सीनियर डीएससी, मुंबई सेंट्रल का नार्को टेस्ट करवाया जाए

रेल प्रशासन से पश्चिम रेलवे के अधिकांश आरपीएफ कर्मियों की मांग

मुंबई : रेल प्रशासन से कुछ आरपीएफ कर्मियों ने यह मांग की है कि पांच-पांच लाख रुपये की कथित मांग और नहीं दिए जाने पर पांच आरपीएफ सिपाहियों को नौकरी से बर्खास्त कर दिए जाने के प्रकरण में सीनियर डीएससी, मुंबई सेंट्रल अनूप कुमार शुक्ला का नार्को टेस्ट करवाया जाए. उनका कहना है कि यदि श्री शुक्ला ने बर्खास्त सिपाहियों से अपने कथित बिचौलियों के माध्यम से कोई सौदेबाजी करने का प्रयास नहीं किया था अथवा उनसे पांच-पांच लाख रुपये, या जो भी राशि हो, की मांग नहीं की थी, तो उन्हें यह परीक्षण करवाने तथा अपनी नैतिकता, शुचिता और ईमानदारी साबित करने के लिए स्वतः आगे आना चाहिए.

पश्चिम रेलवे के अन्य तमाम आरपीएफ कर्मियों ने भी उनकी इस मांग का समर्थन किया है. उनका तो यह भी कहना है कि सीनियर डीएससी महोदय के साथ-साथ उनके तीनों कथित बिचौलियों सहित पांचो बर्खास्त सिपाहियों का भी नार्को टेस्ट करवाया जाना चाहिए. इससे पूरा मामला साफ हो जाएगा और इस तरह के मामलों पर लगाम कसने में प्रशासन को भारी मदद मिलेगी और तब एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप करने की गुंजाइश भी समाप्त हो जाएगी.

उल्लेखनीय है कि ऐसे कदाचार के मामलों में नार्को टेस्ट की सबसे पहली मांग रेलवे बोर्ड की बैठक में रेलमंत्री की उपस्थिति में ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन के राष्ट्रीय महामंत्री यू. एस. झा ने तत्कालीन डीजी/आरपीएफ रंजीत सिन्हा के विरुद्ध की थी. भरी सभा में उनकी इस मांग पर सभी को सांप सूंघ गया था. उसी के बाद रेलवे बोर्ड ने रंजीत सिन्हा को नियंत्रित करने और उनकी प्रतिनियुक्ति को समाप्त करके उन्हें उनके पैरेंट कैडर में वापस भेजने का निर्णय लिया था.

अतः ‘रेलवे समाचार’ का भी यह मानना है कि रेल अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच इस तरह के कदाचार के मामलों में कोई निर्णय लेने से पहले सम्बन्धित दोनों पक्षों का नार्को परीक्षण अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए. अब तो सीबीआई भी कई मामलों में यह टेस्ट करवाने की सिफारिश करने लगी है. रेलवे में बढ़ते भ्रष्टाचार और कदाचार के मामलों को नियंत्रित करने के लिए रेल प्रशासन को इस मुद्दे पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए.

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