मामूली कारणों पर सीनियर डीएससी ने पांच सिपाहियों को बर्खास्त किया
दलालों के माध्यम से मांगे गए 5-5 लाख नहीं देने पर गंवानी पड़ी नौकरी
समान आरोपों वाले उसी मामले में इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर को बख्शा
अधिकारियों द्वारा अधिकार के दुरुपयोग/कदाचार से धूमिल नहीं होती छवि!
इन पांचो कांस्टेबल्स की बर्खास्तगी के मुद्दे पर जब ‘रेल समाचार’ ने सीनियर डीएससी अनूप शुक्ला से संपर्क करके उनका पक्ष जानने की कोशिश की, तो उन्होंने कॉल रेस्पांड नहीं की और न ही भेजे गए एसएमएस का कोई जवाब दिया. जबकि इसी मुद्दे पर संपर्क किए जाने पर पश्चिम रेलवे के आईजी/सीएससी/आरपीएफ ए. के. सिंह का कहना था कि प्रशासन इन सिपाहियों की अपील पर विचार करेगा. श्री सिंह से जब यह कहा गया कि आखिर सीनियर डीएससी, मुंबई सेंट्रल जैसे कदाचारी और पद एवं अधिकार का दुरुपयोग करने वाले आरपीएफ अफसरों की मनमानी पर लगाम कब लगेगी? तो इस पर उन्होंने कोई टिपण्णी नहीं की.
उपरोक्त मामले में जहां एक तरफ सीनियर डीएससी अनूप शुक्ला ने ‘रेल समाचार’ की कॉल अटेंड नहीं की थी और एसएमएस का भी जवाब देना जरूरी नहीं समझा था, वहीँ इस मुद्दे पर ‘रेल समाचार’ द्वारा किए गए ट्वीट्स पर उन्होंने अपनी सफाई देते हुए लिखा कि उक्त पांचो बल सदस्यों के विरुद्ध निम्नलिखित कारणों से विभागीय कार्यवाही की गई है-
2. कांस्टेबल सुरेंद्र पाल मीणा के विरुद्ध व्यारा स्टेशन पर अवैध तरीके से पैसे लेने का वीडियो वायरल होने का आरोप था.
3. कांस्टेबल शशिकांत तांडेल के विरुद्ध अवैध शराब के परिवहन में लिप्त होने का आरोप था.
4. कांस्टेबल श्रीकांत यादव एवं कांस्टेबल मुकेश कुमार यादवके विरुद्ध सीट कॉर्नेरिंग के आरोप लगे थे.
सीनियर डीएससी के उपरोक्त स्पष्टीकरण के बावजूद उपरोक्त आरोप इतने भी गंभीर किस्म के नहीं हैं कि उन्हें नौकरी से बर्खास्तगी जैसी फांसी की सजा दी जाती. ‘रेल समाचार’ यह नहीं कहता कि उपरोक्त आरोप गलत हैं, परंतु इन सामान्य और अप्रमाणित आरोपों में प्रशासन को मातहतों की हत्या करने करने का अधिकार किसने दिया? क्या इन आरोपों के चलते उन्हें फांसी पर लटका दिया जाएगा? जबकि आरपीएफ ऐक्ट और डीएआर रूल्स में किए गए सभी अपराधों पर अलग-अलग किस्म के दंड का पूर्व प्रावधान किया गया है. वहीँ आरपीएफ कर्मियों द्वारा सीनियर डीएससी के खिलाफ मात्र डेढ़-दो माह पहले ही मुख्यालय से डीएससी ऑफिस शिफ्ट हुई तीन महिला सिपाहियों को गैरजरूरी डीआरएम अवार्ड दिलाने, मातहतों से शराब मंगाने, कथित बॉडीगार्ड और दो सिपाहियों को अपना कथित बिचौलिया बनाकर उनके माध्यम से वसूली करने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं. आरपीएफ कर्मियों का सवाल है कि ऐसे में सीनियर डीएससी के विरुद्ध क्या कार्रवाई की जानी चाहिए?
आरपीएफ कर्मियों का कहना है कि उपरोक्त पांचो सिपाहियों के दोषी होने और उनकी बर्खास्तगी को सीनियर डीएससी ने बड़ी सफाई के साथ जस्टीफाई करने की कोशिश की है, पर क्या ये सत्य नहीं है कि यह बर्खास्तगी उन्होंने तब की, जब उक्त सिपाहियों से उनकी पांच-पांच लाख की मांग पूरी नहीं हुई? उनका कहना है कि क्या यह सही नहीं है कि कांस्टेबल श्रीकांत यादव को दिए गए दो साल के भारी दंड के बावजूद और उसकी अपील के बिना ही उसका केस पुनः ओपन करके उसे बर्खास्त किया गया? सिपाही की अपील के बिना उसका केस पुनः खोलकर उसे बर्खास्त करना क्या संदेश देता है? उनका सवाल है कि बिना अपील के कोई केस खोलने के अधिकार के नियम का उल्लेख आरपीएफ ऐक्ट में कहां पर किया गया है, क्या इस बारे में आरपीएफ प्रशासन कोई खुलासा करेगा अथवा उसके अफसरों की यह मनमानी यूँ ही चलती रहेगी?
उन्होंने कहा कि सीनियर डीएससी महोदय ने अपने उपरोक्त जवाब में यह तर्क दिया है कि फोर्स की छवि धूमिल करने और दूसरे बल सदस्यों को सीख देने के लिए बड़ी सजा दी गई, यह कतई तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि ऐसे सैकड़ों मामले बल सदस्यों सहित खुद उनके जैसे कई आरपीएफ अधिकारियों द्वारा हो चुके हैं, जिनसे फोर्स की छवि को न सिर्फ भारी बट्टा लगा है, बल्कि उनसे बल सदस्यों को सीख यह मिली है कि अधिकारियों की चापलूसी और चमचागीरी करो, तो सब माफ हो जाएगा.
इसका ज्वलंत उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि डीजी महोदय द्वारा एक भगोड़े हेड कांस्टेबल की बर्खास्तगी को दो-दो बार स्टे करना, फिर अहमदाबाद मंडल, पश्चिम रेलवे से जबलपुर मंडल पश्चिम मध्य रेलवे में उसे अटैच करना, फिर अपने मतलब के लिए उसका इस्तेमाल करना, पुनः बर्खास्त होने पर पुनः स्टे करना और फिर जबलपुर मंडल में ही उसे बहाल कर देना है. उनका कहना है कि यदि बर्खास्त बल सदस्य आदतन अपराधी है, तभी उसकी बर्खास्तगी जायज मानी जाएगी, अन्यथा अन्य भी कई कड़ी सजाएं हैं, जो उसे दी जा सकती हैं. आरपीएफ प्रशासन को शायद यह बताने की जरूरत नहीं है.
उनका कहना है कि डीजी महोदय सहित कई आरपीएफ अधिकारियों के विरुद्ध मनमानी करने और बल सदस्यों की ट्रांसफर/पोस्टिंग में लाखों की उगाही करने तथा भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने के ऐसे सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं, जिन्हें एक-एक करके गिनाया जा सकता है. हालांकि ‘रेल समाचार’ ऐसे किसी भी बल सदस्य का हिमायती नहीं है, जो चोर, चापलूस और चरित्रहीन हो, यही बात आरपीएफ सहित सभी अन्य रेल अधिकारियों पर भी लागू होती है. मगर सिर्फ ऐसे बल सदस्यों या रेलकर्मियों के ही खिलाफ कार्रवाई हो और भ्रष्ट अधिकारियों पर अधिकार के दुरुपयोग और भारी कदाचार तथा दायित्व के निर्वाह में अपराधिक लापरवाही के बावजूद कोई आंच न आए, यह कहां का न्याय है?
उन्होंने कहा कि सीनियर डीएससी महोदय को बॉडीगार्ड क्यों चाहिए? क्या यह सुविधा उन्हें नियमानुसार उपलब्ध है? एक सिपाही, जिसकी पोस्टिंग बोईसर में है, को उन्होंने अपने ऑफिस में क्यों अटैच कर रखा है? एक अन्य सिपाही, जिसको सीनियर डीएससी महोदय ने अपने साथ अटैच कर रखा है, जिसका इंटर रेलवे तबादला भी हो चुका है, उसका निर्धारित कार्य क्या है और उसे किस काम पर लगाया गया है, उसका आउटपुट क्या है? किसी को पता नहीं है और न ही दूसरी रेलवे के लिए उसे छोड़ा जा रहा है. आरपीएफ कर्मियों का कहना है कि ऐसे तमाम मामले हैं, जिनमें प्रशानिक कार्यवाही में भारी विसंगति नजर आती है, मगर प्रशासन को सीनियर डीएससी महोदय का यह पद का दुरुपयोग दिखाई नहीं दे रहा है?
उनका कहना है कि जिस मामले में सीनियर डीएससी महोदय ने दो सिपाहियों को बर्खास्त किया है, उसी मामले में तीन इंस्पेक्टर बलवंत सिंह, शैतान सिंह यादव एवं मो. असरफ अली और एक सब-इंस्पेक्टर अशोक कुमार खरे तथा एक सहायक सब-इंस्पेक्टर सुशील कुमार को भी मेजर पेनाल्टी चार्जशीट हुई थी. जांच अधिकारी सहायक सुरक्षा आयुक्त (एएससी/विरार) ईश्वर सिंह ने इन चारों को भी दोषी ठहराया था. ऐसे में सीनियर डीएससी ने बर्खास्तगी की कार्रवाई सिर्फ दो सिपाहियों के ही विरुद्ध क्यों की? इसका कोई उचित जवाब उनके पास नहीं है. जबकि उपलब्ध सबूतों से जाहिर है कि उक्त स्टाफ को मात्र छह-छह माह की सालाना वेतन वृद्ध रोकने की गैर-मामूली सजा देकर छोड़ दिया गया. उन्होंने कहा कि सीनियर डीएससी महोदय के इस कृत्य का निहितार्थ सबको समझ में आता है!
उन्होंने बताया कि यदि अँधेरी, बोरीवली, विरार और सूरत की आवाजाही की जांच की जाए, तो सीनियर डीएससी महोदय के इस कनेक्शन की कलई खुल सकती है. उनका कहना है कि मुंबई सेंट्रल और बांद्रा टर्मिनस से खुलने वाली कोई भी ट्रेन अवैध हाकरों से मुक्त नहीं है. तमाम कथित सख्ती के बावजूद मंडल में आज भी अवैध हाकरों के दो बड़े गुट सक्रिय रूप से कार्यरत हैं. जिन ट्रेनों के पैंट्रीकार धारकों ने हप्ता बांध दिया है, उन ट्रेनों में भी खानपान की वस्तुएं छोड़कर बाकी सभी प्रकार की वस्तुओं को बेचने वाले हाकर धड़ल्ले से फेरी लगाते देखे जा सकते हैं. यही स्थिति पूरी भारतीय रेल में भी चल रही है. यानि हप्ता खाएं आरपीएफ अधिकारी और इंस्पेक्टर, मगर मारे जाएं सिपाही, आरपीएफ की यह अराजकतापूर्ण प्रशासनिक स्थिति बहुत भयावह है.