काम कम, दिखावा ज्यादा करते हैं रेलमंत्री
भीड़ के समय चर्चगेट स्टेशन में घुसाया गया रेलमंत्री का सैलून!
सैलून की वजह से पीक ऑवर में हुई हजारों उपनगरीय यात्रियों को परेशानी
सुरेश त्रिपाठी
रेलमंत्री पीयूष गोयल के कारण शुक्रवार, 8 फरवरी को चर्चगेट स्टेशन के हजारों उपनगरीय यात्रियों को शाम के पीक ऑवर में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा. ‘रेल समाचार’ के पास उपलब्ध रेलमंत्री के अधिकृत कार्यक्रम के अनुसार रेलमंत्री दिल्ली से एक विशेष विमान द्वारा मुंबई के सहार एयरपोर्ट पर 18.15 बजे उतरे थे. वहां से पश्चिम रेलवे के सांताक्रुज उपनगरीय स्टेशन पर खासतौर पर उपलब्ध कराए गए आलीशान एसी सैलून से 18.30 बजे चलकर वह 19.00 बजे चर्चगेट स्टेशन पहुंचे. हालांकि यह तो पता नहीं चल सका है कि उन्होंने इस बार किसके द्वारा उपलब्ध कराए गए विशेष विमान का उपयोग किया, परंतु शाम के 7 बजे चर्चगेट जैसे भारी भीड़ वाले उपनगरीय स्टेशन पर उनका सैलून लाए जाने से कई लोकल ट्रेनों को बाहर रुकना पड़ा, जिससे इस पीक ऑवर में हजारों उपनगरीय यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा.
पीक ऑवर के समय हजारों उपनगरीय यात्रियों को होने वाली परेशानी को दरकिनार करते हुए मात्र आधा घंटे की रेलमंत्री की इस राजशाही यात्रा को मुंबई उपनगरीय क्षेत्र में चल रही विभिन्न रेल परियोजनाओं की समीक्षा बैठक और निरीक्षण कार्यक्रम का नाम दिया गया. इस तथाकथित चलित समीक्षा बैठक के मौके पर उक्त आलीशान एसी सैलून में रेलमंत्री के साथ पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक ए. के. गुप्ता और मध्य रेलवे के महाप्रबंधक देवेंद्र कुमार शर्मा सहित दोनों मंडलों के मंडल रेल प्रबंधकों के अलावा अन्य सभी संबंधित अधिकारियों का उपस्थित रहना भी लाजिमी था. इस पूरे परिदृश्य पर दबी जुबान में पश्चिम रेलवे के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की प्रतिक्रिया थी कि रेलमंत्री महोदय काम कम, दिखावा ज्यादा करते हैं.
हालांकि यह भी सही है कि केंद्र सरकार में रेलमंत्री, कोयला मंत्री और वित्तमंत्री के दोहरे-तिहरे कार्यभार संभाल रहे होने के नाते उनका समय बहुत कीमती है. इसके लिए उन्हें बेहतर सुविधा और ट्रांसपोर्टेशन उपलब्ध कराया ही जाना चाहिए. तथापि यह व्यवस्था हजारों नागरिकों को परेशानी में डालकर उपलब्ध कराए जाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है. हालांकि संबंधित अधिकारी इस सवाल पर चुप्पी साधे हुए हैं कि पीक ऑवर में यह टेढ़ी व्यवस्था करने का क्या औचित्य था, जबकि रेलमंत्री को वह सामान्य फास्ट लोकल से भी लेकर आ सकते थे, जो कि वापसी में यात्रियों के इस्तेमाल में आ सकती थी?
उल्लेखनीय है कि हमेशा अत्यंत व्यस्त रहने वाले संकरे चर्चगेट स्टेशन पर दोतरफा निकासी वाले सिर्फ चार प्लेटफार्म हैं. रेलमंत्री का उक्त सैलून दोतरफा निकासी वाले प्लेटफार्म नं.1 पर ले जाया गया था. हालांकि रेलमंत्री को उतारकर यह सैलून कुछ ही मिनट बाद प्लेटफार्म से निकाल लिया गया था, तथापि सैलून के आगमन और निकासी में करीब 15 से 20 मिनट का समय लगा. इससे चर्चगेट स्टेशन की लगभग सभी लाइनें ब्लाक हो गईं. यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है की पश्चिम रेलवे की सभी मेल/एक्सप्रेस ट्रेनें मुंबई सेंट्रल और बांद्रा टर्मिनस पर ही टर्मिनेट हो जाती हैं. चर्चगेट तक कोई भी मेल/एक्सप्रेस ट्रेन कभी नहीं ले जाई जाती है. यहां तक कि महाप्रबंधक का सैलून भी अति-व्यस्त चर्चगेट स्टेशन तक ले जाने की हिमाकत आजतक नहीं की गई.
बहरहाल, यहां शायद यह कहना उचित होगा कि आलोचनात्मक रुख रखने वाले कुछ मीडिया कर्मियों के प्रति शत्रुता-भाव रखने वाले रेलमंत्री पीयूष गोयल जितनी सार्वजनिक शालीनता बरतेंगे, उनकी इज्जत और सम्मान उतना ही बढ़ेगा. हालांकि रेलमंत्री के रूप में रेलकर्मियों और अधिकारियों के साथ-साथ कुछ मीडिया कर्मियों के साथ भी उनका व्यवहार अब तक अशालीन ही बताया गया है. पता नहीं कि रेलमंत्री को इस बात की जानकारी है या नहीं, कि तमाम रेल अधिकारी और कर्मचारी आपसी बातचीत में उनका उल्लेख ‘ब्लफ-मास्टर’ के रूप में करते हैं, जो कि उनके लिए कतई सम्मानजनक संबोधन नहीं है.