कल्याण स्टेशन के कांट्रैक्ट सफाई कामगारों को मिला न्याय

Central Railway Head Quarters, Chhatrapati Shivaji Terminus, Mumbai.

आरएलसी ने कांट्रैक्ट फर्म को दंड स्वरूप दिया दस गुना राशि जमा करने का आदेश

राशि जमा न करने की स्थिति में कांट्रैक्टर से रिकवरी करके रेल प्रशासन जमा कराएगा आदेशित राशि

मध्य रेलवे, मुंबई मंडल के अंतर्गत कल्याण स्टेशन के कांट्रैक्ट सफाई कर्मचारियों को वर्षों से कांट्रैक्टर फर्म द्वारा ‘बी’ जोन की दर (रेट) से भुगतान दिया जा रहा है। इस संबंध में पिछले करीब चार वर्षों से सेंट्रल रेलवे कॉन्ट्रैक्ट लेबर संघ द्वारा रेल प्रशासन और डिप्टी चीफ लेबर कमिश्नर सेंट्रल से लगातार पत्राचार करके यह मांग की जाती रही कि कल्याण स्टेशन जोन ‘ए’ में आता है, इसलिए यहां के कांट्रैक्ट कर्मचारियों को ‘ए’ जोन की दर से भुगतान मिलना चाहिए।

पिछले वर्ष इस संबंध में सेंट्रल रेलवे कॉन्ट्रैक्ट लेबर संघ ने क्षेत्रीय श्रमायुक्त सेंट्रल (आरएलसी/सेंट्रल), जिन्हें न्यूनतम वेतन अधिनियम पर निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है, के समक्ष क्लेम फाइल किया था। संघ ने दावा किया कि “कल्पतरु हॉस्पिटैलिटी फैसिलिटी मैनेजमेंट” के पास अक्टूबर 2018 से फरवरी 2019 तक कल्याण स्टेशन की साफ-सफाई का ठेका था। कांट्रेक्टर ने उक्त अवधि का वेतन कामगारों को ‘बी’ जोन से दिया था।

संघ ने कांट्रैक्टर/फर्म के खिलाफ जोन ‘ए’ और जोन ‘बी’ के वेतन के अंतर के भुगतान का दावा आरएलसी के सामने, कुल 25 कर्मचारियों की तरफ से, कुल ₹2,16,956 का फाइल किया।

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इस मामले में कुल तीन बार आरएलसी के चैंबर में सुनवाई हुई। सेंट्रल रेलवे कॉन्ट्रैक्ट लेबर संघ ने 25 कर्मचारियों की तरफ से उनके वेतन का अंतर, जो कि कुल ₹2,16,956 होता है, का दस गुना कुल ₹21,69,560 का क्लेम (दावा) फाइल किया था।

संघ की मांग को स्वीकार करते हुए रीजनल लेबर कमिश्नर सेंट्रल ने 18.02.2021 को दिए गए फैसले (सं. एमसीए-18/2019) में ठेकेदार फर्म “कल्पतरु हॉस्पिटैलिटी फैसिलिटी मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड” (केएचएफएम) को आदेशित किया है कि वह इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के बाद पंद्रह दिन के भीतर कुल ₹23,86,516 सहायक श्रमायुक्त केंद्रीय (एएलसी) के नाम डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से उनके कार्यालय में जमा करे।

आरएलसी ने अपने आदेश में रेल प्रशासन को भी आदेशित किया है कि अगर कांट्रैक्टर द्वारा उक्त राशि नहीं जमा की जाती है, तो वह कांट्रैक्टर के सिक्योरिटी डिपॉजिट/बैंक गारंटी (एसडी/बीजी) से रिकवरी करके यह राशि सहायक श्रम आयुक्त केंद्रीय के कार्यालय में तीस दिन (एक माह) के अंदर जमा कराए।

तत्पश्चात सहायक श्रम आयुक्त केंद्रीय द्वारा सभी 25 सफाई कामगारों को उनकी उचित वेतन राशि का भूगतान किया जाएगा। संघ और सफाई कामगारों की यह बहुत बड़ी जीत है।

उल्लेखनीय है कि उपरोक्त फर्म निर्धारित वेतन भुगतान सहित तय संख्या में लेबर न लगाने के लिए बदनाम हैं। तथापि रेलवे में जोन/मंडल तथा उत्पादन इकाईयों में काम कर रही ऐसी लगभग सभी लेबर सप्लाई करने वाली निजी कंपनियां/फर्में न तो नियमानुसार और तय समय पर वेतन/भविष्य निधि राशि का भुगतान कर रही हैं, और न ही टेंडर/कांट्रैक्ट में निर्धारित/निर्देशित संख्या में कामगारों को काम पर नियुक्त कर रही हैं।

इस स्थिति से नीचे से ऊपर तक यानि संतरी से लेकर मंतरी तक, सभी बहुत अच्छी तरह वाकिफ हैं, परंतु सबका अपना-अपना हिसाब है। इसका नतीजा यह है कि जिनके स्तर पर न्याय होना चाहिए, वह अन्याय और भ्रष्टाचार में भागीदार बने हुए हैं।

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