रेलवे में भ्रष्टाचार का बोलबाला, उत्पीड़ित उजागर करने वाला
ठेकेदारों के बिलों की गलत कटौती, अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं
बिल काटने वाला एक अधिकारी सही है, या न काटने वाले बाकी अधिकारी?
सुरेश त्रिपाठी
उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में वर्षों से भ्रष्टाचार एवं कदाचार का बोलबाला है. इसमें पूर्व सीएओ/सी बी. डी. गर्ग के निर्देशानुसार 14/17.08.2015 को जारी किए गए आदेश (सं. डिप्टी सीई/सी/मिस./ईएसटीटी.) के कारण और ज्यादा भ्रष्टाचार पैदा हुआ. उक्त पत्र के बाद निर्माण अधिकारियों की मनमानी का कोई अंत नहीं रहा. हालांकि नियमानुसार इस प्रकार का पत्र जारी करने का अधिकार या तो सिर्फ प्रिंसिपल चीफ इंजीनियर (पीसीई) को है, या रेलवे बोर्ड को. तथापि ‘रेल समाचार’ द्वारा कई बार इस मुद्दे को संज्ञान में लाए जाने के बाद भी उक्त दोनों प्राधिकारों ने न तो उल्लेखित पत्र को निरस्त करना जरूरी समझा और न ही उस पर कोई उचित कदम उठाया. इसके परिणामस्वरूप जहां कुछ निर्माण अधिकारियों द्वारा मनमानी तरीके से ठेकेदारों के बिल काट दिए गए, वहीं अधिकांश अधिकारियों ने उक्त पत्र के निर्देशों का पालन करना जरूरी नहीं समझा और उन्होंने टेंडर कंडीशन के अनुरूप ठेकेदारों का बिल भुगतान करना जारी रखा.
जिन कई ठेकेदारों के बिल काटे गए, उनका कहना है कि सिर्फ शकूरबस्ती स्थित निर्माण कार्यालय के अधिकारियों ने ही उनके बिल काटे हैं, बाकी लगभग सभी अधिकारियों ने टेंडर कंडीशन के अनुसार सभी ठेकेदारों के बिलों का भुगतान किया है. उनका यह भी कहना है कि जब सिर्फ एक कार्यालय के अधिकारियों ने ही बिल काटा है, और बाकी अन्य निर्माण कार्यालयों के अधिकारियों ने उनका उचित भुगतान किया है, तो एक अधिकारी गलत है, या सभी गलत हैं? यदि एक अधिकारी गलत है, तो उसके विरुद्ध अब तक कोई उचित कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जबकि इस संबंध में सुभाष शर्मा (युवीए इंजीनियर्स प्रा. लि.) नामक ठेकेदार ने 15.08.2018 को इस संबंध में सीआरबी, रेलवे बोर्ड विजिलेंस, उ.रे. विजिलेंस सहित सीवीसी को भी लिखित शिकायत दी थी. तथापि अब तक संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई है, सिर्फ कागज दौड़ाकर फाइलों का पेट भरा जा रहा है.
ठेकेदार सुभाष शर्मा ने लिखा है कि यूएसओआर-2010 के ‘एफओबी एवं शेड्स’ के लिए एक्स्ट्रा हाइट आइटम नं. 081043 के अंतर्गत बिलों के भुगतान में भी भारी भ्रष्टाचार किया जा रहा है. हालांकि यह आइटम सीएओ/सी के आदेश दि. 14/17.08.2015 के अनुसार प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसके बावजूद इस आइटम के तहत संबंधित अधिकारियों द्वारा उन ठेकेदारों को भुगतान किया जा रहा है, जो उन्हें मोटी रिश्वत दे रहे हैं, बाकी जिन्होंने रिश्वत देने से मना कर दिया, उन ठेकेदारों को इस आइटम में भुगतान नहीं किया गया. ठेकेदार सुभाष शर्मा ने इसके अलावा पीएमओ के प्रशासनिक सुधार एवं जन-शिकायतें विभाग के पास भी अपनी शिकायत भेजी थी, जिसे जन-शिकायत विभाग ने दि. 01.10.18 को रेलवे बोर्ड के ईडी/पीजी विवेक श्रीवास्तव को फॉरवर्ड किया था, मगर श्रीवास्तव की तरफ से इस मामले में अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है.
यही नहीं, इसके साथ ही डिप्टी सीई/जनरल, उ.रे. मुख्यालय, बड़ोदा हाउस द्वारा भी दि. 13.08.2018 के समसंख्यक पत्र एवं उ.रे. विजिलेंस के दि. 27.08.2018 के उपरोक्त पत्र का हवाला देते हुए त्वरित कार्रवाई करने और अपने ‘कमेंट्स’ सीधे विजिलेंस को भेजने के लिए सीएओ/सी, कश्मीरी गेट को पत्र (सं. 74-डब्ल्यू/0/टेंडर कम्प्लेंट्स/पीटी-3/2017/डब्ल्यूए, दि. 12.09.2018) लिखा गया था. तथापि आज तक किसी भी प्राधिकार की तरफ से कोई उचित कार्रवाई नहीं की गई है.
इस ठेकेदार का यह भी कहना था कि इस तरह का उत्पीड़न और नियम विरुद्ध बिल काटने एवं रोकने का काम सिर्फ हरपाल सिंह द्वारा ही किया गया है, जबकि बाकी निर्माण कार्यालयों के अधिकारियों द्वारा बराबर भुगतान किया गया है. उसका यह भी कहना था कि यदि बिल भुगतान करने वाले बाकी सभी अधिकारी गलत हैं, तो उनके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए. और यदि अकेले हरपाल सिंह गलत हैं, तो उनके खिलाफ बर्खास्तगी कार्रवाई अविलंब की जानी चाहिए.
बहरहाल, सच क्या है, गलत क्या है, बिल काटने वाला एक अधिकारी सही है, या बिल भुगतान करने वाले बाकी सभी अधिकारी सही हैं, उ.रे. निर्माण संगठन में भ्रष्टाचार की जड़ बन चुका 14/17.08.2015 का निर्देश सही है या गलत, यदि यह सही है, तो 99% निर्माण अधिकारियों द्वारा इसके निर्देशों के विरुद्ध किया गया भुगतान गलत है और ये सभी अधिकारी भ्रष्ट हैं, इन सभी अधिकारियों के खिलाफ अविलंब कार्रवाई की जानी चाहिए और उन्हें तत्काल निर्माण संगठन से बाहर किया जाना चाहिए. और यदि यह पत्र गलत है, तो अकेले हरपाल सिंह द्वारा किया गया कृत्य निश्चित रूप से गंभीर कदाचार और भ्रष्टाचार की श्रेणी आता है, उन्हें अविलंब बर्खास्त किया जाना चाहिए.
इसके साथ ही यदि यह पत्र गलत है, तो इसे अब तक निरस्त क्यों नहीं किया गया, क्योंकि उपरोक्त तमाम गड़बड़-घोटाले का आधार यही पत्र है, और इसे जारी करने वाले अधिकारी सहित तत्कालीन सीएओ/सी के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इन सवालों का जवाब तो उत्तर रेलवे सहित रेलवे बोर्ड को ढूंढना ही होगा और देना भी होगा. इसके साथ ही सभी संबंधित अधिकारियों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह जिन आकाओं के कहने या इशारे पर यह सारा अत्याचार, भ्रष्टाचार और कुकृत्य कर रहे हैं, वह न तो हमेशा रहेंगे, और न ही उन्हें कोई नुकसान होने वाला है, परंतु नियम विरुद्ध किए गए कुकृत्यों को तो उन्हें ही भुगतना पड़ेगा.