क्रोनी कैपिटलिज्म का वास्तविक मॉडल

अचानक कॉनकोर रेलवे की जमीन खरीद रहा है, इसका क्या कारण है?

कॉनकोर के बारे में पिछले काफी समय से आगाह किया जा है। आज हमारे मित्र लक्ष्मी प्रताप सिंह ने इस विषय पर महत्वपूर्ण पोस्ट लिखी है। तथ्यों पर गौर फरमाएं –

भारत सरकार कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर) को अडानी को बेच रही है, लेकिन अब अचानक कॉनकोर रेलवे की जमीन खरीद रहा है। उसका कारण क्या है?

कॉनकोर भारतीय रेल का ही औद्योगिक आर्म है। कॉनकोर के 86 में से 41 आईसीडी (इनलैंड कंटेनर डिपो) रेलवे की जमीन पर बने हैं जिनमें तुगलकाबाद और दादरी जैसे बड़े आईसीडी भी शामिल हैँ जिनसे पास-पड़ोस के राज्यों का निर्यात निर्भर करता है।

रेलवे की ये जमींनें शहर के बीच हैं और इनकी कीमतें अरबों में हैं। भारत सरकार ने कॉनकोर को इन जमीनों को खरीदने के लिए कहा है। ये रणनीति कुछ ऐसी है कि पहले कॉनकोर इन अरबों की जमीनों को कौड़ियों के दाम खरीदेगा, फिर कॉनकोर को अडानी कौड़ियों के भाव खरीद लेगा।

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इन जमीनों का क्षेत्रफल इतना ज्यादा है कि कौड़ियों के दाम लगाने के बाद भी इनकी कीमत 8,000 करोड़ बैठ रही है और कॉनकोर के पास इतना पैसा नहीं है। इसलिए सरकार का निर्देश है कि कॉनकोर बैंकों और बाकी जगहों से पैसा उधार लेकर ये जमीने ख़रीदे।

मतलब जनता के पैसे से कॉनकोर अडानी के लिए जमीने ख़रीदे। कॉनकोर को खरीदने के लिए भी अडानी के पास पैसा नहीं है, इसलिए अडानी भी बैको से कर्जा लेकर ही कॉनकोर को खरीदेगा।

#सवाल : मजे की बात ये है कि सरकार की दलील है कि कॉनकोर ज्यादा मुनाफा नहीं दे रही है, इसलिए उसे प्राइवेटाइज किया जा रहा है। लेकिन घाटे की कंपनी, जिसे सरकार बेचना चाहती है, उसे नए असेट्स खरीदने के लिए निर्देश क्यों दिए जा रहे हैं?

सरकार का डिस-इनवेस्टमेंट प्लान का मूल उद्देश्य ही असेट्स को बेचना है लेकिन फिर यह अपने उद्देश्य के खिलाफ जाकर असेट ख़रीदे क्यों जा रहे हैं?

रेलवे मदर कंपनी है और कॉनकोर उसकी आर्म (बच्चा) कंपनी लेकिन यहाँ कॉनकोर अपनी मदर कंपनी की असेट्स को खरीद रहा है, जबकि रेलवे चाहे तो कल कॉनकोर को खरीद सकता है।

इस पूरे खेल का मास्टर प्लान ये है कि कॉनकोर बैंकों से पैसा लेकर रेलवे की जमीन सर्किल रेट पर खरीदेगी जो मार्केट रेट का एक चौथाई से भी कम लगाया जाएगा, इस खरीद में जो पैसा लगेगा वो बैंको के कर्ज के रूप में किताब में चढ़ जाएगा।

इसके बाद जब कॉनकोर को बेचने की बारी आएगी, तब उसकी कुल कीमत में से लोन के पैसे को माइनस कर दिया जाएगा, क्योंकि वह कंपनी की देनदारी है।

इस तरह एक तरफ कॉनकोर का सौदा अडानी को और सस्ता पड़ेगा, दूसरी तरफ उसके पास देश का इकलौता औद्योगिक नेटवर्क आ जाएगा। अडानी के पास पहले से पोर्ट और एयरपोर्ट हैं, एक बार रेलवे की औधोगिक इकाई (कॉनकोर) और ये ड्राई पोर्ट्स (आईसीडी) भी आ गए, तो पूरे देश के निर्यात-आयत पर अडानी का एकछत्र राज होगा और जनता के रोजमर्रा की हर चीज की महंगाई सरकार के बजाय अडानी तय करेगा।

और हाँ, यदि कॉनकोर घाटे में गया, तो अडानी अपना मोटा मुनाफा निकालकर उसे अनिल अम्बानी की तरह दिवालिया कर देगा और उस समय जितनी कीमत होगी सिर्फ उतना ही पैसा देकर छूट जाएगा, क्योंकि मोदी जी ने 2016 में दिवालिया कानून में यही नियम कर दिया है।

एक बात और, बैंकों का जो पैसा डूबेगा, उसकी भरपाई वह जनता के मिनिमम बेलेंस और पासबुक एंट्री फ़ीस के नाम पर कर लेंगे। बाकी इस सब में पैसा भी जनता का ही लग रहा है। ये है क्रोनी कैपिटलिज्म का असली मॉडल!

साभार: #गिरीश_मालवीय की वाल से…