मेंबर ट्रैक्शन घनश्याम सिंह के सामने असहाय रेल प्रशासन !
रेल भवन में पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु से पदभार ग्रहण करते समय वर्तमान रेलमंत्री पीयूष गोयल. उनके साथ हैं रेल राज्यमंत्री राजेन गोहाईं.
रिटायरमेंट से पहले जारी कर रहे मनचाहे/मनमाने पोस्टिंग ऑर्डर
रेलवे से संबंधित सभी योजनाओं को मेंबर ट्रैक्शन ने लगाया पलीता
‘अभूतपूर्व भ्रष्टाचार’ हेतु घनश्याम सिंह को पुरस्कृत करने की तैयारी
घनश्याम सिंह की वजह से पुनः सतह पर आ गया यूपीए का ‘रेल-गेट’
खुलेगी सीबीआई, सीवीसी, सीएफआई, डीओपीटी और यूपीएससी की कलई
सुरेश त्रिपाठी
जानकारों का कहना है कि मेंबर ट्रैक्शन की मनमानी के सामने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड सहित सभी सक्षम अधिकारी असहाय हो गए हैं. उनका कहना है कि मेंबर ट्रैक्शन ने अपने रिटायरमेंट के इस अंतिम महीने में लगभग हर दिन विद्युत् अधिकारियों मन-मुताबिक पोस्टिंग ऑर्डर जारी किए हैं. उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि 20 मई को मेंबर ट्रैक्शन द्वारा एकसाथ ऐसे 27 अधिकारियों के मन-मुताबिक पोस्टिंग ऑर्डर जारी किए गए हैं. उनका यह भी कहना था कि ऐसी हर मनचाही पोस्टिंग के लिए लाखों रु. की कथित वसूली की गई है. इसके लिए जोनों/मंडलों में खुलेआम उनके तथाकथित दलाल सक्रिय रहे हैं.
जानकारों का कहना है कि मेंबर ट्रैक्शन द्वारा रिटायरमेंट मंथ में कथित रूप से पैसा लेकर की जा रही मनचाही पोस्टिंग पर यदि रेलमंत्री और सीआरबी अथवा रेल प्रशासन की सहमति नहीं है, तो आखिर मेंबर ट्रैक्शन की यह नियम विरुद्ध अनैतिक मनमानी कैसे चल रही है? इस पर कोई अंकुश क्यों नहीं लगाया जा रहा है? उन्होंने कहा कि 20 मई को जारी 27 पोस्टिंग ऑर्डर्स में से ज्यादातर ऐसे हैं, जिनमें संबंधित अधिकारियों को उनकी मांग के अनुरूप मनचाही पोस्टिंग दी गई है. इसका अर्थ यह लगाया जा रहा है कि जिन अधिकारियों ने मेंबर ट्रैक्शन को उनके दलालों के माध्यम से पहले ही संपर्क कर लिया था, उन्हें उनके मन-मुताबिक पोस्टिंग मिल गई, जबकि इसी ऑर्डर में कुछ ऐसे अधिकारी भी हैं, जिन्हें सिर्फ इसलिए दूर-दराज फेंक दिया गया, क्योंकि उन्होंने मेंबर ट्रैक्शन को मिलकर उन्हें ‘चढ़ावा’ नहीं चढ़ाया?
बहरहाल, मेंबर ट्रैक्शन द्वारा अपने रिटायरमेंट से पहले किए जा रहे इन ट्रांसफर/पोस्टिंग ऑर्डर्स हेतु की जा रही कथित वसूली के बारे में ‘रेल समाचार’ को अपने सूत्रों से मिली विश्वसनीय जानकारी के मुताबिक पैसा लेकर मनचाही पोस्टिंग दिए जाने की बात काफी हद तक सही पाई गई है. सूत्रों का कहना है कि मेंबर ट्रैक्शन खुद कभी किसी कांट्रेक्टर अथवा अधिकारी से सीधे कोई सौदा नहीं करते हैं. इसके लिए उन्होंने अपने कुछ खास अधिकारी और कॉन्ट्रैक्टर्स/सप्लायर्स को अपना दलाल बना रखा है. सूत्रों ने बताया कि इन दलालों में भोपाल का एक सप्लायर और एक विद्युत् अधिकारी भी शामिल है. बताते हैं कि इस विद्युत् अधिकारी के लिए भोपाल में ही अब एसएजी की एक और नई पोस्ट बनाई जा रही है. जानकारों का कहना है कि मेंबर ट्रैक्शन के परामर्श पर इसका प्रस्ताव प.म.रे. मुख्यालय की तरफ से रेलवे बोर्ड को भेजा गया है.
सूत्रों का कहना है कि इसी तरह मध्य रेल विद्युत् मुख्यालय सहित अन्य जोनल मुख्यालयों में भी मेंबर ट्रैक्शन के ‘हित-साधक’ मौजूद हैं. सूत्रों ने बताया कि 8 मई को घनश्याम सिंह गाड़ी सं. 12138 पंजाब मेल से आलीशान सैलून में सवार होकर शाम करीब 6 बजे भोपाल पहुंचे थे. यहां उन्होंने न कोई निरीक्षण किया और न ही डीआरएम ऑफिस गए, न तो किसी अधिकारी से मिले, बल्कि सिर्फ राइट्स के कांट्रेक्टर को मिलकर रात को 9 बजे गाड़ी सं. 12155 शान-ए-भोपाल एक्सप्रेस से वापस दिल्ली लौट गए थे. इस लगभग तीन-साढ़े तीन घंटे के भोपाल प्रवास के दौरान उनका खास सप्लायर और विद्युत् अधिकारी उनके साथ थे. इसके अलावा उत्तर रेलवे के खास सूत्रों ने बताया कि मेंबर ट्रैक्शन रहते घनश्याम सिंह लगभग हर हप्ते आरए लेकर बलिया, उ.प्र. स्थित अपने गांव जाते रहे हैं, जहां वह एक भव्य कालेज का निर्माण करवा रहे हैं. जानकारों का कहना है कि मात्र तीन घंटे के लिए भोपाल और लगभग हर हप्ते-पंद्रह दिन में बलिया जाने का संबंध क्रमशः ‘कलेक्शन’ और ‘डिपाजिट’ से ही हो सकता है.
जानकारों का कहना है कि यूपीए का ‘रेल-गेट’ अब घनश्याम सिंह की वजह से पुनः सतह पर आ गया है. इसके लिए उन्होंने सीआरबी सहित सभी को असहाय बना दिया. यही नहीं, प्रधानमंत्री के आदेश-निर्देश पर रेलवे में विभागवाद को कम करने के उद्देश्य से मैकेनिकल-इलेक्ट्रिकल (ट्रैक्शन एवं रोलिंग स्टॉक) के किए गए मर्जर को भी मेंबर ट्रैक्शन ने अपनी कुटिल करतूतों से पलीता लगाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. बताते हैं कि इसके लिए कुछ सांसदों सहित लेबर फेडरेशनों और इलेक्ट्रिक कैडर के कई महाप्रबंधकों एवं जोनल विभाग प्रमुखों द्वारा भी रेलवे बोर्ड को चिट्ठियां लिखकर भरपूर दबाव बनाया गया, जिससे दोनों विभागों के मर्जर को खत्म किया जा सके. इसी वजह से रेलवे बोर्ड द्वारा पिछले दिनों इस विषय पर एक कमेटी का गठन किया गया था. रेलवे के अंदरूनी जानकारों का कहना है कि उक्त चिट्ठियां मेंबर ट्रैक्शन द्वारा व्यक्तिगत रूप से दबाव डालकर लिखवाई गई थीं. तथापि जहां सरकार द्वारा गठित वांचू, खन्ना, काकोड़कर, देबरॉय इत्यादि उच्च स्तरीय विशेषज्ञ कमेटियों की कोई बिसात नहीं रही, वहां कुछ बोर्ड अधिकारियों की उक्त अंदरूनी कमेटी का कोई अर्थ नहीं है.
उपरोक्त तमाम कुटिल कारगुजारियों के बावजूद मोदी सरकार के कुछ मंत्रियों एवं भाजपा सहित कुछ अन्य पार्टियों के सांसदों के सहयोग से वर्तमान मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड घनश्याम सिंह अपने एक साल के सेवा विस्तार के लिए तन-मन-धन से लगे हुए हैं. विश्वसनीय सूत्रों ने ‘रेल समाचार’ को बताया कि घनश्याम सिंह को उनके ‘अभूतपूर्व भ्रष्टाचार’ के लिए पुरस्कृत करने हेतु तत्संबंधी फाइल दौड़ाई जा रही है. सूत्रों का यह भी कहना है कि इसके अलावा उन्होंने सीवीसी और चेयरमैन, सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (सीसीईए) के लिए भी आवेदन किया है. सूत्रों का कहना है कि इस सब में उनकी मदद हरयाणा सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा भी की जा रही है, जिसकी तीन करोड़ सालाना कारोबार करने वाली कंपनी को घनश्याम सिंह ने अपने कार्यकाल में भरपूर टेंडर देकर तीस हजार करोड़ सालाना कारोबार वाली कंपनी बना दिया है. बताते हैं कि इस कंपनी को टैक्स रिफंड के संबंध में सीएजी ने कड़ी टिप्पणी भी की है.
ट्रैक्शन और रोलिंग स्टॉक के मर्जर को तो घनश्याम सिंह ने पलीता लगाया ही है, बल्कि सूत्रों का यह भी कहना है कि घनश्याम सिंह खुले तौर पर मोदी सरकार की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि इससे पहले कि वह बतौर सीवीसी या मेंबर ट्रैक्शन के रूप में सेवा-विस्तार प्राप्त करें, उससे पहले ही रेलवे में सुधार को वापस ले लिया जाएगा. इसके अलावा वह यूपीए के कुछ क्षत्रपों के भी संपर्क में बताए जाते हैं और उन्हें लुभाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, जो कि वर्तमान एग्जिट पोल के साथ ही विफल होने के लिए पहले से ही अभिशप्त हो गए हैं. तथापि, सूत्रों का कहना है कि घनश्याम सिंह को सरकार में प्रत्याशित परिवर्तन के साथ मेंबर ट्रैक्शन या सीवीसी के रूप में दूसरा कार्यकाल पाने का इतना भरोसा है कि वह यह भूल गए हैं कि देश के अधिकांश नौकरशाह एवं नागरिक उनके जैसे महाभ्रष्ट और कदाचारी नहीं हैं!
बहरहाल, सरकार, मंत्री और सभी केंद्रीय जांच एजेंसियां भले ही करीब दो साल से ज्यादा के कार्यकाल के दौरान घनश्याम सिंह के भ्रष्टाचार को नियंत्रित नहीं कर पाईं, मगर अब उम्मीद की जा सकती है कि यह महत्वपूर्ण काम दिल्ली हाई कोर्ट की निगरानी में होगा. इस केस के माध्यम से निकट भविष्य में सीबीआई, सीवीसी, सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टीगेशन, डीओपीटी और यूपीएससी सबकी कलई खुलकर सामने आ सकती है, जिन्होंने समय रहते अपने कर्तव्य के अनुपालन में भारी कोताही बरती है.