‘वोटतंत्र’ के लिए ताक पर ‘लोकतंत्र’

सरकार में धर्म और जाति का तांडव – संदर्भ झारखंड विधानसभा में नमाज कक्ष

प्रेमपाल शर्मा

रेलवे समेत सरकारी विभाग अचानक ही नहीं डूबे। इसमें क्षरण, जंग लगने की दास्तां आजादी मिलते ही शुरू हो गई थी। वोट बैंक की राजनीति की खातिर।

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चंद दास्तानें.. एक समय संसद में जारी बहस के बाद मंत्री को जवाब देना था। स्टेनो की तलाश की गई। पता लगा वह भक्ति रस में नमाज पढ़ने गए हुए हैं।

खैर दूसरा इंतजाम किया गया, लेकिन अगर सख्ती से यह संदेश दिया जाता कि कार्यालय और ड्यूटी के समय ऐसी कोई अनुमति नहीं दी जाएगी, तो धीरे-धीरे देश का परिदृश्य अवश्य बदलता!

एक और संयुक्त सचिव इस्कॉन उर्फ कृष्ण भक्त थे। वे आए दिन सरकारी भवन में कीर्तन किस्म के कार्यक्रम कराते रहते थे। इनकी देखा देखी नए-नए बढ़ रहे बौद्ध धर्म के लामा भी लबादे ओढ़कर साल में दो-चार बार कार्यालय आने लगे।

अब ऐसे में माउंट आबू वाले संत कैसे पीछे रहते। उन्होंने भी प्रवेश की अनुमति चाही।

आश्चर्य की बात कि यह सब तथाकथित सेकुलर सरकारों के दौर में हो रहा था।

बहरहाल इनको सख्ती से रोका जाना चाहिए। उम्मीद है कि यह सब फिर से शुरू नहीं होगा!

पूरे देश के लिए यह संदेश कि सरकारी विभाग और सरकारी कार्यालय काम करने के लिए हैं। किसी धर्म की उठापटक के लिए तो बिल्कुल भी नहीं हैं।

संविधान भी यही कहता है, जिसकी दुहाई हर नेता और मंत्री देता है, मगर यही दुहाई तब धरी रह जाती है जब तेलंगाना का मुख्यमंत्री विधानसभा में सदन के अध्यक्ष को संबोधित करने के बजाय एक वर्ग विशेष के सदस्य विशेष को संबोधित करते हुए उसके वर्ग के लिए किए गए खास इंतजामों को उसे विस्तार से बताता है।

वोटतंत्र की राजनीति के लिए इस तरह धीरे-धीरे लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। ऐसी सभी गतिविधियों को अविलंब रोका जाना आवश्यक है, वरना संविधान का औचित्य ही खत्म हो जाएगा।

इसी के समानांतर जाति का खेल भी चल रहा है। संसद के सबसे नजदीक के उस भवन में जहां कमरों, स्थान की बेहद कमी थी। ऐसे में करोड़ों रुपये प्रति महीने के हिसाब से प्रगति मैदान के पास जगह तलाशी गई।

उन्हीं दिनों हर जाति के लिए (तथाकथित आरक्षित वर्ग वाली) अलग-अलग कमरे दिए गए। दिनभर नाक के नीचे राजनीति करने के लिए!

उन सबके अध्यक्ष, प्रेसिडेंट, वाइस प्रेसिडेंट भी दर्जनों होते हैं (घर की खेती है! कितने भी बनाओ) जिससे उनको रेलवे के पास आदि की सुविधाएं भी मिलती रहें और वे पूरे देश में जातिगत गिरोह बनाते रहें!

लोकतंत्र को अगर बचाना है, तो धार्मिक, जातीय, वर्गीय इत्यादि सभी प्रकार के व्यवस्थागत तुष्टिकरण को अविलंब रोकना होगा। अभी-भी समय है हम इस उम्मीद के साथ, कि यह व्यवस्था और समाज का कैंसर है, जाति और धर्म की राजनीति को जितनी जल्दी समझ लें, उतना ही अच्छा है!

#प्रेमपाल_शर्मा, पूर्व संयुक्त सचिव/रेल मंत्रालय, भारत सरकार, 6 सितंबर 2021. ई-मेल: ppsharmarly@gmail.com

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