भारतीय रेल को प्रयोगशाला न बनाया जाए -डॉ. एम. राघवैया, महामंत्री/NFIR

एनएफआईआर की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 224वीं बैठक इलाहाबाद में संपन्न

एनएफआईआर के महामंत्री डॉ. एम. राघवैया ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया

‘मेक इन इंडिया’ के बहाने दिया जा रहा विदेशी उपक्रमों और निजीकरण को बढ़ावा

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इलाहाबाद ब्यूरो : नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआईआर) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 224वीं बैठक 1 से 3 नवंबर 2017 को इलाहाबाद में संपन्न हुई. बैठक में एनएफआईआर के अध्यक्ष गुमान सिंह, कार्याध्यक्ष डॉ. आर. पी. भटनागर, महामंत्री डॉ. एम. राघवैया सहित सभी प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित थे. इस अवसर पर राष्ट्रीय कार्य-समिति के पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए डॉ. राघवैया ने श्रमिक नीतियों और भारतीय रेल के साथ सरकार द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रकार के प्रयोगों (खिलवाड़) को लेकर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने रेलवे को प्रयोगशाला बना डाला है. रेलवे में आए दिन कोई न कोई नया प्रयोग किया जा रहा है. डॉ. राघवैया ने कहा कि सरकार एक ओर जहां ‘मेक इन इंडिया’ की बात करती है, वहीं दूसरी ओर स्पेन की ट्रेन ट्रेल्गो का भी ट्रायल लेने लगती है.

डॉ. राघवैया ने कहा कि यदि सरकार ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देना चाहती है, तो विदेशी ट्रेनों का देश में ट्रायल क्यों लिया जा रहा है? उन्होंने कहा कि देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, फिर भी रेलवे के तमाम बड़े प्रोजेक्ट में बाहर से इंजीनियर क्यों बुलाए जा रहे हैं? रेलवे का काम किसी बाहरी सरकारी संस्था और सेना को क्यों दिया जा रहा है? उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या रेलवे इंजीनियर अक्षम हैं अथवा सरकार उनको अक्षम और निकम्मा साबित करके सार्वजनिक रूप से देश की जनता के सामने उनकी बेइज्जती करना चाहती है? इलाहाबाद के रेलवे ऑडिटोरियम में आयोजित कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए डॉ. राघवैया ने पूरे रोषपूर्वक कहा कि हमारा सिस्टम विदेशी कंपनियों के हाथों में क्यों सौंपा जा रहा है?

उन्होंने कहा कि वाराणसी में स्थित आधुनिक डीजल इंजन कारखाना (डीएलडब्ल्यू) भारतीय रेल के लिए ही नहीं, बल्कि कई विदेशी रेलों के लिए भी भिन्न प्रकार के अत्याधुनिक एवं उन्नत किस्म के डीजल इंजन बनाता है, सरकार द्वारा जानबूझकर और लगातार इस कारखाने की उपेक्षा की जा रही है. इससे हजारों रेलकर्मी बेरोजगार हो जाएंगे. डॉ. राघवैया ने कहा कि सरकार चाहे तो डीएलडब्ल्यू को पहले से ज्यादा विकसित करके यहां बनाए जाने वाले डीजल इंजनों की सप्लाई पड़ोसी देशों को कर सकती है. इससे सरकार के ही ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा, मगर सरकार की कथनी और करनी में भारी अंतर नजर आ रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार देशी एवं घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने की बात तो करती है, मगर उसकी आड़ में वह वास्तव में विदेशी उपक्रमों और निजी औद्योगिक घरानों को ज्यादा तरजीह दे रही है.

डॉ. राघवैया ने कहा कि एनएफआईआर सरकार को 100% सहयोग देने को तैयार है, लेकिन रेलवे से संबंधित कोई भी नीति बनाए जाने से पहले सरकार को रेलवे के मान्यताप्राप्त संगठनों के साथ भी सलाह-मशवरा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि वर्तमान में सिर्फ भारतीय रेल में ही लगभग 2.50 लाख पद रिक्त हैं. इसमें 1.60 लाख पद संरक्षा कोटि के हैं. सरकार नई रेलवे लाइनें, और नए रेलवे स्टेशन तो बना रही है, नई-नई रेलगाड़ियां भी चला रही है, लेकिन 2.50 लाख खाली पड़े पदों पर कर्मियों की नियुक्ति नहीं कर रही है. इसके पूर्व, एनएफआईआर के अध्यक्ष गुमान सिंह ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार ऐसा माहौल बना रही कि जिससे रेल निजी हाथों में चली जाए.

एनएफआईआर की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में संपूर्ण भारतीय रेल के 68 मंडलों तथा उत्पादन इकाईयों के संयोजकों सहित सभी 17 जोनल रेलों के जोनल अध्यक्ष एवं जोनल महामंत्री भी उपस्थित थे. इस अवसर पर चक्रधरपुर के मंडल संयोजक शशि मिश्रा ने फेडरेशन के राष्ट्रीय पदाधिकारियों से मांग की कि चक्रधरपुर मंडल के रेलकर्मियों का बकाया 35 करोड़ रुपये का भुगतान शीघ्र सुनिश्चित कराने के लिए रेलवे बोर्ड पर दवाब डाला जाए और चक्रधरपुर मंडल में पिछले तीन वर्षों से बंद पड़ी लार्जेस स्कीम के लिए रेलवे बोर्ड से आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कराए जाएं.

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