अवमानना मामले में असमंजस की स्थिति में रेलवे बोर्ड
अदालत ने मुकर्रर की 4 जनवरी वरीयता पुनर्निधारण की तारीख
अदालत में ‘पर्सनल अपीयरेंस’ से बचने की जुगत लगा रहा रे.बो.
रेल प्रशासन की मनमानी को अदालत आखिर कब तक बर्दास्त करेगी?
सुरेश त्रिपाठी
इसके अलावा रेलवे बोर्ड के 6 और 7 दिसंबर 2017 वाले आदेशों पर कैट की 6 बेंचों ने जो स्थगनादेश दिए थे, वह भी धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. हाल ही में चेन्नई कैट ने अपना स्थगनादेश खत्म कर दिया है. जबलपुर और मुंबई कैट में भी अगले कुछ दिनों में सुनवाई होने वाली है. अर्थात सर्वोच्च न्यायालय से कोई राहत न मिलने के बाद भारतीय रेल के प्रमोटी अधिकारियों के बीच पर्याप्त हताशा का माहौल व्याप्त है. फिलहाल इस पूरे मामले में पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर सबसे ज्यादा सक्रिय बताया जा है. परंतु जबलपुर कैट से भी यदि स्थगनादेश खत्म हो जाता है, तो प्रमोटी खेमे का बचा-खुचा मनोबल भी टूट जाएगा, क्योंकि दिल्ली में तो सर्वोच्च न्यायालय ही उन पर भारी पड़ रहा है, जबकि उधर पटना/कैट तो रेलवे को सांस भी नहीं लेने दे रहा है.
2 जनवरी को अवमानना याचिका पर सुनवाई के समय पटना/कैट ने रेलवे बोर्ड से कंप्लायंस रिपोर्ट मांगी है. परंतु रेलवे के वकीलों ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए यहां एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय में मामले के लंबित होने की दुहाई दी है. इस पर आर. के. कुशवाहा की तरफ सेविद्वान वकील एम. पी. दीक्षित ने दलील दी कि इस अदालत के आदेश के खिलाफ रेलवे न तो उच्च न्यायालय गया है, और न ही रेलवे ने सर्वोच्च न्यायालय में कोई वाद दायर किया है.
अब इस मामले में यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि रेलवे बोर्ड के ‘प्रमोटी प्रेम’ में नव-नियुक्त सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड और चेयरमैन, रेलवे बोर्ड अदालत में अपने पर्सनल अपीयरेंस से बचने के लिए क्या जुगत भिड़ाते हैं? वैसे भी ‘प्रमोटी प्रेम’ में कैडर रिस्ट्रक्चरिंग का मामला काफी समय से अटका हुआ है. अन्य केंद्रीय मंत्रालयों में वैधानिक नियम की वजह से अधिकतम दो वर्ष की एंटी-डेटिंग का प्रावधान है, जबकि रेलवे बोर्ड विभागीय प्रमोटी अधिकारियों को धड़ल्ले से बिना किसी स्थायी नियम के पांच वर्षों की एंटी-डेटिंग देता आ रहा है. ये सभी प्रावधान शीर्ष नेतृत्व को भारी असमंजस में डाले हुए हैं. इसलिए अगली 5 जनवरी को इस मामले का ऊंट किस करवट बैठता है, इसका इंतजार सभी को है.