पद बदल-बदलकर आलोक सिंह को पुनः पीसीसीएम बनाया गया
एक जोन में लंबे समय से टिके अधिकारियों पर प्रभावी नहीं रेलमंत्री का आदेश
30 सालों में अब तक एक बार भी पूर्वोत्तर रेलवे से बाहर नहीं गए आलोक सिंह
नियमों और नैतिकता को ताक पर रखकर कौन सा संदेश दे रहा है रेल प्रशासन?
सुरेश त्रिपाठी
जहां राजनीतिक हस्तक्षेप इस जोड़तोड़ और कदाचारपूर्ण प्रशासनिक व्यवहार के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है, वहीं उतना ही जिम्मेदार वह सक्षम अधिकारी भी हैं, जो ऐसी सिफारिशें करने वाले राजनीतिज्ञों अथवा मंत्रियों को संबंधित अधिकारी की असलियत बताने का साहस नहीं कर पाते और आंख बंद करके सब कुछ जानते-बूझते हुए भी उनकी सिफारिशों पर अमल करके भ्रष्टाचार तथा कदाचार को बढ़ावा देने के उनके इस दुष्कृत्य के भागीदार बन जाते हैं. प्रस्तुत मामला पूर्वोत्तर रेलवे के प्रिंसिपल सीओएम आलोक सिंह को पुनः प्रिंसिपल सीसीएम बनाए जाने का है. बताते हैं कि उनकी यह पोस्टिंग रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के कहने पर की गई है. जबकि पीसीओएम बने उन्हें अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था.
उल्लेखनीय है कि गुरूवार, 7 फरवरी को चेयरमैन, रेलवे बोर्ड पूर्वोत्तर रेलवे के निरीक्षण दौरे पर थे. इसके अगले दिन ही शुक्रवार, 8 फरवरी को उपरोक्त दोनों अधिकारियों का पोस्टिंग ऑर्डर रेलवे बोर्ड द्वारा निकाला गया. इसका तात्पर्य यह निकाला जा रहा है कि सीआरबी के उक्त दौरे के समय अथवा उससे एक हफ्ते पहले रेल राज्यमंत्री द्वारा उनको पीसीसीएम बनाए जाने की सिफारिश की गई होगी. इसके अलावा यह भी ज्ञात हुआ है कि आलोक सिंह की पोस्टिंग सीएसओ के पद पर की जा रही थी. इसकी भनक लगते ही वह पिछले हफ्ते वीपीयू कटवाकर 2 फरवरी को गोरखधाम एक्सप्रेस में अपना सैलून लगवाकर भागते हुए रेलवे बोर्ड पहुंचे थे. जानकारों का मानना है कि इसी दरम्यान उन्होंने पूर्व की भांति रेल राज्यमंत्री से मिलकर अपनी पोस्टिंग बदलवाकर पीसीसीएम में करवा ली होगी.
ज्ञातव्य है कि निर्धारित नियम के अनुसार वीपीयू काटकर सैलून अटैच करने का यह अधिकार पीसीओएम ही नहीं, बल्कि किसी जोनल जीएम को भी नहीं है. यह अधिकार सिर्फ रेलवे बोर्ड के पास है. तथापि सिर्फ बोर्ड मेंबर या सीआरबी के लिए भी अत्यावश्यक यात्रा के मौके पर ही इस अधिकार का प्रयोग रेलवे बोर्ड द्वारा कभी-कभार ही किया जाता है. बताते हैं कि अब मातहत अधिकारी ने जब उक्त सैलून अटैच करने की अधिकृत अनुमति देने की फाइल भेजी, तो आलोक सिंह उसे एक हफ्ते से दबाकर बैठे हुए हैं. जानकारों का कहना है कि उन्हें यह अनुमति देने का अधिकार नहीं है. यदि वह फाइल पर अनुमति रिकॉर्ड करते हैं, तो प्रशासनिक कदाचार और मनमानी के मामले में दोषी साबित होंगे, इसलिए संभावना इस बात की है कि वे उक्त कागज को फाड़कर फेंक देंगे या फाइल ही गायब कर देंगे. विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार यह मामला 5 फरवरी को जीएम मीटिंग से पहले वहां उपस्थित कई विभाग प्रमुखों के बीच चर्चा का विषय भी था.
यही नहीं, अधिकारी बताते हैं कि आलोक सिंह का एक फेवरिट सैलून (आरए-48) है. यह आलीशान सैलून वह अपने किसी भी समकक्ष विभाग प्रमुख को नहीं देते हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में ऐसे दो मौके आए थे, जब आलोक सिंह ने उक्त सैलून दो विभाग प्रमुखों को देने से साफ मना कर दिया था. बताते हैं कि अन्य कोई सैलून उपलब्ध न होने की स्थिति में कुछ दिन पहले इस सैलून की मांग पहले प्रिंसिपल चीफ इलेक्ट्रिक इंजीनियर (पीसीईई) बेचू राय ने और बाद में प्रिंसिपल चीफ पर्सनल ऑफिसर (पीसीपीओ) एल. बी. राय ने की थी, मगर कथित तौर पर पीसीओएम आलोक सिंह ने इन दोनों विभाग प्रमुखों को टके सा जवाब देकर उक्त सैलून उन्हें देने से स्पष्ट इंकार कर दिया था.
जानकारों का कहना है कि एओएम से लेकर विभाग प्रमुख बनने तक जो अधिकारी पूर्वोत्तर रेलवे में ही जमा हुआ है, उसके लिए यह तमाम जोड़तोड़ सामान्य बात हो चुकी है. यही वजह है कि हाल ही में जो दो ग्रुप ‘बी’ अधिकारी बनाए गए हैं, वह उनकी अपनी बिरादरी के ही हैं. उनका यह भी कहना है कि इनमें से एक की अपने पास पोस्टिंग के लिए वह इतने उतावले हो गए कि उसकी अकेले की पोस्टिंग का प्रस्ताव बनाकर भेज दिया था, जिसे जीएम ने यह कहते हुए लौटा दिया कि दोनों की पोस्टिंग का प्रस्ताव एकसाथ भेजा जाए. ज्ञातव्य है कि इसी परीक्षा के समय प्रश्न पत्र चार घंटे बाद दोपहर एक बजे दिया गया था और शाम को 8.30 बजे तक यह परीक्षा चली थी और उन लोगों को खुलकर नकल कराई गई थी. यह प्रश्न पत्र खुद पीसीओएम ने ही बनाया था. इस मामले को उजागर करने पर वह इस प्रतिनिधि पर खूब आगबबूला भी हुए थे.
इससे पहले वाणिज्य विभाग की परीक्षा में उनके द्वारा की गई गड़बड़ी पर सिर्फ आरटीआई लगा देने मात्र से छपरा के एक कर्मचारी को उन्होंने पदोन्नति इसलिए दे दी थी, क्योंकि यदि ऐसा नहीं करते, तो उन्हें गंभीर कानूनी और विजिलेंस मामले झेलने पड़ते. यही नहीं, अपने मातहत दो चपरासियों की पदोन्नति की फाइल वह करीब दो-ढ़ाई महीने सिर्फ इसलिए दबाए बैठे रहे थे, क्योंकि दोनों चपरासी उनके द्वारा कथित रूप से मांगे गए 50-50 हजार रुपये नहीं दे पा रहे थे. सोशल मीडिया पर इस मामले के उजागर होते ही सबसे पहले उन्होंने उन दोनों चपरासियों को चैम्बर में बुलाकर बहुत भला-बुरा कहा, मगर तुरंत उनकी फाइल उसी दिन निकाल दी थी. जबकि गोरखपुर स्टेशन के सफाई कांट्रेक्टर से बतौर कमीशन 70 लाख मांगे जाने का कथित मामला तो बहुत दिनों तक चर्चा में रहा है.
बहरहाल, रेलमंत्री पीयूष गोयल के निर्देश पर तत्कालीन प्रिंसिपल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, विजिलेंस, रेलवे बोर्ड सुनील माथुर द्वारा संवेदनशील पदों पर लंबे समय से कार्यरत रेलकर्मियों के अविलंब अन्यत्र तबादले का आदेश (पत्र सं. 2018/वी-1/सीवीसी/5/1, दि. 30.11.2018) आलोक सिंह जैसे संदिग्ध विश्वसनीयता वाले अधिकारियों पर प्रभावी क्यों नहीं हुआ है, जो कि लंबे समय से ही नहीं, बल्कि अपने पूरे सेवाकाल में एक ही जोन में खूंटा गाड़कर टिके हुए हैं? इसके अलावा रेलवे बोर्ड के पत्र सं. 2008/वी-1/सीवीसी/1/4, दि. 11.08.2008 के अनुसार जोनल रेलवे मुख्यालयों में वाणिज्य विभाग की पीसीओएम, पीसीसीएम, सीएफटीएम, सीसीओ, डिप्टी सीसीएम/क्लेम्स, कैटरिंग, एससीएम/रिजर्वेशन सहित मंडलों में सीनियर डीओएम, सीनियर डीसीएम, सीटीएम, डिप्टी सीटीएम, एरिया सुपरिंटेंडेंट, डीओएम, डीसीएम, एसीएम/रिजर्वेशन इत्यादि पद अत्यंत संवेदनशील श्रेणी के नामांकित किए गए हैं. उल्लेखनीय है कि पूर्वोत्तर रेलवे के जोनल एवं डिवीजनल मुख्यालयों में रहकर आलोक सिंह इन्हीं सब संवेदनशील पदों पर लगभग 30 सालों से कार्यरत रहे हैं. ऐसे में उन्हें इस जोन से बाहर एक बार भी अब तक क्यों नहीं भेजा गया? क्रमशः
इनपुट सहाय्य : विजय शंकर, ब्यूरो प्रमुख, गोरखपुर