वो सब तो ठीक है, मगर परनाला तो यहीं गिरेगा, यानि प्रशासन सुनेगा फेडरेशनों की, पर करेगा अपने मन की!
सुझाव लेना और उन पर अमल करना दो अलग मुद्दे हैं, सुझाव लेने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए -रेलमंत्री
रेलवे का निजीकरण नहीं होगा और हर मुद्दे पर कोई अंतिम फैसला न होने की बात कहकर रेलमंत्री ने छुड़ा लिया अपना पिंड
दोनों फेडरेशनों के साथ रेलमंत्री की रेल भवन में संपन्न हुई डिपार्टमेंटल काउंसिल की बैठक
बुधवार, 16 जनवरी को रेल भवन में रेलमंत्री पीयूष गोयल के साथ डिपार्टमेंटल काउंसिल की बैठक हुई। इस बैठक में एनएफआईआर के महामंत्री डॉ एम राघवैया, अध्यक्ष गुमान सिंह, एआईआरएफ के महामंत्री कॉम. शिवगोपाल मिश्रा, एल. एन. पाठक इत्यादि सहित दोनों मान्यताप्राप्त फेडरेशन के सभी वरिष्ठ पदाधिकारीगण उपस्थित थे।
रेलमंत्री की उपस्थिति में फेडरेशन के नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि आज रेलवे का हर एक कर्मचारी और अधिकारी डरा हुआ है, क्योंकि कभी बड़ी संख्या में कर्मचारियों को निकालने की बात हो रही है, तो कभी निजीकरण और निगमीकरण की बात कही जा रही है, इससे उनके काम पर भी असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इस सब की मुख्य वजह संवादहीनता है, जिसके चलते भारतीय रेल में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अगर निजीकरण और निगमीकरण की बात हुई, तो उनके सामने रेलवे का चक्का जाम करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।
इस पर रेलमंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारतीय रेल तयशुदा नियम-कायदों से चलती है, अखबारों में छपी खबरों के आधार पर उन्हें कोई राय नहीं बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमने संसद से लेकर आम बैठकों में भी कहा है कि भारतीय रेल का किसी भी हाल में निजीकरण नहीं होगा। प्रिटिंग प्रेस के मामले में एक उच्चस्तरीय टीम स्टडी करेगी, इसके बाद फेडरेशन/यूनियन के साथ फिर बैठक करके ही कोई निर्णय लिया जाएगा। यूनियनों की मान्यता का चुनाव फरवरी में कराने का निर्णय भी लिया गया।
ज्ञातव्य है कि गत दिनों हुई परिवर्तन संगोष्ठी और उसमें आए सुझावों पर एनएफआईआर ने तीखा विरोध जताया था। इस पर रेलमंत्री ने कहा कि वैसी ही एक और संगोष्ठी कर ली जाएगी, इसके लिए ही आज यह विशेष डिवीजनल काउंसिल की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में एनएफआईआर के महामंत्री डॉ एम राघवैया ने सभी विषयों पर गंभीरतापूर्वक अपनी बात रखी।
फेडरेशन के नेताओं ने कहा कि जो हालात हैं, उनमें किस किस बात की चर्चा की जाए। आज एकतरफा फैसले लिए जा रहे हैं, जबकि 74 की हडताल के बाद कुछ बातें तय हुईं थीं, जिसमें प्रेम की बैठक के जरिए हर विवादित मामले को सुलझाने की बात हुई थी, लेकिन आज सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि हर स्तर पर संवादहीनता बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि जब भी रेलमंत्री से समय मांगा जाता है वो तुरंत बात करते हैं, लेकिन एक जो व्यवस्था बनाई गई है उसका पालन नहीं हो रहा है, जिसकी वजह से तरह-तरह की बातें हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि आज यह जो चर्चा हो रही है कि 30% स्टाफ कम करने का फैसला लिया गया है, इससे हर एक कर्मचारी पूरे समय इन्हीं बातों पर चर्चा कर रहा है, उसके अंदर डर पैदा हो गया है। इससे उसकी कार्यक्षमता पर भी स्वाभाविक रूप से असर पड़ रहा है। एक तरफ खुद प्रधानमंत्री लालकिले से वंदे भारत ट्रेन की बात कहकर रेलकर्मियों की प्रशंसा करते हैं, दूसरी तरफ उत्पादन इकाईयों के निगमीकरण की बात की जा रही है।
उन्होंने कहा कि तेजस जैसी ट्रेन को निजी हाथों में सौंपकर उन्हें यात्रियों से मनमानी किराया वसूलने की छूट दी जा रही है, जबकि दिल्ली से लखनऊ के बीच चल रही शताब्दी एक्सप्रेस तेजस से मात्र पांच मिनट पीछे पहुंचती है। अब 150 ट्रेनों का निजीकरण करने की बात शुरु हो गई है। यही नहीं, तेजस के पहले 15 मिनट तक कोई ट्रेन आगे नहीं चलेगी।
उन्होंने कहा कि सवाल ये है कि रेल की पटरी हमारी, बोगी हमारी, लोको हमारा, मेंटीनेंस हमारा, लोको पायलट, स्टेशन मास्टर, केबिन, प्लेटफार्म सब हमारा, सिर्फ मुनाफा प्राईवेट आँपरेटर का हो, यह कैसा समझौता है? उनका कहना था कि इन स्थितियों में तो हमारी ट्रेनों के दुश्मन खुद हमें ही बनाया जा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर पैसा ही कमाना मकसद है, तो रेल को भी मनमानी किराया वसूलने और स्टापेज तय करने के अधिकार दे दे दिए जाएं, हम उनसे बेहतर आमदनी करके दिखाएंगे।
उन्होंने कहा कि हम भारतीय रेल में सुधार के मद्देनजर नीति आयोग के जो सुझाव हैं, हम हर सुझाव पर उसके खिलाफ नहीं हैं, ट्रेन की स्पीड बढ़ाई जानी चाहिए, वाई फाई, सुरक्षा, साफ-सफाई, ये सब हम भी चाहते हैं, लेकिन निजीकरण और निगमीकरण हमें कतई बर्दास्त नहीं है।
उनका कहना था कि ट्रेनों के संचालन में हर साल चार से पांच सौ कर्मचारी शहीद हो जाते हैं, इतनी मेहनत से हमारे कर्मचारी काम करते हैं, फिर भी हमें हमेशा नौकरी छिन जाने का डर दिखाया जाता है। उन्होंने कहा कि समय के साथ हमने भी बदलाव किया है। पहले स्टीम इंजन फिर डीजल अब इलेक्ट्रिक इंजन हमारे लोग चला ही रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि कैडर मर्जर को लेकर अधिकारी वर्ग में काफी नाराजगी है। मर्जर का निर्णय लेने से पहले फेडरेशनों से कोई सलाह-मशवरा नहीं किया गया। उनका कहना था कि दोषपूर्ण मर्जर से सभी अधिकारियों में निराशा व्याप्त है। तमाम अफसर आईपीएस की नौकरी छोड़कर रेलवे की नौकरी करने आए हैं, अब उन्हें भी नौकरी जाने का भय सता रहा है।
उन्होंने कहा, प्रिटिंग प्रेस के मामले में पहले जो फैसला हो चुका है कि पांच प्रेस बंद नहीं किए जाएंगे, उसका पालन किया जाना चाहिए। रेलवे प्रिटिंग प्रेस के कर्मचारी बड़ी मेहनत से काम करते हैं, लेकिन आज उन्हें भी बंद करने का फरमान जारी किया गया है, यह गलत है। उन्होंने रेलमंत्री को याद दिलाया कि एनपीएस को खत्म कर पुरानी पेंशन बहाल करने की बात पहले भी की गई है।
उन्होंने रेलमंत्री से कहा कि, इसके लिए आवश्यक है कि प्रधानमंत्री से बात करके इस मामले का अविलंब समुचित समाधान किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस मामले में फेडरेशन ने दुनिया के 26 देशों में क्या व्यवस्था चल रही है, वह भी सौंपा था। आज भारतीय रेल में छह लाख से ज्यादा ऐसे कर्मचारी हैं जो गारंटीड पेंशन के दायरे में नहीं है। 1800 और 4600 ग्रेड पे के कर्मचारियों के पास प्रमोशन का ऑप्सन न होने पर भी विस्तार से बात की गई।
उन्होंने कहा कि परिवर्तन संगोष्ठी में कहा गया कि रेल संगठनों से जुड़े 50 हजार पदाधिकारी काम नहीं करते। इस परिवर्तन संगोष्ठी में अगर फेडरेशनों को भी आमंत्रित किया गया होता, तो इस तरह की एक तरफा बात नहीं होती। दोनों फेडरेशनों के पदाधिकारियों को सुनने के बाद रेलमंत्री पीयूष गोयल ने हर मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि भारतीय रेल में आप सभी हमसे सीनियर हैं। फिर भी आपको पता होना चाहिए कि रेलवे कायदे-कानूनों से चलती है, अखबारों में छपी खबरों के आधार पर हमें कोई राय नहीं बनानी चाहिए।
उन्होंने स्वीकार किया कि परिवर्तन संगोष्ठी में अगर फेडरेशनों को भी आमंत्रित किया गया होता तो और बेहतर नतीजे सामने आते। आगे से इसका ध्यान रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि फेडरेशनों के साथ लगातार संवाद को दोबारा चालू किया जाएगा। कोशिश होगी कि हर दूसरे महीने के किसी बुधवार को फेडरेशनों के साथ बात हो। उन्होंने प्रेम की बैठकों को भी नियमित करने की बात कही। गोयल ने कहा कि अफसरों की हर छह महीने में बैठक होती है, हमारी कोशिश होगी कि हर तीन महीने में फेडरेशनों के साथ जरूर बैठक हो।
रेलमंत्री ने पुनः कहा कि मैंने संसद में ही नहीं, हर मीटिंग में पूरी जिम्मेदारी के साथ कहा है कि भारतीय रेल का निजीकरण नहीं किया जाएगा। उन्होंने स्वीकार किया कि रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए अगले 12 साल में 50 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता है। इसके लिए कुछ लक्जरी ट्रेन प्राईवेट ऑपरेटर्स को देने की बात जरूर हुई है, लेकिन इससे किसी भी रेलकर्मचारी या अधिकारी पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।
उन्होंने कहा कि भारतीय रेल में किराया बढ़ाना संभव नहीं है, क्योंकि आज हवाई जहाज का किराया काफी कम हो गया है, ऐसे में हमारे पैसेंजर वहां चले जाएंगे। हमें इस बात का भी ध्यान रखना है। रेलमंत्री ने कहा कि हमें 21वीं सदी की ओर देखना है, आप सब ने विदेशों में ट्रेनों को देखा है, हमारी कोशिश है कि हम भी वर्ल्ड क्लास ट्रेनों का संचालन कुशलता पूर्वक कर सकें। इसके लिए कुछ जरूरी काम तो करने पड़ेंगे।
परिवर्तन संगोष्ठी की चर्चा करते हुए रेलमंत्री ने कहा कि उसमें अधिकारियों के 12 समूहों ने कुछ सुझाव दिए हैं, लेकिन किसी पर भी अब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, उस संगोष्ठी के मीनिट्स तैयार किए गए हैं, उसी के आधार पर अखबारों से लेकर हर जगह कुछ बातें हो रही हैं। जहां तक यूनियन पदाधिकारियों के काम न करने का सवाल है, ये बात तो किसी ग्रुप ने भी नहीं कहा था, ये किसी एक अधिकारी ने अपनी बात में शायद यह कहा था।
उन्होंने कहा कि हमने तो रेलवे के सभी 13 लाख कर्मचारियों से सुझाव मांगे थे। 430 सुझाव आए भी हैं, उसमें कई सुझाव काफी अच्छे हैं। इसमें 50 लोगों को बुलाकर सम्मानित भी किया गया। रही बात नीति आयोग के 100 दिन की कार्य-योजना की, तो उनका काम ही नीति बनाना और संबंधित महकमें को देना है। लेकिन उन सभी को लागू करने से पहले उन पर काफी विचार विमर्श किया जाता है। उनका कहना था कि हमें सुझाव लेने में परेशानी नहीं होनी चाहिए।
प्रिटिंग प्रेस के मामले में रेलमंत्री ने कहा कि इस पर हम विचार करेंगे, बात हुई है कि एक उच्चस्तरीय कमेटी से इसकी उपयोगिता पर स्टडी करा ली जाए। इसके बाद हर बिंदु पर फेडरेशनों के साथ बात करने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा।
रेलवे बोर्ड चेयरमैन विनोद यादव ने कहा कि इस साल हमारे कर्मचारियों ने काफी बेहतर काम किया है, हमने रिकार्ड स्तर पर कोच और इंजनों का उत्पादन किया है, चूंकि इतनी बड़ी मात्रा में उत्पादन हुआ है तो हम इसके निर्यात का भी विचार कर रहे हैं। पिछले साल संरक्षा के मामले में भी हम काफी बेहतर रहे हैं। एक भी जानमाल की क्षति नहीं हुई है। उन्होंने भी भरोसा दिलाया कि ऐसा कोई काम नहीं होगा, जिससे किसी कर्मचारी का कोई नुकसान हो।
बहरहाल, एक बार फिर रेल प्रशासन दोनों फेडरेशनों को बरगलाने में कामयाब हो गया है। फेडरेशनों को लगभग हर मुद्दे पर दिए गए रेलमंत्री के जवाब से यह साफ जाहिर होता है। उनका यह कहना सही है कि सुझाव लेने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, इन्हीं सुझावों पर वह निजी ट्रेनों को एक-एक करके संचालित करते जा रहे हैं, मगर फिर भी फेडरेशनों से कह रहे हैं कि हर सुझाव और हर मामले पर उनसे बात करके ही कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
प्रिंटिंग प्रेस के विषय को भी वह कमेटी बनाने और स्टडी की बात कहकर टाल गए। अधिकारियों के कैडर मर्जर पर जहां रेलवे बोर्ड द्वारा यूपीएससी से सभी भर्तियों की इंडेंट्स वापस ले ली गई हैं, वहां भी उन्होंने अंतिम फैसला नहीं होने की बात कहकर अपना पिंड छुड़ा लिया। कहने का तात्पर्य यह है कि फेडरेशनों को सरकार की मंशा पर भरोसा करके भी किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि सरकार को जो करना है, वह बेरोकटोक कर ही रही है।