ट्रैकमैन की आत्महत्या, दाल में कहीं अवश्य कुछ काला है?
समस्या का समाधान करने के बजाय सिर्फ जबानी-जमाखर्च
यूनियनें करती हैं दोमुंही बातें और बहाती हैं घड़ियाली आंसू
चुनावों ने मान्यताप्राप्त रेल संगठनों को सिखा दी राजनीति
ट्रैकमैन बबलू कुमार द्वारा 14 अगस्त को किए गए नाटकीय प्रयास की जानकारी एक अन्य ट्रैकमैन रवीश कुमार ने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) अश्वनी लोहानी को उनके व्हाट्सऐप पर दे दी थी, जिसका जवाब देते हुए सीआरबी श्री लोहानी ने उससे विस्तृत जानकारी देने को कहा था. इस पर जब उक्त ट्रैकमैन ने अन्य कोई जानकारी नहीं भेजी, तब रेलवे बोर्ड के किसी अधिकारी ने उसके मोबाइल पर संपर्क करके जानकारी मांगी. इसके तुरंत बाद उक्त अधिकारी ने डीआरएम, सोलापुर से भी जानकारी की पुष्टि करते हुए तुरंत इस पर आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए. इस बातचीत से संबंधित सोशल मीडिया में वायरल हुआ ऑडियो ‘रेल समाचार’ को प्राप्त हुआ है, जिसमें रेलवे बोर्ड के अधिकारी को यह कहते हुए स्पष्ट सुना जा सकता है कि उसकी (बबलू कुमार) आंखों से आंसू तो निकल नहीं रहे, मगर वह लगातार रोए जा रहा है.
बताते हैं कि घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचे एडीईएन और रेल प्रशासन के खिलाफ आक्रोशित ट्रैकमैनों ने नारेबाजी करते हुए एडीईएन के साथ धक्कामुक्की की, जो कि घटना की जानकारी मिलते ही तत्काल वहां इकठ्ठा हो गए थे. इससे एडीईएन वहां से तब तक के लिए हट गए जब तक कि आरपीएफ और जीआरपी कर्मी घटनास्थल पर नहीं पहुंच गए. इस बात की पुष्टि सीनियर डीसीएम, सोलापुर मंडल द्वारा जारी विज्ञप्ति से भी होती है. अब जहां तक बबलू कुमार और उसके अन्य साथी ट्रैकमैनों का यह आरोप है कि उसे पिछले करीब डेढ़ साल से छुट्टी नहीं दी जा रही थी, तो इस बारे में विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि पिछले लगभग दो महीनों से बबलू कुमार ड्यूटी पर घायल (आईओडी) मेडिकल लीव पर था. उसने फिट होकर पिछले हप्ते ही ड्यूटी ज्वाइन की थी और तत्काल 10 दिन की छुट्टी (28 अगस्त से 6 सितंबर) का आवेदन भरकर दे दिया था.
छुट्टी स्वीकृत करने के अधिकार वितरण के अनुसार एक हप्ते (7 दिन) की छुट्टी स्वीकृत करने का अधिकार सेक्शनल एसएसई/पी-वे को और उससे ज्यादा तथा 10 दिन तक की छुट्टी स्वीकार करने का अधिकार इंचार्ज एसएसई/पी-वे को है. इससे ज्यादा और 15 दिन की छुट्टी एडीईएन तथा उससे ज्यादा का अधिकार सीनियर डीईएन को है. उपलब्ध कागजात से यह सही प्रतीत होता है कि उक्त प्रक्रिया के तहत सेक्शनल एसएसई ने बबलू कुमार के आवेदन को अपनी संस्तुति के साथ इंचार्ज एसएसई/पी-वे के पास अग्रसारित कर दिया था. 28 अगस्त आने में अभी काफी समय था, इसलिए उसका आवेदन मंजूरी के लिए इंचार्ज एसएसई/पी-वे के पास पेंडिंग था. परंतु इस बीच पता नहीं क्या घटित हुआ कि अचानक बबलू कुमार वीडियो-ऑडियो बनाने और आत्महत्या करने पर उतारू हो गया.
उन्होंने कहा कि नेशनल मजदूर यूनियन के जोनल महामंत्री वेणू नायर से उन्हें घटना की पूरी जानकारी दी. महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा? उन्होंने कहा कि एक तरफ रेलवे बोर्ड कर्मचारियों के लिए तो ‘रेल कर्मचारी चार्टर’ बना रहा है, जिससे उनके काम की मानिटरिंग की जा सके, लेकिन अधिकारियों के लिए ऐसा कोई चार्टर क्यों नहीं बनता, जिससे उनकी भी जवाबदेही तय हो. उन्होंने इस बात पर भी नाराजगी जाहिर की कि ट्रैकमैन के साथ कोई दुर्घटना होने पर घटनास्थल पर कोई जिम्मेदार अधिकारी क्यों नहीं पहुंचता? इस पर रेलवे बोर्ड ने आदेश जारी किया है कि घटनास्थल के करीब तैनात अधिकारी कि यह जिम्मेदारी होगी कि वह न सिर्फ मौके पर पहुंचे, बल्कि अपेक्षित सुविधाएं भी उपलब्ध कराए.
श्री मिश्रा के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित समारोह में बोलते हुए चेयरमैन, रेलवे बोर्ड अश्वनी लोहानी ने कहा कि अगर अफसर ईमारदार हो और कर्मचारियों की मुश्किलों का निस्तारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाए, तो रेलवे की तरक्की होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. श्री लोहानी ने स्वीकार किया कि मुश्किल तभी आती है जब हम कर्मचारियों में छोटे-बड़े का भेद करते हैं. उन्होंने कहा कि उनका अनुभव यह है कि अगर स्टाफ आपके साथ है, तो संस्था की तरक्की में किसी प्रकार की मुश्किल पेश नहीं आती है. उनका कहना था कि पद कुछ नहीं, सिर्फ जिम्मेदारी है, जैसे दूसरे लोग अपने पद की जिम्मेदारी को निभा रहे हैं, वैसे ही मैं अपने पद का काम कर रहा हूं, वरना सभी लोग सिर्फ और सिर्फ एक रेलकर्मी हैं, यहां न कोई छोटा है और न बड़ा, सिर्फ जिम्मेदारी अलग-अलग है.
उन्होंने कहा कि अगर हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से पालन कर ले, तो देश को आगे बढ़ने से भला कौन रोक सकता है. इस मौके पर श्री लोहानी ने ईमानदारी पर खास जोर दिया. उनका कहना था कि अगर रात को चैन की नींद लेना चाहते हैं, तो सिर्फ ईमानदार बन जाएं. गलत काम न खुद करें और न करने दें, रेलवे में ठेकेदारों को लेकर तरह-तरह की चर्चा होती रहती है, उनसे अधिकारियों के सिर्फ काम के रिश्ते होने चाहिए. सीआरबी ने ट्रैकमैन के प्रति सहानिभूति जताई और कहा कि वह भारतीय रेल की रीढ़ हैं, मुझे उनसे खास लगाव है.
आरकेटीए के राष्ट्रीय महामंत्री जी. गणेश्वर राव का कहना है कि जिस समय पूरा देश आजादी की 72वीं सालगिरह मना रहा था, ठीक उसी समय भारतीय रेल का एक ट्रैकमेंटेनर प्रताड़ना से तंग आकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहा था. उनका कहना है कि यह एक बड़ी विचित्र विडंबना है कि आजाद भारत में आज भी रेलवे के एक विभाग में अंग्रेजी कानून लागू है जिससे रेलवे के करीब साढ़े तीन लाख ट्रैक मेंटेनर रोज किसी न किसी बहाने प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं. अब इस प्रताड़ना का शिकार सेंट्रल रेलवे के सोलापुर डिवीजन के वांबोरी सेक्शन गैंग में ड्यूटी करने वाला बबलू कुमार हो गया है. उनका कहना है कि स्थानीय अधिकारी से कोई मदद मिलती न देख प्रताड़ित बबलू ने स्वतंत्रता दिवस के दिन ही ट्रेन के सामने आकर अपना जीवन खत्म कर लिया.
उन्होंने कहा कि इस घटना के बारे में उन्होंने तुरंत रेल मंत्रालय और रेलवे बोर्ड को बताकर आवश्यक कार्रवाई हेतु आग्रह किया. उनका कहना है कि भारतीय रेल के अधिकांश ट्रैकमेन आज भी शोषण का शिकार हो रहे हैं, ऐसे में रेलवे ट्रैक की सुरक्षा कैसे हो सकती है. मानसिक तौर पर परेशान ट्रैकमेन अपनी ड्यूटी करने में असमर्थ है. अगर जल्दी ही ट्रैकमेन को प्रताड़ित करना बंद नहीं किया गया, तो ऐसे अधिकारियों को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि दक्षिण मध्य रेलवे के विजयवाड़ा डिवीजन के अण्कापल्ली में ड्यूटी कर रहा एक ट्रैकमेन जी. वेंकटराव भी प्रताड़ना से तंग आ चुका है, यदि समय रहते रेलवे बोर्ड कार्रवाई करेगा, तो एक जान बचाई जा सकती है.
उन्होंने कहा कि आरकेटीए लंबे समय से एक साथ दो ट्रैकमेन से नाईट ड्यूटी पेट्रोलिंग कराने की मांग कर रही है, जो कि सेक्शन इंजीनियरों को काफी नागवार गुजर रहा है और वे यह मांग करने वाले ट्रैकमैनों का तबादला अन्य सेक्शनों में कर देते हैं. अनावश्यक तबादला और प्रताड़ना से परेशान ट्रैकमेन अपनी जीवन लीला समाप्त करने के बारे में सोचने लगता है. उन्होंने कहा कि एक तो सेक्शन इंजीनियर पहले से ही ट्रैकमेन का शोषण करता है, ऊपर से उसी इंजीनियर को फेडरेशन का पदाधिकारी बना दिया जाता है, जिससे वे और भी तानाशाह बनकर ट्रैकमैनों को बैल की भांति जोतते हैं. उनका कहना है कि डिवीजन और सेक्शन कार्यालय में बैठे अधिकारियों का रेलवे बोर्ड के नियमानुसार आवधिक तबादला नहीं होता है, जबकि छोटे कर्मचारी पर तमाम अनावश्यक कानून लाद दिए गए हैं.
जहां तक ट्रैकमैनों के उत्पीड़न की बात है, तो यह कोई नई बात नहीं है. रेलवे की यह जमीनी सच्चाई है और इस सच्चाई से भारतीय रेल का हर महकमा तथा उच्च रेल प्रशासन भी बखूबी वाकिफ है. एक साल पहले चेयरमैन, रेलवे बोर्ड का पदभार संभालने के तुरंत बाद अश्वनी लोहानी ने सभी जोनल रेलों और मंडलों को सबसे पहले यही आदेश दिया था कि किसी भी अधिकारी के आवास में कोई भी रेलकर्मी काम नहीं करेगा, और जो कर रहे हैं, उन्हें तत्काल वहां से हटाकर उनके मूल कार्य पर लगाया जाना चाहिए. तथापि मंडल अधिकारियों ने न सिर्फ इसका तोड़ निकाल लिया, बल्कि ऑफिस कार्य के बहाने यह घ्रणित कार्य आज भी बदस्तूर जारी है. इस मामले में आज तक किसी अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जबकि खुलेआम इस स्किल्ड मानव संसाधन का दुरुपयोग किया जा रहा है और ऑफिस कार्य या हल्का कार्य देने के बहाने उनका आर्थिक शोषण भी हो रहा है.
इसको सुनिश्चित करने के लिए सीआरबी ने सभी जोनल महाप्रबंधकों और मंडल रेल प्रबंधकों से यह लिखित गारंटी भी ली थी कि उनके जोन या मंडल में कोई भी ट्रैकमैन किसी अधिकारी के आवास में कार्यरत नहीं है. मगर लगभग सभी जोनल एवं डिवीजनल प्रमुखों ने सरासर झूठ लिखकर भेज दिया, जिसे रेलवे बोर्ड में सभी ने सच मानकर अपने-अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली. जबकि यह कुप्रथा आज भी बदस्तूर जारी है. इसकी मॉनिटरिंग की कोई जमीनी व्यवस्था नहीं की गई. समुचित मॉनिटरिंग सिस्टम कायम किए बिना सिर्फ आदेश जारी कर देने मात्र से यदि पैदाईसी मानवीय चौर्य-प्रवृत्ति की हमारी मानसिकता पर लगाम लगाई जा सकती, तो अब तक सारे देश में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की फसल लहलहा रही होती.
किसी कर्मचारी द्वारा आवेग में आकर आत्महत्या कर लेना किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि इससे पूरी संस्था बदनाम होती है. यह भी सही है कि इन अति-जागरूक और उच्च शिक्षित ट्रैकमैनों का पूरा ध्यान काम करने पर नहीं, बल्कि नेतागिरी करने पर है. इनसे काम लेना लगभग सभी खंड अभियंताओं के लिए एक टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. बताते हैं करीब 10-12 दिन पहले इसी गैंग नं.-8 के सभी ट्रैकमैन खुला ट्रैक छोड़कर और यह कहकर चले गए थे कि उनकी ड्यूटी खत्म हो गई है. जबकि खुले ट्रैक को रात के करीब 10 बजे तक मेट और मुकादम ने बांधा. इस मामले में दाल में कहीं न कहीं अवश्य कुछ काला है. अतः मामले की गहन जांच तो करवाई ही जानी चाहिए, बल्कि जो यूनियन लीडर ऐसी घटनाओं पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, उसने भी कहा जाना चाहिए कि वे यूनियन के पदों से सभी सुपरवाइजर स्तर के कर्मचारियों को मुक्त करने का साहस दिखाएं. यह नहीं हो सकता है कि जब सुपरवाइजर प्रताड़ित हो, तो यूनियनें उसके पक्ष में खड़ी होकर अधिकारियों को कठघरे में खड़ा कर दें और जब कर्मचारी समस्याग्रस्त हो, तो अधिकारियों के साथ सुपरवाइजरों को भी अपने घेरे में ले लें!