अंबाला मंडल: केसरी-बरारा घटना की जमीनी सच्चाई
Goods Train stops ten meter away from open and buckled track between Kesari-Barara section of Ambala Division, Northern Railway on 11th September, 2020
खतौली हादसे की ही तरह इस मामले पर भी संज्ञान लेते हुए डीआरएम और जीएम को तत्काल जबरन छुट्टी पर भेजा जाना चाहिए था और ठेकेदार को कम से कम पांच साल के लिए ब्लैकलिस्ट किया जाना चाहिए था, क्योंकि इस प्रकार की सारी गलतियां संबंधित अधिकारियों के दबाव में ही की जाती हैं
सुरेश त्रिपाठी
आसन्न खतरे को भांपकर गाड़ी के ड्राइवर ने ब्रेक लगाया और गाड़ी कार्यस्थल से लगभग 10 मीटर पहले रुक गई। लोको पायलट ने साइट का वीडियो बनाया और उसे अधिकारियों को भेज दिया।
लाइन पूरी तरह खुली हुई थी तथा रेल अपनी जगह से बाहर की ओर भागी हुई थी। खबर मिलते ही सेक्शन के जेई एवं एसएसई/इंचार्ज को अधिकारियों द्वारा तत्काल सस्पेंड कर दिया गया।
किंतु जेई/पी-वे/बरारा ने टीएफआर का कार्य स्वयं ही करवाना शुरू कर दिया और जेई/पी-वे/बरारा ने उक्त कार्य के बारे में अपने सीनियर एसएसई/इंचार्ज अथवा एडीईएन/अंबाला को बताना जरूरी नहीं समझा। इस बात को खुद जेई/बरारा ने इंक्वारी में भी स्वीकार किया है।
इस बारे में गहराई से कार्यस्थल का निरीक्षण और समस्त घटना की सिलसिलेवार विवेचना करने पर पता चला है कि उक्त कार्य ठेके पर कराया जा रहा था। ट्रैक वर्क के लिए ठेके की सामान्य शर्तों में साफ-साफ लिखा है कि-
इन शर्तों से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि उपरोक्त घटना के समय रेलवे का कोई भी सुपरवाइजर – जेई/पी-वे अथवा एसएसई/पी-वे – उस वक्त साइट पर मौजूद नहीं था। तथापि कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का खुला उल्लंघन करते हुए बिना रेलवे सुपरवाइजर की उपस्थिति के ठेकेदार द्वारा लाइन खोल दी गई थी।
अत: इस केस में रेल प्रशासन द्वारा ठेकेदार के विरुद्ध इंडियन रेलवे एक्ट के तहत “सबोटेज” का मामला दर्ज कराया जाना चाहिए था, लेकिन सीनियर डीईएन-I/अंबाला द्वारा ठेकेदार पर मात्र दो लाख रुपये का जुर्माना लगाकर अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया गया। यह भी निश्चित है कि मामला शांत होने पर न सिर्फ निलंबित कर्मचारी पूर्ववत बहाल हो जाएंगे, बल्कि ठेकेदार पर लगाया गया जुर्माना भी चुपके से माफ कर दिया जाएगा।
इसी कारण से जेई और एसएसई/इंचार्ज को तत्काल सस्पेंड कर दिया गया, ताकि कहीं वे ठेकेदार के विरुद्ध केस दर्ज न करा दें। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि उक्त ठेकेदार, सीनियर डीईएन-I, सीनियर डीईएन/सी एवं अन्य उच्चाधिकारियों का काफी समय से खास चहेता बना हुआ है।
किंतु उक्त ठेकेदार को मंडल अधिकारियों द्वारा विगत कई वर्षों में ढ़ेरों ठेकों से कुछ इस तरह नवाजा गया है कि आज तक उसका कोई भी डिप्लोमा/डिग्री होल्डर इंजीनियर अथवा सुपरवाइजर कहीं भी किसी भी वर्क साइट पर नहीं देखा गया है। केवल कुछ एसएसई/इंचार्ज, जिनमें अंबाला का इंचार्ज भी शामिल है, के अतिरिक्त इस ठेकेदार पर कभी भी कोई भी जुर्माना अन्य किसी इंचार्ज द्वारा लगाने की जुर्रत नहीं की गई है।
निर्विवाद रूप से ऐसा उच्चाधिकारियों के दबाव के कारण ही होता रहा है। इसका एक दुष्प्रभाव यह भी है कि रेलवे का जो सुपरवाइजर – एसएसई या जेई – जिसे वर्क साइट पर रेलवे की तरफ से सेफ्टी, ट्रैक प्रोटेक्शन और क्वालिटी पर फोकस करना होता है, वह संबंधित अधिकारियों के दबाव के चलते इस रसूखदार ठेकेदार के मुंशी के तौर पर काम करने के लिए मजबूर होता है। ऐसे में उसे जो काम वास्तव में रेलवे सुपरवाइजर के तौर पर करने होते हैं, वह नहीं होते।
इसी प्रकार रेलवे की सारी मशीनरी, मैनपावर, लोहार आदि स्टाफ इस ठेकेदार को मंडल के अधिकारी दबाव डालकर दिलवाते हैं। बदले में यह ठेकेदार उनकी सारी मौज-मस्तियों और सुख-सुविधाओं का ख्याल रखता है तथा पर्याप्त कमीशन भी देता है। इसमें अधिकारियों के लिए की जाने वाली अनगिनत पार्टियां-रंगरेलियां आदि भी शामिल हैं।
इस प्रकरण को गहराई से देखने पर स्पष्ट जाहिर होता है कि सेक्शन के सीनियर डीईएन-I, जेई के ऊपर दबाव डालकर और बिना सेक्शन इंचार्ज की जानकारी के यह कार्य करवा रहे थे। यह भी पता चला है कि उक्त जेई भी उनका मुंहलगा रहा है, उसने सब कुछ जानते-बूझते हुए भी अपने सीनियर – एसएसई/इंचार्ज – को उक्त सेक्शन में ठेकेदार द्वारा ट्रैक खोले जाने की जानकारी नहीं दी थी। जबकि एसएसई/इंचार्ज ने एक दिन पहले ही उसे और सीनियर डीईएन-I को उक्त ठेकेदार से उक्त सेक्शन में काम नहीं कराने से मना कर दिया था।
जाहिर है कि ठेकेदारों से प्राप्त होने वाली सुविधाओं का यह लालच ही रेलवे को घुन की तरह खा रहा है और दिन-प्रतिदिन रेलवे को खोखला कर रहा है।
इस प्रकरण में ठेकेदार के विरुद्ध कोई भी एफआईआर दर्ज न होने देना तथा मात्र दो लाख रुपये का जुर्माना लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेना सीनियर डीईएन-I और अन्य उच्चाधिकारियों की उसके साथ मिलीभगत को स्वत: दर्शाता है।
जबकि खतौली हादसे की ही तरह इस मामले पर भी संज्ञान लेते हुए डीआरएम और जीएम को तत्काल जबरन छुट्टी पर भेजा जाना चाहिए था और ठेकेदार को कम से कम पांच साल के लिए ब्लैकलिस्ट किया जाना चाहिए था, क्योंकि इस प्रकार की सारी गलतियां संबंधित अधिकारियों के दबाव में ही की जाती हैं, वरना निचले स्तर के किसी कर्मचारी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती कि वह इस तरह से घोर असुरक्षित कार्य को अंजाम देने की हिमाकत कर सके! तथापि सिर्फ सीनियर डीईएन-I को ट्रांसफर करके और पुरस्कार स्वरूप बदले में ज्यादा मलाईदार पद पर वह भी दिल्ली में बैठाकर रेल प्रशासन ने अपने समस्त कर्तव्य से छुटकारा पा लिया!
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