क्रीमी लेयर और क्रीमी सांसद !
OBC Creamy Layer Limit increased in 2017 from Rs. 6 Lakh to Rs. 8 Lakh, now they are demanding to increase up to 15 lakh
जिक्र होता है जब कयामत का।
नेताओं की कर्मों की बात होती है।।
असमानता बढ़ाने वाली क्रीमी लेयर लिमिट को किसी भी हालत में आगे न बढ़ाया जाए
9 अगस्त अब दूर नहीं है, जब सत्ता के कांग्रेसी कुनबे में पले-बढ़े राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी सरकार को बचाने के लिए मंडल की घोषणा की थी। कुर्सी बचाने के लिए यह इतिहास के मीर जाफर मीर कासिम के कारनामों की तरह ही था। मुगलिया तख्त के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी देश पर काबिज हुई, तो मंडल के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियां। उदारवाद की नकाब में। जातिवाद का दंश झेल रहे देश के नौजवानों को समझाने और उनके घावों में मरहम लगाने की बजाय लोमड़ीनुमा राजनेताओं के वे कथन आप नहीं भूले होंगे कि “जितना ज्यादा सड़कों पर खून बहेगा, हमारी बात उतनी ही दूर तक जाएगी” यानि कि हमारा वोट बैंक उतना ही बढ़ेगा! खैर उसके बाद की राजनीति की धुरी इसी जातिवाद के आसपास घूम रही है। बीच-बीच में बहुत सावधानी से धर्म का तड़का लगाते हुए।
21 जुलाई 2020 की खबर है कि देश के लगभग 100 सांसदों ने ओबीसी के लिए निर्धारित 8 लाख की उच्च सीमा को बढ़ाकर 15 लाख करने की मांग की है। याद करें, यह पहली बार नहीं हो रहा है। साल में दो-चार बार ये माननीय क्रीमी सांसद ऐसी मांग उठाते रहे हैं। अभी साल भर पहले ही ऐसे ही दबाव में सरकार ने इसे छह लाख से बढ़ाकर आठ लाख किया था। लेकिन दबाव की राजनीति करने वालों को चैन कहां है! और सरकार भी देश के विभिन्न दबाव गुटों धार्मिक, भाषाई, व्यवसायी, अल्पसंख्यक इत्यादि गुटों के आगे आजादी के बाद से ही झुकती आई है और इसीलिए लोकतंत्र का यह बंटाधार हो रहा है।
कोरोना महामारी में जब पूरा देश कयामत की आशंका में डूबा है, मेरे देश के माननीय सांसदों, कर्णधारों को क्रीमी लेयर की चिंता सता रही है! क्या उन्हें पता नहीं कि इस देश के आम आदमी की औसत आय प्रतिवर्ष एक लाख से भी कम है। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली 30% आबादी की तो वार्षिक आय औसत 30 हजार भी नहीं है। इन आंकड़ों को देखते हुए देश में समानता की खातिर क्या इसे आठ लाख से घटाकर 4 लाख करने की जरूरत नहीं है? इसे और ऊपर बढ़ाने के बारे में तो कोई संवेदनशील नागरिक माननीय सांसद नौकरशाह या मंत्री तो सोच भी नहीं सकता।
क्या आप इतनी जल्दी भूल गए कि जब लाखों-करोड़ों लोग फटे पैर खून से लथपथ हजारों मील सड़कों पर चल रहे थे? आप इसे और 12 या 15 लाख करेंगे, तो क्या कभी उन तक आरक्षण या दूसरी सुविधाओं का लाभ पहुंचेगा? ईश्वर के लिए उन मजदूरों को हिंदू, मुसलमान, यादव, ब्राह्मण, बनिया, कोईरी, हरिजन, बिहारी, राजस्थानी, तेलंगानी में मत बांटिए। ये हर वर्ग के हैं। यदि ओबीसी के लिए यह बढ़ाया, तो अभी जो 10% आर्थिक आधार पर आरक्षण किया गया है, उनका दबाव गुट भी इसे और ऊंचा बढ़ाने के लिए कहेगा। नतीजा और बड़ा विध्वंस।
माननीय सांसद और उनके बुद्धिजीवी दिन-रात संविधान के प्रावधानों की जुगाली करते हैं। क्या उसी संविधान में समानता का लक्ष्य नहीं है? यदि पहले ब्राह्मणों या सवर्णों ने सत्ता लूटी है, उसका विकल्प दूसरे लुटेरे तैयार करना तो कतई नहीं हो सकता। विशेषकर कोरोना के बाद तो देश को एक अलग समानता के रास्ते पर ले जाने की जरूरत है।
सरकार भी सावधान रहे इन दबाव गुटों से! ऐसे दबाव गुट सरकार को बार-बार सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद तक हस्तक्षेप करने के लिए उकसाते रहते हैं। सरकार को देश हित में मजबूती से इन्हें रोकना होगा। अच्छा हो कि एक ऐसी उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाए, जो ऐसी विकृतियों को आंकड़ों के साथ विचार करे। संघ लोक सेवा आयोग और दूसरे विश्वविद्यालयों के आंकड़े बताते हैं कि क्रीमी लेयर ही अमीरी और अंग्रेजी के बूते ज्यादातर पदों, नौकरियों को हड़प रही है। स्वयं पिछड़ा वर्ग आयोग ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उनसे भी यह बात सिद्ध होती है। इसे केवल राजनेताओं के रहमोंकरम पर नहीं छोड़ा जाए।
20 वर्ष पहले पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य रहे और जाने-माने समाजशास्त्री धीरुभई सेठ के विचारों को यहां दोहराना जरूरी लगता है। “आयोग का मेरा अनुभव बताता है कि जाति प्रथा का प्रभाव खत्म करने के लिए जो ताकत और प्रक्रियाएं खड़ी हुई थीं वह अब खुद जाति प्रथा की अनुकृति बनती जा रही हैं। प्रगति के कई सोपान चढ़ चुकी पिछड़ी जातियों का एक बड़ा और मजबूत निहित स्वार्थ बन चुका है। वे अपने से नीची जातियों के साथ वही सलूक कर रहे हैं जो कभी द्विजों ने कथित तौर पर उनके साथ किया था।”
धीरुभाई सेठ लिखते हैं, “कुल मिलाकर स्थिति यह बन गई है कि आयोग के सदस्य उससे जुड़ी नौकरशाही और पूरा का पूरा राजनीतिक समूह ही जबरदस्त निहितस्वार्थ की नुमाइंदगी करता नजर आता है। सब की कोशिश यह रहती है कोई भी लाभ अत्यधिक पिछड़े और गरीबों तक न जाने पाए। वे आरक्षण के फायदे अपने हाथ से नहीं निकलने देना चाहते। यह रवैया इंदिरा साहनी वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के विरोध में जाता है। लोकतांत्रिक संस्थाओं की एक समस्या होती है कि एक सीमा के बाद नौकरशाही और राजनीतिक हित मिलकर उन्हें आपस में होड़ के औजारों में बदल देते हैं।यह हमारे लोकतांत्रिक निजाम के पिछड़ेपन का चिन्ह है।” (पुस्तक : सत्ता और समाज /धीरुभाई सेठ /संपादन अभय कुमार दुबे। पृष्ठ 102 से 105)
कौन कवि नहीं बन जाएगा आजादी के बाद के उन पन्नों से गुजरते हुए! बार-बार उन रक्त रंजित सड़कों, दिल्ली विश्वविद्यालय के मोरीस नगर चौक से गुजरते हुए…. और फिर आया मंडल/ पीछे पीछे कमंडल/ सरकारें बन गईं जाति, क्रॉनिक कैपिटलिज्म का बंडल/ जारी है लगातार/ असमानता का दंगल/…..
अतः सरकार से अनुरोध है कि असमानता बढ़ाने वाले इस क्रीमी लेयर को किसी भी हालत में अगले 10 वर्ष तक नहीं बढ़ाया जाए।
#प्रेमपाल_शर्मा, (पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय), 96, कला विहार अपार्टमेंट, मयूर विहार, फेज-1, दिल्ली-91
संपर्क: 99713 99046.
ईमेल: www.prempalsharma.com
राजनीतिक स्वार्थ के चलते #OBC सांसद क्रीमी लेयर 8 से 15 लाख करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं
यह बहुत गलत होगा
इससे वास्तविक जरूरतमंदों तक आरक्षण का लाभ कभी नहीं पहुंचेगा
इसके खिलाफ हर फोरम से सरकार को तुरंत लिखा जाना चाहिए
बुद्धिजीवियों अपनी भूमिका निभाएं@PMOIndia@HMOIndia— RAILWHISPERS (@Railwhispers) July 22, 2020