आईआरसीटीसी के लिए आखिर इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं अनिल गुप्ता?
रेलवे बोर्ड का आदेश दरकिनार करके गुप्ता की पोस्टिंग दिल्ली में किसने की?
लाइसेंसियों से मध्यस्थता के लिए अनिल गुप्ता का उपयोग किए जाने का आरोप
प्रशिक्षित अधिकारी नहीं, बल्कि आईआरसीटीसी को चला रहा है कैटरिंग माफिया!
वर्ष 2014-15 से अब तक जारी सभी लाइसेंसियों के डाक्यूमेंट्स की जांच की मांग
सुरेश त्रिपाठी
आईआरसीटीसी के इन्हीं कुछ कदाचारी अधिकारियों की आंख का तारा इनका एक एजीएम स्तर का कर्मचारी अनिल गुप्ता भी है, जो कि बड़े कैटरिंग माफियाओं और उनके बीच की एक मजबूत कड़ी बताया जाता है. इसीलिए कहा जाता है कि अनिल गुप्ता को यह अधिकारी किसी भी स्थिति में अपने आसपास रखने के लिए विवश हैं. और इसीलिए उन्होंने रेलवे बोर्ड के आदेश को दरकिनार करके अनिल गुप्ता की पोस्टिंग पुनः दिल्ली में कर ली है. यही नहीं, गुप्ता की इस पोस्टिंग के खिलाफ केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के ही सांसदों ने लिखित शिकायत रेलमंत्री को दी थी, जिस पर रेलमंत्री ने कोई ध्यान ही नहीं दिया और इसीलिए आईआरसीटीसी के सीएमडी ने भी सांसदों की शिकायतों को बोगस बताकर गुप्ता की दिल्ली में पोस्टिंग को जायज ठहरा दिया है.
ज्ञातव्य है कि उत्तर रेलवे में मामूली गार्ड या बुकिंग क्लर्क के पद पर रहे अनिल गुप्ता को तत्कालीन सीएमडी द्वारा अपना बगलबच्चा बनाकर आईआरसीटीसी में प्रतिनियुक्ति पर सबसे निचले पद पर लिया गया था. बताते हैं कि वर्ष 2004-05 के आसपास हुई अस्सिस्टेंट मैनेजर (एएम) की परीक्षा में गुप्ता फेल हो गया था. परंतु तत्कालीन सीएमडी ने उसे उपकृत करते हुए तमाम निर्धारित नियम-कानूनों और सेवा-शर्तों को ताक पर रखकर गुप्ता को सीधे ‘मैनेजर’ बनाकर कॉर्पोरेट ऑफिस में टेंडर डीलिंग और स्टेशनों पर स्थित खानपान स्टालों पर विभिन्न खानपान सामग्रियों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों/फर्मों को तात्कालिक अनुमति देने का अधिकार देकर महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया था.
उक्त पद पर लंबे समय से रहते हुए गुप्ता धीरे-धीरे आईआरसीटीसी में पदस्थ होने वाले सीएमडी सहित इसके लगभग सभी अधिकारियों का न सिर्फ चहेता बन गया, बल्कि कैटरिंग कॉन्ट्रैक्टर्स और तात्कालिक अनुमति चाहने वाली कंपनियों/फर्मों एवं अधिकारियों के बीच लेनदेन की एक मजबूत कड़ी बन गया. जैसा कि रेलवे बोर्ड के उपरोक्त पत्र में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि गुप्ता के बिना आईआरसीटीसी का कॉर्पोरेट कार्यालय और कामकाज ही नहीं चल सकता है तथा उसके न रहने पर आईआरसीटीसी का संपूर्ण कारोबार ठप हो जाएगा, तो यह बात सही है. बताते हैं कि यहां सीएमडी सहित आईआरसीटीसी के लगभग सभी अधिकारी उसके सरपरस्त इसीलिए बने हुए हैं, क्योंकि उनका समस्त ‘अंडर टेबल’ कारोबार गुप्ता के माध्यम से चलता है?
जानकारों का कहना है कि वर्ष 2015 में जब आईआरसीटीसी ने रेलवे बोर्ड की टेंडर पालिसी को धता बताते हुए ‘एडहाक टेंडर’ शुरू किए थे, तब उनमें इतनी ज्यादा रिलैक्सेशन कर दी गई थी कि इसके चलते तमाम सड़कछाप और गैर-अनुभवी नए कैटरिंग कॉन्ट्रैक्टर्स की भरमार हो गई. उनका कहना है कि सीवीसी अथवा रेलवे बोर्ड विजिलेंस के माध्यम से इस बात का वेरिफिकेशन किया जा सकता है. उनका कहना है कि यह रिलैक्सेशन आईआरसीटीसी के डायरेक्टर कैटरिंग की सहमति से किया गया था. उनका यह भी कहना है कि इस जांच के लिए वर्ष 2015 से अब तक अवार्ड किए गए उन सभी लाइसेंसीज के रिकार्ड्स अथवा डाक्यूमेंट्स मंगाए जाने चाहिए, जो कि उन्हें टेंडर अवार्ड करने के लिए उक्त सभी लाइसेंसीज ने आईआरसीटीसी के पास जमा कराए थे.
जानकारों का तो यहां तक कहना है कि नार्थ जोन में गुप्ता की पोस्टिंग मात्र दिखावा है, क्योंकि उसकी सेवाएं कॉर्पोरेट ऑफिस में ली जा रही हैं, जहां नार्थ जोन के पूर्व अधिकारी सहित उसके सभी संरक्षक मौजूद हैं. उनका कहना है कि वर्ष 2015 से लेकर अब तक जितने भी टेंडर या तात्कालिक अनुमतियां आईआरसीटीसी द्वारा प्रदान की गई हैं, उनमें से प्रत्येक लाइसेंसी से न्यूनतम दस लाख रुपये तक की अवैध राशि का लेनदेन हुआ है, जो कि नीचे से लेकर ऊपर तक बंटी है. उनका यह भी कहना है कि इनमें से प्रत्येक टेंडर या अनुमति में कम से कम दो लाख का हिस्सा गुप्ता के खाते में आता रहा है. इन लाइसेंसीज की कुल संख्या 75 के आसपास बताई गई है. उन्होंने कहा कि यदि गंभीरतापूर्वक इन सभी लाइसेंसीज की निष्पक्ष जांच होती है, तो इसके अलावा भी तमाम गड़बड़ियों का खुलासा हो सकता है.
आईआरसीटीसी के कॉर्पोरेट ऑफिस में बैठे लगभग सभी अधिकारियों द्वारा अनिल गुप्ता को क्यों प्रोटेक्ट किया जा रहा है, आखिर दिल्ली में उनकी पोस्टिंग किस उद्देश्य को साधने के लिए की गई है, किस तरह फूड लाइसेंस के बिना टेंडर दिए गए हैं, आईआरसीटीसी पर कितना बड़ा कैटरिंग माफिया हावी है और इसके कुछ अधिकारी कितने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, किसी एरिया इंस्पेक्टर द्वारा ईमानदारी से अथवा कॉर्पोरेट ऑफिस के संबंधित अधिकारी को विश्वास में लिए बिना काम करने और किसी लाइसेंसी पर जुर्माना लगाने पर किस तरह उठाकर उसे दूरदराज फेंक दिया जाता है, किस तरह रेलयात्रियों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, किस तरह रेलवे बोर्ड की टेंडर पालिसी को दरकिनार किया जा रहा है, रेलनीर की आपूर्ति में हो रही घपलेबाजी का राज क्या है, इसके प्लांट लगाने के लिए निजी पार्टियों को दी गई अनुमति में कितने बड़े पैमाने पर कदाचार हुआ है, इन सब बातों का खुलासा अब धीरे-धीरे होगा. क्रमशः