ग्रुप ‘ए’ एलॉटेड प्रमोटियों का जोनल ट्रांसफर सुनिश्चित करे रेल प्रशासन!

आखिर क्या होता है लंबे समय तक चार्जशीट और दंड विलंबित रखने का औचित्य?

निष्ठावान और अपनी ड्युटी का समर्पित भाव से निर्वहन करने वाले कर्मचारियों अर्थात मातहतों को प्रायोजित और सुनियोजित तरीके से अधिकारियों द्वारा चार्जशीट दी जाती है। तत्पश्चात उक्त चार्जशीट को विलंबित रखकर अमानवीय रूप से मानसिक तौर पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।

फिर अपने पद के पावर का मनमानी दुरुपयोग करने के साथ, जिसमें ठेकेदारों के प्रति स्नेहपूर्ण अपनत्व एवं फिर जातिगत भेदभाव और द्वेषपूर्ण सोच के तहत मातहतों के विरुद्ध मनमाने तरीके से कार्रवाई की जाती है।

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इस तरह अराजकता वाली स्थितियों में कर्मचारी अपनी दैनिक ड्युटी का निर्वहन करने को मजबूर होते हैं। लेकिन वह कुछ कह नहीं सकते हैं, क्योंकि उनकी सुनने वाला कोई नहीं होता है।

फील्ड में अधिकारियों द्वारा किए जा रहे इस अराजकतावादी व्यवहार के विरुद्ध न्याय हेतु आवेदन देने का साहस कोई कर्मचारी नहीं कर पाता है। चूँकि व्हाइट कॉलर्स क्राइम वाली इस सोच के तहत फील्ड में मातहतों के द्वारा यदि न्याय हेतु निवेदन दिया भी जाता है, तो डिप्टी चीफ इंजीनियर द्वारा दिए गए दंड को तीन गुना अधिक कर दिया जाता है।

तथापि दोषपूर्ण कार्य संपादन करने वाले संबंधित ठेकेदारों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती है, जिनके टेंडर के अधीन निर्माण कार्य की गुणवत्ता या त्रुटि के लिए संबंधित मातहतों द्वारा गुणवत्तापूर्ण कार्य करवाने का प्रयास किया जाता है। बल्कि ठेकेदारों के कहने पर उन्हीं मातहतों के विरुद्ध अन्यायपूर्ण कार्रवाई की जाती है।

इस अराजकतावादी माहौल में कार्य संपादन करवाना कर्मचारियों के लिए असंभव होता जा रहा है। ऐसे मामलों में ठेकेदारों से गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य करवाना कैसे संभव हो सकता है? अतः महाप्रबंधक एवं सीएओ/कंस्ट्रक्शन या सीएमडी/इरकॉन या अन्य उच्च अधिकारी इस पर अवश्य विचार करें।

संबंधित डिप्टी इंजीनियर अथवा मंडल इंजीनियर या चीफ इंजीनियर द्वारा मातहतों को चार्जशीट और दंड भी एकतरफा दिया जाता है, ताकि ठेकेदारों की पक्षधरता वाली प्रायोजित कार्यपद्धति को मातहत बिना किसी ना-नुकुर के स्वीकार कर लें और आगे पुनः ठेकेदारों के कार्य संपादन में या दिए गए चार्जशीट या दंड के विरुद्ध कोई आवेदन या अपील नहीं करें।

इसी सोच के साथ मातहतों को प्रायोजित चार्जशीट देकर छोड़ दिया जाता है और फिर उनका भयादोहन और मानसिक प्रताड़ना हर तरह से शुरू हो जाती है।

इसके साथ ही ट्रांसफर की भी धमकियां दी जाती हैं। चीफ इंजीनियर न केवल अपने अधीन कर्मचारियों को इस तरह से चार्जशीट देकर दंड एवं भय का वातावरण बनाते हैं, बल्कि दूसरे कार्यालयों के अधीन और वहां भी चार्जशीट और दंड देने का दबाव बनाते हैं। फिर आगे ऐसी स्थिति-परिस्थियों में मातहतों के सामने अपने बचाव का कोई भी रास्ता नहीं रह जाता है।

चूँकि अधिकांश अब ट्रैकमैन या पीडब्ल्यूएम से रेल मंत्रालय और रेलवे बोर्ड के गलत नीतिगत फैसले के चलते रेलवे द्वारा पीडब्ल्यूएम के अति महत्वपूर्ण पद को समाप्त कर दिया गया है, जिसके चलते ही ऐसे सभी लोगों को बैक डेट से जेई और फिर सीनियर सेक्शन इंजीनियर बनाकर पदस्थापित भी कर दिया गया।

इन लोगों को पद तो गलत नीतिगत फैसले से मिल गए, लेकिन पद के अनुरूप आवश्यक सेवा समयावधि, प्रशिक्षण और अनुभव के अभाव के चलते इसमें से अधिकांश लोग गुणवत्तापूर्ण कार्य संपादन करवाने पूर्णतः में असमर्थ हैं। यह लोग एमबी तक रिकार्ड नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में ठेकेदारों के द्वारा मनचाहे रूप से सभी आइटम्स लिखकर अंत तक एमबी पर लिखवाते हुए अनावश्यक पेमेंट करवाया जा रहा है।

इस तरह से पेमेंट का प्रचलन खूब धड़ल्ले से हो रहा है, जिसमें ठेकेदारों के साथ ही अधिकारी भी भरपूर लाभान्वित हो रहे हैं। इसके चलते प्रोजेक्ट्स में प्रभारी के रूप में उनकी पदस्थापना सुनिश्चित हो रही है और ऐसे मातहतों की खूब वाहवाही भी हो रही है।

यह सारी अनियमितताएं उच्च अधिकारियों द्वारा देखे जाने की आवश्यकता है कि आखिर ऐसे लोग जो सक्षम नहीं हैं, फिर वह प्रभारी कैसे बने हुए हैं और यदि पदोन्नत हो भी गए, तो उनके मंडल में उनकी सेवा वापस कर अनुभवी सीनियर सेक्शन इंजीनियर की पदस्थापना क्यों नहीं करवाई जाती है?

आखिर एक ही जगह उसी कार्यालय में ऐसे लोग पदस्थापित क्यों रखें जा रहे हैं, जबकि 4 वर्ष के बदले 5 या 7 अथवा 10 वर्षों तक उनकी सेवा समयावधि क्यों बनाए रखी जा रही है? इसके पीछे आखिर रेल प्रशासन की क्या मजबूरी है?

आखिर प्रमोटी अधिकारियों की ही एक ही जगह क्यों अधिक समयावधि तक पदस्थापना रखी जा रही है और उन्हें ही ज्यादा से ज्यादा प्रोजेक्ट कार्यों का आवंटन क्यों किया जा रहा है? ऐसे सभी प्रमोटी अधिकारियों, जिन्हें ग्रुप ‘ए’ एलॉट हो गया है, को अन्य जोनों में ट्रांसफर क्यों नहीं किया जा रहा है? रेल में भ्रष्टाचार की जड़ में कहीं न कहीं इन अधिकारियों की बड़ी भूमिका है!

क्या यूपीएससी से पास कर अधिकारी के रूप में पदस्थापित इंजीनियर प्रशासनिक रूप में उक्त ज्ञानवर्धक जानकारी उन्हें नहीं होती है या फिर सुनियोजित तरीके से प्रमोटियों की पोस्टिंग की जाती है, जिससे उनसे मनमाने तरीके से लाभ अर्जित किया जा सके? इस मामले में सीएओ/सी, पीसीई और जीएम सहित रेलवे बोर्ड को उचित विचार करना चाहिए।

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