रेल प्रशासन की खुदगर्ज नीति से उद्वेलित टिकट चेकिंग स्टाफ
अनुशासनिक कार्यवाही और इंटर डिवीजन ट्रांसफर करने का नादिरशाही आदेश
अवैध टारगेट पूरा न करने पर सीसीएम/प.रे. द्वारा टीए बंद करने का फरमान
प्राप्त जानकारी के अनुसार सीनियर डीसीएम, मुंबई सेंट्रल मंडल, पश्चिम रेलवे ने तो यहां तक कह दिया कि सभी पुरुष टीटीई भ्रष्ट हैं, इसलिए अब शताब्दी एक्स में महिला टीटीई को भेजा जाएगा. इस पर मंडल का समस्त टिकट चेकिंग स्टाफ भयानक गुस्से में है और सोशल मीडिया पर उसके द्वारा सीनियर डीसीएम के खिलाफ भारी आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है. स्टाफ का कहना है कि स्टाफ की परेशानियों का समाधान करने के बजाय अपरिपक्व सीनियर डीसीएम का यह व्यवहार कतई उचित नहीं है.
उद्वेलित टिकट चेकिंग स्टाफ का कहना है कि अनुभवहीन और अपरिपक्व सीनियर डीसीएम, मुंबई सेंट्रल का यह कहना कतई गलत है कि सभी मेल टीटीई भ्रष्ट हैं. उन्होंने सभी टिकट चेकिंग स्टाफ का आहवान करते हुए कहा है कि यदि सीनियर डीसीएम के इस कथन का जमकर विरोध नहीं किया गया, तो उनके ऊपर इस बात का स्थाई टैग लग जाएगा कि वह वास्तव में भ्रष्ट हैं. उनका यह भी कहना है कि बात सिर्फ अर्निंग की ही नहीं है, सीनियर डीसीएम का बात करने का तरीका गलत है. वह सभी स्टाफ को एक लाइन से भ्रष्ट कैसे ठहरा सकती हैं?
उधर प्रिंसिपल सीसीएम/प.रे. ने मुंबई सेंट्रल, वड़ोदरा, रतलाम, अहमदाबाद, राजकोट और भावनगर मंडलों के सीनियर डीसीएम को 21 फरवरी को एक पर जारी करके कहा है कि महीने में सबसे कम अर्निंग देने वाले स्टाफ का टीए तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया जाए. इसके अलावा उक्त पत्र में यह भी कहा गया है कि यदि स्टाफ के कार्य में कोई प्रगति नहीं होती है, तो उसके खिलाफ अनुशासन एवं अपील नियम के तहत कड़ी अनुशासनिक कार्रवाई की जाए. इसके साथ ही प्रिंसिपल सीसीएम ने उक्त पत्र में यह नादिरशाही आदेश भी दिया है कि यदि किसी टिकट चेकिंग स्टाफ की परफॉरमेंस में लगातार कोई सुधार परिलक्षित नहीं हो रहा है, तो उसका नाम इंटर डिवीजन ट्रांसफर के लिए भेजा जाए.
ऐसे ही आदेश मध्य रेलवे में भी दिए गए हैं. इसके खिलाफ शुक्रवार, 23 फरवरी को सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ के नेतृत्व में मुंबई मंडल के टिकट चेकिंग स्टाफ ने मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय के सामने बड़ी संख्या में एकत्रित होकर सीनियर डीसीएम, डीआरएम और सीसीएम के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन करके मुर्दाबाद के नारे लगाए. पश्चिम रेलवे की ही तरह मुंबई मंडल, मध्य रेलवे के सीनियर डीसीएम के अपरिपक्व व्यवहार से मंडल का समस्त टिकट चेकिंग स्टाफ क्षुब्ध है, क्योंकि वह भी समस्त टिकट चेकिंग स्टाफ को एक सिरे से भ्रष्ट मानते हैं.
टिकट चेकिंग स्टाफ का कहना है कि “हम जानते हैं कि जुर्माना क्यों और कैसे लगाया जाता है, लेकिन जनता नहीं जानती. एक ट्रेन में 4-6-8 एसी के डिब्बे, 8-12-14 स्लीपर के डिब्बे, पेंट्रीकार, 2 गार्ड डिब्बे, 2 एसएलआर डिब्बे और सबसे महत्वपूर्ण 2 सामान्य डिब्बे, एक आगे और एक पीछे. अब प्रतीक्षा सूची में, जो कम से कम 400-800 के बीच होती है, उसके बाद 200-400 सामान्य टिकट और इनके बैठने की व्यवस्था क्या है? 2 सामान्य डिब्बों की क्षमता 180. अब लोग जाएं तो जाएं कहां?”
उनका कहना है कि “स्लीपर कोच में चढ़ने के लिए यात्री मजबूर हैं. वेटिंग टिकट के साथ रास्ते में जो इंतजार कर रहे हैं, वह भी और जो जनरल टिकट वाले हैं, वह भी. अब रेल प्रशासन कहता है सामान्य टिकटधारी को चार्ज करो, फाइन के साथ और उतार दो, प्रतीक्षा सूची यात्री को ट्रेन के आरक्षित डिब्बों में बैठने की अनुमति नहीं है, टीटीई को अपने दम पर इन सबको रोकना है, जीआरपी/आरपीएफ या उसके बाद और बड़े लोगों का नंबर आता है, सभी कोशिश करते हैं, और फिर अपने-अपने तरीके से मांडवली कर लेते हैं. बाद में इसकी वे कुछ भी वजह बताते हैं.”
“टीटीई ही सबका प्रबंधन करे? नकद रसीद भी बनाए, ट्रेन की यात्री सुविधाओं का ख्याल भी रखे, अफसर, स्टाफ, गरीब, मुसीबत के मारे, सबको संभाले, फिर भी वह भ्रष्ट है, वह बेकार, खुदगर्ज और अमानवीय है आदि-आदि, यह बोर्ड में बैठे और जोन एवं डिवीजन के मूढ़ अफसर हकीकत क्या जाने? या फिर जानबूझकर अनजान बने रहते हैं. फील्ड में क्या होता है, यह टीटीई से पूछिये, तब सच का पता चलेगा. ट्रेन में बहुत सी समस्यायें होती हैं और उनका निराकरण भी टीटीई ही करता है. यात्री के लिए टीटीई का महत्व बहुत ज्यादा है. जरूरत के समय सबका सच्चा साथी टीटीई ही होता है. उसकी कद्र करना रेल प्रशासन को कब समझ में आएगा?” यह कहना है तमाम उद्वेलित टिकट चेकिंग स्टाफ का.
फोटो परिचय : दि. 22.02.2018 को गाड़ी सं. 12156 में हजरत निजामुद्दीन से हबीबगंज के दरम्यान कार्यरत टीटीई संतू पालित ने गाड़ी के कोच सं. एस-10/एस-11 में मुरैना और ग्वालियर के बीच चोरी करते हुए एक व्यक्ति को पकड़कर आरपीएफ के हवाले किया.
‘रेलवे समाचार’ का मानना है कि जो अधिकारी (प्रिंसिपल सीसीएम/प.रे.) खुद अपनी पोस्टिंग के लिए जुगाड़ लगाते हों, और (प्रिंसिपल सीसीएम/म.रे.) लगभग 28 सालों से मुंबई में ही खूंटा गाड़कर जमे हुए हों, उन्हें किसी मातहत स्टाफ का इंटर डिवीजन ट्रांसफर करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. इसके अलावा जो खुद दूध के धुले हुए नहीं हैं, वह मातहत कर्मचारियों को भ्रष्ट कैसे कह सकते हैं? अपनी पोस्टिंग की जुगाड़ लगाना और लंबे समय से एक ही शहर में जमे रहना अपने आपमें बहुत बड़ा भ्रष्टाचार है. रेल प्रशासन को चाहिए कि वह सबसे पहले वर्ष 2013 की ट्रांसफर नीति पर अमल करते हुए 15 साल से अधिक एक शहर में जमे हुए सभी अधिकारियों को अविलंब दरबदर करे, तभी ऐसे अत्यंत मगरूर हो चुके अधिकारियों के संस्थागत भ्रष्टाचार और उनके द्वारा स्टाफ के उत्पीड़न पर लगाम लगाई जा सकेगी.