रेलवे बोर्ड ने बदली रेल परियोजनाओं के कॉमेंसमेंट और कम्पलीशन की परिभाषा
जीएम, डीआरएम और जनसंपर्क विभाग को लगाया गया ‘नई दूकान’ के प्रचार-प्रसार में
रेलवे बोर्ड ने जारी किया रेलमंत्री के दो साल के तथाकथित कामकाज के प्रचार-प्रसार का निर्देश
सुरेश त्रिपाठी
भारतीय रेल के जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार मोदी सरकार जमीनी कार्य करने के बजाय प्रचार-प्रसार में ज्यादा ध्यान दे रही है, उसी प्रकार उसके रेलमंत्री भारतीय रेल में वास्तविक कार्यों के बजाय सोशल मीडिया पर भारतीय रेल के तथाकथित विकास की हवा बनाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने तथा जनसामान्य को दिग्भ्रमित करने में लगे हुए हैं. उनका कहना है कि ‘काम कम, प्रचार ज्यादा’ जैसी भ्रमित करने वाली नीति पर सरकारी धन और मानव संसाधन के अपव्यय पर जितना ध्यान दिया जा रहा है, उतना यदि वास्तविक कार्यों पर दिया जाता, तो शायद ज्यादा बेहतर होता. उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि रेल मंत्रालय के कामकाज में कुछ तेजी आई है, मगर यह तेजी जितनी सोशल मीडिया में दिखाई दे रही है, उसका उतना ही आभाव वास्तविक धरातल पर आज भी बना हुआ है.
जानकारों का कहना है कि इससे पहले प्रोजेक्ट कम्पलीट होने पर ही उक्त प्रोजेक्ट को पूरा हुआ माना जाता था. परंतु अब प्रोजेक्ट कमीशन पर प्रोजेक्ट को पूरा हुआ माना जा रहा है. इससे हुआ यह है कि जो प्रोजेक्ट वर्ष 2013-14 में कम्पलीट हुए थे, उन्हें अब कमीशन किया गया है, उन्हें भी अपना मान लिया और जो रेल परियोजनाएं पिछले दो वर्षों के दरम्यान पूरी हुई हैं, उन्हें भी कमीशंड मान लिया है. अथवा इन्हें अपने द्वारा या अपने कार्यकाल में कॉमेंसमेंट और कम्पलीशन किया गया बताया जा रहा है. इन्हें अपनी पूरी की हुई परियोजनाएं मानकर प्रचारित किया जा रहा है. इस फ़ॉर्मूले से पिछले दो वर्षों के दौरान प्रतिदिन 7 किमी. ट्रैक बिछाए जाने की गर्वोक्ति की गई है, जबकि पहले वाली परियोजनाओं के कॉमेंसमेंट के बजाय कम्पलीशन को आधार मानकर उनका प्रतिदिन का अनुपात 4.3 किमी. कर दिया गया. यह शुद्ध रूप से एक सीए की कागजी आंकड़ेबाजी है, क्योंकि वास्तविक धरातल पर कहीं भी कुछ भी नहीं बदला है. इस चालबाजी वाली गणना में वर्तमान मेंबर इंजीनियरिंग का बहुत बड़ा योगदान रहा है.
जानकारों का मानना है कि ऐसा लगता है कि वर्तमान मेंबर इंजिनीरिंग ने रेलमंत्री को इन सभी सेक्शनों के शुरू (कॉमेंस) हो जाने की जाकारी दे दी है. जबकि इनमें अभी नॉन-इंटरलॉकिंग और इंजीनियरिंग संबंधी कार्यों सहित इंजन एवं मालगाड़ी के ट्रायल्स आदि बहुत सारे कार्य किए जाने बाकी हैं. उनका कहना है कि जो किसी और ने बोया था, उसे भी काटकर और अपना कहकर अपने खाते में रख लिया गया है और अब जो खुद बोया है, वह तो अपने खाते में आएगा ही. इसलिए मिथ्या प्रचार-प्रसार से सरकार को कौन रोक सकता है.
जानकारों का कहना है कि पिछले दो सालों से लगातार फ्रेट और यात्री रेवेन्यु में भारी गिरावट आ रही है. मगर रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड अपने मिथ्या प्रचार-प्रसार और फोटोशॉपिंग में लगे हुए हैं. यही नहीं, अप्रैल 2016 के एकदम ताजे आंकड़े, जो हाल ही में रेलवे बोर्ड द्वारा जारी किए गए हैं, को ही ले लिया जाए, तो यह पिछले वर्ष की समान अवधि अप्रैल 2015 की अपेक्षा काफी कम हैं. तथापि रेलमंत्री अपने अकर्मण्य वर्तमान सीआरबी को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं, जो कि पिछले दो वर्षों में भी ‘स्टोरकीपर’ की सोच से ऊपर नहीं उठ पाए हैं. इसके बावजूद उन्हें जल्दी ही किसी ‘कैट’ के न्यायिक पद पर बैठाकर पुरस्कृत किए जाने की चर्चा है.
भारतीय रेल अब तथाकथित सुधार के ट्रैक पर है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार के प्रयासों का नतीजा है कि चीन, जापान, स्पेन, रूस, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन सहित दर्जनों देश भारतीय रेल में निवेश करने के लिए आगे आए हैं. यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि अगले कुछ वर्षों में भारतीय रेल में 300 अरब रुपए से अधिक का एफडीआई निवेश होगा. रेलमंत्री सुरेश प्रभु कहते हैं कि उनकी प्राथमिकताओं में मौजूदा ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाना, आधुनिकीकरण और यात्रियों की सुरक्षा प्रमुख है. रेलमंत्री कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि आम जनता में रेलवे की छवि बदल रही है. पूर्व में जहां यात्रियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती थी, वहीं आज सोशल मीडिया, ट्विटर पर शिकायत मिलते ही जरूरतमंद यात्रियों तक तुरंत मदद पहुंच रही है. इससे यात्री खुश हैं. उनके लिए यही सबसे बड़े संतोष की बात है.