रेलमंत्री पीयूष गोयल का प्रोजेक्ट बताकर की जा रही फिजूलखर्ची?
परेल स्टेशन पर कभी इस्तेमाल न होने वाले एक और एफओबी का निर्माण!
ड्राइंग/डिजाइन की पूर्व मंजूरी के बिना ही शुरू किया गया निर्माण कार्य
रेलमंत्री की बचकानी जिद के सामने असहाय मध्य रेलवे के अधिकारी?
मुंबई : मध्य रेलवे निर्माण संगठन द्वारा परेल स्टेशन (टर्मिनस) के दादर छोर पर बने पैदल ऊपरी पुल (एफओबी) से लगकर एक और नए एफओबी का निर्माण किया जा रहा है. जबकि उपनगरीय यात्रियों द्वारा उसी जगह पहले से बने एफओबी का कोई इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा पश्चिम रेलवे के प्रभादेवी स्टेशन (पूर्व नाम एल्फिंस्टन रोड) पर हुए हादसे के बाद रेलवे के काबिल अभियंताओं को दरकिनार करके रेलमंत्री ने उसी जगह पहले से बने जिस एफओबी को अपनी जिद पर सेना से विस्तारित करवाया था और इसे पश्चिम रेलवे की तरफ प्रभादेवी स्टेशन से दूर दादर छोर पर उतरवाया है, उसका भी कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है. तथापि उसी से लगकर एक और नए एफओबी का अनावश्यक निर्माण कार्य शुरू किया जा रहा है, जिसका भविष्य में भी कोई उपयोग नहीं होने वाला है. इसकी कुल लागत करीब दो से ढ़ाई करोड़ रुपये बताई गई है.
विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेल समाचार’ को मिली जानकारी के अनुसार मध्य रेलवे निर्माण संगठन द्वारा उपरोक्त अनावश्यक एफओबी का निर्माण रेलमंत्री पीयूष गोयल का प्रोजेक्ट बताकर किया जा रहा है. सूत्रों का कहना है कि एफओबी का यह निर्माण कार्य इसकी ड्राइंग-डिजाइन की पूर्व मंजूरी के बिना ही शुरू कर दिया गया. बताते हैं कि जब लगभग 40-50 लाख रुपये का काम हो गया, तब संबंधित अधिकारियों को इसकी ड्राइंग-डिजाइन का होश आया, जो कि तब तक मंजूर ही नहीं हुई थी. सूत्रों का कहना है कि इसकी मंजूरी संबंधित अधिकारी द्वारा इसलिए नहीं दी जा रही थी, क्योंकि उसका मानना था कि यह पूरी तरह से पैसे की बरबादी और फिजूलखर्ची है, क्योंकि इस एफओबी का भविष्य में भी कोई इस्तेमाल नहीं होने वाला है.
इस बारे में जब मध्य रेलवे निर्माण संगठन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी से ‘रेल समाचार’ ने जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की, तो उन्होंने मीटिंग में होने की बात कहकर एफओबी का काम देखने वाले संबंधित अधिकारी (सीई/सी/एमटीपी) से संपर्क करने को कहकर कॉल समाप्त कर दी. जबकि सीई/सी/एमटीपी से तमाम कोशिशों के बावजूद संपर्क स्थापित नहीं किया जा सका.
तत्पश्चात मुख्य जनसंपर्क अधिकारी, मध्य रेलवे सुनील उदासी से संपर्क करके उक्त एफओबी के संबंध में जानकारी मांगी गई और पूछा गया कि ड्राइंग/डिजाइन की पूर्व मंजूरी लिए बिना ही उक्त एफओबी का निर्माण कार्य कैसे शुरू कर दिया गया. श्री उदासी ने दूसरे दिन बताया कि एफओबी निर्माण के लिए आवश्यक सभी मंजूरियां प्राप्त हैं. हालांकि उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि जब पिछले चार-पांच सालों से लेकर अब तक भी वहां पहले से बनाए गए एफओबी का कोई यात्री इस्तेमाल नहीं कर रहा है तथा सेना द्वारा उसे विस्तारित करने के बाद भी उपनगरीय यात्रियों द्वारा उसका कोई उपयोग नहीं किया जा रहा है, ऐसे में वहां एक और नया एफओबी बनाए जाने का क्या औचित्य है?
मुंबई उपनगरीय रेलयात्रियों के लिए सुपरिचित रेलवे एक्टिविस्ट और ‘रेल यात्री परिषद’ के प्रमुख तथा पश्चिम रेलवे की जोनल रेलवे उपयोगकर्ता सलाहकार समिति (जेडआरयूसीसी/प.रे.) के सदस्य सुभाष हरिश्चंद गुप्ताके साथ जब ‘रेल समाचार’ प्रतिनिधि ने परेल स्टेशन पर निर्माणाधीन उक्त एफओबी का मौका-मुआयना किया, तो श्री गुप्ता का भी स्पष्ट कहना था कि यह एफओबी न सिर्फ अनावश्यक और गैरजरूरी है, बल्कि इस तरह पैसे की बरबादी की जा रही है. श्री गुप्ता ने भी माना कि पहले से वहां बने और बाद में सेना द्वारा विस्तारित किए गए एफओबी का न तो वर्तमान में उपनगरीय यात्रियों द्वारा उपयोग किया जा रहा है, और न ही भविष्य में उसका कोई इस्तेमाल होने वाला है.
इसके अलावा श्री गुप्ता का यह भी कहना था कि परेल स्टेशन पर उतरने वाले यात्रियों का प्रवाह हमेशा सीएसटी यानि आगे की तरफ होता है. इसलिए दो-चार यात्रियों को छोड़कर उक्त एफओबी का इस्तेमाल उपनगरीय यात्रियों द्वारा नहीं किया जाता है. लगभग यही बात श्री गुप्ता ने अपनी ट्वीट में भी कही है. उन्होंने रेलमंत्री पीयूष गोयल के एक ट्वीट के जवाब में ट्वीट करते हुए लिखा है कि परेल और प्रभादेवी स्टेशनों पर रेलवे द्वारा बहुत सारे कार्य किए जा रहे हैं, मगर यह कार्य दिशाहीन हैं. यह कार्य यात्री सुख-सुविधा (पैसेंजर फ्रेंडली) के अनुरूप नहीं किए जा रहे हैं.
यही नहीं, रेलवे के कई सुविज्ञ सिविल इंजीनियरों का यह भी कहना है कि दो-चार साल बाद जब परेल वर्कशॉप की जगह पूरी तरह से टर्मिनस का संचालन शुरू होगा, तब परेल स्टेशन के उक्त एफओबी को तोड़ना पड़ेगा. ऐसे में भविष्य को देखते हुए यह एफओबी सिर्फ वर्तमान में ही नहीं, बल्कि भविष्य में भी न केवल अनावश्यक और अनुपयोगी साबित होगा, बल्कि तब इस पैसे की बरबादी के लिए किसे जिम्मेदार ठराया जाएगा? उल्लेखनीय है कि नए बनाए जा रहे एफओबी की सीढ़ियां उसी जगह सेना द्वारा विस्तारित एफओबी के नीचे से प्लेटफार्म पर उतारी जाने वाली हैं. मध्य रेलवे निर्माण संगठन के संबंधित अभियंताओं द्वारा बनाई गई इस एफओबी की ड्राइंग/डिजाइन की कल्पना करने मात्र से उनकी काबिलियत पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लग जाता है.
ताजा जानकारी मिली है कि उक्त एफओबी की ड्राइंग/डिजाइन की मंजूरी ‘रेल समाचार’ की पूछताछ के बाद मध्य रेलवे के मुख्य पुल अभियंता (सीबीई) से लगभग जबरन ली गई है, क्योंकि कोई भी जिम्मेदार अधिकारी रेलमंत्री को इस एफओबी की भावी अनुपयोगिता के बारे में बताकर उनका कोप-भाजन नहीं बनना चाहता है. हालांकि यह भी बताया जा रहा है कि मध्य रेलवे के सभी उच्च अधिकारी इस एफओबी की वर्तमान एवं भावी अनुपयोगिता से बखूबी सहमत हैं, तथापि रेलमंत्री द्वारा दिए गए लक्ष्य (टारगेट) के कारण वह भी इस अनावश्यक निर्माण कार्य और गैरजरूरी खर्च को रोक पाने में असहाय महसूस कर रहे हैं. एक तरफ मुंबई मंडल मध्य रेलवे द्वारा पॉवर कार/आरएमपीयू इत्यादि परिसंपत्तियों के रखरखाव सहित अन्य कई प्रकार के टेंडर्स वास्तविक से तीन गुना ज्यादा लागत पर बजटिंग करके जिस कंपनियों को दिए गए हैं, उन्होंने पूर्व मंजूरी के बिना ही उक्त टेंडर्स को सब्लेट कर दिया है और संबंधित अधिकारी उन्हें टर्मिनेट करने की जहमत नहीं कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ निर्माण संगठन और विभिन्न मंडलों के इंजीनियरिंग विभाग जानबूझकर अनावश्यक कार्यों की तजबीज कर करोड़ों रुपये की फिजूलखर्ची करके तन-मन से धन कमाने में जुटे हुए हैं, मगर ‘सिर-झटक’ आदेश दनदनाने के बाद रेलमंत्री को इनकी कोई खोज-खबर लेने की फुर्सत नहीं है?