सरल होगी रेलवे में वरीयता निर्धारण करने की प्रक्रिया
समानता का परिचायक पटना हाई कोर्ट का निर्णय लागू करने में क्यों हो रही है देरी?
11.01.2017 के पत्र से बोर्ड ने स्वीकारी एंटी-डेटिंग सीनि. को खत्म करने की मांग
पटना हाई कोर्ट के आदेश से एंटी-डेटिंग सीनियरिटी खत्म करने की राह हुई आसान
नए नियम के लागू होते ही डिले डीपीसी से ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को मिलेगी मुक्ति
30.06.2017 के बाद भारतीय रेल स्थापना नियमावली में नहीं होगा नियम 334
सभी विभागों ने लौटाई प्रमोटी अधिकारियों को स्थाई जेएजी पदोन्नति वाली फाइलें
रेलवे बोर्ड शीघ्र जारी कर सकता है बिना एंटी-डेटिंग की नई संयुक्त वरिष्ठता सूची
रेलमंत्री को मिलकर रेलवे बोर्ड अधिकारियों पर अनुचित दबाव बनाने की कोशिश?
सुरेश त्रिपाठी
इस हलफनामे के माध्यम से रेलवे बोर्ड ने स्पष्ट रूप से यह स्वीकार किया है कि एंटी-डेटिंग सीनियरिटी देने की अत्यंत अजीब परंपरा सिर्फ रेलवे में ही चल रही है, जिसकी वजह से ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ में पदोन्नति के समय पांच वर्षों की सीनियरिटी का परम-सुख प्राप्त हो रहा है. रेलवे बोर्ड द्वारा अदालत और ज्ञापनों के जवाब में निर्गत पत्रों में यह कहा गया है कि एंटी-डेटिंग सीनियरिटी को खत्म करने का मामला पटना हाई कोर्ट में लंबित है, इसलिए इस विचित्र परंपरा को खत्म करने वाले प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय पटना हाई कोर्ट के आदेश के बाद ही ले पाना संभव होगा.
Railway Board has issued three reply letters vide no. E(GP) 2016/I/20 dated 11.01.2017 on the representation of R. K. KUSHWAHA; ECROA/DNR & FROA. In this reply, Railway accepted that due to the peculiar system of antedating, maximum 5 years of seniority benefit is being given to promote officers of Indian Railway. The relevant sentences of paragraph 3.1 of reply are being reproduced hereunder..
3.1 However, the ratio of distribution of posts was kept at 3:1 keeping in view DOP&T instructions for fixing the posts on 50:50 basis by DR and PQ as well as the peculiar system followed on the Railways that provided a maximum of 5 years antedating of seniority in Group ‘A’ to Group ‘B’ officers on their induction to Group ‘A’.
Railway Board has clear cut view on the extension of a peculiar system of granting antedating seniority to promote officers. It has been said in reply that the antedating issue was under subjudice of Hon’ble High Court, Patna. Therefore, the final decision on the abolition of antedating seniority clause of IREM would depend upon the outcome of Hon’ble High Court, Patna’s decision. The relevant paragraph 3.3 of said reply is being reproduced hereunder..
Hon’ble High Court, Patna has passed order on dated 12.05.2017 and dismissed writ petition filed by IRPOF as well as position of Railway on antedating seniority. Since the issues of antedating seniority and applicability of DOP&T‘s O.M. basis of N.R.Parmar case are settled finally. Now no antedating clause would be applicable to Indian Railway services since 27.11.2012 the date of judgment of Hon’ble Supreme Court in N.R.Parmar case. Therefore in compliance of Hon’ble High Court Patna, all inter-se seniority lists issued by Railway Board after 27.11.2012 are now invalid and need to be recast afresh.
पटना हाई कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक निर्णय 12 मई 2017 को सीधी भर्ती वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के पक्ष में दिया है. हाई कोर्ट का आदेश आते ही रेलवे बोर्ड के लिए अब एंटी-डेटिंग सीनियरिटी वाले नियम को खत्म करना एक संवैधानिक बाध्यता हो गई है. अतः 12 मई वाले आदेश के बाद की वस्तुस्थिति एकदम स्पष्ट हो गई है, जिसका निष्पादन रेलवे बोर्ड द्वारा निम्न प्रकार से किया जा सकता है.
2. डीओपीटी के ओएम दि. 04.03.2014, जो कि सुप्रीम कोर्ट एन. आर. परमार मामले में निर्गत निर्णय पर जारी किया गया था, का अब अक्षरशः पालन करना होगा. यह ओएम इंटर-से-सीनियरिटी पर पूर्ण और विस्तृत नियम है, जिसमें कहीं भी एंटी-डेटिंग सीनियरिटी देने की व्यवस्था नहीं बताई गई है. अतः रेलवे बोर्ड द्वारा इंडेंट भेजने की तारीख के आधार पर बिना एंटी-डेटिंग सीनियरिटी दिए हुए ग्रुप ‘ए’ सीधी भर्ती और ग्रुप ‘बी’ प्रमोटी अधिकारियों की परस्पर वरीयता का निर्धारण करना पड़ेगा.
3. सुप्रीम कोर्ट द्वारा एन. आर. परमार मामले में निर्णय 27 नवंबर 2012 को दिया गया था, जिसके आधार पर डीओपीटी द्वारा 4 मार्च 2014 को ओएम जारी किया गया था. अतः 27 नवंबर 2012 के बाद रेलवे में ग्रुप ‘ए’ के पदों पर जितनी भी इंटर-से-सीनियरिटी का निर्धारण किया गया है, वह सब सीनियरिटी पटना हाई कोर्ट के आदेशानुसार अवैध घोषित हो चुकी है. अतः रेलवे बोर्ड द्वारा 30 जून 2017 से पहले ही इस सीनियरिटी का पुनर्निर्धारण कर हाई कोर्ट को बताना होगा.
4. मौजूद दस्तावेजों के अनुसार रेलवे की 8 संगठित सेवाओं के प्रमोटी अधिकारियों के पैनल वर्ष 2010-11, 2011-12, 2012-13 और 2013-14 में मौजूद सभी प्रमोटी अधिकारियों की वरीयता का निर्धारण 27 नवंबर 2012 के बाद हुआ है. अतः वर्तमान समय में उक्त चारों पैनल की वरीयता अवैध घोषित हो चुकी है, जिसको बिना एंटी-डेटिंग सीनियरिटी के इंडेंट भेजने की तारीख के आधार पर पुनः वरीयता का निर्धारण करके 30 जून 2017 से पहले-पहले ही हाई कोर्ट को बताना रेलवे बोर्ड की बाध्यता हो गई है.
जीएसटी की तरह सरल हो जाएगी वरीयता निर्धारण करने की प्रक्रिया
वर्तमान में रेलवे में इंटर-से-सीनियरिटी का निर्धारण करने की प्रक्रिया बहुत जटिल है. इसमें प्रमोटी अधिकारियों की आपसी वरियता निर्धारण करने में रेलवे को अच्छी खासी कसरत करनी पड़ती है, जिसमें अक्सर त्रुटि होती है, जिसकी वजह से प्रमोटी अधिकारी अदालतों से स्टे आर्डर लाते रहते हैं. इस वजह से प्रमोटी अधिकारियों की आपसी वरीयता निर्धारण करने में देरी होती है. इसके फलस्वरुप प्रमोटी अधिकारियों की डीपीसी सही समय में नहीं हो पाती है, जिसका सीधा प्रभाव प्रमोटी अधिकारियों की इंटर-से-सीनियरिटी का निर्धारण करने पर पड़ता है.
रेलवे बोर्ड यदि 30 जून 2017 से पहले एन. आर. परमार मामले में निर्णय के बाद जारी किए गए डीओपीटी के नियम को लागू कर देता है, तो इसका सीधा फायदा आगे निर्धारित की जाने वाली प्रमोटी अधिकारियों की वरीयता को मिलेगा, क्योंकि नए नियम के लागू होते ही डिले डीपीसी से होने वाले नुकसान से प्रमोटी अधिकारियों को मुक्ति मिल जाएगी. नए नियम में इंडेंट भेजने की तारीख के आधार पर इंटर-से-सीनियरिटी का निर्धारण किया जाएगा.
इस पूरी प्रक्रिया में पैनल वर्ष 2010-11 से 2014-15 अर्थात सिर्फ पांच पैनलों के प्रमोटी अधिकारियों की वरीयता घटेगी. इस नए नियम से उक्त पांच पैनलों के प्रमोटी अधिकारियों को छोड़कर बाकी सभी प्रमोटी अधिकारी अप्रभावित रहने वाले हैं. इस प्रकार एन. आर. परमार मामले से निकला यह नियम सीधी भर्ती और प्रमोटी अधिकारियों को साथ-साथ और एक समान लाभ प्रदान करने वाला है, जो कि जीएसटी की तरह एक समान नियम बनकर दोनों वर्गों को फायदा पहुंचाएगा. यह नियम रेलवे की प्रशासनिक व्यवस्था के सरलीकरण के साथ ही रेलवे के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण साबित होगा.
समानता का सूचक है पटना हाई कोर्ट का निर्णय
बदले हुए नए नियम को यहां एक उदाहरण से समझा जा सकता है. मौजूद दस्तावेजों के अनुसार वर्ष 2008 बैच के सीधी भर्ती वाले इंजीनियरिंग सर्विसेस की इंडेंट भेजने की तारीख 11 जुलाई 2008 है. अतः इंटर-से-सीनियरिटी का निर्धारण करते समय सीधी भर्ती वाले अधिकारियों के लिए वरीयता का दिन 11 जुलाई 2008 होगा. इसी प्रकार आईआरएसएसई के पैनल वर्ष 2012-13 और 2013-14 की इंडेंट भेजने की तारीख 4 फरवरी 2015 है. अतः पैनल वर्ष 2012-13 और 2013-14 के प्रमोटी अधिकारियों की वरीयता निर्धारण का दिन 4 फरवरी 2015 होगा. इस नए नियम में सेंडिंग इंडेंट का दिन वह दिन लिया गया है, जिस दिन रेल मंत्रालय इस वर्ष के सीधी भर्ती तथा पैनल वर्ष के प्रमोटी अधिकारियों का इंडेंट सभी आंतरिक प्रक्रिया पूरी करने के उपरांत यूपीएससी को भेजता है.
एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट अविलंब जारी की जाए
इस बीच इरपोफ के पदाधिकारी रेलमंत्री से मुलाकात करके रेलवे बोर्ड के अधिकारियों पर दबाव बनाने की कोशिश में हैं. इस बात की भारी आशंका व्यक्त की जा रही है कि पूर्व की भांति पुनः किसी अवैध गठजोड़ के तहत पटना हाई कोर्ट के निर्णय पर रेलवे बोर्ड द्वारा किसी प्रकार की लीपापोती करने की तैयारी तो नहीं की जा रही है? क्योंकि हाल ही में इरपोफ के पदाधिकारियों द्वारा रेलमंत्री सुरेश प्रभु से उनके चैम्बर में की गई मुलाकात की फोटो सोशल मीडिया में बड़े पैमाने पर शेयर की गई है. इसके जरिए उन सभी प्रमोटी अधिकारियों को पूर्व की भांति यह संदेश देकर बरगलाने की कोशिश की गई है कि उनकी सीनियरिटी को कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा. इस घटना दो तरीके से समझा जा सकता है.
1. हो सकता है कि इरपोफ के पदाधिकारी अपना वजूद बचाने के लिए किसी भी तरह पटना हाई कोर्ट का आदेश लागू न किए जाने की दुहाई देने रेलमंत्री की शरण में गए हों. प्रमोटी अधिकारियों को बरगलाने की उनकी यह एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है, जिससे प्रमोटी अधिकारियों को अपने संगठन के नेतृत्व पर कोई शक न होने पाए.
2. हो सकता है कि पदोन्नति घोटाले और कैट एवं पटना हाई कोर्ट के आदेशों की आंच रेलमंत्री तक पहुंच गई हो, जिस पर खुद रेलमंत्री बारी-बारी से सभी अधिकारी संगठनों और रेलवे बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर इस पूरे प्रकरण पर राय मशविरा कर रहे हों.
हालांकि उपरोक्त दोनों कारणों की संभावना कम ही लगती है, क्योंकि इरपोफ के सलाहकार ‘रेलवे समाचार’ के साथ बात करते हुए इस बात को स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि पटना हाई कोर्ट का निर्णय लागू होने से प्रमोटी अधिकारियों का ही फायदा होगा. ऐसे में उनकी मंशा और उक्त मुलाकात के अन्व्यार्थ लगाना शायद उचित नहीं होगा, क्योंकि रेलवे बोर्ड हो या रेलमंत्री, अब पटना हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन या अवहेलना करने का मतलब होगा कि उन्हें उच्च अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ेगा, जिसमें उनकी भारी लानत-मलामत होना निश्चित है.
तथापि, इस मुलाकात का कारण जो भी हो, पटना हाई कोर्ट द्वारा दिया गया आदेश एसिड की तरह पदोन्नति घोटाले के कचरे को साफ करता हुआ दिखाई दे रहा है, क्योंकि रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की बेचैनी तथा इरपोफ एवं आरबीएसएस कुनबे की खामोशी इस बात का सूचक है कि पदोन्नति घोटाला बहुत बड़े स्तर पर किया गया था और अदालत का आदेश लागू करते ही इंटर-से-सीनियरिटी में भी उतना ही बड़ा उलटफेर दिखाई देगा.
फोटो परिचय : शुक्रवार, 9 जून को रेल भवन में रेलमंत्री के चैम्बर में रेलमंत्री सुरेश प्रभु से पटना हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय और उससे उत्पन्न होने वाली अन्य स्थितियों पर चर्चा करते हुए इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन (इरपोफ) के पदाधिकारी बाएं से वित्त सचिव परमेश्वर सेन, महासचिव रमन कुमार शर्मा और सलाहकार जीतेंद्र सिंह.
इस मामले में कैट एवं पटना हाई कोर्ट ने अपने आदेशों में रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड के अधिकार को भी सीमित कर दिया है. दोनों अदालतों ने 50-50 के अनुपात में बदलाव को सरकार के ‘प्रीव्यू’ से बाहर माना है. इसमें स्पष्ट कर दिया गया है कि जो अनुपात गजट नोटिफिकेशन द्वारा जारी किया गया है, उसे कोई सरकार अथवा डीओपीटी या मंत्रालय खुद ही बदल नहीं सकता है. इसलिए इरपोफ के पदाधिकारियों को रेलमंत्री से मुलाकात करना एक दिग्भ्रम मात्र है, जो रेलवे बोर्ड को पदोन्नति घोटाले की गंदगी को साफ करने से अब नहीं रोक सकता है.
इस पूरे प्रकरण पर ‘रेलवे समाचार’ शुरू से स्वतंत्र और निष्पक्ष विचार रखता आ रहा है. अदालतों के आदेशों से ही सही, यदि अधिकारियों की पदोन्नति और वरीयता निर्धारण करने की प्रक्रिया जीएसटी की तरह सरल हो रही हो, तो रेलवे के सभी संगठनों को इसका स्वागत करना चाहिए और रेलवे बोर्ड पर इसको अमल में लाने का दबाव बनाना चाहिए. यह तो स्पष्ट है कि आने वाले समय में प्रमोटी अधिकारियों को इस बदले हुए नियम से पर्याप्त लाभ मिलने वाला है. इस नियम की वजह से वर्ष 2010 से 2015 तक के सिर्फ पांच पैनल के प्रमोटी अधिकारियों को ही अपनी वरीयता गंवानी पड़ेगी.
रेलवे बोर्ड को भी अपनी साख बचाते हुए सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर गठित एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट को अविलंब जारी कर देना चाहिए, क्योंकि शक के दायरे में आ चुकी पूरी प्रक्रिया रेलवे बोर्ड के लिए शुभ संकेत नहीं है. देश के चहुंमुखी विकास और रेलवे की प्रगति एवं उत्पादकता के लिए अगले 100 वर्षों तक ऐसी ही आसान और पारदर्शी पदोन्नति प्रक्रिया का होना बहुत जरूरी है, जिससे किसी भी ग्रुप को कुंठा और अवसाद का शिकार न होना पड़े तथा राष्ट्रहित में सभी अधिकारी एकजुट होकर कर्मठ भाव से रेलवे के प्रति अपना समर्पण बनाए रख सकें.