एसआरएमयू के महामंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच
रेलवे बोर्ड ने सीबीआई को फॉरवर्ड की वाया पीएमओ से प्राप्त हुई शिकायत
रसूखदार नेताओं के साथ मिलकर शिकायत को मैनेज करने की कवायद शुरू
सीबीआई की जांच सभी जोनल क्रेडिट सोसाइटीज तक विस्तारित करने की मांग
सुरेश त्रिपाठी
पत्र में रेलवे बोर्ड की तरफ से कहा गया है कि उपरोक्त विषय की शिकायत अत्यंत गंभीर किस्म की है. अतः शिकायत को पूरी गंभीरता से लेते हुए सीबीआई द्वारा अपने स्तर पर गहराई से इसकी जांच के लिए शीघ्रता से आवश्यक कदम उठाए जाएं. इसके साथ ही रेलवे बोर्ड ने उक्त दोनों यूनियन पदाधिकारियों के विरुद्ध कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में कृषि एवं कोऑपरेशन विभाग के जॉइंट सेक्रेटरी एवं सीवीओ पी. के. बोरठाकुर को उपरोक्त शिकायत के दूसरे भाग को फॉरवर्ड करते हुए उनसे सदर्न रेलवे एम्प्लाइज कोआपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी/बैंक में फंड की बड़े पैमाने पर अफरातफरी और नियमों के उल्लंघन से संबंधित जांच का अनुरोध किया है.
शिकायत में ‘माफिया यूनियन’ के महामंत्री एन. कन्हैया, जो कि कभी रेलवे में एक पार्सल पोर्टर हुआ करता था, की कुल संपत्ति 1500 करोड़ रुपये तथा सहायक महामंत्री एस. वीराशेखरन, सीटीटीआई, त्रिची मंडल, की कुल संपत्ति 100 करोड़ रुपये से ज्यादा बताई गई है. शिकायत में कहा गया है कि वीराशेखरन एसआरएमयू गोल्डन रॉक शॉप्स का इंचार्ज रहा है और ईएफ बुक्स मामले में उसकी संलिप्तता पहले से ही रही है, जिसमें करीब 80 लाख रुपये के घोटाले का मामला प्रमाणित है. हालांकि शिकायत में इन दोनों महाभ्रष्ट यूनियन पदाधिकारियों की कुल संपत्ति भले ही क्रमशः 1500 करोड़ और 100 करोड़ बताई गई है, मगर कई जानकार इससे असहमत होते हुए कहते हैं कि यह क्रमशः 5000 करोड़ और 1000 करोड़ रुपये के आसपास हो सकती है. सच्चाई क्या है, यह तो अब सीबीआई और केंद्रीय रजिस्ट्रार ऑफ कोआपरेटिव सोसाइटीज की जांच के बाद ही सामने आ पाएगा.
जानकारों का कहना है कि अब ऐसे लोगों को इस मामले में सीबीआई जांच के दौरान होने वाले अन्य कई बहुत बड़े-बड़े आश्चर्यों के लिए भी तैयार रहना चाहिए, क्योंकि इस पार्सल पोर्टर का इंवोल्वमेंट माइनिंग घोटाले सहित कई अन्य मामलों में कई स्थानीय नेताओं एवं नौकरशाहों के करोड़ों खपाने के लिए उनके फ्रंटमैन के रूप में भी बताया गया है. इसके अलावा नोटबंदी के दौरान उपरोक्त सोसाइटी से उनके अरबों रुपये के पुराने नोट भी बदले जाने की खबर है. जानकारों के अनुसार करीब 20 साल पहले भी इस पार्सल पोर्टर के घर एवं दफ्तर में सीबीआई ने छापा डाला था, जिसमें बताते हैं कि बोरों में भरे हुए अरबों रुपये के नोट बरामद हुए थे. तब तीन दिन की मोहलत ‘मैनेज’ करके और रेलकर्मियों के नाम रातोंरात फर्जी रसीदें काटकर उन नोटों को रेलकर्मियों से प्राप्त चंदा बताकर पूरे मामले को रफादफा कर दिया गया था. परंतु जानकारों का कहना है कि अब केंद्रीय स्तर पर सीबीआई में मामला दर्ज हो जाने से ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया है, जहां इस पूरे मामले को ‘मैनेज’ कर पाना पार्सल पोर्टर के लिए शायद अब संभव नहीं हो पाएगा.
फोटो परिचय : केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को तिरुपति के लड्डू भेंट करने के बाद उनके साथ बैठा हुआ दक्षिण रेलवे मजदूर यूनियन का महामंत्री एन. कन्हैया उर्फ ‘पार्सल पोर्टर’.
उल्लेखनीय है कि अब तक इस मामले में जितनी भी शिकायतें हुई थीं, वह सब स्थानीय प्रकृति की होने के कारण स्थानीय स्तर पर ही मैनेज कर ली जाती थीं. जानकारों का कहना है कि अब चूंकि मामला केंद्रीय स्तर पर चला गया है और पीएमओ एवं रेलवे बोर्ड के निजाम का अब इसमें सीधा हस्तक्षेप हो गया है, इसलिए अब मामले को मैनेज कर पाना पार्सल पोर्टर के लिए संभव नहीं हो पाएगा. तथापि, उनका यह भी कहना है कि सीबीआई को मामला रेफर होने के साथ ही पार्सल पोर्टर द्वारा अपने बचाव में मामले को मैनेज करने की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं. उन्होंने बताया कि चेन्नई भाजपा की एक महिला नेता को लेकर वह भाजपा अध्यक्ष से मिलने दिल्ली जाने की तैयारी में है. जबकि केंद्रीय गृहमंत्री के साथ उसके पुराने संबंध पहले से ही उजागर हैं. इसके अलावा यह भी पता चला है कि शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत फौरन वापस लेने की धमकी दी गई है, वरना इसका गंभीर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा गया है. इसके चलते शिकायतकर्ता बहुत डरा हुआ है और उसे अपनी जान जोखिम में पड़ती नजर आ रही है.
बताते हैं कि पार्सल पोर्टर की मनमानी और जबरन उगाही से रेलकर्मियों सहित दक्षिण रेलवे का कोई भी कांट्रेक्टर मुक्त नहीं है. जानकारों का कहना है कि किसी भी विभाग का कोई भी टेंडर उसको बताए अथवा उसकी जानकारी में लाए बिना किसी कांट्रेक्टर को आवंटित कर देने की हिम्मत दक्षिण रेलवे के किसी भी अधिकारी में नहीं है. इन तमाम कॉन्ट्रैक्टर्स से भरपूर कमीशन की उगाही यूनियन के लगभग प्रत्येक पदाधिकारी द्वारा की जाती है, क्योंकि उनकी अनुमति अथवा सहमति के बिना किसी कांट्रेक्टर का यहां के किसी रेलवे प्रोजेक्ट में काम कर पाना लगभग असंभव है. यही स्थिति अमूमन लगभग सभी जोनल रेलों में भी है. यही वजह है कि ज्यादातर यूनियन पदाधिकारी ज्ञात आय से बहुत अधिक संपत्ति के मालिक बन गए हैं, और यही वजह है कि रेलवे में यूनियनों का पदाधिकारी बनना सर्वसामान्य रेलकर्मी के लिए असंभव हो गया है. कई रेलकर्मियों ने यह मांग भी की है कि ज्यादातर जोनल रेलों की अधिकांश रेलवे एम्प्लाइज क्रेडिट सोसाइटीज पर चूंकि एक ही फेडरेशन से जुड़े जोनल संगठनों का कब्जा है, इसलिए सीबीआई की यह जांच सभी जोनल क्रेडिट सोसाइटीज तक विस्तारित की जानी चाहिए.
कुछ यूनियन पदाधिकारियों के रुतबे की स्थिति यह है कि वह अब अपने आगे-पीछे चार-चार मुस्टंडे यानि बॉडीगार्ड उर्फ अंगरक्षक लेकर चलते हैं. बीवियों की मार्फत अधिकारियों को ‘मैनेज’ करने वाला पार्सल पोर्टर भी अपने साथ कई-कई मुस्टंडे लेकर चलता है और इन पर लाखों रुपये महीने खर्च करता है. जानकार बताते हैं कि पार्सल पोर्टर का कार्यालय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के कार्यालय से भी ज्यादा आलीशान है, जहां वह किसी डॉन की तरह विराजमान होता है. सामान्य रेल कर्मचारी की मजाल नहीं है कि वह उस तक पहुंच जाए. द.रे. के कई कर्मचारियों का कहना है कि पार्सल पोर्टर के विरुद्ध कई कर्मचारियों सहित विपक्षी यूनियनों के कुछ पदाधिकारियों ने भी अलग-अलग शिकायतें की हैं. उनका कहना है कि पार्सल पोर्टर के खिलाफ किसी कारगर कार्यवाही में देरी इसलिए भी हुई है, क्योंकि ये सभी शिकायतकर्ता उक्त पार्सल पोर्टर को नेस्तनाबूद करने का संपूर्ण श्रेय अकेले लेना चाहते हैं.