पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम मामले में सभी संवैधानिक आदेशों की अवहेलना की गई

पूर्व सर्विस के अनुभव का एंटी डेटिंग सीनियरिटी के निर्धारण में इस्तेमाल नहीं होगा

रेलवे बोर्ड ने प्रमोटी अधिकारियों को लाभ पहुंचाने के लिए उनके पक्ष में लिया निर्णय

रोटा-कोटा में कैबिनेट की मंजूरी और नोटिफिकेशन निकाले बिना ही बदलाव किया गया

प्रधानमंत्री के निर्देशों, अदालती निर्णयों और संसद के दस्तावेजों को दरकिनार किया गया

डीओपीटी से गुपचुप निकलवाए गए पत्र उच्चस्तरीय आदेशों की अवहेलना का आधार बने

किसी विभाग की ऑफिस नोटिंग्स की कोई लीगल वैल्यू या मान्यता नहीं है -सुप्रीम कोर्ट

एफआरओए द्वारा दिए गए तमाम ज्ञापनों को रेलवे बोर्ड ने किसी संज्ञान में भी नहीं लिया

रेलवे बोर्ड ने प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में फैसला लेने के लिए तीन मुद्दों पर चालबाजी की

सुरेश त्रिपाठी

रेलवे बोर्ड ने पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम मामले में सुप्रीम कोर्ट, अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया और डीओपीटी के आदेशों की अवहेलना करते हुए प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में निर्णय लिया था. इसके अलावा रेलवे बोर्ड ने डीओपीटी से गुप्त रूप से दो पत्र निकलवाए थे, जो उच्चस्तरीय आदेशों की अवहेलना करने का आधार बने थे. डीओपीटी के किसी अदने से अधिकारी के गुप्त पत्र को मानने के चक्कर में रेलवे बोर्ड ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के दिशा-निर्देशों, सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों, अटॉर्नी जनरल के सुझावों एवं खुद डीओपीटी मंत्री के लिखित दस्तावेज को दरकिनार कर दिया था.

भारत सरकार के दिशा-निर्देशों का वर्षों-वर्षों तक जानबूझकर उलंघन करना तथा सरकारी खजाने को अरबों-खरबों रुपयों की वार्षिक चपत लगाना किसी भी संस्था और व्यक्ति के लिए पूरी तरह देशद्रोह की श्रेणी में आता है. इस तथ्य जानते हुए यूपीएससी ने लगातार चार वर्षों तक बढ़े हुए प्रमोटी कोटे पर डीपीसी करने से मना कर दिया था. तथापि रेलवे बोर्ड ने सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच तय रोटा-कोटा के अनुपात में बिना कैबिनेट की मंजूरी लिए और गजटेड नोटिफिकेशन निकाले बिना ही बदलाव कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने अनेकों मामलों में रोटा-कोटा को सर्विस का बेसिक स्ट्रक्चर करार दिया है. सिर्फ रिक्रूटमेंट रूल में बदलाव के बाद ही रोटा-कोटा के अनुपात में तबदीली की बात कही गई है. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में एम. सुधाकर राव बनाम गोविंद राव मामले में कांस्टीट्यूशन बेंच (संवैधानिक पीठ) के माध्यम से निर्णय दिया था कि पूर्व सर्विस के सेवाकाल का अनुभव पदोन्नति के समय सिर्फ एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया में ही इस्तेमाल किया जाएगा, पूर्व सर्विस के अनुभव का एंटी डेटिंग सीनियरिटी के निर्धारण में इस्तेमाल नहीं होगा.

ऐसे संगीन या गंभीर मामले में सीधी भर्ती अधिकारी संगठन (एफआरओए) द्वारा अनेकों रिप्रजेंटेशन रेलवे बोर्ड को दिए गए हैं, फिर भी उन ज्ञापनों पर रेलवे बोर्ड द्वारा कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया, ऐसे में यदि मीडिया या किसी जनहित याचिका (पीआईएल) के माध्यम से यह बात सार्वजनिक होती है, तो रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों पर मोदी सरकार की गाज गिरना तय है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में साफ-साफ कहा है कि किसी भी विभाग की ऑफिस नोटिंग्स की कोई कानूनी वैल्यू या मान्यता नहीं होती है.

रेलवे द्वारा पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम को सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच तय रोटे-कोटे पर गलत ढ़ंग से लागू किया गया-

रेलवे बोर्ड ने प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में फैसला लेते हुए तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर सबसे बड़ी चालबाजी की है. इनमें से पहला मुद्दा यह है कि पोस्ट बेस्ड रिजर्वेशन रोस्टर सिस्टम को रोटा-कोटा में लागू किया जाना, दूसरा मुद्दा, प्रमोटी अधिकारियों के ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के दौरान अप्रत्याशित रूप से वार्षिक कोटे को बढ़ाया गया और अंतिम मुद्दा यह कि डीओपीटी के दिशा-निर्देशों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध प्रमोटी अधिकारियों को अतिरिक्त लाभ दिया गया.

Railway Violated Apex Court’s Order and DOPT’s instructions

1. Hon’ble Supreme Court judgement in R. K. Sabharwal Vs. State of Punjab and DOPT issued O. M. No 36012/2/96-Estt. (Res), dated 02.07.1997.

2. Hon’ble Supreme Court judgement in Dr. R. N. Bhatnagar case and DOPT O. M. No. 14017/2/1997-Estt. (RR), dated 19.01.2007 while assessment and division of vacancies between the direct and Promotee quota.

3. Judgement of Hon’ble Supreme court in P. Sudhakar Rao Vs. Govinda Rao Civil Appeal Nos. 1712/1713 of 2002 :- “Weightage for service in Group ‘B’ can however be considered only for eligibility for promotion and not in assigning seniority with retrospective.”

उपरोक्त सभी बातों का विश्लेषण निम्न प्रकार है-

1. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1997 में आर. के. सभरवाल बनाम पंजाब राज्य के मामले में निर्णय देते हुए पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम को अपनाने का आदेश दिया था, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि आर्टिकल 16(4) के अंदर एससी/एसटी/ओबीसी को दिया जाने वाला आरक्षण वैकेंसी के बजाय अब पदों की गणना के आधार पर दिया जाएगा, क्योंकि वैकेंसी बेस्ड रोस्टर सिस्टम के तहत कभी-कभी एससी/एसटी/ओबीसी के आरक्षण में दशमलव अंक में पद बनते थे, जो किसी प्रकार से भी तार्किक नहीं है. इस निर्णय के आधार पर डीओपीटी ने ओ. एम. सं. 36012/2/96-स्था.(आरक्षण), दि. 02.07.1997 के तहत सभी मंत्रालयों को आरक्षण में पोस्ट बेस्ड रिजर्वेशन सिस्टम को लागू करने का दिशा-निर्देश जारी किया था.

2. इसके बाद भारत के महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया) ने अजीत सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट को दिए गए हलफनामे में स्पष्ट रूप से बताया कि आर. के. सभरवाल बनाम पंजाब राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, जो कि पोस्ट बेस्ड रिजर्वेशन सिस्टम की बात करता है, को एससी/एसटी/ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण में पदों की गणना के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत के महान्यायवादी के बयान को डीओपीटी द्वारा ओ. एम. सं. 360/2/2/96-स्था.(आरक्षण) पार्ट-5, दि. 22.11.2007 के माध्यम से जारी किया गया है.

3. कार्मिक मंत्रालय के मंत्री जीतेंद्र सिंह ने दि. 12.08.2015 को लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया कि आर. के. सभरवाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों में एससी/एसटी/ओबीसी को आरक्षण देने के दौरान पोस्ट बेस्ड रिजर्वेशन सिस्टम को अपनाया जा रहा है.

4. वर्ष 1997 से लेकर आज तक छोटे-बड़े सभी कोर्टों ने अनेकों निर्णयों में पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम, जो कि आर. के. सभरवाल के मामले की उपज थी, को एससी/एसटी/ओबीसी के आरक्षण में अपनाने की बात कही है.

ऊपर बताए गए सिलसिलेवार घटनाक्रम से यह प्रतीत होता है कि भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों में पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम, जो कि आर. के. सभरवाल मामले से निकलकर आया था, को एससी/एसटी/ओबीसी को आरक्षण के दौरान पदों की गणना करने में आज तक इस्तेमाल किया जा रहा है.

परंतु रेलवे बोर्ड द्वारा पोस्ट बेस्ड रिजर्वेशन सिस्टम को सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच 50:50 के कोटे पर बड़ी चतुराई से लागू किया गया. इसके लागू होते ही जेटीएस (जूनियर टाइम स्केल) के सभी पदों को दो भागों में बांटकर एक भाग प्रमोटी ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों के हिस्से में कर दिया गया, जिससे प्रत्येक जोन में प्रमोटी ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों के लिए हजारों की संख्या में जेटीएस के पदों का सृजन किया गया. इस षड्यंत्र से रेलवे के खजाने को प्रति वर्ष अरबों रुपयों का चूना लगने लगा.

इस महा-घपलेबाजी का माध्यम डीओपीटी का डी. ओ. लेटर 140/7/2/2002-स्था.(आरआर), दि. 28.05.2002 बना. रेलवे बोर्ड ने भी डीओपीटी के इस डी. ओ. लेटर दि. 28.05.2002 के निर्देश को भारत के सुप्रीम कोर्ट से ऊपर वरीयता देते हुए पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम को रोटा-कोटा पर लागू कर दिया. रेलवे बोर्ड ने डीओपीटी के इस डी. ओ. लेटर को भारत के महान्यायवादी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे तथा डीओपीटी मंत्री के लोकसभा में प्रस्तुत बयान (दस्तावेज) से भी ऊपर समझा. अर्थात् रेलवे बोर्ड के लिए डीओपीटी का एक मामूली या मैनेज किया गया डी. ओ. लेटर दि. 28.05.2002 का दिशा-निर्देश भारतीय संसद और न्यायपालिका जैसी संवैधानिक संस्थाओं से भी ऊपर हो गया.

उपरोक्त सभी तथ्यों का स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से अध्ययन करने से यह साफ-साफ समझ में आता है कि रेलवे बोर्ड के तत्कालीन संबंधित अधिकारी ने डीओपीटी के तत्कालीन अधिकारियों के साथ साठ-गांठ करके गुपचुप तरीके से वर्ष 2002 में उपरोक्त डी. ओ. लेटर निकलवाया था, जिसकी जानकारी डीओपीटी कार्यालय तथा उसके उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को भी नहीं है. यदि ऐसा नहीं होता, तो वर्ष 2015 में कार्मिक (डीओपीटी) मंत्री ने पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम को एससी/एसटी/ओबीसी के आरक्षण पर पदों की गणना का बयान संसद में नहीं दिया होता.

रेलवे बोर्ड के अधिकारी डीओपीटी से वर्ष 2002 का उक्त डी. ओ. लेटर निकलवाने के बाद कान में तेल डालकर सो गए, क्योंकि डीओपीटी ने वर्ष 2007 में दुबारा एक ओ. एम. सं. 140/7/2/97-स्था.(आरआर), दि. 19.01.2007 को जारी किया, जिसमें एक बार फिर एससी/एसटी/ओबीसी के आरक्षण की गणना के लिए पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम का ही आधार बताया गया था. फिर भी रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों ने डीओपीटी के इस ओ. एम. का कोई संज्ञान नहीं लिया. तत्पश्चात अदालतों द्वारा दिए गए अनेकों आदेशों में पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम को आरक्षण का आधार बताया गया है. सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों ने भी कई ज्ञापन देकर इस गड़बड़ी को दूर करने का कई बार निवेदन किया, फिर भी रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की कान में जूं तक नहीं रेंगी. यह मामला बहुत ही संगीन और अपराधिक किस्म का है, जिसको रेलवे बोर्ड के अधिकारी, भारतीय संवैधानिक संस्थाओं के दिशा-निर्देशों को लगातार 16 वर्षों से अपनी अज्ञानतावश अथवा निहितस्वार्थवश दूसरे ग्रुप को लाभ पहुंचाने के लिए लगातार नजरअंदाज करते आ रहे हैं, जिससे रेलवे की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.

Hon’ble Supreme Court pronounced its judgement in R. K. Sabharwal Vs. State of Punjab and subsequently DOPT issued O. M. No 36012/2/96-Estt. (Res) dated 02.07.1997 regarding implementation of post based reservation roster. This judgement was related to division of vacancies between reserved classes (SC, ST, OBC & General) in accordance with the applicable reservation rules. It was decided that existing 200-point, 40-point and 120-point Vacancy-Based Roster shall be replaced by the Post-Based Roster.

GOVERNMENT OF INDIA
MINISTRY OF PERSONNEL, PUBLIC GRIEVANCES AND PENSIONS
(DEPARTMENT OF PERSONNEL AND TRAINING)
candidates
LOK SABHA
UNSTARRED QUESTION NO. 3752
(TO BE ANSWERED ON 12.08.2015)
POST BASED ROSTER

3752. DR. UDIT RAJ:

Will the PRIME MINISTER be pleased to state :

(a) the concept of post based roster and illustration along with its difference from vacancy based reservation roster;

(b) whether post based roster is being implemented in all the Central Government and State Government offices as per orders of the Department of Personnel and Training (DoPT) dated 2nd July 1997 and if so, the details thereof;

(c) if not, the details of list of offices and departments in the Central Government not using post based rosters on merit basis; and

(d) the measures taken by the Government to ensure that SC/ST selected or promoted in general merit will not be counted against reserved seats?

ANSWER

Minister of State in the Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions and Minister of State in the Prime Minister’s Office. (DR. JITENDRA SINGH)

(a): As per the judgement dated 10.02.1995 of the Hon’ble Supreme Court in R. K. Sabharwal Vs. State of Punjab, reservation has to be with reference to posts and not vacancies. In compliance with this judgement, the post-based roster was introduced vide O.M. No. 36012/2/96-Estt.(Res) dated 02.07.1997.

A post-based roster is a mechanism to ensure that the reserved categories get their due share of posts upto the prescribed percentage of reservation for the concerned categories in line with the principles enunciated in the aforesaid judgement of the Supreme Court.

In the case of vacancy based rosters, reservation was determined on the basis of number of vacancies arising in a cadre. In case of post based roster, reservation is now determined on the basis of number of posts in the cadre.

Illustration of difference between both rosters is given at Annexure.

(b) & (c): The directives of the Hon’ble Supreme Court in the R. K. Sabharwal case are applicable to the Central Government as well as the State Governments. However, the services under the States come under the List-II i.e. ‘State List’ of the Constitution and it is for the respective State Governments to issue necessary orders/instructions to comply with the directives of the Hon’ble Supreme Court. Post based rosters are required to be maintained by all Ministries/Departments etc. Liaison Officers appointed in each Ministry/Department/Offices under Head of the Department are responsible for conducting annual inspection of the reservation registers/rosters maintained in the Ministry/Department/Offices under the Head of the Department with a view to ensuring proper implementation of the reservation orders.

(d): The Hon’ble Supreme Court in the matter of R. K. Sabharwal v/s. State of Punjab also held that reserved category candidates who are appointed/promoted in Government jobs on their own merit shall be adjusted against unreserved quota and reservation quota vacancy shall be filled in addition to the above. The Central Government has, as accordingly issued instructions in Para 11 of Annexure-I to O.M. No. 36012/2/96-Estt.(Res.) dated 02/07/1997.

रेलवे ने डीओपीटी के ओ. एम. सं. 140/7/2/1997-स्था.(आरआर), दि. 19.01.2007 के दिशा-निर्देशों को लागू नहीं किया-

डीओपीटी ने दि. 19.01.2007 को उपरोक्त ओ. एम. जारी किया था, जिसमें डॉ. आर. एन. भटनागर मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सभी मंत्रालयों/विभागों को अपनाने का आदेश-निर्देश दिया गया था. इसमें स्पष्ट रूप से बताया गया था कि सर्वप्रथम प्रत्येक कैडर में प्रति वर्ष रिक्त होने वाले पदों का आकलन करना है. तत्पश्चात रिक्त पदों के आधार पर रोटे-कोटे के हिसाब से यूपीएससी को ग्रुप ‘ए’ में भर्ती के लिए इंडेंट भेजना है.

परंतु रेलवे ने ग्रुप ‘बी’ विभागीय प्रमोटी अधिकारियों को अधिक से अधिक ग्रुप ‘ए’ के पदों पर प्रमोशन देने के लिए डॉ. आर. एन. भटनागर मामले में आए डीओपीटी के दिशा-निर्देशों को जानबूझकर नजरअंदाज किया. यदि रेलवे बोर्ड ने डीओपीटी के इस नियम-निर्देश को मान लिया होता, तो विभागीय प्रमोटी अधिकारियों के ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के पदों में वार्षिक तौर पर भारी गिरावट आ जाती. उदाहरण स्वरूप वर्ष 2001 में प्रमोटी कोटे में ग्रुप ‘ए’ के 180 पद थे, जिन्हें नियमों को तोड़-मरोड़कर वर्ष 2007 में 180 से बढ़ाकर 411 पद कर दिया गया था. यह चालबाजी बहुत चालाकी और गुप्त रूप से की गई थी.

यदि डॉ. आर. एन. भटनागर मामले में आए सर्वोच्च अदालत के आदेश को रेलवे बोर्ड ने मान लिया होता, तो प्रति वर्ष सेवानिवृत्ति, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस), आकास्मिक मृत्यु, त्याग-पत्र आदि से ग्रुप ‘ए’ के रिक्त पदों का आकलन करना पड़ता, जो सरकार के अनुमान से लगभग कुल कैडर का 3% बनता है. अर्थात् रेलवे में 3% पद 287 के बराबर होते हैं. यह 287 पद ग्रुप ‘ए’ में प्रमोटी हिस्से में 50:50 के अनुपात के अनुसार लगभग 144 आते हैं. परंतु वर्ष 2007 में प्रमोटी अधिकारियों के लिए 411 के ग्रुप ‘ए’ के कोटे का निर्धारण किया गया. वास्तविक रूप से कुल 144 पदों के बजाय ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के कोटे में ग्रुप ‘बी’ विभागीय प्रमोटी अधिकारियों को 411 पद दिया जाना अनुचित था. यदि तत्कालीन प्रधानमंत्री के एक तिहाई (1/3) के नियम के दृष्टिकोण से देखा जाए, तो 144X1/3=50, अर्थात लगभग 50 ग्रुप ‘ए’ के पद बनते हैं. अतः सारे नियम-कानूनों को दरकिनार करते हुए रेलवे बोर्ड ने विभागीय अधिकारियों के वार्षिक ग्रुप ‘ए’ के कोटे को 50 से बढ़ाकर 411 किया था.

Hon’ble Supreme Court with its judgement in Dr. R. N. Bhatnagar case in 1998, wherein it clarified that the previous judgement in Sabharwal case was only limited to division of vacancies between reserved classes and not between Direct and Promotee, for which the provision of the recruitment rules (Filling up of vacancies in 50:50 and vacancy rosters) were continue to be followed. DoPT also issued clarification in OM dated 19-01-2007.

No.14017/2/1997-Estt.(RR)/Pt.
GOVERNMENT OF INDIA
MINISTRY OF PERSONNEL, PUBLIC GRIEVANCES AND PENSIONS
(DEPARTMENT OF PERSONNEL AND TRAINING)
New Delhi, Dated : 19th January, 2007.

OFFICE MEMORANDUM

Subject : 7th Central Pay Commission Recommendations – Revision of Pay Scales – Amendments of Service Rules/Recruitments Rules.

The undersigned is directed to refer to Department’s O.M. No. AB-14017/2/1997-Estt.(RR), Dated 25th May, 1998 on the subject noted above and say that to paragraph 2 of the said O.M. provided as follows –

“The Supreme Court in its judgement in R. K. Sabharwal’s case has ruled in favour of a change-over from the existing “Vacancy” based reservation roster to “Post” based roster. Under the existing policy the determination of the different quotas for recruitment id vacancy based in order to comply with the aforesaid Supreme Court Judgement, which has been implemented vide the DOPT OM No.36012/2/96-Estt.(Res.), Dated 2nd July, 1997, it will be necessary to amend the existing Service Rules/Recruitment Rules under column 11 of Annexuer-1 in the DOPT guidelines dated 18th March, 1988 to replaced the word “percentage of the ‘vacancies’ to filed by various methods” by “percentage of ‘posts’ to be filed by verious methods.

2. The Supreme Court in its judgement in CWP No. 5893 of 1997decided on 19.12.1998 – State of Punjab & Others Vs. Dr. R. N. Bhatnagar & another – held as foloows-

“The quota of percentage of Department Promotees and Direct Recruits has to be worked out on the basis of the roster points taking into consideration vacancies that fall due at a given point of time.. there is no question of filling up the vacancy created by the retirement of a Direct Recruit by a Direct Recruit or the vacancy created by a Promotee by a Promotee.”

3. The Court also held that the decision rendered by the Constitution Bench in R. K. Sabharwal’s case Vs. State of Punjab & Others [(1995(1) SLR 791 (SC)] in connection with Article 16(4) and the operation of roster for achieving the reservation of posts for Scheduled Casts, Scheduled Tribes and Backward Classes as per the scheme of reservation, cannot be passed in service for the scheme of method of appointment.

Assessment and division of vacancies must be reworked based on vacancy rosters to be made in line with Hon’ble supreme court judgement in Dr. R. N. Bhatnagar case and DoPT O.M. No. 14017/2/1997-Estt. (RR) dated 19-01- 2007 w.e.f. from date of applicability of Bhatnagar judgement (18-12- 1998). Appointment and seniority fixation of all excess promotee officers wrongly promoted due to erroneous application of post based rosters must be quashed in line with the rules and the method prescribed by Hon’ble Supreme court in Ajit Singh-II as mentioned in DoPT No.36012/2/96-Estt(Res.) Part-V Dated 22-11- 2007.

“It is axiomatic in-service jurisprudence that any promotions made wrongly in excess of any quota are to be treated as ad hoc. This applies to reservation quota as much as it applies to direct recruits and promotee cases. If a Court decides that in order only to remove hardship such roster point promotees are not to faced reversions, then it would, in our opinion be, necessary to hold consistent with our interpretation of Article 14 and 16(1) – that such promotees cannot plead for grant of any additional benefit of seniority following of a wrong application of the roster. In our view, while Courts can relieve immediate hardship arising out of the past illegality, Courts cannot grant any additional benefits like seniority which have no element of immediate hardship. Thus, while promotions in excess of roster made before 10.02.1995 are protected such promotees cannot claim seniority. Seniority in the promotional cadre of such excess roster point promotees shall have to be reviewed after 10.02.1995 and will count only from the date on which they would have otherwise got normal promotion in any future vacancy arising in a post previously occupied by a reserved candidate. This disposes of the ‘prospectivity’ point in relation to Sabharwal.”

रेलवे बोर्ड ने आरटीआई के जवाब में सच्चाई को छुपाते हुए गोलमोल जवाब दिया-

रेलवे बोर्ड से एक आरटीआई के तहत यह जानकारी मांगी गई थी कि दि. 19.01.2007 को जारी डीओपीटी के ओ. एम. सं. 14017/2/1997-स्था.(आरआर)/पीटी में दिए गए दिशा-निर्देशों का रेलवे बोर्ड द्वारा अनुपालन किया गया है या नहीं? इस पर रेलवे बोर्ड ने हां या न में कोई जवाब नहीं दिया है. जबकि सच यह है कि उपरोक्त ओ. एम. में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दो मामलों में स्पष्टीकरण देते हुए सभी मंत्रालयों/विभागों को इस पर अमल करने का आदेश दिया था. पहला मामला आर. के. सभरवाल बनाम पंजाब राज्य का था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1997 में पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम को एससी/एसटी/ओबीसी के आरक्षण पर लागू करने के निर्णय दिया था. परंतु रेलवे बोर्ड ने पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम को जेटीएस (जूनियर टाइम स्केल) में विभागीय प्रमोटी अधिकारियों के लिए तय रोटा-कोटा में लगाकर हजारों की संख्या में ग्रुप ‘बी’ के पदों का सृजन किया. अर्थात डीओपीटी के दिशा-निर्देशों का गलत तरीके से इस्तेमाल करके प्रमोटी अधिकारियों को विगत 19 वर्षों से लगातार अवैध रूप से लाभ पहुंचाया जा रहा है.

दूसरा मामला यह है कि डॉ. आर. एन. भटनागर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1998 में ही आदेश दिया था कि प्रत्येक वर्ष रिक्त पदों की गणना करने के पश्चात् नई भर्ती के लिए रिक्त पदों को रोटा-कोटा के अनुपात में बांटकर ही यूपीएससी को इंडेंट भेजी जानी चाहिए. परंतु रेलवे बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को भी नहीं माना और विगत 18 वर्षों से फिक्स कोटा के आधार पर यूपीएससी को ग्रुप ‘ए’ की भर्ती के लिए इंडेंट भेजी जाती रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश और डीओपीटी के वर्ष 2007 के दिशा-निर्देशों को यदि रेलवे बोर्ड ने मान लिया होता, तो ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी कोटा में ग्रुप ‘ए’ के वर्ष 2001 में जो 180 पद थे, जो कि वर्ष 2007 में बढ़ाकर 411 कर दिए गए थे, वह कभी नहीं बढ़े होते. इसलिए रेलवे बोर्ड ने आरटीआई के माध्यम से चाही गई जानकारी को भी छिपाते या गोलमोल करते हुए प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में निर्णय लेकर गुमराह करने की धूर्ततापूर्ण कोशिश की है.

रेलवे ने ऑप्टिमाइजेशन के नियम से प्रमोटी अधिकारियों को लाभ पहुंचाने के लिए डीओपीटी से गुपचुप डी. ओ. लेटर सं. 3/19/2002-एफआईसी, दि. 28.05.2002 निकलवाया-

डीओपीटी के इस गुप्त पत्र के आधार पर रेलवे बोर्ड के अधिकारीगण भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री के दिशा-निर्देशों, वित्तमंत्री के वर्ष 2001 के बजट संकल्प तथा डीओपीटी के वर्ष 2001 के ओ. एम. के आदेशों को दरकिनार करते हुए प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में नियम बनाया. इसके लिए सर्वप्रथम प्रमोटी अधिकारियों के ग्रुप ‘ए’ के वार्षिक पदों को बढ़ाया गया. तत्पश्चात इसका फायदा उन्हें ग्रुप ‘ए’ की संयुक्त वरीयता क्रम में मिले, उसके लिए कोनोटेशन ऑफ पे की गलत गणना की गई. अर्थात् रेलवे बोर्ड ने प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में जितने भी मदद के रास्ते बन सकते थे, सभी जगह सरकार के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करके अवैध और अपराधिक रूप से उन्हें फायदा पहुंचाया.

प्रधानमंत्री के दिशा-निर्देशों पर डीओपीटी ने ऑप्टिमाइजेशन का नियम वर्ष 2001 में जारी किया था, जिसमें प्रति वर्ष 2% के हिसाब से अगले 5 वर्षों में कुल कैडर स्ट्रेंथ से 10% पद खत्म करने की बात कही गई थी. परंतु यह ऑप्टिमाइजेशन का नियम रेलवे बोर्ड द्वारा वर्ष 2009 तक चलाया गया. जबकि इन 9 वर्षों में कुल कैडर स्ट्रेंथ से 18% पद कम होने चाहिए थे. प्रधानमंत्री के ऑप्टिमाइजेशन के नियम का यही लक्ष्य था कि 18% पद खत्म कर दिए जाएं. परंतु रेलवे बोर्ड ने आरटीआई के जवाब में बताया है कि ग्रुप ‘ए’ का कोई पद ऑप्टिमाइजेशन के नियम की वजह से खत्म नहीं किया गया, जो किसी भी मंत्रालय/विभाग के लिए इसलिए भी अत्यंत निंदनीय है कि देश के प्रधानमंत्री के निर्देश को किसी खास वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए उसका अनुपालन नहीं किया गया.

भारत में तीन तरह की अखिल भारतीय सेवाओं के साथ-साथ 58 प्रकार की केंद्रीय ग्रुप ‘ए’ की सेवाएं हैं. इनमें से प्रत्येक सेवा में रिक्रूटमेंट रूल (भर्ती नियम) के हिसाब से सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच तय कोटा अलग-अलग है. जैसे रेलवे मे सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों के बीच का कोटा 50:50% का है, तो किसी अन्य सर्विस (सेवा) में यह 75:25 का है. जबकि किसी सेवा में यह सिर्फ यूपीएससी द्वारा सीधी भर्ती से ही अधिकारी लिए जाते हैं. ऐसे में डीओपीटी 3+58 ग्रुप ‘ए’ सर्विसेज के लिए अलग-अलग ओ. एम. कैसे जारी कर सकता है? इसीलिए डीओपीटी सभी सर्विसेज के लिए एक ही ओ. एम. जारी करता है और उसकी कॉपी (प्रति) सभी मंत्रालयों/विभागों को अनुपालन करने के लिए भेज देता है.

इसी प्रकार डीओपीटी ने प्रधानमंत्री के दिशा-निर्देशों को एक ही ओ. एम. के माध्यम से वर्ष 2001 में जारी किया था, जिसमें संयुक्त गणना के आधार पर बताया गया था कि कुल कैडर से प्रतिवर्ष लगभग 3% अधिकारी सेवानिवृत होते हैं. इसलिए इसको नई भर्ती से सिर्फ 1% तक सीमित करने का निर्देश जारी हुआ था. चूंकि रेलवे में 50:50 के अनुपात में रोटा-कोटा है, इसलिए दो तिहाई (2/3) की वार्षिक कटौती प्रमोटी अधिकारियों तथा सीधी भर्ती वाले अधिकारियों के ग्रुप ‘ए’ के पदों पर करने के पश्चात् ही प्रधानमंत्री के 2% सेविंग का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता था. परंतु रेलवे बोर्ड ने प्रधानमंत्री के इस लक्ष्य को पाने के लिए ऐसा जानबूझकर नहीं किया. इस तरह रेलवे बोर्ड ने प्रधानमंत्री के निर्देश की अवहेलना की है.

यही नहीं, रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों ने प्रमोटी अधिकारियों के संगठन के साथ मिलकर डीओपीटी से एक गुप्त डी. ओ. पत्र निकलवाकर प्रधानमंत्री के दिशा-निर्देशों को जानबूझकर दरकिनार किया. इसके साथ ही कैबिनेट की मंजूरी के बगैर ही रेलवे बोर्ड द्वारा वर्ष 2005, वर्ष 2006 और वर्ष 2007 में प्रति वर्ष प्रमोटी अधिकारियों के लिए ग्रुप ‘ए’ के कोटे में लगातार इजाफा भी किया गया. इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ के पदों का लाभ देने के लिए रेलवे बोर्ड के तत्कालीन संबंधित अधिकारी एक बहुत ही सोची-समझी रणनीति या साजिश के तहत प्रधानमंत्री के आदेशों की अवहेलना करते रहे. इसका सीधा-सीधा असर रेलवे के खजाने पर अरबों-खरबों के अतिरिक्त वार्षिक बोझ के रूप में पड़ा है.

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ वर्ष 2013 में ही एम. सुधाकर राव बनाम गोविंद राव मामले में प्रमोशन के समय दी जाने वाली एंटी डेटिंग सीनियरिटी को खत्म कर चुकी है-

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा है कि पूर्व सर्विस के सेवाकाल का अनुभव पदोन्नति के समय सिर्फ एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया के निर्धारण में ही इस्तेमाल किया जाएगा तथा पूर्व की सर्विस के सेवाकाल का अनुभव पदोन्नति के समय इंटर-से-सीनियरिटी देने में उपयोग नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने एम. सुधाकर राव मामले की समीक्षा के दौरान यह पाया कि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने कुल सात मामलों में निर्णय सुनाया है, जिसमें से तीन निर्णय एंटी डेटिंग सीनियरिटी के पक्ष में गए थे तथा चार निर्णयों में एंटी डेटिंग सीनियरिटी को गलत ठहराया गया था. इसलिए प्रमोशन के दौरान दी जाने वाली एंटी डेटिंग सीनियरिटी पर अंतिम निर्णय लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों वाली संवैधानिक पीठ का गठन किया था. इस संवैधानिक पीठ ने एम. सुधाकर राव मामले में प्रमोशन के दौरान दी जाने वाली एंटी डेटिंग सीनियरिटी को गलत/अवैध करार दिया था. इसलिए वर्ष 2013 से एंटी डेटिंग सीनियरिटी का अध्याय हमेशा के लिए खत्म हो चुका है.

उल्लेखनीय है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारत के सभी संस्थानों, सभी सरकारों और सभी नागरिकों पर न सिर्फ समान रूप से लागू होता है, बल्कि अंतिम माना जाता है. अतः ऐसी स्थिति में रेलवे बोर्ड यदि प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के दौरान इंटर-से-सीनियरिटी तय (फिक्स) करते समय एंटी डेटिंग सीनियरिटी का लाभ देता है, तो यह सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना और उसके आदेश का उल्लंघन माना जाएगा. इसके लिए रेलवे बोर्ड के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला चलाया जाना चाहिए. जबकि रेलवे बोर्ड द्वारा वर्तमान में भी विभागीय प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ में प्रमोशन के दौरान पांच साल की एंटी डेटिंग सीनियरिटी का लाभ दिया जा रहा है, जो पूरी तरह से अवैध और नियम-कानून के विरुद्ध है.

वर्तमान में देश के नीति-नियंताओ द्वारा सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों में कार्यरत अधिकारियों/कर्मचारियों से वेतन के अनुरूप उत्पादकता की अपेक्षा की जा रही है. ऐसी स्थिति में भारत के सभी नागरिकों के साथ न्याय किया जा सके, इसके लिए सरकारी और प्राइवेट कर्मचारियों के बीच के वेतन की खाई को कम करने का प्रयास किया जा रहा है. परिणामस्वरूप सरकार और अदालतें मिलकर सरकारी कर्मचारियों को आवश्यकता से अधिक मिल रही सुविधाओं की कतरब्यौंत कर रही हैं. इसकी मुख्य वजह सरकारी खजाने पर बोझ कम करने का प्रयास है, जिससे बचे हुए धन का इस्तेमाल देश के विकास के लिए किया जा सके.

The latest rule position on this subject leaves no space for granting seniority on the basis of weightage of past service. Weightage for service in lower grade can be considered only for eligibility for promotion and not in assigning seniority with retrospective effect as per Hon’ble Supreme Court Judgment in M. Sudhakar Rao V/s Govinda Rao Civil Appeal Nos. 1712/1713 of 2002, by the decision of a three Judges bench of Hon’ble Supreme Court exercising Civil Appellate Jurisdiction on 03.07.2013. On the issue of assigning weightage for years of service rendered by an employee for the purpose of seniority in a grade Hon’ble Supreme Court after considering the Hon’ble Supreme court judgment in State of A. P. V/s K. S. Muralidhar (1992 SCR(1) 295 and various other judgments of Hon’ble Supreme Court on the issue of giving weightage of service in seniority to promotee officers, with retrospective effect have Concluded:

“For the reasons aforesaid, we see no occasion for interfering with the view taken by the High Court to the effect that the grant of retrospective seniority to Supervisors on their appointment as Junior Engineers violates Article 14 of the Constitution. The weightage of service given to the Supervisors can be taken advantage of only for the purpose of eligibility for promotion to the post of Assistant Engineer. The weightage cannot be utilized for obtaining retrospective seniority over and above the existing Junior Engineers.”

Assigning of 5 years weightage in Seniority with retrospective effect thus violates the above decision of Hon’ble Supreme court in the matter.

आईआरईएम वॉल्यूम-1 में दर्ज ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के जूनियर स्केल से सीनियर स्केल में पदोन्नति के नियम का जोनल रेलों द्वारा पालन नहीं किया जा रहा-

इंडियन रेलवे स्टैब्लिशमेंट मैनुअल (आईआरईएम) के वॉल्यूम-1 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘सीनियर स्केल के सभी पद ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के लिए बनाए गए हैं. इन पदों पर जोनल रेलवे द्वारा चार वर्ष की सेवा पूरी करने वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को पदोन्नति दी जाएगी. यदि उसके बाद सीनियर स्केल के रिक्त पद बचते हैं, तो उन बचे हुए रिक्त पदों पर ग्रुप ‘बी’ विभागीय अधिकारियों को ‘एडहाक’ प्रमोशन दिया जाएगा तथा प्रत्येक वर्ष जोनल महाप्रबंधक द्वारा सीनियर स्केल के रिक्त पदों का मूल्यांकन करने के बाद ही एडहाक प्रमोशन पर विचार किया जाएगा.’ परंतु रेलवे बोर्ड की बदइंतजामी अथवा नालायकी के कारण इस नियम का पालन किसी भी जोनल रेलवे में नहीं किया जा रहा है. इसी वजह से 4-5 साल की सेवा पूरी करने के बाद भी ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों का प्रमोशन सीनियर स्केल में नहीं हो पा रहा है. जो कि रेलवे ऐक्ट के नियम के भी विपरीत है.

जोनल रेलों में ऐसा प्रचलन है कि जिसको सीनियर स्केल में एडहाक प्रमोशन मिल जाता है, उसका यह प्रमोशन अगले साल ही नहीं बल्कि सालों-साल भी जारी रखा जाता है. इसलिए सीनियर स्केल के एडहाक पदों पर वर्षों-वर्षों तक प्रमोशन जारी रखना रेलवे ऐक्ट में बनाए गए नियम के विरुद्ध है. यदि एडहाक पद प्राप्त करने वाले अधिकारियों को वापस (रिवर्ट) करने में रेलवे बोर्ड को दया आती है अथवा उसकी व्यवहारिकता पर प्रश्न उठता हो, तो ऐसी दशा में रेलवे बोर्ड को कैबिनेट की अनुमति लेकर रेलवे ऐक्ट में ही संशोधन करा लेना चाहिए. परंतु जब तक रेलवे ऐक्ट में यह बदलाव नहीं किया जाता है, तब तक अनिवार्य रूप से जोनल महाप्रबंधक द्वारा सीनियर स्केल के पदों का वार्षिक मूल्यांकन करने के बाद ही एडहाक प्रमोशन दिया जाना चाहिए.

आने वाले समय में निम्न परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं-

1. फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशन (एफआरओए) द्वारा एक तर्कसंगत मांग यह की जा सकती है कि डीओपीटी के नियम-निर्देश को गलत ढ़ंग से अपनाए जाने पर सरकारी खजाने पर जो अतिरिक्त बोझ पड़ा है, उसकी भरपाई के लिए वर्तमान में सेवारत प्रमोटी अधिकारियों को मिला हुआ अधिक वेतन और पदोन्नति वापस ली जानी चाहिए. अर्थात् कोटे से अधिक प्रमोशन पाए हुए प्रमोटी अधिकारियों को रिवर्ट बैक किया जाए, जिससे रिक्त होने वाले पदों पर सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को पदोन्नत करके उनके साथ न्याय किया जा सके.

2. इसके विपरीत इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (इरपोफ) द्वारा ‘डैमेज कंट्रोल’ के आधार पर एक व्यवहारिक समाधान की बात की जा सकती है. इसका कारण यह है कि वर्ष 2005 में आरटीआई ऐक्ट के आने से रेलवे बोर्ड की सारी ऑफिस नोटिंग्स और तमाम सरकारी दस्तावेज, जिनके द्वारा घपलेबाजी की गई है, अब जगजाहिर हो चुके हैं. ऐसी स्थिति में इरपोफ के सामने मुख्य मुद्दा यह हो सकता है कि इस मामले में रेलवे बोर्ड द्वारा गठित की गई कमेटी को उन सब बातों पर राजी कर लेना थोड़ा आसान हो जाएगा, जिससे प्रमोटी अधिकारियों का कम से कम नुकसान हो. इसलिए इरपोफ द्वारा ऊपर बताए गए डीओपीटी के वर्ष 1986 वाले ओ. एम. का हवाला देते हुए एक व्यवहारिक बदलाव का सुझाव दिया जा सकता है, क्योंकि तमाम मामलों में विभिन्न अदालतों के भी यही व्यवहारिक दिशा-निर्देश हैं कि स्थायी रूप से पदोन्नति पाने वाले अधिकारियों को रिवर्ट बैक करने से परहेज किया जाए. इस मामले में इरपोफ चौतरफा घिर चुका है, इसलिए कमेटी के गठन की वैधानिकता को अदालत में चुनौती देने का शायद ही उसे कोई प्रतिफल नहीं मिल पाएगा.

DOPT on dated 07.02.1986 vide O.M.No. 35014/2/80-Estt(D) and on dated 03.07.1986 vide O.M. No. 22011/7/86-Estt(D) issued office memorandums in respect of consolidated instructions on inter-se- seniority. Wherein under para 5 and para 2.4.4 of these OMs & it has been said,

“with a view to curbing any tendency of under-reporting/suppressing the vacancies to be notified to the concerned authorities for direct recruitment, it is clarified that promotees will be treated as regular only to the extent to which direct recruitment vacancies are reported to the recruiting authorities on the basis of the quotas prescribed in the relevant recruitment rules. Excess promotees, if any, exceeding the share falling to the promotion quota based on the corresponding figure, notified for direct recruitment would be treated only as ad-hoc promotees.”

3. रेलवे बोर्ड द्वारा गठित पांच सदस्यों वाली कमेटी के समक्ष डीओपीटी के वर्ष 1986 वाले ओ. एम. को लेकर एफआरओए और इरपोफ द्वारा दिए गए नियमों और दलीलों के आधार पर कुछ परिपक्व सुझाव दिए जा सकते हैं, जिसमें डीओपीटी के नियम और इरपोफ के ‘डैमेज कंट्रोल’ के बीच संतुलन बैठाते हुए कमेटी निम्नलिखित सुझाव दे सकती है-

(क) वर्ष 2016-17 में होने वाली प्रमोटी अधिकारियों की डीपीसी पर तुरंत रोक लगा दी जाए.

(ख) वर्ष 2001 से सीधी भर्ती वाले और प्रमोटी अधिकारियों के बीच 50:50 के अनुपात को कायम रखने के लिए सर्विस वाइज जितने सीधी भर्ती द्वारा अधिकारी प्रति वर्ष नियुक्त किए गए थे, उतनी ही संख्या में वरीयता के अनुसार प्रमोटी अधिकारियों की नई सूची जारी की जाए. यह प्रक्रिया वर्ष 2001 से वर्ष 2015 तक दोहराई जाए तथा वर्ष 2001 से वर्ष 2015 तक की एक संयुक्त वरीयता सूची के आधार पर इंटर-से-सीनियरिटी तय की जाए. तत्पश्चात् कोटे से अधिक प्रमोशन पाए हुए प्रमोटी अधिकारियों को आने वाले वर्षों में प्रमोटी कोटा के अनुरूप उनका एडजस्टमेंट किया जाए. यह प्रक्रिया तब तक जारी रहे, जब तक कि वर्ष 2001 से बिगड़ा हुआ अनुपात दुरूस्त होकर 50:50 के अनुपात में न आ जाए. इसके बाद 50:50 के अनुपात में कोटे का लक्ष्य पूरा हो जाने के पश्चात् ही प्रमोटी अधिकारियों के लिए नई डीपीसी का गठन किया जाए.

(ग) डीओपीटी के पोस्ट बेस्ड रोस्टर सिस्टम पर दिशा-निर्देश, रोटा-कोटा पर से तुरंत हटाते हुए एससी/एसटी/ओबीसी के आरक्षण पर लागू किया जाए. तत्पश्चात रेलवे में ग्रुप ‘बी’ के जितने पद वर्ष 1995 से वर्ष 1997 तक थे, उनको पुनः यथास्थिति में लाया जाए. इसके लिए सेवानिवृत्त होने से रिक्त हुए ग्रुप ‘बी’ के पदों पर कोई नियुक्ति नहीं की जाए. यह सिलसिला तब तक जारी रखा जाए, जब तक कि ग्रुप ‘बी’ के पदों की वर्ष 1995 वाली स्थिति न बन जाए.

(घ) डीओपीटी के वर्ष 2007 के ओ. एम., जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. आर. एन. भटनागर मामले में निर्णय दिया था, को रेलवे में तुरंत लागू किया जाए तथा प्रत्येक वर्ष ग्रुप ‘ए’ के रिक्त पदों का मूल्यांकन करने के बाद ही यूपीएससी को इंडेंट भेजे जाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किया जाए.

(च) सुप्रीम कोर्ट द्वारा एम. सुधाकर राव बनाम गोविंद राव मामले में दिए गए निर्णय को यथाशीघ्र रेलवे में लागू करने का प्रावधान किया जाए.

(च) जोनल रेलों को यह स्पष्ट निर्देश दिया जाए कि प्रति वर्ष सीनियर स्केल के पदों का मूल्यांकन करने के बाद ही एडहाक सीनियर स्केल के पदों पर पदोन्नतियां की जानी चाहिए.