रिटेंशन टैंक के टेंडर में 10 करोड़ कमीशन के लेनदेन का आरोप
चार खास चहेती कंपनियों को रेलवे बोर्ड द्वारा दिया गया टेंडर
स्टील बेंचेज की खरीद भी उक्त चारों कंपनियों से करने की तैयारी
रेलवे बोर्ड स्तर पर खरीद की केंद्रीयकृत टेंडरिंग का क्या है औचित्य?
सुरेश त्रिपाठी
बल्कि अब कुछ खास चहेती कंपनियों को फेवर करने के लिए जानबूझकर ऐसी टेंडर कंडीशन बनाई जा रही हैं, जिससे ज्यादातर छोटी एवं मझोली कंपनियां कम्पटीशन से बाहर हो गई हैं. परिणामस्वरूप न्यूनतम कम्पटीशन के चलते कंपनिया अनाप-शनाप रेट वसूल रही हैं. इस पूरी प्रक्रिया में रेलवे के संबंधित अधिकारियों का भी पूरा योगदान इन कुछ खास कंपनियों को मिल रहा है. ‘रेल समाचार’ के पास इसकी पुख्ता जानकारी और पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं, जहां ऐसे कुछ टेंडर्स में खास कंपनियों को फेवर करके उनसे करोड़ों का लेनदेन हुआ है.
यही नहीं, जो काम जोनल रेलों और मंडलों के स्तर पर होना चाहिए, और जिसके विरुद्ध बार-बार आवाज उठाई जाती रही है कि जिन चीजों का इस्तेमाल जोनों और मंडलों को करना है, ऐसी तमाम छुटपुट चीजों की खरीद को रेलवे बोर्ड स्तर पर केंद्रीयकृत नहीं किया जाना चाहिए. तथापि रेलवे बोर्ड में बैठे विभिन विभागों और खासतौर पर स्टोर्स के अधिकारी ऐसी चीजों की केंद्रीयकृत खरीद रेलवे बोर्ड स्तर पर कर रहे हैं. परिणामस्वरूप रेलवे बोर्ड के इन टेंडर्स में न सिर्फ कुछ खास कंपनियों का फेवर किया जा रहा है, बल्कि इस फेवर की एवज में उनसे करोड़ों का अवैध लेनदेन भी हो रहा है.
सूत्रों ने बताया कि इस प्रकार घोटालों और फेवर किए जाने की हद यह है कि जहां आरसीएफ और एमसीएफ इत्यादि के ऐसे रिटेंशन टैंक के टेंडर्स में ‘वेरिएशन क्लॉज़’ नहीं होता था, वहीं रेलवे बोर्ड के उपरोक्त टेंडर में यह क्लॉज़ भी रखा गया है और उक्त चारों कंपनियों को दोहरा फेवर किया गया है. यह टेंडर 20 सितंबर 2018 को इसी महीने चार कंपनियों को आवंटित किया गया है. बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों का दावा है कि इसमें 10 करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ है.
सूत्रों का कहना है कि अब यही स्टोर्स अधिकारी तथा यही चारों कंपनियां आपस में मिलकर पुनः रेलवे के ऐसे संपूर्ण बिजनेस को हड़पना चाहती हैं. उन्होंने बताया कि रेलवे बोर्ड ने एयरपोर्ट जैसी सभी स्टेशनों पर लगाई जाने वाली स्टेनलेस स्टील बेंचेज की खरीद का एक अन्य ई-टेंडर (नं. 20181S198) 30 अगस्त 2018 को निकाला था. यह टेंडर शुक्रवार, 28 सितंबर 2018 को खोला जाने वाला है.
सूत्रों का यह भी कहना है कि यदि वास्तव में देखा जाए तो एक साल तो क्या, इसके किसी वास्तविक मैन्युफैक्चरर्स का भी तीन साल में 25 करोड़ का टर्नओवर नहीं होता है. जबकि यहां एक साल में 25 करोड़ का टर्नओवर मांगा गया है. इससे भी साबित होता है कि यह कंडीशन खासतौर पर उक्त चारों कंपनियों को ही ध्यान में रखकर या उनके कहे अनुसार बनाई गई है.
जहां वर्तमान केंद्र सरकार ने लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कार्यों की क्रेडेंशियल अधिकतम 15 करोड़ रखने के निर्देश दे रखे हैं, वहीं रेलवे बोर्ड इसके लिए 25 करोड़ के सालाना टर्नओवर के क्रेडेंशियल की मांग कर रहा है. तब यह लघु उद्योग कैसे हो सकते हैं और इन्हें उसकी छूट कैसे मिल सकती है? अथवा इन लघु उद्योगों को खत्म करने की एक सोची-समझी साजिश संबंधित नौकरशाहों द्वारा की जा रही है.
रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारी तथा उक्त चारों कंपनियां आपस में मिलकर सभी की आंखों में धूल झोंक रही हैं. उपरोक्त टेंडर के माध्यम से संपूर्ण भारतीय रेल को पांच क्षेत्रों में बांटकर उनके लिए कुल 1,00,000 स्टेनलेस स्टील बेंचेज की खरीद होने जा रही है. यह करोड़ों का सौदा है और इसमें भी करोड़ों के कमीशन का वारान्यारा होने वाला है. अतः ‘रेल समाचार’ का मानना है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस और सीवीसी को चाहिए कि उपरोक्त दोनों टेंडर्स की संपूर्ण प्रक्रिया की अविलंब गहराई से छानबीन करके सभी संबंधितों की जिम्मेदारी तय की जाए.