधक एम. सी. चौहानने डीआरएम/इलाहाबाद से यह सवाल किया कि आखिर इलाहाबाद मंडल में रेल पटरी टूटने की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं? सूत्रों का कहना है कि जब तक डीआरएम एस. के. पंकज जीएम श्री चौहान के उक्त सवाल का जवाब दे पाते, तब तक सीनियर डीईएन/समन्वय बीच में कूद पड़े और जीएम को जवाब देते हुए कहा कि रेल पटरी तो टूटेगी ही, इसे नहीं रोका जा सकता है. इस पर जीएम श्री चौहान ने पूछा कि तब वह लोग यानि चार-पांच सीनियर डीईएन मंडल में बैठकर क्या कर रहे हैं, यदि उनके रहते रेल पटरी टूटने की घटनाएं नहीं रोकी जा सकती हैं, तब उनके वहां होने का क्या अर्थ है? इस पर उनसे कोई जवाब देते नहीं बना.
मंडल के अधिकारियों का कहना है कि डीआरएम एस. के. पंकज ने सीनियर डीईएन/समन्वय को बहुत सिर चढ़ा रखा है, यही वजह है कि वह उनके बोलने से पहले ही जीएम को जवाब देने की जुर्रत कर बैठे, जो कि डीआरएम और जीएम की गरिमा के विपरीत है. हालांकि इस पर मंडल के अधिकारियों में मत-वैभिन्नता भी देखने को मिली है. तथापि, अधिकांश अधिकारियों ने सीनियर डीईएन/समन्वय के इस दुस्साहस की निंदा की है. उनका कहना है कि प्रत्येक मंडल में पर्याप्त इंजीनियरिंग अधिकारियों के रहते हुए भी यदि मंडलों के रेल पथों का उचित रख-रखाव नहीं हो पा रहा है, तो यह उनकी नाकामी ही कही जाएगी. उनका यह भी कहना है कि प्रत्येक दुर्घटना के बाद इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारी ही सबसे ज्यादा इस बात को लेकर हल्ला मचाते हैं कि फंड की कमी के कारण काम नहीं हो पा रहे हैं, और जब फंड मिल जाता है, तब भी हालत वैसी ही रहती है, तो इसका क्या अर्थ निकाला जाना चाहिए?
निर्माण संगठन, उ.म.रे. द्वारा किया जा रहा गुणवत्ताविहीन कार्य
जोनल मुख्यालय में बैठे अन्य विभागों के अधिकांश अधिकारियों की राय है कि इंजीनियरिंग विभाग अपना कार्य सही ढ़ंग से नहीं कर रहा है. इंजीनियरिंग विभाग द्वारा किया गया एक भी निर्माण कार्य मानक के अनुरूप नहीं होता है, फिर वह चाहे रेलवे कॉलोनी या रेल पथ के निर्माण अथवा रख-रखाव का हो, या मरम्मत का हो, कोई भी निर्माण निर्धारित मानक के अनुरूप नहीं है. उनका कहना है, इसका कारण यह है कि इंजीनियरिंग विभाग के किसी कार्य का ऑडिट नहीं किया जाता है और न ही उसके प्रति संबंधित इंजीनियरिंग अधिकारियों की जिम्मेदारी एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जाता है. यही वजह है कि चाहे रेलवे कॉलोनी हो या कार्यालय भवन, सभी निर्माणों में बरसात के पानी का रिसाव होता है. यह स्थिति रेलवे के सभी इंजीनियर्स के लिए अत्यंत शर्मनाक है.
निर्माण संगठन, उत्तर मध्य रेलवे द्वारा झांसी मंडल में ई-टेंडर के माध्यम से करोड़ों रुपये की लागत से कई निर्माण कार्यों सहित एक नया स्टेशन (बुढ्पुरा) बनाया जा रहा है. इस स्टेशन के बिल्डिंग निर्माण कार्य में बालू की जगह लाल मिट्टी धोकर सीमेंट मसाला तैयार किया जा रहा है. जाहिर है कि इस कार्य में मानक गुणवत्ता की सीमा को दरकिनार करके गुणवत्ताविहीन कार्य किया जा रहा है. यह बिल्डिंग यहां रेलवे लाइन के समीप बनाई जा रही है. जबकि तीसरी लाइन का कार्य शुरू होने से रेलवे ट्रैक पर गाड़ियों का आवागमन ज्यादा होने के कारण इस कार्य को पर्याप्त मानक गुणवत्ता से बनाना चाहिए था. झांसी मंडल में इंजी. निर्माण विभाग द्वारा ऐसे कई गुणवत्ताविहीन कार्य पहले भी किए गए हैं, जिनकी जानकारी ‘रेलवे समाचार’ के पास सप्रमाण उपलब्ध है.
‘रेलवे समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ दिनों पहले ऐसे कई गुणवत्ताविहीन कार्यों को लेकर डिप्टी सीई/सी/झांसी की शिकायत ग्वालियर के सांसद अनूप मिश्रा ने महाप्रबंधक/उ.म.रे. को एक पत्र लिखकर की थी और उन्होंने पत्र में यह भी लिखा था कि उनकी पोस्टिंग झांसी में न की जाए. इसके बाबजूद उनकी पोस्टिंग कर दी गई. झांसी मंडल के कर्मचारियों का कहना है कि इसका अर्थ यह है कि सांसद के उक्त पत्र की जानकारी जीएम को नहीं दी गई अथवा उक्त पत्र उन तक पहुंचने ही नहीं दिया गया. कर्मचारियों का यह भी कहना है कि कोई भी अधिकारी अपने चैम्बर से बाहर नहीं निकलता है, वह उचित निरीक्षण कार्य भी नहीं करता है. उनकी फर्जी निरीक्षण रिपोर्टें नीचे के कर्मचारियों द्वारा तैयार की जाती हैं. इस तरह फर्जी टीए सहित फर्जी कार्य हो रहे हैं.
उत्तर मध्य रेलवे जोन एवं मंडलों में वर्षों से जमे हुए अधिकारियों एवं रेल कर्मचारियो द्वारा पूर्व में किए-कराए गए कार्यों की जांच की जानी चाहिए तथा उन्हें अविलंब जोन से बाहर ट्रांसफर किया जाना चाहिए. रेल प्रशासन के इस कदम से इंजी. ओपन लाइन एवं निर्माण विभाग के कार्यों में पर्याप्त मानक गुणवत्ता एवं पारदर्शिता आ सकती है. इससे रेलवे को हो रही व्यापक आर्थिक क्षति पर भी समुचित अंकुश लगाया जा सकता है.
रेलवे में हो रहे मानक के विपरीत और गुणवत्ताविहीन निर्माण कार्यों के ही परिणामस्वरूप आए दिन रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं, जिससे जान-माल की भारी क्षति भी हो रही है. जबकि इनकी जिम्मेदारी किसी की भी तय नहीं की जाती है. पुखरायां, रूरा और खतौली तक किसी की जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व तय नहीं हुआ, और जिनको जिम्मेदार मानकर बर्खास्त/निलंबित किया गया था, वह सब भी बाकायदा बहाल हो चुके हैं. इसका परिणाम गया में देखने को मिल चुका है, जहां बिना ब्लॉक लिए पटरी खोलकर काम कर रहे करीब 60 गैंगमैनों को ट्रेन आते देखकर नदी में छलांग लगानी पड़ी, कई मर गए, कई गंभीर रूप से घायल हैं. मगर किसी को इस सब की कोई चिंता नहीं है. ऐसे में न कभी रेल दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है और न ही कार्यों की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है. जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि रेलवे सहित प्रत्येक सरकारी महकमे में जो जहां बैठा है, वहीं से देश को लूट रहा है. इसमें मंत्री-संत्री सब शामिल हैं.
प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी