आवश्यक है रेलवे बोर्ड मेंबर्स और जोनल महाप्रबंधकों में कुछ महत्वपूर्ण फेरबदल
विवादास्पद मेंबर ट्रैक्शन को मेंबर स्टाफ और जीएम/म.रे. को में. ट्रै. बनाया जाए
विश्वेश चौबे को मध्य रेलवे में और सुधांशु मणि को उत्तर रेलवे में लाया जाना चाहिए
जीएम/एमसीएफ के साथ न्याय करके उन्हें मेंबर इंजीनियरिंग के पद पर बैठाया जाए
सुरेश त्रिपाठी
शुक्रवार, 22 सितंबर को राजीव अग्रवाल को महाप्रबंधक, पूर्वोत्तर रेलवे और रतनलाल को महाप्रबंधक, आरसीएफ तथा टी. पी. सिंह को महाप्रबंधक, उत्तर पश्चिम रेलवे बनाए जाने के बाद और भारतीय रेल की हो रही प्रशासनिक दुर्दशा को देखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है कि रेलवे बोर्ड तथा कुछ जोनल महाप्रबंधकों के स्तर पर गंभीर फेरबदल किया जाना चाहिए. हालांकि दिल्ली के ब्यूरोक्रेटिक गलियारों में ऐसी चर्चाएं चल रही हैं, तथापि, जानकारों का यह निश्चित मत है कि वर्तमान विवादास्पद मेंबर ट्रैक्शन को मेंबर स्टाफ के पद पर अविलंब शिफ्ट कर दिया जाना चाहिए और उनकी जगह मेंबर ट्रैक्शन के पद पर मध्य रेलवे के महाप्रबंधक को लाया जाना चाहिए, जो कि न सिर्फ कार्यक्षम और योग्य हैं, बल्कि उनकी छवि भी साफ-सुथरी है. उनका कहना है कि इस फेरबदल से रेलवे बोर्ड की कार्य-प्रणाली तब और ज्यादा प्रभावशाली हो सकती है, जब जीएम/एमसीएफ के साथ न्याय करते हुए उन्हें मेंबर इंजीनियरिंग के पद पर ले आया जाएगा.
अब जहां तक जोनल महाप्रबंधकों के स्तर पर किए जाने वाले संभावित फेरबदल की बात है, तो इस मामले में दिल्ली के गलियारों में जो चर्चाएं हो रही हैं, उनके मद्देनजर जानकारों का गंभीर मत है कि उत्तर रेलवे में आर. के. कुलश्रेष्ठ को वापस लाए जाने से अधिकारियों, कर्मचारियों सहित जन-सामान्य में भी इसका गलत संदेश गया है. उनका कहना है कि श्री कुलश्रेष्ठ एक कमजोर व्यक्तित्व वाले अकार्यक्षम अधिकारी हैं, उत्तर रेलवे जैसी बड़ी और महत्वपूर्ण रेलवे को कुशलतापूर्वक संभाल पाना उनके वश की बात नहीं है और यह बात उनके विगत 8-9 महीने के कार्यकाल में सही साबित हुई है. हालांकि चर्चा यह भी है कि स्वयं श्री कुलश्रेष्ठ दक्षिण रेलवे में जाने के इच्छुक हैं. ऐसे में उन्हें दक्षिण रेलवे में तो नहीं, मगर आईसीएफ में भेजा जाना चाहिए. दक्षिण रेलवे में उन्हें इसलिए नहीं भेजा जाए, क्योंकि कमजोर व्यक्तित्व के श्री कुलश्रेष्ठ को वहां की माफिया यूनियन वैसे ही खा जाएगी.
इसके अलावा उनका कहना है कि वर्तमान जीएम/म.रे. को रेलवे बोर्ड में मेंबर ट्रैक्शन के पद पर ले जाए जाने से न सिर्फ पूरी भारतीय रेल के तेजी से विद्युतीकरण के लक्ष्य को पूरा करने की प्रधानमंत्री और रेलमंत्री की घोषणाओं को बल मिलेगा, बल्कि जीएम/म.रे. जैसे एक सदाचारी अधिकारी को रेलवे बोर्ड में लाए जाने से भ्रष्टाचार मुक्त कार्य-वातावरण बनाने की उनकी सार्वजनिक घोषणा को सही साबित किया जा सकेगा. उनका मानना है कि मध्य रेलवे के वर्तमान महाप्रबंधक की छवि साफ-सुथरी है और उन्हें बेहतर प्रशासनिक अनुभव भी है. इसके अलावा वह एक ईमानदार एवं कर्तव्यपरायण अधिकारी माने जाते हैं. इससे रेलवे बोर्ड की कार्य-प्रणाली में पर्याप्त सुधार आएगा. जानकारों ने कहा कि यदि गाड़ियों का समयपालन ठीक करना है और मेंबर ट्रैफिक यदि अपनी मुंह फुलाने की आदत और दक्षिण रेलवे की माफिया यूनियन को प्रश्रय देने से बाज नहीं आते हैं, तो उन्हें डिमोट करके प.म.रे. में भेजकर वहां से गिरीश पिल्लई को मेंबर ट्रैफिक में ले जाया जाना चाहिए. इसके साथ ही मेंबर रोलिंग स्टॉक को भी ठोंक-पीटकर सक्रिय किया जाना चाहिए.
जानकारों का कहना है कि मध्य रेलवे की बिगड़ी हुई जमीनी स्थिति में यदि बुनियादी सुधार करना है, तो इसके लिए किसी अनुभवी इंजीनियरिंग अधिकारी को इसके महाप्रबंधक के पद पर बैठाए जाने की अत्यंत आवश्यकता है. उनका कहना है कि मेट्रो रेलवे में विश्वेश चौबे जैसे सक्षम और अनुभवी इंजीनियरिंग अधिकारी को बैठाकर उनकी कार्य-क्षमता एवं योग्यता का ह्रास किया जा रहा है. ‘स्टोरकीपर’ को श्री चौबे की कार्य-क्षमता का न तो आकलन था, और न ही वह उनकी इस क्षमता का समुचित उपयोग करना जानते थे, क्योंकि उन्हें ‘स्टोर्स’ से आगे कुछ पता ही नहीं था. यही वजह थी कि श्री चौबे के मना करने के बावजूद उन्होंने उन्हें मेट्रो जैसी ‘माइक्रो रेलवे’ में पदस्थ किया. उनका कहना है कि श्री चौबे जैसे सक्षम अधिकारी को मध्य रेलवे में लाया जाना समय की जरूरत है.
कुछ सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारियों और पूर्व बोर्ड मेंबर्स का कहना है कि ‘स्टोरकीपर’ ने 34-35 मंडलों में जब स्टोर्स कैडर के अपर मंडल रेल प्रबंधक बैठाए थे, तब उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं था कि अपर मंडल रेल प्रबंधक मंडल की संपूर्ण संरक्षा व्यवस्था का इंचार्ज और उसके लिए जवाबदेह होता है. उनका कहना है कि ‘स्टोरकीपर’ की इसी रंग-अंधता (कलर ब्लाइंडनेस), जिसे यहां अज्ञानता भी कहा जाना चाहिए, के चलते जोनों की जरूरत और अधिकारियों की कार्यक्षमता एवं अनुभव के मुताबिक उनकी नियुक्तियां वह महाप्रबंधकों के पद पर नहीं कर सके थे. परिणामस्वरूप अपने लगभग ढ़ाई साल के कार्यकाल में उन्होंने भारतीय रेल का ढ़ाई सौ बार भट्ठा बैठा दिया. अब इस बुरी तरह बिगड़ी हुई व्यवस्था को सुधारने के लिए वर्तमान सीआरबी और रेलमंत्री को न सिर्फ कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, बल्कि सक्षम, ईमानदार और साफ-सुथरी छवि वाले अधिकारियों को आगे लाना होगा तथा ‘स्टोरकीपर’ की भ्रष्ट नीतियों और पूर्व रेलमंत्री की अकर्मण्यता के चलते भारतीय रेल में पैदा हुई कदाचारियों, भ्रष्टाचारियों, चापलूसों और मदारियों की जमात को दरकिनार करना होगा.