“उल्टा चोर कोतवाल को डांटे..!!”
बदनामी करके स्वार्थ सिद्ध करने का लगाया आरोप, दिया कानूनी कार्यवाही की धमकी
पूर्वोत्तर रेलवे विजिलेंस द्वारा की गई इस तत्काल कार्यवाही से प्रिंसिपल सीसीएम आलोक सिंह बुरी तरह से बौखला गए हैं. इसी बौखलाहट के चलते ट्विटर पर उन्होंने अधिकारियों को बदनाम करके स्वार्थ सिद्ध करने का आरोप लगाते हुए आईपीसी की धाराओं के तहत रेल प्रशासन द्वारा ‘रेल समाचार’ के विरुद्ध मानहानि की कानूनी कार्यवाही करने की धमकी दी है.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि “पीडीडब्ल्यू के संबंध में लगाए गए आरोप निराधार एवं तथ्य से परे हैं. इस संबंध में लगातार पॉपुलर ब्रांड की फर्मों से परिवाद प्राप्त हो रहे थे, जिसके ‘आलोक’ में पीडीडब्ल्यू के शार्टलिस्टिंग ब्रांड की समीक्षा की गई तथा शार्टलिस्टिंग की प्रक्रिया में त्रुटि पाई गई, जिसके कारण पीडीडब्ल्यू के शार्टलिस्टिंग का निरस्तीकरण उचित पाया गया. जिन फर्मों का शार्टलिस्टिंग निरस्त हुआ, नियमानुसार उनके पंजीकरण शुल्क की वापसी की कार्यवाही की जाएगी.”
प्रिंसिपल सीसीएम, पूर्वोत्तर रेलवे आलोक सिंह के उक्त आरोपों के जवाब में ‘रेल समाचार’ का कहना है, “सर्वप्रथम यह कि पीसीसीएम द्वारा लिखी गई भाषा को यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है, जिससे उनकी बौखलाहट उजागर हो रही है. उन्हें न तो सही ढ़ंग से हिंदी का ज्ञान है, और न ही उन्हें हिंदी व्याकरण का पता है. ऐसा लगता है कि यह सब लिखते हुए उनके हाथ कांप रहे थे. तथापि इससे उनका मंतव्य साफ है और वह ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. उनके मंतव्य से यह भी जाहिर हो रहा है कि विजिलेंस कार्रवाई के बाद संभवतः उन्होंने अपने बचाव में तथाकथित ब्रांडेड फर्मों से लोकल ब्रांड्स की शार्टलिस्टेड और उनके द्वारा निरस्त की गई फर्मों के पीडीडब्ल्यू के विरुद्ध बैक डेट में शिकायतें ‘आमंत्रित’ कर ली हैं?
अब जहां तक उनका यह कहना है कि ‘ट्विटर के माध्यम से आधारहीन एवं तथ्यहीन समाचार प्रसारित करना अस्वस्थ पत्रकारिता का द्योतक है, जिसका उद्देश्य मात्र अधिकारियों को बदनाम कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना प्रतीत होता है,’ तो पहली बात यह कि उक्त खबर ट्विटर पर नहीं, बल्कि ‘रेल समाचार’ की उपरोक्त वेबसाइट पर प्रकाशित हुई थी, जिसका लिंक ट्विटर पर शेयर किया गया था. दूसरी बात यह कि उनके जैसे किसी कदाचारी रेल अधिकारी से ‘रेल समाचार’ को पत्रकारिता सीखने की अब तक तो कोई जरूरत नहीं महसूस हुई है और आगे भी शायद नहीं होगी.
इसके साथ ही उपरोक्त तथ्यपरक खबर यदि किसी के विरुद्ध जाती है, तो वह विशेष रूप से और व्यक्तिशः प्रिंसिपल सीसीएम के विरुद्ध जाती है, न कि रेल प्रशासन के विरुद्ध, जिन्होंने अपने कथित निजी स्वार्थ के चलते मात्र डेढ़ महीने पहले शार्टलिस्ट की गई फर्मों की अनुमति को निरस्त किया है. इसके सभी कागजी एवं परिस्थितिजन्य सबूत ‘रेल समाचार’ के पास मौजूद हैं. तथापि, यदि रेल प्रशासन भी ऐसी कोई कार्यवाही करने के लिए उद्यत होता है, तो ‘रेल समाचार’ दोनों में से किसी की भी कानूनी कार्यवाही का सामना करने के लिए खड़े पैर प्रस्तुत है. अब या तो पीसीसीएम अपने निराधार आरोप अविलंब वापस लें, अन्यथा उनके विरुद्ध ‘रेल समाचार’ द्वारा जल्दी ही उचित कानूनी कार्यवाही की जाएगी.क्रमशः वीपीयू प्रकरण : कानपुर की फर्जी यात्रा !!