भ्रष्टाचार से ही पैदा होता है भ्रष्टाचार!

रिश्वत के जरिए अधिकारी बना कर्मचारी रिश्वतखोरी ही करेगा! “चोर, चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए!” कहावत चरितार्थ हो रही है भारतीय रेल में!

सुरेश त्रिपाठी

सहायक वाणिज्य प्रबंधक, ग्रुप ‘बी’ 30% एलडीसीई की प्रिलिमिनरी परीक्षा का पेपर आउट हुआ था। यह निश्चित तौर पर पूर्वोत्तर रेलवे के लगभग सभी संबंधित अधिकारी दबी जबान से स्वीकार करते हैं। वह यह भी स्वीकार करते हैं कि “यह पेपर आउट भी पीसीसीएम के खास आदमी ने ही किया, क्योंकि पीसीसीएम ने पेपर इतना कठिन बनाया था कि उसे कोई भी कंडीडेट बिना पूर्व जानकारी के हल नहीं कर सकता था। उन्होंने कहा कि यदि पास हुए तीनों कंडीडेट्स को वही पेपर पुनः हल करने को दिया जाए, तो वह नहीं कर पाएंगे, यह तय है!”

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यह पूछने पर कि पीसीसीएम का कठिन पेपर बनाने के पीछे उद्देश्य क्या था? इस पर अधिकारियों का कहना है कि वह (पीसीसीएम) नहीं चाहते थे कि वे रिटायरमेंट से पहले किसी विवाद में फंसें। दिसंबर में उनका रिटायरमेंट है।

यह पूछे जाने पर कि क्या पीसीसीएम ने यह पेपर पूरी गोपनीयता के साथ स्वयं बनाया था अथवा किसी को अपनी सहायता के लिए साथ रखा था? इस पर उनका कहना था कि “वह ऐसे कामकाज में काफी आलसी किस्म के हैं। निश्चित रूप से उन्होंने अपने खास सहायक को रखा होगा।” उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि “पेपर पीसीसीएम से लीक नहीं हुआ, मगर यह भी सही है कि पेपर तो लीक किया गया है।”

यह पूछने पर कि जब आठ इंस्पेक्टरों ने लिखित शिकायत की, तब उसमें जो नियमानुसार तथ्य दिए गए थे, वह गलत कैसे हो गए? उन्होंने बताया कि “शिकायत पर जीएम के आदेश से पर्सनल डिपार्टमेंट ने जांच की थी और उसकी जांच में पेपर बनाने में कोई त्रुटि नहीं पाई गई। इसके अलावा नियमों की व्याख्या कार्मिक विभाग कैसे करता है, यह भी सर्वज्ञात है।”

उल्लेखनीय है कि जिन आठ इंस्पेक्टरों ने लिखित शिकायत की थी, वह वर्षों से मुख्यालय में अटैच्ड थे। उनमें से एक की कोरोना से मौत हो गई और दो को उनके मंडलों में वापस भेज दिया गया। परंतु जो चार-पांच बचे हुए हैं, उनके बारे में अब तक कोई निर्णय नहीं लेने अथवा उन्हें भी तत्काल प्रभाव से वापस न करने पर कई सवाल उठ रहे हैं। बताते हैं कि इन इंस्पेक्टरों को पीसीसीएम ने केवल इसलिए आधा-अधूरा रिपैट्रिएट किया कि “इनकी इतनी हिम्मत कि मेरे नीचे मेरे सहायक के तौर पर काम करके भी मेरे खिलाफ शिकायत करते हैं!”

परंतु पीसीसीएम को शायद इस बात का भान नहीं है कि ऐसा तब होता है जब बिना पृष्ठभूमि जांचे और बिना सोचे-समझे लोगों को अपना बगलबच्चा बनाया जाता है और उन्हें लंबे समय तक एक ही जगह टिकाए रखने के लिए फेवर किया जाता है। वह शायद यह भी नहीं जानते होंगे कि ऐसे लोग स्वयं को वहां ‘स्थाई’ और उन्हें ‘अस्थाई’ मानकर बर्ताव करते हैं। इसीलिए आवधिक स्थानांतरण (पीरियोडिकल ट्रांसफर) की व्यवस्था बनाई गई है, जिसे उनके जैसे ही अकर्मण्य अधिकारियों ने पलीता लगाया हुआ है।

उन्होंने बार-बार नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि “जो लोग रिश्वत देकर पदोन्नति पाते हैं, वह बाद में रिश्वतखोरी ही करते हैं। यह भी सही है।” उनका कहना था कि एक पूर्व बदनाम पीसीसीएम को जो पंद्रह लाख देकर पदोन्नति लिया है, और जो अधिकारी बनने से पहले तक टिकट दलालों का सबसे बड़ा किंगपिन रहा, ऐसे लोगों को खास सहायक बनाने से पहले विभाग प्रमुखों को पूरी एहतियात बरतनी चाहिए। अथवा हर नए विभाग प्रमुख को आते ही वहां के सभी पुराने स्टाफ को तुरंत बदल देना चाहिए, यदि उसका कोई निहित उद्देश्य नहीं है तो!

उन्होंने बताया कि “पास हुए तीन लोगों में से एक तो पीसीसीएम के खास सहायक का नजदीकी रिश्तेदार है। दूसरा वह विजिलेंस इंस्पेक्टर है, जो अपनी करतूतों से पहले ही बहुत बदनाम है। सोचो वह अधिकारी बनने के बाद क्या-क्या गुल खिलाएगा? तीसरा आरडीएसओ में डेपुटेशन पर है। ऐसे में रिश्तेदार और वीआई का तो फाइनल इंटरव्यू में पास होना लगभग तय है।”

उन्होंने एक और बात बताई। वह यह कि मामला उजागर होने के बाद पीसीसीएम के खास सहायक, जिसकी तरफ सबकी उंगलियां उठी हुई हैं, ने अपने बचाव में यह भी शगूफा छोड़ा है कि पास हुए लोगों में से एक पीसीओएम और डिप्टी सीवीओ ट्रैफिक का आदमी है और दूसरा पीसीसीएम का! परंतु तीसरा किसका आदमी है, इस बारे में कुछ नहीं कहा है!

बहरहाल, अधिकारियों की यह बात तो सही है कि जो कर्मी भ्रष्टाचार के माध्यम से पदोन्नत होकर अधिकारी बनेगा, वह आगे भी केवल भ्रष्टाचार ही करता है। हमेशा कमाऊ पोस्टिंग की जुगाड़ में रहता है। उसे व्यवस्था में सुधार, इसकी उन्नति से कोई सरोकार नहीं रहता। कुछेक अपवादों को छोड़कर लगभग यह स्थिति सभी विभागों में देखी जा सकती है।

पूर्व सीआरबी वी. के. यादव अपने पूरे कार्यकाल में जोड़-तोड़ करते रहे और गालियां खाते रहे। अब भी खा रहे हैं और जहां रहेंगे, वहां भी खाते रहेंगे। तथापि उन्होंने ग्रुप ‘बी’ सेलेक्शन को बोर्ड स्तर पर केंद्रीयकृत करने का एकमात्र अच्छा काम किया था। यह मानना पड़ेगा। मगर उनके इस एकमात्र अच्छे काम को भी पूर्व डीजी/एचआर उर्फ “निकम्मानंद” और वर्तमान चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड उर्फ “अकर्मण्यानंद” ने पुनः जोनों को सौंपकर उनके किए-कराए पर पानी फेर दिया।

यही नहीं, “अकर्मण्यानंद” यहीं नहीं रुके हैं। उन्होंने तो हर कैडर की ग्रुप ‘ए’ की 25% वैकेंसी ग्रुप ‘बी’ को ट्रांसफर करने का भी फरमान जारी कर दिया है। तात्पर्य यह है कि विभागीय चयनों में रेल से भ्रष्टाचार कभी खत्म नहीं होने वाला है और यह सारी साजिश कुछ भ्रष्ट विभाग प्रमुखों और कार्मिक अधिकारियों की मिलीभगत का परिणाम है। यदि ऐसा नहीं है तो सर्वप्रथम सभी जोनल रेलों के सभी विभाग प्रमुख इस चयन प्रक्रिया से स्वयं को लिखित में अलग करें और ऐसे सभी सेलेक्शंस की केंद्रीयकृत व्यवस्था को अविलंब बहाल करने की मांग करें!

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