रेलवे स्वास्थ्य सेवा पर लानतें भेज रहे हैं रेलकर्मी-अधिकारी

उत्तर मध्य रेलवे की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए महाप्रबंधक और मंडल रेल प्रबंधक को कोई सुधि नहीं है। केवल इस बात की सुधि ली जा रही है कि कर्मचारी जल्द से जल्द वैक्सीनेशन करा लें, जबकि रेल अस्पतालों में प्रायः वह भी उपलब्ध नहीं है। लानत है ऐसी व्यवस्था पर! यह कहना है रेलकर्मियों का।

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“आपदा प्रबंधन में सबसे काबिल रेलवे फिसड्डी कैसे रह गया!” शीर्षक से प्रकाशित खबर पर पूरी भारतीय रेल में रेलकर्मियों और अधिकारियों के बीच बहुत जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है। उत्तर मध्य रेलवे के एक अधिकारी ने लिखा, “बहुत ही सही ढ़ंग से आपने भारतीय रेलवे के अस्पतालों की अकर्मण्यता को परिभाषित किया है। आपदा के समय रेलवे अस्पताल के डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ ने रेलवे कर्मचारियों और उनके परिवारों को असहाय हालत में छोड़ दिया है।”

उन्होंने आगे लिखा है कि बाकी जगहों का तो मुझे नहीं मालूम लेकिन पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर, लखनऊ के रेल अस्पताल तथा उत्तर मध्य रेलवे के लोको हॉस्पिटल कानपुर की स्थिति अत्यंत दयनीय है। कानपुर के लोको हॉस्पिटल की व्यथा ये है कि एक तो यहां अमूमन डॉक्टर अपने चैम्बर में बैठते ही नहीं, और अगर बैठ भी गए, तो मरीजों को उनके चैम्बर के बाहर दरवाजे पर ही रुकने को कहा जाता है। अब 10 फीट की दूरी से मरीज का चेकअप कैसे करेंगे?

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रेलवे ने डॉक्टरों को अपने कर्मचारियों और उनके परिजनों के उचित उपचार के लिए नियुक्त किया हुआ है, लेकिन ऐसा लगता है कि ये डॉक्टर नहीं बल्कि मेहमान की भूमिका अदा कर रहे हैं। अर्थात मुफ्त की तनख्वाह ले रहे हैं, वह भी सामान्य अधिकारियों की अपेक्षा लगभग दोगुनी। जब ऐसी आपदा में रेलवे हॉस्पिटल कुछ मदद नहीं कर सकता, तो ऐसे ठूंठ पेड़ को रखने और पानी देने से क्या फायदा?

सारे सरकारी सेक्टरों में अपने कर्मचारियों के उचित उपचार हेतु 24×7 मॉनिटरिंग सिस्टम बना हुआ है, जहां से कर्मचारियों और उनके परिजनों को पूरी मदद की जा रही है, लेकिन रेलवे का इतना बड़ा संगठन आज अकर्मण्य होकर यूनियन नेताओं, मंत्री और रेल मंत्रालय के रीढ़विहीन प्रबंधन के कारण हांफ रहा है।

सारी व्यवस्था पटरी से उतर गई है। आज जब रेलकर्मियों को मेडिकल सहायता की सबसे ज्यादा जरूरत है तब रेल में वही विभाग सबसे ज्यादा निष्क्रिय हो गया है।

अब यहीं देख लें, उत्तर मध्य रेलवे की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए महाप्रबंधक और मंडल रेल प्रबंधक को कोई सुधि नहीं है। केवल इस बात की सुधि ली जा रही है कि कर्मचारी जल्द से जल्द वैक्सीनेशन करा लें, जबकि रेल अस्पतालों में प्रायः वह भी उपलब्ध नहीं है। लानत है ऐसी व्यवस्था पर !

यह है रेल स्वास्थ्य व्यवस्था की जमीनी हकीकत। इसके बावजूद सच यह भी है कि अभी भी रेल प्रशासन को कोई होश नहीं आया है।

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