रेलवे ने लगाया ठेकेदारों के दल-बदल पर प्रतिबंध

यह सभी के हित में, खासतौर पर रेल व्यवस्था के हित में रेलवे बोर्ड द्वारा उठाया गया एक बहुत आवश्यक और सराहनीय कदम है!

#Railway ने ठेकेदारों के पार्टनरशिप बदलने (दल-बदल) पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके लिए रेलवे बोर्ड द्वारा वर्ष 2020 की इंडियन रेलवे स्टैंडर्ड जनरल कंडीशन ऑफ कांट्रैक्ट (#GCC_July_2020) की पुरानी गाइडलाइन में संशोधन किया गया है।

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जीसीसी की इस नई गाइडलाइंस के पेज-14 पर यह हेराफेरी करने वाली फर्मों पर यह प्रतिबंध लगाया गया है। इसके अनुसार अब तक जो ठेकेदार जो कार्य के दौरान अपने पार्टनर बदल लेते थे, अथवा पार्टनरशिप डीड बदल करके क्रेडेंशियल्स की खरीद-फरोख्त करते थे, उन्हें टेंडर डालने से वंचित कर दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि “रेलसमाचार” द्वारा पिछले कई सालों से लगातार इस विषय पर कार्यवाही की मांग की जा रही थी। देर से ही सही, रेलवे बोर्ड द्वारा “रेलसमाचार” की खबरों पर संज्ञान लिया गया।

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यह सभी के हित में, खासतौर पर रेल व्यवस्था के हित में रेलवे बोर्ड द्वारा उठाया गया एक बहुत आवश्यक और सराहनीय कदम है।

बताते हैं कि यह महत्वपूर्ण काम पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल की पहल पर किया गया, जिन्होंने “रेलसमाचार” की खबरों का संज्ञान लेकर यह कहते हुए उपरोक्त संशोधन करने का आदेश दिया था कि “रेल निर्माण कार्यों में लगी निजी फर्मों को कागजों/दस्तावेजों की खरीद-फरोख्त की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह धोखाधड़ी है।”

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ज्ञातव्य है कि उत्तर रेलवे सहित लगभग सभी जोनल रेलों के निर्माण संगठनों के साथ रेल निर्माण कार्यों में लगे अधिकांश ठेकेदार कार्य के दौरान अपने पार्टनर बदलने और रेलवे को जमकर चूना लगाने में लगे थे।

इसमें सबसे ज्यादा घालमेल, सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार और सबसे ज्यादा मनमानी निश्चित रूप से उत्तर रेलवे में पूर्व मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण (सीएओ/कंस्ट्रक्शन) बी. डी. गर्ग के कार्यकाल में हुआ। वास्तव गर्ग के कार्यकाल में हुए सभी टेंडर्स और निर्माण कार्यों की गहन जांच होनी चाहिए।

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बताते हैं कि ठेकेदारों अथवा कंस्ट्रक्शन फर्मों के साथ बी. डी. जैसे महाभ्रष्ट रेल अधिकारी न केवल अपनी अवैध कमाई का निवेश करते रहे हैं, बल्कि अपनी निकम्मी औलादों को भी उनके साथ बतौर स्लीपिंग या ओपन पार्टनर जोड़कर उनके क्रेडेंशियल भी बनाते रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह काम आज भी कुछ भ्रष्ट रेल अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है।

बताते हैं कि जीसीसी की इस नई गाइडलाइंस की चपेट में हरियाणा की बहुत सी कांट्रैक्ट फर्में आ चुकी हैं। इसके अलावा पूरी भारतीय रेल में कार्यरत वह तमाम अन्य कांट्रैक्ट फर्में भी इसके घेरे में आई हैं, जो केवल अपने क्रेडेंशियल बेचकर बिना कुछ किए – बिना किसी निवेश और बिना किसी जिम्मेदारी के – ही मोटा लाभ अर्जित कर रही थीं।

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