आरपीएफ को सर्वाधिकार संपन्न बनाने के सिवा अन्य कोई विकल्प नहीं -बालाचंद्रन
रेलमंत्री के लिए रेल संपत्ति और रेलयात्रियों की सुरक्षा से ज्यादा मिलन मेला जरूरी
ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन का 23वां राष्ट्रीय अधिवेशन सफलतापूर्वक संपन्न
मुंबई : ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन (एआईआरपीएफए) का 7 से 9 जनवरी तक तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन मुंबई में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ बी. बालाचंद्रन, एआईआरपीएफए के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. रेड्डी, महासचिव यू. एस. झा, कार्याध्यक्ष धरमवीर सिंह, कोषाध्यक्ष बी. एल. बिश्नोई, डब्ल्यूआरईयू के महामसचिव एवं एआईआरएफ के कोषाध्यक्ष कॉम. जे. आर. भोसले, सीआरएमएस के अध्यक्ष एवं एनएफआईआर के कार्याध्यक्ष डॉ. आर. पी. भटनागर, सीआरएमएस के महासचिव प्रवीण बाजपेई, डब्ल्यूआरएमएस के महासचिव एवं एनएफआईआर के सह-महासचिव दादा जे. जी. माहुरकर, डब्ल्यूआरएमएस, मुंबई मंडल के मंडल सचिव अजय सिंह और भाजपा हरियाणा के समन्वयक डॉ. अशोक त्रिपाठी, म.रे. के सीएससी ए. के. सिंह, प.रे. के सीएससी एस. सी. शुक्ला, डीआईजी डी. बी. कासार, डिप्टी सीएससी रूपनवर, सीनियर डीएससी ए. वी. झा सहित सभी जोनों से आए एआईआरपीएफए के सभी जोनल अध्यक्ष, महामंत्री और उनके प्रतिनिधि तथा मध्य एवं पश्चिम रेलवे के आरपीएफ कर्मी बड़ी संख्या में उपस्थित थे.
इस मौके पर सर्वप्रथम एआईआरपीएफए के महासचिव यू. एस. झा ने रेल संपत्ति एवं रोजाना रेल से यात्रा करने वाले करीब तीन करोड़ रेलयात्रियों की सुरक्षा के लिए एकीकृत सुरक्षा व्यवस्था कायम किए जाने सहित आरपीएफ को सर्वाधिकार संपन्न बनाए जाने की मांग के साथ विभिन्न देशों में रेलवे की एकीकृत सुरक्षा व्यवस्था तथा इस मामले में देश की संवैधानिक स्थिति की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने ए बार पुनः इस बात को दोहराया कि आजादी के बाद ऐसा लगता है कि किसी प्रबुद्ध राजनीतिज्ञ ने संविधान को नहीं पढ़ा है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो इसकी गलत व्याख्या न की जा रही होती और कुछ मुट्ठी भर आईपीएस अधिकारियों के दबाव में सरकार करोड़ों रेलयात्रियों को भगवान भरोसे न छोडती. उन्होंने यह भी कहा कि जब यात्रियों और मालवाहकों को होने वाले नुकसान की भरपाई रेलवे (केंद्र) द्वारा की जाती है, तो इसकी सुरक्षा का जिम्मा राज्यों को सौंपे जाने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि उत्तरदायित्वविहीन जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया जाता है. इसके साथ ही उन्होंने रेलवे के सभी मान्यताप्राप्त संगठनों को भी इस महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए एकजुट होने का आहवान किया.
मुख्य वक्ता बी. बालाचंद्रन ने अपने संबोधन में कहा कि विश्व की एक बड़ी रेल व्यवस्था भारतीय रेल की सुरक्षा पर्याप्त नहीं है और इसे जिस तरह से सरकार द्वारा डील किया जा रहा है वह भी सही नहीं है. उन्होंने कहा कि भारतीय रेल रक्षा क्षेत्र के समान ही देश की प्रगति में बराबर की सहयोगी है. यह बात भारत सरकार भी स्वीकार करती है. उन्होंने कहा कि भारत के संगठित क्षेत्र के 27 मिलियन कर्मचारियों में से भारतीय रेल 6 प्रतिशत को प्रत्यक्ष रूप से और अतिरिक्त 2.5 प्रतिशत को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया कराती है. इसे यदि औसत रूप से 5 प्रतिशत मान लिया जाए तो देश के करीब डेढ़ करोड़ लोगों को भारतीय रेल से रोजगार प्राप्त हो रहा है.
उन्होंने कहा कि हाल ही में पठानकोट में हुए आतंकी हमले अथवा ऐसी ही अन्य किसी बड़ी घटना के बाद देश की सुरक्षा पर तमाम मीडिया और देश भर के लोग चर्चा करने लगते हैं, मगर भारतीय रेल, जिससे रोजाना करीब तीन करोड़ लोग यात्रा करते हैं, लगभग 19 हजार यात्री एवं मालगाड़ियां रोज चलती हैं, इस विशाल तंत्र की सुरक्षा के बारे में कोई चर्चा नहीं होती है, यह अत्यंत आश्चर्यजनक और चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि रोजाना इतनी बड़ी संख्या में जहां लोग चल रहे हैं, उनकी सुविधा और सुरक्षा के बारे में सरकार कोई चिंता नहीं है.
इस देश में सामान्य पुलिस से भी पहले रेलवे पुलिस की स्थापना हुई थी. यह बताते हुए श्री बालाचंद्रन ने कहा कि रेगुलर पुलिस की स्थापना 1860 के पुलिस कमीशन के बाद हुई थी, और 1861 में पुलिस एक्ट पारित हुआ था, जबकि भारत की पहली रेलवे कंपनी द ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे (जीआईपीआर) ने रेलवे पुलिस की स्थापना 1854 में ही कर दी थी. उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे में आजाद भारत में आरपीएफ को रेगुलर पुलिस से भी ज्यादा अधिकार मिलना चाहिए था. उन्होंने कहा कि इंग्लैंड ने अपने यहां 1830 में ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस (बीटीपी) की स्थापना कर दी थी, जो कि ब्रिटिश रेलवे की सबसे पुरानी एकीकृत पुलिस व्यवस्था है. लंदन मेट्रोपोलिटन पुलिस की स्थापना इससे सिर्फ एक साल पहले 1829 में की गई थी. उन्होंने कहा कि इंग्लैंड में आज तक उक्त दोनों पुलिस व्यवस्थाएं स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं.
उन्होंने कहा कि अंग्रेज रेलवे को रियासतों के नियंत्रण में रखना चाहते थे, मगर आजादी के बाद जब भारत पूरा एक देश बन गया, तब इसकी जरूरत नहीं रह गई थी. उन्होंने यह भी कहा कि तत्कालीन ब्रिटिश डीजीपी कर्नल इमर्सन ने तत्कालीन वाच एंड वार्डस, जो बाद में आरपीएफ में परिवर्तित हुआ, को आईपीसी का समस्त अधिकार दे दिए जाने की एडवाइस की थी, परंतु तत्कालीन पुलिसिया नौकरशाही ने कर्नल इमर्सन की सलाह को अपने निहित उद्देश्य के चलते दरकिनार कर दिया था. तब से लेकर आज तक जितनी भी सरकारें केंद्र में बनी हैं, वे इस पुलिसिया नौकरशाही के इस निहित उद्देश्य को दरकिनार करके रेलवे के लिए एकीकृत सुरक्षा व्यवस्था कायम नहीं कर सकी हैं. उन्होंने कहा कि अपराध दर्ज करने, उसकी जांच करने और अपराधियों को सजा दिलाने का अधिकार जीआरपी को मिला हुआ है, जो कि राज्य सरकारों के मातहत है, जबकि रेलयात्रियों और रेल संपत्ति की सुरक्षा का अधिकार आरपीएफ को मिला है, जो कि केंद्र सरकार के मातहत है, इससे रेलवे में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भारी विसंगतिपूर्ण स्थिति बनी हुई है. उन्होंने कहा कि एटॉमिक एनर्जी सेंटर्स की सुरक्षा राज्यों के पास है, जबकि एनडीए1 के समय विमान अपहरण कांड के बाद देश के सभी हवाई अड्डों की सुरक्षा केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) को सौंपनी पड़ी थी.
उन्होंने कहा कि यह भारी आश्चर्य का विषय है कि भारतीय रेल जैसी महा-व्यवस्था की सुरक्षा के लिए ऐसा ही विचार अब तक क्यों नहीं किया जा सका है? जबकि 26/11 का सबसे पहला और सबसे बड़ा आतंकी हमला रेलवे परिसर (सीएसटी) में ही हुआ था. श्री बालाचंद्रन ने यह भी कहा कि 26/11 के आतंकी हमले की जांच के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित की गई राम प्रधान कमेटी के वह भी एक सदस्य थे, परंतु यह कमेटी सीएसटी पर नहीं गई, क्योंकि वह केंद्र सरकार का क्षेत्र था और जब महाराष्ट्र विधानसभा में इस जांच रिपोर्ट पर बहस हुई, तब भी रेलवे उक्त बहस का विषय नहीं था. उन्होंने यह भी कहा कि झा जी सही कहते हैं कि जब यात्रियों और मालवाहकों के नुकसान की भरपाई रेलवे द्वारा की जाती है, तब रेलवे की सम्पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा आरपीएफ यानि रेल मंत्रालय के मातहत ही होना चाहिए. इसके अलावा इसका अन्य कोई विकल्प नहीं है.
मगर इस बात में कोई खास दम नहीं लगता है, क्योंकि पूर्व सहमति देकर अपने गृह नगर में अधिवेशन रखवाने और फिर उसमें ही न आने के लिए किसी बहाने कन्नी काट जाने वाले रेलमंत्री को शायद अपनी इज्जत बचानी थी, क्योंकि यदि वह अधिवेशन में आते, तो उन्हें इस बात का जवाब अवश्य देना पड़ता कि पिछले साल दिल्ली में हुए अधिवेशन में रेलवे में एकीकृत सुरक्षा व्यवस्था कायम करने की हामी भरने और गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखने के बाद वह स्वयं और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अब तक क्या किया? क्योंकि अपने गृह नगर के जिस कार्यक्रम में खुद रेलमंत्री आने वाला है, उसके आयोजन स्थल की अनुमति न देने की हिमाकत भला कौन मूर्ख अधिकारी कर सकता है? यह सोचने वाली बात है.
इसके अलावा पिछले एक साल के दरम्यान जिस तरह से आरपीएफ अधिकारियों ने आरपीएफ कर्मियों और विभिन्न जोनों के आरपीएफ एसोसिएशन के तमाम जोनल पदाधिकारियों का उत्पीड़न किया और इसको लेकर जितने ज्ञापन आरपीएफ एसोसिएशन ने दोनों मंत्रियों को दिए हैं, उस पर भी दोनों मंत्रियों को कुछ न कुछ जवाब देना पड़ता, क्योंकि इस मामले में भी दोनों मंत्री आरपीएफ अधिकारियों अथवा रेलवे बोर्ड द्वारा या तो बुरी गुमराह किए गए हैं, अथवा उनके अंदर गैर-कानूनी कार्य करने एवं नियम विरुद्ध आदेश देने वाले आरपीएफ अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्यवाही करने का साहस नहीं है.