करोड़ों हड़प रहे विदेशी सप्लायर्स के कथित ‘दलाल’
कल-पुर्जों के अप्रूवल में एकाधिकार पर आरडीएसओ और फॉरेन प्रिंसिपल के बीच मिलीभगत
दलाल द्वारा @सीएचएफ 6400 में आयात करके कोर को सीएचएफ 8600 में की गई सप्लाई
जब यह भारी-भरकम लूट एक आइटम की खरीद पर है, तब सैकड़ों आइटम्स पर क्या होगी?
अधिकारियों की मिलीभगत के कारण अन्य कंपनियों को अप्रूवल देने में नहीं दिखाई जाती तत्परता
सुरेश त्रिपाठी
विदेशी आइटम की एक ऐसी ही खरीद का मामला सामने आया है, जिसमें विदेशी सप्लायर और उसके भारतीय एजेंट के साथ आरडीएसओ के तत्कालीन डीजी सहित कुछ अन्य अधिकारियों की आपराधिक मिलीभगत साबित हो रही है. इसके परिणामस्वरूप सरकारी खजाने से सैकड़ों करोड़ की धनराशि की ‘लूटिंग’ और ‘रूटिंग’ हुई है, जिसका भुगतान ‘कमीशन’ के रूप में भारतीय एवं विदेश मुद्रा में मिडलमैन को किया गया है. इससे सम्बंधित सभी आवश्यक दस्तावेज ‘रेलवे समाचार’ के पास मौजूद हैं, जिनको देखने के बाद ऐसा लगता है कि हर्षद मेहता और ताजा-तरीन विजय माल्या जैसे कॉर्पोरेट डकैत भी सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर दिन-दहाड़े सरकारी खजाने की डकैती कर रहे सफेदपोश डकैतों के सामने बहुत बौने हैं. पूरा मामला कुछ इस प्रकार है..
नोयडा स्थित ‘पीपीएस इंटरनेशनल’ एक ऐसी कंपनी है, जो करीब दर्जन भर विदेशी कंपनियों और सप्लायरों की भारतीय एजेंट है. यह कंपनियां भारतीय रेल में इस्तेमाल होने वाले कई आवश्यक कल-पुर्जों का निर्माण और आपूर्ति करती हैं. इन्हें आरडीएसओ का प्रमाणीकरण भी प्राप्त है. इन्हीं में से एक स्विट्जर्लैंड की कंपनी ‘आर्थर फ्लुरी भी है, जो कि भारतीय रेल सहित विभिन्न मेट्रो रेलों को ‘पीटीएफई शार्ट न्यूट्रल सेक्शन’ जैसे महत्वपूर्ण आइटम की आपूर्ति के लिए एकमात्र आरडीएसओ सर्टिफाइड कंपनी है. यह कंपनी वर्ष 2009 से भारत में अपने एजेंट पीपीएस इंटरनेशनल के माध्यम से अपना व्यवसाय करती है.
भारत सरकार और सीवीसी द्वारा जारी विस्तृत एवं महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशों के अनुसार सरकारी विभागों के टेंडर्स में किसी भी विदेशी कंपनी के भारतीय एजेंट की भागीदारी करने पर उसकी बिड के साथ मुख्य विदेशी कंपनी (फॉरेन प्रिंसिपल) की प्रोफार्मा इनवॉइस भी सब्मिट की जानी आवश्यक/अनिवार्य है, क्योंकि यही वह प्रमाणिक और जरूरी दस्तावेज होता है, जिससे यह समझा जा सकता है कि फॉरेन प्रिंसिपल की बिना पर उसके भारतीय एजेंट ने जो रेट ऑफर किए हैं, वह कितने सही और वाजिब हैं. इसी पृष्ठभूमि के अंतर्गत सेंट्रल आर्गेनाईजेशन फॉर रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन (कोर) ने 282 सेट ‘पीटीएफई शार्ट न्यूट्रल सेक्शन’ की खरीद के लिए टेंडर नं. कोर/एस/1271/4054 जारी किया था, जो कि 18 मार्च 2013 को खुला था.
पीपीएस इंटरनेशनल के उपरोक्त दोनों दस्तावेजों के आधार पर रुपए में ऑफर की गई कीमत, 7,38,000 रु. प्रति सेट, जिसे पीपीएस ने निगोशिएशन के बाद 18,000 रु. और कम करके 7,25,000 रु. प्रति सेट कर दिया था, को काफी वाजिब माना गया. इसके अनुसार 7,25,000 रु. प्रति सेट के आधार पर पीपीएस इंटरनेशनल को 282 सेट की खरीद का ऑर्डर कोर ने दे दिया. इस संबंध में कोर और पीपीएस इंटरनेशनल के बीच साइन हुए कांट्रेक्ट की प्रति भी ‘रेलवे समाचार’ के पास सुरक्षित है. इसके अनुसार पीपीएस इंटरनेशनल ने उक्त ऑर्डर (मटीरियल) की आपूर्ति की और उसे 20.44 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया.
इसी बीच इस सौदे के संबंध में कोर के किन्हीं अधिकारियों को कुछ संदेह पैदा हुआ. अतः खरीदार कोर, रेल मंत्रालय ने कस्टम अथॉरिटी को एक पत्र लिखकर उससे यह जानने का आग्रह किया कि वह इस बात की पुष्टि करे कि पीपीएस इंटरनेशनल ने अपने फॉरेन प्रिंसिपल से उक्त मटीरियल किस रेट पर आयात किया है, जिससे कि आगे की खरीद के सही रेट को सुनिश्चित किया जा सके. कस्टम विभाग से आए उत्तर से कोर के अधिकारी चकरा गए, क्योंकि कस्टम विभाग ने इस बात की पुष्टि की थी कि उक्त मटीरियल वास्तव में सीएचएफ 6400 प्रति सेट के हिसाब से भारतीय एजेंट (पीपीएस इंटरनेशनल) द्वारा आयात किया गया था, जबकि उसका ऑफर/ऑर्डर रेट सीएचएफ 8600 प्रति सेट का था. ऐसे में सीएचएफ 2400 प्रति सेट का ज्यादा कमीशन भारतीय एजेंट को भुगतान किया गया, जो कि वास्तव में कोर को चूना लगाया गया था. कस्टम विभाग के सम्बंधित पत्र की प्रति ‘रेलवे समाचार’ के पास सुरक्षित है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार उपरोक्त सारा मटीरियल खुद भारतीय एजेंट द्वारा अपने तौर पर आयात करके कोर को और कुछ जोनल रेलों को सप्लाई किया गया है. जबकि उसके साथ फॉरेन प्रिंसिपल की मिलीभगत रही है. बताते हैं कि फॉरेन प्रिंसिपल के बजाय सारे दस्तावेज (ऑफर लेटर, डिस्काउंट लेटर आदि) खुद भारतीय एजेंट द्वारा ही बनाए जाते रहे हैं. मटीरियल का आयात खुद भारतीय एजेंट द्वारा किया जाता रहा है, जो कि कस्टम विभाग के पुष्टिकरण से साबित हो रहा है, जाहिर है कि मटीरियल की सप्लाई फॉरेन प्रिंसिपल द्वारा नहीं, बल्कि उसके भारतीय एजेंट द्वारा सीएचएफ 6400 प्रति सेट की दर से आयात करके कोर को की गई है, जबकि उसने कोर से सीएचएफ 8600 प्रति सेट चार्ज किया है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय रेल सहित मेट्रो रेलों को उक्त आइटम (पीटीएफई शार्ट न्यूट्रल सेक्शन) की सालाना आवश्यकता करीब 400 नग की है. इस प्रकार यदि देखा जाए तो उक्त भारतीय एजेंट ने राष्ट्रीय खजाने से लगभग 35 से 40 करोड़ रुपए पिछले 6 सालों में लूटे हैं. यह भी पता चला है कि इससे पहले इस आइटम की आपूर्ति 12 लाख रुपए प्रति सेट पर भी की गई है, जबकि इसकी वास्तविक आयात लागत 5.7 लाख रुपए प्रति सेट ही थी. भारतीय रेल के स्थापित नियमों के अनुसार किसी भी स्थिति में एजेंसी कमीशन 5% से ज्यादा नहीं हो सकता है. प्रस्तुत मामले में भारतीय एजेंट द्वारा उसी के कैलकुलेशन के अनुसार जहां मात्र 2% कमीशन का दावा किया गया है, वहीं प्रस्तुत सप्लाई में उसने अपनी चालाकी से 26.4% का भारी-भरकम कमीशन प्राप्त किया है.
जानकारों का मानना है कि राष्ट्रीय खजाने की इस प्रकार की दिन-दहाड़े डकैती बिना फॉरेन प्रिंसिपल की आपराधिक मिलीभगत, साठ-गांठ और सक्रिय सहयोग के संभव नहीं हो सकती है. जैसा की ऊपर बताया गया है कि भारतीय एजेंट ने जो रेट ऑफर किया था, और उसने अपने फॉरेन प्रिंसिपल सप्लायर (मेसर्स आर्थर फ्लुरी, स्विट्ज़रलैंड) की एफओबी प्राइस रेट सीएचएफ 9500 प्रति सेट की प्रोफार्मा इनवॉइस सब्मिट की थी, जिस पर फॉरेन कंपनी के सीईओ और प्रेसिडेंट ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षर किया है, उसके अनुसार भारतीय एजेंट द्वारा ऑफर किया गया रेट वाजिब माना गया. तथापि, कस्टम विभाग ने इस बात की पुष्टि की है कि फॉरेन प्रिंसिपल ने भारतीय एजेंट को यह सप्लाई वास्तव में बहुत कम एफओबी प्राइस यानि सीएचएफ 6400 प्रति सेट पर की थी, जिसने बाद में यही मटीरियल 26.4% के हायर रेट (सीएचएफ 8600) पर रेलवे (कोर) को सप्लाई किया है.