विनोद कुमार यादव की नियुक्ति से रेलकर्मियों को सुखद आश्चर्य
सिद्धि से दूर रहने वाले यादव बने रेलकर्मियों की एक बेहतर पसंद
श्रमिक संगठनों के साथ बेहतर समन्वय और कार्मिक कल्याण जरूरी
यादव को लोकलुभावन निर्णयों से दूर रहकर ठोस उपाय करना होगा
सुरेश त्रिपाठी
उल्लेखनीय है कि ‘रेल समाचार’ को अपने विश्वसनीय सूत्रों से पता चला था कि नए चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) के लिए दिसंबर के पहले हफ्ते में ही रेलमंत्री द्वारा तीन वरिष्ठ रेल अधिकारियों, विश्वेश चौबे, मेंबर इंजीनियरिंग, राजेश अग्रवाल, मेंबर रोलिंग स्टॉक और ललित चंद्र त्रिवेदी, जीएम/पू.म.रे. का पैनल पीएमओ को भेज दिया गया था. तभी से यह भी तय माना जा रहा था कि रेलमंत्री पीयूष गोयल, अश्वनी लोहानी को सेवा-विस्तार देने के मूड में नहीं हैं. तथापि जीएम/द.म.रे. विनोद कुमार यादव का नाम तब कहीं चर्चा में भी नहीं था. सूत्रों के अनुसार श्री चौबे का सीआरबी बनना लगभग तय माना जा रहा था, मगर ज्यादातर अधिकारी उनके सीआरबी बनने को बहुत ज्यादा अच्छा नहीं मान रहे थे. उनका कहना था कि निर्णय लेने में मेंबर इंजीनियरिंग विश्वेश चौबे न सिर्फ कमजोर हैं, बल्कि जीएम/उ.रे. के रूप में वह प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी बहुत कार्यक्षम साबित नहीं हो पाए. जबकि उनसे बेहतर मेंबर रोलिंग स्टॉक राजेश अग्रवाल और जीएम/पू.म.रे. एल. सी. त्रिवेदी को माना जा रहा था.
सोमवार, 31 दिसंबर को सुबह से ही तमाम अधिकारी और रेलकर्मचारी यह जानने को अत्यंत उत्सुक थे कि नया सीआरबी कौन बन रहा है. दोपहर बाद चार बजे तक उनकी यह उत्सुकता चरम पर पहुंच गई थी, क्योंकि चार बजे रेल भवन स्थित कांफ्रेंस हॉल में सीआरबी अश्वनी लोहानी के साथ चार-पांच अन्य अधिकारियों का विदाई समारोह पूर्व निर्धारित था. नए सीआरबी के नाम की घोषणा और विदाई समारोह शुरू होने में देरी के चलते यह कयास लगाया जाने लगा कि शायद श्री लोहानी को सेवा-विस्तार दिया जा रहा है. बहरहाल, जब 5.30 बजे श्री लोहानी कांफ्रेंस हॉल में पहुंचे, तब लोगों ने यह मान लिया कि उन्हें सेवा-विस्तार नहीं मिला है. रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने श्री लोहानी को उनके सेवानिवृत्ति संबंधी कागजात सौंपते हुए उन्हें स्वस्थ-सुखद जीवन की शुभकामनाएं दीं.
जहां तमाम अधिकारी और कर्मचारी विश्वेश चौबे के नया सीआरबी बनने की संभावना से संतुष्ट नहीं थे, वहीं उनमें से ज्यादातर अश्वनी लोहानी को सेवा-विस्तार दिए जाने के भी पक्ष में नहीं थे. दोपहर में एक वरिष्ठ अधिकारी ने तो ‘रेल समाचार’ से यहां तक कहा कि श्री लोहानी को सेवा-विस्तार दिए जाने की पैरवी खुद कैबिनेट सेक्रेटरी कर रहे हैं. हालांकि उनकी बात सच साबित नहीं हुई और श्री लोहानी बाइज्जत सेवानिवृत्त हो गए. सेवा-विस्तार मिलने की बात बखूबी मालूम होते हुए भी ‘स्टोरकीपर’ ए. के. मित्तल की तरह चालाकी दिखाते हुए और अपने सेवा-विस्तार की बात छिपाकर जीएम कांफ्रेंस के बहाने सभी जोनों के जीएम को भी उन्होंने दिल्ली नहीं बुलाया. परिवर्तन ही बेहतर विकास और समृद्धि का द्योतक है. अतः कार्यकाल पूरा कर चुके किसी अधिकारी को सेवा-विस्तार दिया जाना कभी उचित नहीं ठहराया जा सकता. इससे न सिर्फ गलत संदेश जाता है और सरकार की मंशा पर भी सवाल उठता है, बल्कि अन्य अधिकारियों की पदोन्नति का हक भी मारा जाता है. वर्तमान केंद्र सरकार ने कुछ चुके हुए नौकरशाहों को सेवा-विस्तार देने की एक गलत और सर्वथा अनुचित परंपरा की नींव डाली, जिसके परिणाम बहुत अच्छे नहीं निकले. तथापि यह भी सही है कि सरकारें सिर्फ अपने राजनीतिक स्वार्थ के तहत ही चुके हुए नौकरशाहों को सेवा-विस्तार देने का अनुचित कदम उठाती रही हैं.
इसके बाद एयर इंडिया चीफ को भारतीय रेल के जीएम के समकक्ष बताकर अश्वनी लोहानी को सीधे सीआरबी बना दिया था. इसके बाद भी कई अन्य चुके हुए नौकरशाहों को भी इसी प्रकार सेवा-विस्तार दिया गया. हाल ही में आगामी लोकसभा चुनावों का अनुचित कारण बताकर सरकार द्वारा आईबी और रॉ प्रमुख को भी 6-6 महीने का सेवा-विस्तार दिया गया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि या तो सरकार को अपनी कार्य-प्रणाली और विभिन्न विकास योजनाओं पर पूरा भरोसा नहीं है अथवा उसे अन्य नौकरशाहों की काबिलयत पर विश्वास नहीं है. हालांकि सरकार को अपने भरोसेमंद नौकरशाहों की नियुक्ति का पूरा हक है, परंतु इस तरह अन्य नौकरशाहों की काबिलियत और कर्तव्यपरायणता पर अविश्वास जताना न तो उचित है और न ही इसका कोई औचित्य ठहराया जा सकता है.
यह भी सर्वज्ञात है कि पिछले करीब पांच सालों से वर्तमान केंद्र सरकार रेल मंत्रालय को तदर्थ आधार पर चला रही है. इस दरम्यान तीन रेलमंत्री हो चुके हैं, जबकि दो रेल राज्यमंत्री भी हैं. तथापि इनमें से किसी के साथ भी रेल अधिकारियों का सही तालमेल नहीं बैठ सका है. यह सर्वज्ञात है कि साफ-सुथरी और बेदाग छवि वाले और ‘सुशासन बाबू’, जिसकी कार्य-प्रणाली में होते हुए तो बहुत कुछ दीखता है, मगर वास्तविक धरातल वास्तव में कुछ नहीं हो रहा होता है, की पदवी प्राप्त निवर्तमान सीआरबी अश्वनी लोहानी और उद्दंड एवं मुंहफट रेलमंत्री पीयूष गोयल की पटरी कभी नहीं बैठी. यही वजह थी कि रेल भवन में होने वाली आतंरिक बैठकों को छोड़कर दोनों को एक साथ किसी अन्य मंच पर नहीं देखा गया.
जानकारों का तो यहां तक कहना है कि रेलमंत्री महोदय सर्वाधिक विवादास्पद मेंबर ट्रैक्शन को सीआरबी का अतिरिक्त कार्यभार देकर अगले 6 महीनों, यानि लोकसभा चुनावों तक रेलवे का कामकाज चलाना चाहते थे. यही वजह थी कि उन्होंने अपने द्वारा ही दिसंबर के पहले हफ्ते में भेजे गए सीआरबी के पैनल का फॉलो-अप नहीं किया. हालांकि भारतीय रेल का कोई भी अधिकारी या कर्मचारी मेंबर ट्रैक्शन को सीआरबी बनते हुए अथवा उन्हें इसका अतिरिक्त कार्यभार दिए जाने के पक्ष में नहीं था. इसीलिए वी. के. यादव जैसे निष्पक्ष सीआरबी के आने से उन्होंने भारी राहत महसूस की है और भले ही नियम विरुद्ध ही सही, मगर सरकार के इस निर्णय का सभी रेल अधिकारियों और कर्मचारियों ने स्वागत किया है.
कई वरिष्ठ रेल अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर ‘रेल समाचार’ से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यदि मेंबर ट्रैक्शन को सीआरबी का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया गया होता, तो वह अपने बचे हुए पांच महीने के कार्यकाल में ही भारतीय रेल का भट्ठा बैठाकर इसको बेच देते. उल्लेखनीय है कि डेढ़ साल पहले भी मेंबर ट्रैक्शन ने भरपूर कोशिश की थी कि उन्हें सीआरबी बना दिया जाए. इसके लिए उन्होंने एक अत्यंत आकर्षक वीडियो बनवाकर और उसमें फर्जी आंकड़ेबाजी दिखाकर न सिर्फ प्रधानमंत्री एवं रेलमंत्री का बहुत जोरदार गुणगान किया था, बल्कि उसे यू-ट्यूब पर अपलोड करके सोशल मीडिया में भी काफी वायरल करवाया था. मगर तब भी सरकार द्वारा अचानक अश्वनी लोहानी को ले आने से उनकी इस कुचेष्टा पर पानी फिर गया था, जबकि इस बार उनसे जूनियर वी. के. यादव के सीआरबी पद पर अचानक प्रकट हो जाने से तो उनकी बची-खुची उम्मीदों पर पूरी तरह तुषारापात हो गया है. इसके साथ ही कैडर बिरादरी के नाते श्री यादव के सीआरबी बनकर मेंबर ट्रैक्शन के ऊपर बैठ जाने से अब उनकी लगाम भी टाइट हो जाने की पूरी संभावना है.
हालांकि श्री यादव ने सीआरबी का अपना नया कार्यभार संभालने के बाद सुरक्षा, संरक्षा, यात्री सुविधाएं, समयपालन, परिसंपत्तियों का नवीनीकरण, रखरखाव और कार्मिक कल्याण को लेकर अपनी प्राथमिकताएं बता दी हैं, जो कि निजी प्रसिद्धि से दूर रहकर भारतीय रेल के किसी भी अधिकारी की पहली प्राथमिकता होनी ही चाहिए. वी. के. यादव से यही अपेक्षा है कि वह अश्वनी लोहानी के ‘पॉपुलिस्ट’ नक्शे-कदम पर न चलकर सरकार और खासतौर पर रेलमंत्री के साथ बेहतर तालमेल बनाकर अपने एक साल के छोटे से कार्यकाल में न सिर्फ भारतीय रेल की बिगड़ी हुई छवि को कुछ चमकाने का महती प्रयास करेंगे, बल्कि मंडल रेल प्रबंधकों पर जो तीन-तीन, चार-चार अतिरिक्त मंडल रेल प्रबंधकों का भार लादकर उनकी प्रशासनिक एवं कार्य-क्षमता को विभाजित करके डीआरएम के दायित्वों का घालमेल कर दिया गया है, उसे भी समेटने का प्रयास करेंगे. इसके साथ ही रेलवे स्टेशनों पर ‘स्टेशन निदेशक’ का महिमामंडित पद बनाकर वहां जो एक अतिरिक्त ‘स्टेशन मास्टर’ पदस्थ करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया गया है, उसको खत्म करने का कोई विकल्प तलाशेंगे.
श्री यादव से यह भी अपेक्षा है कि वह मान्यताप्राप्त संगठनों के साथ ही आरबीएसएस की न सिर्फ नकेल कसने का प्रयास करेंगे, बल्कि उनके साथ उचित समन्वय बनाकर रेलकर्मियों की जायज मांगों का निस्तारण भी करेंगे, जिससे पूरी भारतीय रेल में जहां-तहां आए दिन होने वाले धरनों-प्रदर्शनों-आंदोलनों के कारण मानव संसाधन का जो ह्रास हो रहा है, चारों तरफ श्रमिक अशांति जैसा वातावरण बना हुआ है, उससे छुटकारा मिल सके और समस्त रेलकर्मियों का पूरा ध्यान रेलवे की यात्री सुरक्षा, संरक्षा, गाड़ियों के समयपालन और रखरखाव की तरफ मोड़ा जा सके. इसके अलावा अन्यायग्रस्त अधिकारियों के साथ पूरा न्याय करेंगे और साथ ही रेलवे बोर्ड की तबादला नीति एवं संवेदनशील पदों पर आवधिक तबादलों को सुनिश्चित करेंगे, क्योंकि निवर्तमान सीआरबी का ध्यान इन तमाम आवश्यक मुद्दों के बजाय पूरे डेढ़ साल तक सिर्फ निजी प्रसिद्धि वाले लोकलुभावन निर्णयों पर ही टिका रहा, जिसके चलते सरकार और रेल प्रशासन के साथ रेलवे के मान्यताप्राप्त संगठनों के रिश्ते हमेशा तल्ख बने रहे. इनमें उचित सुधार पर उनका उचित ध्यान नहीं रहा. जीएम और डीआरएम के पदों पर समय से नियुक्ति और उनके पैनल्स की एडवांस प्लानिंग जोनों/मंडलों में विकास कार्यों की निरंतरता के लिए अत्यंत आवश्यक है. इस महत्वपूर्ण विषयों पर तमाम राजनीतिक हस्तक्षेप के बावजूद ध्यान केंद्रित करना और उन पर समयानुसार अमल सुनिश्चित करना जरूरी है. तभी भारतीय रेल के विकास के विभिन्न सोपानों को पार करना सरल हो पाएगा.