जीएम/द.पू.म.रे. ने कायम किया मूर्खतापूर्ण चालाकी का रिकॉर्ड

हसदेव नदी पुल पर मरम्मत के तुरंत बाद नियम-विरुद्ध बढ़ाई गई गति

बिलासपुर : महाप्रबंधक, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने नैला-चांपा के बीच हसदेव नदी रेल पुल डाउन लाइन के चार खंभों की मरम्मत के मामले में न सिर्फ अपनी मूर्खतापूर्ण चालाकी का रिकॉर्ड कायम किया है, बल्कि रेलवे बोर्ड को दिग्भ्रमित करने और लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए मात्र एक स्थानीय दैनिक में खबर प्लांट करवाकर अपनी चालाकी का मूर्खतापूर्ण प्रदर्शन भी किया है. इसके अलावा उन्होंने उक्त पुल की मरम्मत के तुरंत बाद न सिर्फ उस पर नियम-विरुद्ध सामान्य गति-सीमा पुनर्स्थापित करके पुल को पुनः खतरे में डाला है, बल्कि इस पुल से होकर गुजरने वाले मुंबई-हावड़ा ट्रंक रूट के लाखों रेलयात्रियों की संरक्षा के लिए भी भावी संकट बरकरार रखा है. दो दिन पहले काम पूरा कर लेने की आड़ में इसमें जो भारी भ्रष्टाचार किया गया, सो अलग.

जीएम/द.पू.म.रे. द्वारा यह कथित जल्दबाज चालाकी गत सप्ताह रेलमंत्री के साथ जोनल रेल परियोजनाओं की समीक्षा बैठक की पृष्ठभूमि में तब दिखाई गई, जब 17 जून को ‘रेल समाचार’ ने ‘निहितस्वार्थवश जीएम ने सिंगल टेंडर को दो भागों में बांटा?’ शीर्षक से एक विस्तृत खबर प्रकाशित की थी. इसके अलावा उक्त पुल के संदर्भ में इससे पहले ‘रेल समाचार’ ने रेल मंत्रालय, रेलमंत्री और सीआरबी को कई ट्वीट भी किए थे. उक्त ट्वीट के तुरंत बाद जीएम के दबाव में सर्वप्रथम कॉन्ट्रैक्टर्स को ‘संतोषजनक कार्य’ (वर्क सैटिस्फैक्शन) का प्रमाण-पत्र भी जारी किया गया था, जबकि अभी कार्य शुरू हुए मात्र 10-12 दिन ही हुए थे. रेलमंत्री के साथ मीटिंग से पहले मात्र एक स्थानीय दैनिक में गलत तथ्यों सहित खबर भी प्लांट करवाई गई. उल्लेखनीय है कि इस मात्र एक दैनिक के अतिरिक्त अन्य किसी भी स्थानीय दैनिक ने इस रेल पुल को लेकर जीएम द्वारा बनाए गए तथाकथित रिकॉर्ड के बारे में एक लाइन की भी कोई खबर प्रकाशित नहीं की है.

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एकमात्र स्थानीय दैनिक में प्लांटेड खबर के दिग्भ्रमित करने वाले तथ्यों के बारे में हालांकि उक्त पुल की मरम्मत करने से जुड़ा कोई भी संबंधित अधिकारी अपना मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है, जबकि मुख्य जनसंपर्क अधिकारी का कहना है कि ब्रिटिश कालीन पुल की जो बात खबर में कही गई है वह संबंधित संवाददाता ने स्वयं से लिखी होगी. तथापि जानकारों का दावा है कि प्लांटेड खबर की समस्त जानकारी जीएम अथवा किसी न किसी संबंधित अधिकारी ने ही प्लांट की है. अथवा पूरी खबर खुद तैयार करके जुगाड़ तकनीक से प्रकाशित करवाई गई? उनका यह भी कहना है कि उक्त प्लांटेड खबर के जरिए जीएम और अन्य संबंधित अधिकारियों ने अपनी पीठ थपथपाने के साथ ही रेलवे बोर्ड को भी दिग्भ्रमित किया है.

खबर में कहा गया है कि नैला-चांपा के बीच हसदेव नदी पर मरम्मत किया गया रेलवे पुल 1890 में बना था. जबकि ‘रेल समाचार’ की उपरोक्त शीर्षक खबर में इसके वर्ष 2004 में निर्मित होने का स्पष्ट उल्लेख है. ज्ञातव्य है कि इस पुल के निर्माण के समय से ही इसमें भ्रष्टाचार की भारी पनौती लगी हुई है. यह मान्य तथ्य है कि कम से कम सौ-सवा सौ साल की अवधि तक चलने का लक्ष्य निर्धारित करके किसी भी रेलवे पुल का निर्माण किया जाता है, मगर भ्रष्टाचार की पनौती के चलते यह रेलवे पुल मात्र 14-15 वर्षों के अंदर ही अपनी दुर्गति को प्राप्त हो चुका है. बताते हैं कि जब वर्ष 2003-04 में इसका निर्माण कार्य चल रहा था, तभी इसके तीन पिलर, जिनकी अभी पुनः मरम्मत की गई है, नींव से ही टेढ़े हो गए थे. तब इसका कांट्रेक्टर निर्माण कार्य अधूरा छोड़कर भाग खड़ा हुआ था. बाद में दूसरे कांट्रेक्टर को बुलाकर इसका काम पूरा कराया गया था. इसके साथ ही उक्त टेढ़े हुए तीनों खंभों को अलग से सपोर्ट देने के लिए उनसे जोड़कर नए खंभे खड़े किए गए थे. वर्तमान मरम्मत की लागत 10.26 करोड़ रुपये आई है, जबकि चार साल पहले भी लगभग इतनी ही लागत से इसकी मरम्मत कराई जा चुकी है.

उक्त रेलवे पुल की डाउन लाइन के चार खंभे खतरनाक स्थित तक कमजोर हो चुके थे. प्लांटेड खबर की यह बात सही है कि यदि अंदर से खोखले हो चुके इन चारों खंभों की तुरंत मरम्मत नहीं कराई जाती तो इस पर कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता था. मगर जानकार इस मरम्मत की लागत और नदी में 6 मीटर गहरे पानी की बात से पूरी तरह असहमत हैं. उनका कहना है कि डेढ़-दो मीटर तो हो सकता है, मगर 6 मीटर कदापि नहीं हो सकता था, क्योंकि क्षेत्र में पड़ने वाली भीषण गर्मी के कारण वैसे भी नदी में ज्यादा पानी नहीं रह जाता है.

जानकारों का यह भी कहना है कि कांट्रेक्ट के अनुसार मरम्मत वाला कार्य तो संतोषजनक हुआ हो सकता है, परंतु 6.59 करोड़ के बोल्डर कहां डाले गए, इसका कोई अता-पता नहीं है. बताते हैं कि जीएम अथवा अन्य संबंधित अधिकारियों द्वारा इसी लागत में पुराने ब्रिटिश कालीन ब्रिज के कुछ खंभों के पास भी कुछ बोल्डर डाले जाने की हवा बनाई गई है. जबकि बोल्डर सप्लायर स्थानीय कांट्रेक्टर ने ‘रेल समाचार’ से खुद यह स्वीकार किया है कि उसने वहां कोई बोल्डर नहीं डाले हैं. ऐसे में 6.59 करोड़ के बोल्डर या तो नदी के कथित 6 मीटर पानी में बह गए अथवा कांट्रेक्टर सहित जीएम और संबंधित अधिकारियों की जेब में चले गए हैं?

खबर में कहा गया है कि उक्त ब्रिज से सिर्फ खाली मालगाड़ी निकालने के लिए 10 किमी की गति सीमा लगी हुई थी, जबकि यात्री गाड़ियां पूरी तरह से प्रतिबंधित की गई थीं. जानकारों का कहना है कि न्यूनतम गति-सीमा 15 से 20 किमी के बीच निर्धारित होती है. उनका कहना है कि मरम्मत के तुरंत बाद ब्रिज पर सामान्य गति-सीमा (100-110 किमी) पुनर्स्थापित कर दी गई है. इसका उल्लेख तो उक्त प्लांटेड खबर में भी किया गया. इसके अलावा कई रनिंग कर्मियों सहित कुछ पी-वे कर्मचारियों ने भी इस तथ्य की भरोसेमंद पुष्टि की है. ज्ञातव्य है कि निर्धारित नियमों के अनुसार जिस सेक्शन में ट्रैक संबंधी कोई कार्य होता है, वहां चरणबद्ध तरीके से गति सीमा बढ़ाई जाती है. इंजीनियरिंग मैन्युअल का निर्धारित नियम यह है कि 15-20 किमी की न्यूनतम गति को पहले चरण में 45 किमी, फिर दूसरे चरण में 90 किमी और तीसरे चरण में सामान्य गति सीमा 110 किमी की जाती है.

नाम उजागर न करने की शर्त पर निचले स्तर के कुछ अधिकारियों ने ‘रेल समाचार’ से इस बात को स्वीकार किया है कि जीएम की मनमानी के चलते संबंधित अधिकारियों ने इंजीनियरिंग मैन्युअल के उपरोक्त निर्धारित नियम का घोर उल्लंघन करके पुल को पुनः असुरक्षित कर दिया है. इससे पुल को अत्यंत जोखिमपूर्ण नुकसान पहुंच चुका होगा. उनका यह भी कहना था कि ‘रेल समाचार’ की ट्वीट्स के फौरन बाद जीएम ने ब्रिज पर न्यूनतम गति को 20 किमी से बढ़ाकर 45 किमी करवा दिया था, जबकि अभी मरम्मत कार्य आधा भी नहीं हुआ था.

सिविल इंजीनियरिंग के जानकारों का कहना है कि अब तक ऐसी कोई पुख्ता तकनीक और केमिकल ईजाद नहीं हुआ है, जिससे कि भरने के साथ ही कांक्रीट तुरंत पुख्ता स्वरूप धारण कर ले. उनका कहना था कि ऐसे कार्यों में किसी भी कांक्रीट को पकने और पुख्ता होने के लिए कम से कम 10 से 15 दिन का समय देना ही पड़ता है, जो कि पुल के साथ-साथ यात्री संरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण इस कार्य में नहीं दिया गया है.

उल्लेखनीय है कि इस संबंध में पुख्ता जानकारी प्रमुख मुख्य अभियंता (पीसीई) ही दे सकते थे. मगर ‘रेल समाचार’ द्वारा उनके मोबाइल पर कई बार कॉल किए जाने के बावजूद उन्होंने एक बार भी रिस्पांस नहीं किया. इसके अलावा उन्होंने एसएमएस का भी जवाब देना जरूरी नहीं समझा, जिसमें लिखकर उनसे यह पूछा गया था कि मरम्मत कार्य के तुरंत बाद हसदेव पुल पर सामान्य गति कैसे पुनर्स्थापित कर दी गई, जबकि ऐसे कार्यों के बाद गति पुनर्स्थापित किए जाने के पूर्व निर्धारित नियम हैं? फिर भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

तथापि पीसीई सहित संबंधित अधिकारियों का मीडिया से दूर भागने का कारण यह बताया गया है कि जीएम ने अपनी तमाम कथित भ्रष्ट गतिविधियों पर पर्दा डाले रखने के लिए सभी अधिकारियों को मीडिया से, और खासतौर पर ‘रेल समाचार’ से दूरी बनाकर रखने की सख्त हिदायत दी हुई है, जिससे उनके फर्जी निरीक्षण कार्यक्रमों, बंगले की मरम्मत के बहाने करीब 90 लाख की चोरी, इलेक्ट्रिकल, इंजीनियरिंग और एसएंडटी में बिना भूमि-संपादन के ही एडवांस टेंडर एवं बल्क खरीद के जरिए हो रही सैकड़ों करोड़ की हेराफेरी तथा कोयला लोडिंग में दलाली इत्यादि कथित भ्रष्टाचार के तमाम मामलों पर किसी मीडिया वाले की नजर न पड़े.

सिविल इंजीनियरिंग के जानकारों का कहना है कि सामान्य गति तुरंत पुनर्स्थापित कर दिए जाने से उक्त मरम्मत का समुचित परिणाम नहीं मिल पाएगा, और न ही इसकी भारी भरकम लागत (10.26 करोड़ रुपये) का उचित लाभ रेलवे को मिलेगा. इसका मतलब यह है कि उक्त भारी राशि नदी के पानी में बहा दी गई है और रेलवे को जमकर चूना लगाया गया है. उनका यह भी कहना है कि ब्रिज इंजीनियरिंग के नाम पर एक बदनुमा धब्बे की तरह खड़े इस पुल को तुरंत सिरे से ध्वस्त करके इसकी जगह नया और पुख्ता पुल बनाया जाना चाहिए, तभी यात्री और रेल संरक्षा के प्रति पूरी तरह से सुनिश्चित-सुरक्षित हुआ जा सकता है, क्योंकि मात्र 14-15 वर्षों के दरम्यान ही अब तक इस बदसूरत और पनौती ब्रिज पर इसकी असली लागत के लगभग बराबर राशि खर्च की जा चुकी है, फिर भी इसे सुरक्षित कतई नहीं माना जा सकता है.क्रमशः