पिछले बजट लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाया रेल मंत्रालय
राजीनीति हस्तक्षेप से मुक्त हुए बिना भारतीय रेल का उद्धार संभव नहीं
8 महीनों में 3500 किमी के बजाय सिर्फ 970 किमी हुआ रेल लाइनों का निर्माण
देश के किस कोने में हो रहा है दोगुनी रफ्तार से ट्रैक का दोहरीकरण/विद्युतीकरण?
इसी प्रकार इस बार भी 1 फरवरी को केंद्रीय सामान्य बजट 2018-19 में रेलवे के लिए कई घोषणाएं की गई हैं, लेकिन वर्ष 2017-18 में की गई घोषणाएं अब तक पूरी नहीं हो पाई हैं. पिछले साल के बजट में घोषणा की गई थी कि चालू वर्ष 2017-18 में 3500 किमी रेलवे लाइनें कमीशन की जाएंगी, इतना ही ट्रैक रिन्यूअल किया जाएगा, लेकिन नवंबर 2017 तक इसमें से सिर्फ 970 किमी लाइन ही कमीशन हो पाई है. इसी तरह रेलवे स्टेशन रिडेवलमेंट के मामले में भी रेलवे का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है.
गुरुवार, 1 फरवरी को संसद में बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जब बजट डाक्यूमेंट्स जारी किया, तो उसके साथ ही वर्ष 2017-18 की बजट घोषणाओं पर अमल किए जाने की रिपोर्ट भी दी गई है. इसके अनुसार नवंबर 2017 तक रेलवे ने सिर्फ 973.57 किमी रेलवे लाइन रेलयात्रियों के लिए शुरू की हैं. इसके अलावा उम्मीद जताई गई है कि वर्ष 2017-18 यानी 31 मार्च 2018 तक 3500 किमी ट्रैक का निर्माण करके टारगेट को पूरा कर लिया जाएगा, जो कि रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री की कार्य-प्रणाली को देखते हुए संभव नहीं लग रहा है.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2018-19 के लिए इस बजट में नई घोषणाएं की हैं. उनकी इन घोषणाओं के अनुसार वर्ष 2018-19 में 900 किमी नई रेल लाइनें बिछाई जाएंगी, जिसके लिए 28,940 करोड़ आवंटित किए गए हैं.. इसी तरह 1000 किमी रेल लाइनों का गेज कन्वर्जन किया जाएगा, जिसके लिए 4016 करोड़ आवंटित किए गए हैं. इसके अलावा सरकार ने बड़ी संख्या में रेल लाइनों के दोहरीकरण का लक्ष्य रखा है. वर्ष 2018-19 में 2100 किमी लाइनों के दोहरीकरण का लक्ष्य रखा गया है, जिस पर कुल 17,359 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है.
लक्ष्य प्राप्ति और यात्री संतुष्टि के मामले में रेलवे का रिकॉर्ड आज भी बहुत खराब है. यात्री कोचों में बायो टॉयलेट लगाने का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है. यहां तक कि अब तक इसकी कोई सर्वमान्य डिजाइन तक सुनिश्चित नहीं हो पाई है. साफ-सफाई के मामले में कोई भी यात्री ट्रेन काक्रोचों और चूहों से मुक्त नहीं है. भ्रष्टाचार चरम पर है, इसमें कोई लगाम नहीं लग पाई है. टेंडर आवंटन की रफ्तार आज भी पुराने ढ़र्रे पर चल रही है. अधिकारियों-कर्मचारियों के आवधिक तबादलों में राजनीति हावी है. जब तक रेलवे को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त नहीं किया जाएगा और आतंरिक एवं प्रशासनिक रिफार्म नहीं होता है, तब तक भारतीय रेल का उद्धार होना संभव नहीं लग रहा है.