उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में हुआ ‘दूरी’ का भारी घपला
जारी होने के बाद टेंडर में किया गया मॉडिफिकेशन नियम विरुद्ध
पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. ने सरकार और मंत्री सहित सबको मूर्ख बनाया
धप्पर-चंडीगढ़ डबलिंग में दो साल की देरी करके बचत की बात बेमानी
सुरेश त्रिपाठी
कुछ निर्माण अधिकारी अपने निहित स्वार्थ के चलते टेंडर खुलने के बाद टेंडर रद्द कर देते हैं. इसके बाद टेंडर के विभिन्न आइटम्स के ऊंचे रेट लगाते हैं और कई बार आइटम भी बदल देते हैं. उसके बाद नए टेंडर में झूठी बचत दर्शाते हुए अपनी पीठ खुद थपथपाते हैं. मगर उनकी इस कुरीति अथवा नुकसानदेह कार्य-प्रणाली से रेलवे को भारी नुकसान हो रहा है, जिसकी तरफ अमूमन रेलवे बोर्ड सहित जोन के उच्च अधिकारियों का ध्यान नहीं जाता है. ऐसा ही कुछ उत्तर रेलवे के पूर्व मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण (सीएओ/सी) ने धप्पर-चंडीगढ़ डबलिंग के कार्य में किया है, जिससे इस कार्य में अब तक लगभग दो साल से भी ज्यादा की देरी हो चुकी है, मगर अत्यंत चालाकी से उन्होंने इसमें बचत की गई दर्शाई है, जो कि न सिर्फ मिथ्या है, बल्कि रेलवे बोर्ड सहित सभी संबंधितों को दिग्भ्रमित किए जाने की कुत्सित कोशिश भी है.
टेंडर नं. 74/डब्ल्यू/1/1/475-ए/ डब्ल्यूए/सीडीजी में नॉन-शेड्यूल आइटम्स के संक्षिप्त विवरण (एनएस-1) के अंतर्गत कहा गया है कि..
29.0. Supplying, laying, and compacting Natural River Bed material passing through 40mm sieve and down gauge upto 75 micron (blanketing material) of desired specification, 450mm thick over the top of sub-grade (SQ-2 soil) in full formation to be brought from Swan River Khad and site verified by Engineer-in-charge entirely arrenged by the Contractor at his own cast including all leads, lift, ascent, descents, crossing of nallah/streams and other obstruction including mechanical compaction in layers not exeeding 300mm thick with vibratory rollers. The rate shall include all testing of RBM against submerged CBR, particle size, Atterberg’s limits, CU, CC and %age fines below 75 microns size, dressing of bank to the final profile, demarcation and setting out profile, site clearence, cutting down trees, shrubs, rootes vegetation growth, heavy grass benching with all taxes and compensations, octroi royalty etc. in all respects with all labour and material as a complete job as per special data and specifications and as per direction of Engineer in-charge. {average lead 120 to 150km.}.Page-114.
सवाल यह उठता है कि इस बात की पुष्टि कौन करेगा कि ब्लैंकेटिंग मटीरियल स्वान नदी से ही लाया गया था, या कहीं आसपास से ही ले लिया गया? जबकि टेंडर डॉक्यूमेंट के पेज नंबर 114 के एनएस आइटम्स के विवरण में स्पष्ट कहा गया है कि ब्लैंकेटिंग मटीरियल स्वान नदी से लाया जाना है. इसमें इसकी दूरी 120 किमी. से 150 किमी. का भी उल्लेख किया गया है. ऐसे में पेज नंबर 70 पर स्पेशल कंडीशन डाले जाने का मतलब यह है कि बाद में टेंडर आइटम्स में हेरफेर की जा सके. जानकारों का कहना है कि कांट्रेक्टर सिर्फ टेंडर आइटम्स देखकर ही टेंडर कोट करते हैं, वह 150 से 200 पेज का टेंडर डॉक्यूमेंट पढ़ने नहीं बैठते हैं. उनका कहना है कि इसी बात का फायदा उठाकर अधिकारीगण टेंडर डॉक्यूमेंट में कहीं भी छुपी हुई स्पेशल कंडीशन डाल देते हैं.
पेमेंट पैरा में कहा गया है कि यदि कम दूरी से मटीरियल लाया जाएगा, तो उसी औसत में उसकी उचित मात्रा में कटौती कर दी जाएगी. एक तरफ आइटम में यह कहा जाता है कि 120 से 150 किमी. की दूरी से ब्लैंकेटिंग मटीरियल लाया जाना है, तो दूसरी तरफ यह कहा जाता है कि कम दूरी से मटीरियल लाया गया, तो उचित मात्रा में भुगतान में कटौती कर दी जाएगी. इसका मतलब यह है कि अधिकारी कॉन्ट्रैक्टर्स को गुमराह करते हैं. इसके अलावा धप्पर-चंडीगढ़ डबलिंग वर्क में पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. ने जो 5.8 करोड़ रुपए की बचत होना दर्शाया है, वह एक तरफ दिग्भ्रमित करने वाली बात है, तो दूसरी तरफ इस बचत पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह भी लगता है. इस 5.8 करोड़ रुपए की तथाकथित बचत का श्रेय पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. एवं उनके मातहतों ने ‘फास्टर, क्वालिटी एंड इकॉनोमिक कंस्ट्रक्शन ऑफ न्यू लाइन एंड डबलिंग प्रोजेक्ट्स बाई एनआर-कंस्ट्रक्शन’ नामक ‘महान लेख’ लिखकर लिया है. यदि उनके ऐसे तमाम कार्यों का विश्लेषण किया जाए, तो उनकी कारगुजारी उघड़कर सबके सामने आ जाएगी.
इस तथाकथित ‘फास्टर, क्वालिटी एंड इकॉनोमिक कंस्ट्रक्शन ऑफ न्यू लाइन एंड डबलिंग प्रोजेक्ट्स बाई एनआर-कंस्ट्रक्शन’ नामक ‘महान लेख’ के पैरा-1.3 के अंतर्गत कहा गया है कि..
ध्यान से देखने पर उपरोक्त पैरा में पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. द्वारा लिखी गई अंग्रेजी से भी दिग्भ्रमित किए जाने की बू आ रही है. जबकि उनके या उनके मातहतों द्वारा किसी प्रकार की कोई इन्वेस्टीगेशन नहीं की गई थी. इसके अलावा ‘नियरबाई अवेलेबल रिवर बेड मटीरियल’ का मतलब यदि 120 से 150 किमी. होता है, तो फिर टेंडर डॉक्यूमेंट में छुपी हुई ‘स्पेशल कंडीशन’ क्यों डाली गई? इसके साथ ही जब इस पूरे डबलिंग प्रोजेक्ट का काम पिछले दो से भी अधिक वर्षों से अटका पड़ा है, तब 5.8 करोड़ रुपए की कथित सेविंग का क्या औचित्य रह गया है? टेंडर के अंदरूनी विवरण में दूरी में की गई कटौती से ही उनकी कुत्सित मंशा स्पष्ट हो जाती है.
यदि ऑन गोइंग प्रोजेक्ट्स में दो-दो साल से भी ज्यादा की देरी की जाती है, तब कथित सेविंग्स का कोई मतलब नहीं रह जाता है. यदि पूर्व सीएओ/सी.उ.रे. की उपरोक्त दिग्भ्रमित करने वाली थ्योरी को स्वीकार भी कर लिया जाए, तब तो इस प्रकार सभी अधिकारी बचत करते हैं. तब इस बचत का क्या औचित्य हो सकता है कि एक तरफ प्रोजेक्ट्स में सालों-साल की देरी करके करोड़ों रुपए की प्रोजेक्ट कास्ट बढ़ा दी जाए, और उसके नाम पर कुछ कथित बचत का दिखावा करके अपनी पीठ भी थपथपाई जाए. वास्तविकता यह है कि टेंडर जारी होने से पहले साइट सर्वे और मिट्टी की जांच या कथित इन्वेस्टीगेशन करना संबंधित निर्माण अधिकारियों की ड्यूटी है. इसमें उन्होंने यदि यह सब कार्य किए हैं, तो न तो किसी पर मेहरबानी की है, और न ही अपनी ड्यूटी से बाहर जाकर कोई काम किया है. इसी बात से इनका छुपा हुआ उद्देश्य साबित हो जाता है.
उपरोक्त टेंडर के मामले में ब्लैंकेटिंग के लिए दूरी की विजिलेंस जांच आवश्यक है कि यह ब्लैंकेटिंग मटीरियल वास्तव में 120-150 किमी की दूरी से लाया गया अथवा कम दूरी से? यह भी सवाल उठ रहा है कि टेंडरिंग के द्वारा यह अधिकारी कैसे और किस प्रकार की सेविंग करके अवार्ड पा सकते हैं? यह कथित सेविंग तो तभी हो सकती है कि जब संबंधित टेंडर वर्क निर्धारित समय से या समय से पहले पूरा कर लिया जाए. इसीलिए ‘समय’ को धन कहा गया है. उपरोक्त मामले में जब आज तक संबंधित टेंडर वर्क पूरा ही नहीं हो पाया है और इसमें दो साल से भी ज्यादा की देरी हो चुकी है, तब सेविंग किया जाना कैसे कहा जा सकता है? इसके अलावा यह संबंधित अधिकारियों की ड्यूटी है कि टेंडर तभी जारी किया जाए, जब उससे संबंधित सभी प्रकार की साइट सर्वे और जांच पूरी कर ली जाएं.
कुछ जानकारों और कई कॉन्ट्रैक्टर्स का कहना है कि जिस तरह पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. द्वारा टेंडर आइटम्स में बदलाव किया गया, और टेंडर जारी होने के बाद उसमें जिस तरह की हेराफेरी की गई, उससे तो यही लगता है कि मूर्खो के साथ काम करना पड़ रहा है. उनका यह भी कहना है कि हर किसी को मूर्ख समझना पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. की आदत में शुमार रहा है. उन्होंने टेंडरिंग में भारी मालप्रैक्टिस करके कार्य के दौरान संबंधित ठेकेदारों को परेशान करने की आदत को कभी नहीं छोड़ा. उनका कहना है कि जब टेंडर विवरण में स्वान नदी (120-150 किमी.) से ब्लैंकेटिंग मटीरियल लाए जाने का प्रावधान किया गया था, तब टेंडर डॉक्यूमेंट में ‘शार्ट लीड’ का प्रावधान किए जाने का क्या औचित्य था? बहरहाल, उपरोक्त पूरे प्रकरण की गहराई से जांच किए जाने और सच्चाई का पता लगाकर सभी संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है.