सरकारी आदेश की अवहेलना करके रेलवे में हुआ अधिकारी पदों का भारी घोटाला
सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर रेलवे बोर्ड ने गठित की एक्सपर्ट कमेटी
रेलवे बोर्ड पर डीओपीटी के नियमों को पक्षपातपूर्ण ढ़ंग से लागू करने का आरोप
भारी संख्या में प्रमोटी अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ के पदों पर प्रमोशन देने का मामला
वर्ष 2001-09 के दरम्यान कैबिनेट की मंजूरी के बिना ग्रुप ‘ए’ जेटीएस का बढ़ाया कोटा
रेलवे में प्रमोशन के दौरान वर्तमान कोनोटेशन वाले विचित्र नियम की प्रमाणिकता संदिग्ध
रे.बो. ने 9 वर्षों में ग्रुप ‘ए’ के लिए 919 तथा ग्रुप ‘बी’ के लिए 2988 पदों का इंडेंट भेजा
गलत गणना के आधार पर ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को दिया एंटी डेटिंग सीनियरिटी का लाभ
कमेटी द्वारा ग्रुप ‘ए’ एवं ‘बी’ अधिकारियों की तय कोटे और वरीयता पर की जाएगी समीक्षा
रेल राजस्व को हुआ अरबों रुपए का नुकसान, कमेटी दो महीनों में सौंपेगी अपनी जांच रिर्पोट
सुरेश त्रिपाठी
सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों और ग्रुप ‘बी’ विभागीय प्रमोटी अधिकारियों के बीच ग्रुप ‘ए’ के पदों को लेकर चल रही खींचतान और विगत में रेलवे बोर्ड द्वारा पक्षपातपूर्ण तरीके से ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को पांच साल की एंटी डेटिंग सीनियरिटी का लाभ दिए जाने को लेकर सीधी भर्ती ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों में व्याप्त भारी असंतोष को देखते हुए रेलवे बोर्ड ने एक पांच सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी (रे.बो.पत्रांक ईआरबी-1/2016/23/53, दि.04.10.2016) का गठन किया है. यह एक्सपर्ट कमेटी सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में उद्धृत पैरा 11.40.45 के संदर्भ में दोनों ग्रुप के अधिकारियों की संख्या, पदोन्नति, अनुपात और आवश्यकता की गहराई से विवेचना करेगी. इस एक्सपर्ट कमेटी में रेलवे बोर्ड के 1. जॉइंट सेक्रेटरी (स्टैब्लिशमेंट-2), कन्वेनर. 2. एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (ई/जीसी), सदस्य. 3. एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (ई/आईआर) सदस्य. 4. एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (फाइनेंस/ई) सदस्य. 5. डिप्टी लीगल एडवाइजर, सदस्य, शामिल हैं. इस कमेटी को मुख्यतः कोनोटेशन नियम पर आधारित ग्रेड ‘ए’ में इंडक्टेड प्रमोटी अधिकारियों की वरिष्ठता सुनिश्चित करने तथा दोनों अधिकारी संगठनों (एफआरओए एवं इरपोफ) के साथ बातचीत करके इंटर-से-सीनियरिटी का पूरा मामला हल करने सहित तमाम अदालतों द्वारा दिए गए निर्णयों का अध्ययन करके समुचित अंतिम निष्कर्ष सुझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे में विगत कुछ वर्षों के दौरान रिक्तियों से अधिक ग्रुप ‘ए’ के पदों पर ग्रुप ‘बी’ विभागीय प्रमोटी अधिकारियों की पदोन्नति की गई है. इस विसंगति पर फेडरेशन ऑफ रेलवे ऑफिसर्स एसोसिएशन (एफआरओए) ने अनेकों ज्ञापन रेलमंत्री और चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) को दिए हैं. एफआरओए द्वारा इन ज्ञापनों में सीधा-सीधा यह आरोप लगाया गया है कि रेलवे बोर्ड द्वारा प्रमोटी अधिकारियों के प्रमोशन के लिए ग्रुप ‘ए’ के पदों को परिकल्पित रूप से बढ़ाया गया. इसकी वजह से और प्रमोशन के दौरान 5 वर्ष की एंटी डेटिंग वाले नियम के कारण भारी संख्या में प्रमोटी अधिकारी ग्रुप ‘ए’ में संयुक्त वरीयता सूची में काफी ऊपर पहुंच गए हैं. इससे सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों और प्रमोटी अधिकारियों के बीच स्थापित 1:1 के अनुपात के कोटे का अपराधिक उल्लंघन हुआ है. इस वजह से रेलवे पर अरबों रुपए का अतिरिक्त बोझ भी पड़ा है.
इस पूरे विवाद का मूल कारण वर्ष 2001 में जारी हुआ डीओपीटी का वह ऑफिस मेमोरेंडम (No. 2/8/2001/PIC, Dated 16.05.2001) है, जिसको बाजपेयी सरकार के निर्देश पर निर्गत किया गया था. वर्ष 2001 के बजट भाषण में तत्कालीन वित्तमंत्री ने कहा था कि प्रधानमंत्री ने अगले पांच सालों में सरकारी कार्यालयों में मौजूद कुल सिविलियन पदों में से 10% पद कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रत्येक वर्ष कुल कैडर स्ट्रेंथ का 2% कम करने का प्रस्ताव रखा गया था. परिणामस्वरूप वर्ष 2001 में सरकार के दिशा-निर्देशों पर डीओपीटी ने एक ओएम जारी किया, जिसमें यह कहा गया कि एक अनुमान के तहत सभी केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के प्रत्येक कैडर में प्रति वर्ष लगभग 3% सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त होते हैं. इसलिए प्रधानमंत्री के 2% सेविंग के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी केंद्रीय सरकारी विभागों में नई वार्षिक नियुक्तियों को कुल कैडर स्ट्रेंथ का 1% तक सीमित करना होगा. अर्थात् कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति से पैदा होने वाली कुल कैडर स्ट्रेंथ के 3% वार्षिक रिक्त पदों में से सिर्फ 1% पद ही भरे जाएंगे. इस प्रकार पैदा होने वाले रिक्त पदों का सिर्फ 1/3 (एक तिहाई) ही रिक्रूटमेंट से भरा जाएगा. बाकी बचे 2/3 (दो तिहाई) पद समाप्त कर दिए जाएंगे. इस तरह प्रत्येक वर्ष 2% के हिसाब से अगले 5 सालों में कुल कैडर स्ट्रेंथ के 10% पद खत्म कर दिए जाएंगे. परंतु डीओपीटी ने इस नियम को वर्ष 2005 से बढ़ाकर वर्ष 2009 तक कर दिया था. पदों के बंदरबांट की सारी घपलेबाजी यहीं शुरू हुई थी.
उल्लेखनीय है कि ऑप्टिमाइजेशन का यह नियम वर्ष 2001 से 2009 तक रेलवे को छोड़कर भारत सरकार के बाकी सभी मंत्रालयों/विभागों में लागू हुआ था. इसके फलस्वरूप बाकी सभी मंत्रालयों में 2% की वार्षिक कटौती के हिसाब से कुल कैडर स्ट्रेंथ में 18% की कमी हुई थी. डीओपीटी के इस नियम के अनुसार वर्ष 2001 में किसी भी मंत्रालय में जितनी भी अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या थी, वह वर्ष 2009 में घटकर अपनी मूल संख्या की 82% रह गई थी. मगर रेल मंत्रालय में यह संख्या घटने के बजाय बढ़ गई थी, जो कि आज भी ज्यों की त्यों चल रही है. यही वजह है कि रेलवे में अधिकारियों की संख्या घटने के बजाय बढ़ी है, जबकि तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार ने सात नए जोनों को बनाए जाने के समय संसद में इस बात की घोषणा की थी कि नए जोनों की स्थापना पर भी रेलवे में अधिकारियों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं होगी.
ज्ञातव्य है कि डीओपीटी के ऑप्टिमाइजेशन का यह नियम रेलवे में भी लागू किया गया था. रेलवे की आठ आर्गनाइज्ड सर्विसेज में ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के मंजूर पदों की संख्या (रेवेन्यु+वर्कचार्ज) कुल मिलाकर लगभग 10 हजार है. सरकार की गणना के अनुसार प्रत्येक कैडर में कुल कैडर स्ट्रेंथ के लगभग 3% अधिकारी/कर्मचारी प्रतिवर्ष सेवानिवृत होते हैं. रेलवे बोर्ड ने वर्ष 2001 में आठ आर्गनाइज्ड सर्विसेज के ग्रुप ‘ए’ के पदों पर वार्षिक भर्ती 360 तय की थी. चूंकि रेलवे में ग्रुप ‘ए’ में एंट्री लेवल के कुल पदों को 50:50 के अनुपात में बांटकर, एक भाग में यूपीएससी से सीधी भर्ती द्वारा अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं, तथा दूसरा 50% भाग आतंरिक (विभागीय) प्रमोशन से भरा जाता है. इस 50-50% कोटे के नियम के आधार पर वर्ष 2001 में ग्रुप ‘ए’ के एंट्री लेवल के 360 पदों में से 180 पद सीधी भर्ती तथा बचे हुए 180 पद विभागीय प्रमोशन से भरा जाना तय किया गया था.
रेलवे ने डीओपीटी के ऑप्टिमाइजेशन के नियम की गलत ढ़ंग से व्याख्या कर प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में निर्णय लिया. जबकि डीओपीटी का वर्ष 2001 का ओएम कुल चार बातें कहता हैः-
1. प्रत्येक वर्ष में कुल कैडर प्रतिशत के सिर्फ 1% पदों पर नई नियुक्ति होगी. अनुमानतः प्रत्येक वर्ष 3% पद रिक्त होते हैं, उनमें से सिर्फ 1% पदों को ही भरा जाएगा. अतः रिक्त पदों के सिर्फ 1/3 (एक तिहाई) पद ही प्रत्येक वर्ष भरे जाएंगे.
2. प्रत्येक वर्ष कुल कैडर स्ट्रेंथ में से 2% पद खत्म कर दिए जाएंगे. अर्थात प्रत्येक वर्ष 3% में से 2% पद खत्म हो जाएंगे. यानि रिक्त पदों के दो तिहाई (2/3) पदों पर कोई भर्ती नहीं होगी. अर्थात प्रत्येक वर्ष कुल कैडर स्ट्रेंथ में से 2% पद कम होते चले जाएंगे.
3. यह नियम, नई और सीधी भर्ती दोनों पर मान्य होंगे.
4. अन्य प्रमोशन रिक्रूटमेंट रूल के हिसाब से होते रहेंगे.
रेलवे बोर्ड ने चालाकी से अथवा किसी निहितस्वार्थवश ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में फैसला लेते हुए ऊपर बताए गए नियमों में से सिर्फ नियम नं. 3 को ही अपनाया. परंतु तिकड़मबाजी या आपसी मिलीभगत से रेलवे बोर्ड ने सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ के पदों के कोटे को एक तिहाई (1/3) तक सीमित कर दिया. अर्थात् सीधी भर्ती के 180 पदों को कम करके 60 कर दिया, जबकि प्रमोटी कोटे के ग्रुप ‘ए’ के 180 पदों को न सिर्फ यथावत रखा, बल्कि उन्हें इसी के अनुरूप भरा भी गया. परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष सीधी वार्षिक भर्ती से 60 तथा प्रमोटी कोटे से 180 ग्रुप ‘ए’ अधिकारी आने लगे. यानि 360 वार्षिक पदों को घटाकर 60+180=240 कर दिया गया. फलस्वरूप 2% पद कम करने के बजाय रेलवे ने 1% ग्रुप ‘ए’ के पदों पर भर्ती ही नहीं की.
इस प्रकार का पक्षपातपूर्ण नियम अपनाए जाने से रेलवे बोर्ड ने सरकार के कई नियमों का एक साथ उल्लंघन किया. जो इस प्रकार हैं..
1. सरकार के 2% सेविंग करने वाले नियम को दरकिनार करते हुए रेलवे बोर्ड ने सिर्फ 1% की वार्षिक सेविंग की.
2. सीधी भर्ती और विभागीय (प्रमोटी) अधिकारियों के बीच का अनुपात किसी भी सर्विस का बुनियादी ढ़ांचा होता है और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार यह रोटा-कोटा इसका एक बेसिक स्ट्रक्चर है तथा इसका किसी भी परिस्थिति में उलंघन नहीं किया जा सकता. परंतु रेलवे बोर्ड ने 50:50 के अनुपात का पक्षपातपूर्ण उल्लंघन किया है. इसमें भ्रष्टाचार की गंध आ रही है.
3. डीओपीटी के रिक्रूटमेंट रूल के अनुसार आर्गनाइज्ड सर्विस वह होती है, जिसमें ग्रुप ‘ए’ श्रेणी के रिक्त पदों के न्यूनतम 50% पद सीधी भर्ती से भरे जा रहे हों. परंतु रेलवे बोर्ड ने 8 आर्गनाइज्ड सर्विसेज की ग्रुप ‘ए’ श्रेणी में भर्ती के दौरान न सिर्फ डीओपीटी के उक्त नियम को दरकिनार कर दिया, बल्कि 50:50 के अनुपात (मूल धारणा) को ही खत्म कर दिया.
4. आरटीआई से प्राप्त ताजा जानकारी में रेलवे बोर्ड ने बताया है कि ऑप्टिमाइजेशन पीरियड (वर्ष 2001-2009) के दौरान रेलवे में कोई भी ग्रुप ‘ए’ का पद खत्म नहीं किया गया. जबकि उक्त 9 वर्षों तक चलने वाले इस नियम की वजह से कुल 18% पद खत्म कर दिए जाने थे. परंतु रेलवे बोर्ड ने ऐसा नहीं किया. इसका मतलब यह है कि रेलवे बोर्ड ने सरकार के आदेशों का भी उल्लंघन किया. रेलवे ने यह भी बताया है कि सीधी भर्ती वाले रिक्त पदों पर सिर्फ एक तिहाई भर्ती ही की गई है. इससे स्पष्ट होता है कि रेलवे ने सीधी भर्ती वाले कोटे से बचे दो तिहाई खाली पद यानी 18% पदों को प्रमोटी कोटे की तरफ डाइवर्ट करके ग्रुप ‘ए’ के सभी पदों को प्रमोटी अधिकारियों से भर दिया. जाहिर है कि रेलवे बोर्ड द्वारा सरकार के नियमों और निर्देशों को दरकिनार करते हुए प्रमोटी अधिकारियों के पक्ष में निर्णय लिया जाना और उन्हें अनावश्यक लाभ पहुंचाना न सिर्फ एक सोची-समझी साजिश है, बल्कि यह एक भीषण अपराधिक षड्यंत्र का हिस्सा भी है.
ऑप्टिमाइजेशन (अनुकूलन) नियम की आड़ में रेलवे बोर्ड ने हाईपोथेटिकल (काल्पनिक) रूप से बढ़ाया ग्रुप ‘ए’ का कोटा
डीओपीटी की ऑप्टिमाइजेशन पालिसी का अधिक से अधिक फायदा प्रमोटी अधिकारियों को देने के चक्कर में रेलवे बोर्ड ने अनेकों निर्णय लिए, जो निम्न प्रकार हैं..
1. कैबिनेट की मंजूरी लिए बिना ही रेलवे बोर्ड ने ग्रुप ‘ए’ में वार्षिक भर्ती का कोटा 360 पद से बढ़ाकर 822 कर दिया, जो कि रेलवे के कुल ग्रुप ‘ए’ के स्वीकृत पदों का लगभग 10% होता है. अर्थात् पूरे ग्रुप ‘ए’ कैडर के 3% अधिकारी प्रतिवर्ष सेवानिवृत्त होते हैं, परंतु इन 3% रिक्त पदों को भरने के बजाय अब 10% अधिक ग्रुप ‘ए’ अधिकारी बनाए जाने लगे. यह वह समय था, जब एनडीए सरकार की वार्षिक 2% पद कम किए जाने की ऑप्टिमाइजेशन पालिसी लागू थी.
इसका सीधा-सीधा फायदा रेलवे के विभागीय प्रमोटी अधिकारियों को मिला. कुल 822 का 50% यानी 411 ग्रुप ‘ए’ पदों पर प्रमोटी अधिकारी प्रत्येक वर्ष प्रमोट किए जाने लगे. बचे हुए 50% कोटे, यानि 411 के एक तिहाई (1/3) भाग पर ही यूपीएससी से सीधी भर्ती की गई. यानि 411 का 1/3 लगभग 140 अधिकारी ही ग्रुप ‘ए’ के पदों पर सीधी भर्ती से लिए गए. ऐसा करने से प्रत्येक वर्ष लगभग 140 ग्रुप ‘ए’ अधिकारी यूपीएससी से सीधी भर्ती के माध्यम से लिए गए, जबकि प्रमोटी कोटे से 411 ग्रुप ‘ए’ अधिकारी बनते गए. इस तरह 50:50 कोटे के नियम का पूरी तरह से उल्लंघन किया गया.
In spite of the continuation of downsizing policy, Railway Board prepared a proposal for cadre review. In that proposal, Railway Board used the data of old cadre strength 250 of year 1997 to 2000 in place of current cadre strength of 180 because it was greater than the present one. And at the time of cadre strength calculation, Railway Board took 4 years (Exam year from 1997 to 2000) data for DR (Direct Recruits) quota along with one year (Exam year 2000) data of promotee quota to prepare the final indent. That means ratio between DR & PQ was fixed at 4:1 wrongly.
To justify above ratio, Railway Board said “As direct recruits take 4 years to leave junior scale while in respect of group ‘B’ officers it can be taken as maximum of one year.”
This logic of taking four batches of DR while calculating the JTS (junior time scale) cadre strength was completely wrong and against the norms of Railway Board as well as guidelines of DOP&T. Because as per DOP&T’s norms the Probationary reserve posts has been separately allocated to Ministries/Departments & Railways is one of the ministry where probationary reserve posts has been provided. However, Railway Board added one and half years of probationary period while changing the ratio from 3:1 to 4:1. The action of adding probationary period while fixing ratio 4:1 between DR & PQ, Railway Board not only violated recruitment rule that is present in Indian Railways Establishment code (IREC) but also government’s instruction issued vide DOP&T’s OM No. 2/8/2001/PIC, Dated 16.05.2001.
After changing the ratio from 3:1 to 4:1 between DQ and PQ, Railway Board sent indent for clearing DPC of promotee Group ‘B’ officers from UPSC. As per new ratio, the revised cadre strength 1273 is now divided into 5 parts and annual PQ (Promotee quota) got increased from 180 to 255 posts.
Thereafter IRPOF (Indian Railway Promotee Officers Federation) requested Railway Board to divide the revised cadre strength 1273 among DQ & PQ in the ratio of 3:1 in spite of 4:1.
On demand of IRPOF, Railway Board changed the ratio between DQ and PQ from 4:1 to 3:1 by quoting the examples of Department of Telecom, CPWD and Indian Revenue Services in the remark. Thereafter PQ (promotee quota) further increased to 318.
IRPOF in Year-2006 again requested Railway Board to increase the JTS (Junior Time Scale) cadre strength from 1273 to 1647. Railway Board on demand of IRPOF, added leave reserve (LR) vacancies to JTS (Jr. Time Scale) cadre strength such that revised cadre strength became 1647 in place of 1273. Resulting annual promotee quota (PQ) increased from 318 to 411 in Feb. 2007.
This addition of leave reserve (LR) vacancies to JTS cadre strength was totally wrong. Because as per 111(4) of Indian Railway Establishment Code (Vol-I), leave reserve (LR) quota in Railway Board created for Deputation, Training and Study leave. But Railway Board at the behest/in collusion with IRPOF added total LR vacancies to JTS (Junior time Scale) cadre strength without calculating that how many officers were on Deputation, Training and Study leave on particular year. The whole process of increasing the JTS cadre strength was done to increase the quota of Group ‘B’ officers.
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According to RTI reply, Approval for enhancement of JTS (Junior Time Scale) posts from 720 to 1273 and again from 1273 to 1647 of 8 organized services of Indian Railways has not been taken from DOP& T, Ministry Of Finance and Cabinet.
As per, received RTI from Railway Board, it has been stated that for any change in cadre strength of Group ‘A’ services, approval must be required from DOP& T, Ministry Of Finance and the Central Cabinet.
When it was asked query through RTI, whether Railway Board has taken approval from DOP& T, MoF and Cabinet for enhancement of JTS (Junior Time Scale) posts of 8 organized services from 720 to 1273 and again from 1273 to 1647. Then Railway Board accepted and stated that it had been taken approval from DOP& T, MOF and Cabinet for enhancement of JTS (Junior Time Scale) posts of 8 organized services to 1647 in last cadre review. But Railway Board sent the document where approval has been taken only from Railways’ authorities.
The last cadre review of 8 organized services of Indian Railways was done in year between 2003-2007 and in last cadre review document, it was found that there is no variation occurred in JTS cadre strength. Therefore the enhancement of JTS (Junior Time Scale) cadre posts was not done in last cadre review.
Now it is clear that without taking approval from DOP&T, DoE (Department of Expenditure) and Cabinet, Railway Board increased JTS (Junior Time Scale) cadre strength posts internally during optimization period. These additional JTS posts were made available to promote Group ‘B’ officers.
As per above table the indent sent for Group ‘A’ recruitment and corresponding the approximate number of recruitment done by Railway Board between exam years 2002 to 2010 is equal to 2988 (PQ) + 919 (DR) = 3907.
As per Government’s observation 3% staffs retire every year. For Group ‘A’ cadre of Railways approx 3% officers retire every year. Hence available vacancies in Group ‘A’ cadre during years 2002-2010 = 287X9 = 2583.
Government in the year 2001 decided to reduce manpower by 2% per annum between exam year 2002 to 2010. Railway should also cut and abolish 2% Group ‘A’ cadre strength annually to match the government policy. Therefore total Group ‘A’ abolished posts would be 2/3X2583 = 1722.
Hence total available vacancies for Group ‘A’ recruitment during years 2002 to 2010 is equal to 2583 – 1722 = 861 Group ‘A’ posts.
However, as per government’s policy Railway Board should fill only 861 posts in Group ‘A’ services between year 2002 to 2010, but Railway Board actually indented 3907 Group ‘A’ posts, which was about 350% excess recruitment from Government’s Benchmark.
Optimization policy existed for 9 years between exam year 2002-2010. Therefore as per this policy, Railway should have reduced its Group ‘A’ cadre strength by 2% annually and by the end of year 2010 total Group ‘A’ cadre strength should have reduced to 18%. But as per RTI reply, Railway accepted that no Group ‘A’ posts were abolished during optimization period. Now question arises what happened to 18% Group ‘A’ posts that was saved due to 2/3rd curtailment of Direct Recruits Quota between years 2002-2010? This is a clear cut sign of diversion of Direct Quota vacancies into Promotee quota and utilization of these vacancies in favour of Group ‘B’ promotee officers.
1. आरटीआई से खुलासा हुआ कि रेलवे की 8 आर्गनाइज्ड सर्विसेज का लास्ट कैडर रिव्यु वर्ष 2003 से 2005 के बीच में हुआ था. उपलब्ध दस्तावेजों, जिस पर डीओपीटी, वित्त मंत्रालय और केंद्रीय कैबिनेट ने अपनी स्वीकृति के साथ जारी किए हैं, से पता चलता है कि रेलवे के ग्रुप ‘ए’ कैडर के जेटीएस (जूनियर टाइम स्केल) के पदों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. अर्थात् ग्रुप ‘ए’ पदों पर वार्षिक भर्ती 360 से बढ़ाकर 822 की गई थी, यह पूरी तरह गैर-कानूनी और अपराधिक षड्यंत्र के तहत किया गया है.
2. कोनोटेशन ऑफ पे (अतिरिक्त वेतन का लाभ) की गणना गलत तरीके से इसलिए की गई, जिससे कि अधिक से अधिक प्रमोटी अधिकारियों को पांच साल की एंटी डेटिंग सीनियरिटी का लाभ दिया जा सके. इस कोनोटेशन के नियम के अनुसार सीधे-सीधे पांच साल की एंटी डेटिंग सीनियरिटी का लाभ उन्हीं प्रमोटी अधिकारियों को मिल सकता है, जिनका मूल वेतन, ग्रुप ‘ए’ में सीधी भर्ती पर लिए गए अधिकारी के पांच वर्षों तक सेवा देने के उपरांत जो मूल वेतन बनता है, से अधिक हो. जो कि छठवें वेतन आयोग के अनुसार 26,320 रुपए होता है. परंतु रेलवे बोर्ड ने एक आरटीआई के जवाब में यह कहा है कि उन सभी प्रमोटी अधिकारियों को पांच साल की एंटी डेटिंग सीनियरिटी दी गई है, जिनका मूल वेतन 18,950 रुपए से अधिक था. इस 18,950 रुपए की गणना गलत की गई है. आरटीआई से मिले इस दस्तावेज के पेज पर रेलवे बोर्ड के किसी भी अधिकारी का हस्ताक्षर नहीं है, जो पूरी तरह से एक जालसाजी का मामला बनता है.
The principle of connotation of pay states that only those promotee Group ‘B’ officers would get five years of anti-dating seniority whose basic pay at a time of induction into Group ‘A’ service is more than the basic pay drawn by Direct Recruited Group ‘A’ officers after five years of their service.
After implementation of the 6th Pay Commission, the pay would be basic pay plus grade pay. Year wise basic pay drawn by a Direct Recruited Group ‘A’ Officer in pay band III (Rs. 15600-39100) in 6th pay commission is as follows:
As grade pay is part of pay hence only those promotee Group ‘B’ officers whose basic pay is more than Rs. 26,320/- can be given 5 years seniority as per this rule. Whereas, Railway Board has arbitrarily assigned 5 years anti dating seniority to all promote Group ‘B’ officers with basic pay exceeding 18,590/-. This has resulted in all promotee Group ‘B’ officers erroneously getting 5 years retrospective seniority as per Rule 334(2) (ii)(a) irrespective of the actual experience.
The page of calculation of Rs. 18,950 was not signed by any authority and Rs. 18,950/- nowhere mentioned in office note. Therefore it shows that this calculation of Rs. 18,950/- was introduced secretly to give undue benefit to promotee officers while fixing inter-se seniority. It has resulted in huge expense from the public exchequer.
ऊपर बताई गई अनियमितताओं की वजह से रेलवे बोर्ड के संदेहास्पद क्रिया-कलापों के साथ-साथ रेलवे के सभी वर्तमान अधिकारियों का भविष्य गर्त में चला गया है, जो निम्न प्रकार है..
1. ऑप्टिमाइजेशन का नियम वाजपेयी सरकार की पहल थी, जिसमें पांच वर्षों में 10% कैडर स्ट्रेंथ को कम करने का लक्ष्य रखा गया था. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए रिक्त पदों के सिर्फ एक तिहाई (1/3) पदों को ही भरे जाने की गणना की गई थी. वर्ष 2001 से 2009 के बीच लागू इस नियम की वजह से कुल कैडर स्ट्रेंथ से 18% पद खत्म होने थे. परंतु 9 वर्षों तक चले इस नियम को नजरअंदाज करते हुए रेलवे बोर्ड ने प्रमोटी अधिकारियों को फायदा देने के लिए रिक्त पदों से अधिक ग्रुप ‘ए’ के पदों पर अतिरिक्त अधिकारी नियुक्त किए. अतः सरकार के नियमों की अवहेलना करना, किसी भी मंत्रालय के लिए न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि यह भारी दंडनीय अपराध भी है.
2. प्रमोटी अधिकारी संगठन ने वाहवाही लूटने के चक्कर में उपरोक्त 9 वर्षों के दरम्यान रेलवे बोर्ड के उन जिम्मेदार अधिकारियों पर दबाव बनाकर नियमों में उलटफेर कराया, जो लोग स्थापना निदेशालय में उक्त पदों पर विराजमान थे. इसका सीधा-सीधा असर भविष्य में आने वाले प्रमोटी ग्रुप ‘बी’ और ग्रुप ‘ए’ के अधिकारियों के नए बैचों पर पड़ने वाला है. एक पीढ़ी को फायदा पहुंचाने के चक्कर में प्रमोटी संगठन ने भविष्य में आने वाली प्रमोटी अधिकारियों की सभी पीढ़ीयों को अधंकारमय कर दिया है.
3. कोटे से अधिक ग्रुप ‘ए’ के पदों पर प्रमोटी अधिकारियों को लेने की वजह से तथा सभी को सीधे-सीधे पांच साल की एंटी डेटिंग सीनियरिटी देने के कारण ग्रुप ‘ए’ के सीधी भर्ती वाले सैकड़ों युवा अधिकारियों का भी भविष्य गर्त में चला गया है.
4. रिक्त स्थानों से अधिक ग्रुप ‘ए’ के पदों पर भर्ती करने से रेलवे में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों के भविष्य पर भी संकट मंडरा रहा है. वर्ष 2007 से प्रतिवर्ष लगभग पूरे कैडर स्ट्रेंथ के करीब 10% पदों पर ग्रुप ‘ए’ के अधिकारी लिए जाते रहे हैं, वह भी बिना रिक्त पदों की गणना किए, जिससे प्रत्येक स्तर पर ‘स्टेगनेशन’ (गतिरोध) पैदा हो गया है. वित्त मंत्रालय ने भी अब कैडर रिस्ट्रक्चरिंग करने से मना कर दिया है. यह तो अब सर्वविदित ही है कि इतने अधिक अधिकारियों का वेतन देने की वजह से रेलवे दिवालिया हो गई है. यह भी सर्वविदित है कि रेलवे की सभी सेवाओं (सर्विसेज) की अंतिम कैडर रिस्ट्रक्चरिंग वर्ष 2003-05 के दरम्यान हुई थी. अब लगभग 13 वर्ष बीत जाने के बाद भी अगली कैडर रिस्ट्रक्चरिंग का फिलहाल कहीं कोई अता-पता नहीं है. इसका सीधा प्रभाव उच्च पदों पर आसीन रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों की पदोन्नति पर भी पड़ पर रहा है.
5. यदि रेलवे यह दलील देती है कि रेलवे में नए-नए प्रोजेक्ट्स आ गए थे, जिसकी वजह से ग्रुप ‘ए’ के पदों को बढ़ाया गया था. उसकी यह दलील भी सीधे-सीधे किसी के भी गले नहीं उतरेगी, क्योंकि डीओपीटी की ऑप्टिमाइजेशन पालिसी में यह साफ-साफ लिखा था कि सुरक्षा (सिक्योरिटी) और परिचालन (ऑपरेशन) को ध्यान में रखते हुए, मंत्रालय/विभाग, डीओपीटी से संपर्क/सलाह करने के बाद इस नियम से छूट ले सकते हैं. रेलवे भी ‘ऑपरेशन’ से ही संबंधित एक मंत्रालय है. अतः रेलवे बोर्ड को भी डीओपीटी से नए-नए प्रोजेक्ट्स का हवाला देते हुए रेलवे को इस नियम से बाहर रखने का आग्रह करना चाहिए था. परंतु रेलवे बोर्ड ने ऐसा नहीं किया और प्रमोटी अधिकारियों को अतिरिक्त लाभ पहुंचाने अथवा उनसे अतिरिक्त लाभ पाने के चक्कर में वर्षों पुरानी रेलवे विरासत को न सिर्फ नेस्तनाबूद करने की राह पकड़ी, बल्कि इस प्रकार से देश के लोगों की गाढ़ी कमाई के करोड़ों/अरबों रुपए की सरकारी रेवेन्यु को पलीता भी लगाया.
अब प्रश्न यह उटता है कि इस एक्सपर्ट कमेटी द्वारा क्या-क्या सुझाव दिए जा सकते हैं, जिससे कि रेल मंत्रालय की किरकिरी होने से बच सके? इस कमेटी में मौजूद सभी पांचों अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि वे रेलवे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट और निष्पक्ष सुझाव देने की कोशिश करेंगे, क्योंकि उनकी इस रिपोर्ट को रेलवे में हमेशा याद रखा जाएगा. वर्तमान स्थिति यह है कि जहां रेलवे का राजस्व और पूरा ढ़ांचा चरमरा रहा है, वहीं रेलवे बोर्ड के कुछ निहितस्वार्थी अधिकारियों की उपरोक्त जोड़तोड़ से सभी रेल अधिकारियों में भारी असंतोष व्याप्त है.
ऐसी परिस्थिति में एक्सपर्ट कमेटी का गठन होना, इस बात का सूचक है कि इसका प्रभाव रेलवे के भविष्य पर पड़ने वाला है. इसलिए एक्सपर्ट कमेटी के पांचों सदस्य अधिकारी रेलवे के भाग्यविधाता बन सकते हैं, जिनको भविष्य में भारतीय संस्कृति में देवतुल्य सम्मान मिल सकता है. इसके अलावा इस एक्सपर्ट कमेटी को इस बात की भी विवेचना करनी चाहिए कि आखिर ऐसी स्थिति किस कारण और किनकी मिलीभगत से पैदा हुई? कमेटी को चाहिए कि वह ऐसे लोगों की पहचान करके उनके विरुद्ध यथोचित कड़ी विभागीय कार्रवाई की भी अनुशंसा करे.